कल शाम को देर से लौटा तो श्रीमती जी ने कहा कि आपको फोन किया था कि सुबह नाश्ते और ऑफिस के लिए सब्जी ले आना, लाये हो तो इधर धोने के लिए रख दो। हमने कहा कि आज हम दूसरे रास्ते से आये है, इसलिए सब्जी नही ला पाया, चलो नजदीक में सब्जी मंडी है अभी ले आता हूँ। मेरी आदत बना ली कि आकस्मिक परिस्थितियों को छोड़कर शाम को सूर्य अस्त से पहले भोजन ग्रहण कर लेता हूँ, ताकि रात सोने तक भोजन अच्छे से पच जाए। आज थोड़ी देर हो गयी तो हमने आकर तुरन्त भोजन किया और उसके बाद टहलने औऱ सब्जी लेने निकल पड़ा। देहरादून के दीपनगर में हरे पुल के पास सब्जी मंडी है, शाम को थोड़ा सब्जी सस्ती मिल जाती है, तो इस वजह से भीड़ भी बहुत होती है। खैर हम चलते चलते बाजार में चले गए। आदतन पहाड़ी हूँ तो कोई अपनी गढ़वाली भाषा मे बात करते हुए पाया जाता है, तो सुकून मिलता है कि दूधबोली के वाचक अभी संघर्ष कर रहे है राजधानी में इसे संरक्षित करने की। क्योंकि ये बीच बाजार में धड़ल्ले से आपस मे बात कर रहे हैं, जो अमूमन देखने को नही मिलता।
आगे बढ़ा तो सड़क के किनारे पर आलू प्याज की ठेली लेकर एक सज्जन खड़े थे, और दो महिलाएं आलू ले रही थीं। दोनों महिलाओं ने आदतन भाव पूछ ही लिया जबकि वह चार जगह पहले पूछकर आयी हैं। ठेली वाले सज्जन ने कहा कि "तुमन क्या भाव लीण, जू बजार मा बिकणु वी मि भी बीचणु छौ, 20 रुप्या किलो च, अपर पहाड़ी अलु त नि च, यख कखन आण पहाड़ी अल्लू न, जू च सी च"। जब मैने उनके मुँह से रुद्रप्रयाग लहजे की दूधबोली सूनी तो बरबस मेरे पाँव वहीं ठहर गए। मैंने भी गढ़वाली में बात करनी शुरू कर दी। दो किलो आलू मैंने भी तुलवा दिए औऱ साथ मे प्याज भी। आलू घर मे थे लेकिन उनसे बात करने की वजह से ले लिए। उनके साथ गढ़वाली में बात की तो वह खुलकर बात करने लगें। अब उन्होंने अपने बारे में जो बताया उसे जानकर मैं हतप्रभ हो गया।
उस सज्जन व्यक्ति ने अपना नाम बीर सिंह गुसाईं, मूल निवासी अगस्तमुनि, कुमड़ी गांव बताया। उन्होंने बताया कि वह पिछले 5 साल से यहीं किराये के मकान में रहते हैं, औऱ आलू प्याज की ठेली लगाते हैं, अपना चोखा काम है, ना झिक झिक ना कोई झंझट।
घर मे पत्नी, एक बेटा औऱ एक बेटी है। बेटा एक पेट्रोल पम्प में ऑफिस में काम करते हैं और बेटी ने अभी एक साल पहले 12 वी की है, जिसकी सगाई पिछले हप्ते ही एक फौजी लड़के से हो गयी है, लड़का उससे दो कक्षा सीनियर था। मैने कहा कि ठेली से आपके परिवार की गुजर बसर जो जाती है, तो उन्होंने कहा कि छत ढकने के लिए किराया ओर दो वक्त का नमक तेल का खर्चा मिल बांटकर निकल जाता है।
घरवाली मकान मालिक और उनकी पत्नी के लिए भोजन बनाती है, वहाँ से भी मदद मिल जाती है। मकान मालिक भले आदमी है, उन्होंने ही यह ठेली भी हमे लगाने के लिए दे रखी है। शाम को घरवाली दूसरी ठेली में महिला प्रसाधन का सामान बेचती है, उससे भी दो चार सौ कमा लेती है। बस गुजर बसर हो रही है। मैंने कहा कि गाँव से सीधे यही आये आप या पहले कुछ औऱ काम करते थे। तब उन्होंने अपनी आप बीती सुनाई।
