मेंहदी (भाग -2)
इधर दूसरे कक्ष में दूल्हे को मेंहदी लग रही थी दूल्हे को तो मेंहदी लग चुकी थी, और बाकि पूरे बहिनें चाची ताई, फूफु मामी, जितने भी रिश्तेदार भी हाथ आगे कर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे, मेंहदी लगते ही फोटो ग्राफर भी कमरे में आ चुका था, उसने भी फोटो शूट करना शुरू कर दी, पंडित जी तो दूसरे घर में सोने चले गये, ईधर मेंहदी लगाने वाला बडे शौक से मेंहदी लगा रहा था, बाकि रस्म तो खानापूर्ति करने के लिए किये गये लेकिन मेंहदी पर पूरा समय दिया जा रहा था, मेंहदी शगुन की मानी जाती है, इसलिए आज मेंहदी का
ज्यादा प्रचलन टीवी शीरीयलों से अधिक हो गया हैं, वरना हमारे जमाने में तो पहले मेंहदी के पत्ते पीसे जाते थे उसके बाद मेंहदी लगती थी बस एक फूल दायें हाथ पर या ज्यादा से ज्यादा बस गोल गोल बिंदी हाथ में रख दी जाती थी, मेंहदी की डिजाईन तो शायद ही कोई जानता होगा।
बलवंत ने दूल्हे को कहा कि ढोल वादक कहॉ गये होगें, आज नौबत नहीं लगी, जरा उन्हें खोजकर लाओ, दो लड़के ढोल वादकों को ढूंढने गये तो वह सो गये थे, उन्हें उठाया तो पहले उन्होने मना कर दिया, लेकिन थोड़ा मान मनौव्वल करने के बाद वह मान गये, बीड़ी पीते हुए वह ढोल गले मेंं टॉककर दूल्हे के ऑगन मेंं आ गये। बलवंत ने कहा अरे तुम लोगों ने नौबत नहीं बजायी और सो गये,नौबत तो शादी की शान और शादी परिवार की इज्जत होती है।
ढोल वादक भगतू ने कहा कि भाई जी आजकल के जमाने में डीजे में ही नौबत, बान, धुयांल सब बज जाते हैं, हमें तो बस शगुन के लिए बुलाया जाता है, आप जैसे दो चार सज्जन हैं जो हमारी खैर खबर पूछ लेते हो वरना आजकल के लोग तो डीजे में नाचना पंसद करते है, आप तो नौबत के बारे मे जानते भी हो, नए बच्चों को तो वह भी मालूम नहीं । बलवंत ने 100-100 के दो नोट निकाले और थोड़ा रासों बजाने के लिए कहा, दोनों ढोलवादक ढोल के जानकार हैं तो थाप देनी शुरू कर दी, इधर मसकबीन वाले ने भी मसक पर बेड़ू पाको बारों मासा की धुन लगा दी, बलवंत संगीत में मगन हो गया और नाचने लग गया, दो चार उसके जैसे खुदेड़ भी नाचने लगे।
इतने में तीन चार लोग जो नशे मे धुत थे वह ढोल वादकों को गाली देते हुए कहने लगे कि अरे ढोल वोल हटाओ, डीजे वाले को बोलो कि जरा ढंग का भंगड़ा लगा दे या कोई वैर्स्टन गाना हो वह लगाओ, ढोल वादकों ने ढोल बजाना बंद कर दिया और डीजे पर पहले भांगड़ा और फिर फुरकी बांद , छकणा बाद जैसे गीत बनजे शुरू हो गये, बलवंत मन मसौरकर पडौस वाले घर में जाने की तैयारी कर रहा था कि तब तक उसका साला मोहन बुलाने आ गया कि जीजा जी आपको बड़े जीजा यानी दूल्हे के पिताजी बुला रहे हैं।
अंदर गया तो मेंहदी लगाने वाले दोनें लड़को से दूल्हे के पिताजी बहस कर रहे थे, मेंंहदी वाले शगुन के 11100 रूपये पर अड़े थे कह रहे थे कि हमने पूरे खानदान के हाथों में मेंहदी लगायी है, वैसे तो हम 21 हजार रूपये लेते हैं, लेकिन दूल्हा जानने वाला है तो 11000 रूपये ही दे दो, ईधर दूल्हे के पिताजी 2100 से ऊपर देने को तैयार नहीं थे, बलवंत इससे पहले कुछ कहता तब तक दूल्हा आया और उनको 11000 रूपये देकर जाने को कह दिया, वह दोनों निकल गये, दूल्हे को उसके पिताजी ने कहा कि इतने मॅहगी मेंहदी वाले करके क्या फायदा, दूल्हे ने कुछ नहीं कहा और कमरे से बाहर निकल गया।
बलवंत ने कहा कि मैं सोने जा रहा है, सुबह जल्दी बारात की तैयारी करनी है, यह कहते हुए घर से निकल गये। अब आगे बारात में क्या कुछ होता है, जानने के लिए अगला भाग पढिये।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।