हम तुम्हें मानते-2 अपना मान बैठे
जाने कब जागे जाने कब सोये
तेरे मेरे बीच की हर बात को सपना मान बैठे।
तेरी हर अदा दिल से लगी
तेरी हर खता दिल से लगी
जाने कब तुझे हम अपना मान बैठे।
बदल जाऊ मैं यही चाहत है तुम्हारी
अब तेरी चाहत को अपना फर्ज मान बैठे।
तू जैसे चाहे वैसे ढल जायेगे हम
तू चाहे जैसे वैसे संवर जायेगे हम
लेलेगे वो सारी बुरी बलाए खुदा से
मांग लिया तुमको हमने इस दुनिया से
तेरे साथ हम अपना संसार सजा बैठे।
चाहत है अब तुझमे सो गए है, अब ना जगाना
खो गए है अब तुझमे अब ना सताना
दे ना सके तो हमे कुछ गम नही
तेरी एक नजर मेरे लिए कम नही
है दो पल का साथ हँसले ओर हँसाले
हमतो ज़िंदगी भर के लिये तुम्हे अपना मान बैठे।
"मनखी" की कलम से