गुसाईं जी ने बताया कि मैं 2011 तक लुधियाना में गत्ते की कम्पनी में काम करता था, वहाँ पर जब तक बड़े मालिक के पास प्रभुत्व था तब तक कम्पनी बहुत मुनाफा कमा रही थी लेकिन बच्चों में बंटवारा होने के बाद कम्पनी अपने को बचा न सकी। हम लोग छोटे बेटे वाले की कम्पनी में चले गये। छोटे बेटे ने काम मे जल्दी तरक्की करने के लिए चीन से नई मशीन मंगवायी गई। मशीन आने के कारण कुछ वर्करों की छटनी हो गयी, लेकिन हम तो वही रहे। मशीन एक महीने में खराब हो गयी औऱ बाद में रिपेयरिंग करने के बाद भी ठीक नही हुई। जाँच में पता चला कि जिस मशीन की डील हुई थी वह नही आई, औऱ मैनेजर में दोनों तरफ से मुनाफा कमाया , औऱ कम्पनी को धोखे में रखा। अंत मे मशीन को दो जेसीबी मशीन से निकाला गया। अंत मे कम्पनी घाटे का सौदा हो गई और ठेके पर चली गयी। अब हम लोगों को वेतन 6 से 8 महीने में बड़ी मशक्कत के बाद मिलने लगा। आखिर कार अपने गाँव लौट आया । बेटा मसूरी एक होटल में काम करता था, तो उसने कहा कि आप लोग भी इधर ही आ जाओ, मैं भी मसूरी आ गया और हॉस्पिटल में काम करने लगा। इसी बीच बेटे को पीलिया हो गया, उसका इलाज करवाया। इलाज में पूरी कमाई लग गयी, लेकिन अस्पतालों में इलाज नही मिल पाया तब किसी परिचित ने पंजाब में बतायी। मजबूरी थी क्या करते बच्चे की जान पर आई थी, रातो रात चले। वहाँ जाकर वैद्य से दवा ली तब जाकर बेटे पर एक महीने में 20 से 19 हुआ। अब भी उसको कई बार शिकायत हो जाती है। खैर अब फिलहाल सब ठीक चल रहा है।
बेटा ये समय का फेर है, कब आदमी को आसमान में चढ़ा दे औऱ कब जमीन में घुटनों के बल चलना सीखा दे किसी को मालूम नही। वक्त की लाठी कब सर पर पड़ जाए या कब सहारा बन जाये यो कोई नही जान सकता, लेकिन मुझे जिंदगी में यह सीखने को मिला कि हर काम मे रुचि रखना चाहिये, काम छोटा हो या बड़ा। अगर तुमको सम्मान से औऱ मेहनत से दो जून की रोटी सुकून से मिलती है तो उसको परिवार में मिलकर खुशी खुशी खाओ लो। आपको परिवार में सब रिश्तों में मिठास मिल जायेगी। अब तो बस उम्र पड़ाव पर है बेटी की शादी के बाद बेटे के सिर पर सेहरा बंधवा लू उसके बाद तो दोनों आदमी गंगा स्नान कर लेंगे। बाकि बेटा आते जाते रहते हो तो दो बातें कर लेना मन हल्का हो जाता है।
उसके बाद आलू लेने के लिये ग्राहक आ गए औऱ मैं भी आलू प्याज लेकर घर आ गया। रास्ते पर सोचते सोचते आ रहा था कि वास्तव में इस दुनिया मे कोई ताकतवर है तो वह है, वक्त। वक्त के अनुसार सम्भल गए तो वक्त कद्र करेगा वरना ठोकरें मरवा मरवाकर तुमको बहुत कुछ सीखा देगा इसी सोच के साथ घर मे प्रवेश किया तो धर्मपत्नी ने सवाल किया कि आलू खेत से निकालने गए थे या दुकान में बड़ी देर लगा दी, यह सुनते ही मेरे अन्दर का दार्शनिक ना जाने कहाँ चला गया और आलू प्याज किचन में रखकर अंदर कमरे में आ गया।