अनकही मोहब्बत भाग 2
इधर अजय ने नया साल का ग्रीटिंग कार्ड पोस्ट कर दिया है। डाकिया 4 दिन बाद मानसी के गाँव के किसी व्यक्ति के पास दे देता है। गाँव का व्यक्ति मानसी का रिश्ते में चाचा लगता है, लेकिन सरल स्वभाव के होने के चलते उन्होंने वह ग्रीटिंग कार्ड मानसी के दादी के पास दे दिया। मानसी उस समय किसी काम से घर से बाहर गई हुई थी, दादी ने वह कार्ड बक्से के ऊपर रख दिया औऱ काम पर लग गई। कुछ देर बाद मानसी के दादा ने बक्से से कुछ सामान निकालने के लिये खोला और ग्रीटिंग कार्ड बक्से के पीछे गिर गया।
मानसी को ग्रीटिंग कार्ड की कोई खबर नहीँ है, इधर अजय के मन औऱ मस्तिष्क में विचारों का सिलसिला चलना शुरू हो गया, कभी वह सोचता कि अगर किसी के हाथ मे वह ग्रीटिंग कार्ड लग गया तो पूरे घर में भूचाल आ जायेगा। मानसी सबको क्या जबाब देगी, वह मुझे कितना गलत समझेगी , अब क्या होगा जैसे विचार मनो मस्तिष्क में उथल पुथल कर रहे थे । वही किशोरावस्था का तूफानी मन कह रहा था एक बार तो मानसी को मेरी मोहब्बत मोहब्बत और चाहत का पता तो लगना ही है क्यों ना इस ग्रीटिंग कार्ड से ही पता चल जाए कि मैं मानसी को सब कुछ मान चुका हूं, मेरी सपनो की दुनिया बस उसी से शुरू होती है और उस पर ही खत्म होती है। अल्हड़ जवानी के उफनते तूफान में सब कुछ जायज नाजायज सब एक जैसे लगता है।
इन्ही सब के बीच स्कूल खुलने की तारीख नजदीक आ गयी। अब अजय के लिये 24 घण्टे काटने मानो 24 साल लग रहे थे, बस इंतजार था स्कूल खुलने का औऱ मानसी के चेहरे पर खुशी देखने का, अनेको अकल्पित कल्पनाओं का संसार जो उसने सजाया था वह उसे मानसी के सामने खोलना चाहता था। रात का एक एक पल भारी लग रहा था, कभी घर की छत पर तो कभी वह आँगन में टहल रहा था, सोने की नाकाम कोशिश करता रहा लेकिन आंखों में नींद कोसो दूर थी, आँख बंद करने की कोशिश करता भी तो मानसी की कल्पनाओ में वह सोना भी भूल जाता। दिवास्वपन इन्ही को कहा जाता है। रात जैसे तैसे करके नींद आई और वह सो गया। उधर मानसी इन सब बातों से बेखबर है क्योंकि उसे ग्रीटिंग के बारे में अभी कोई जानकारी नही है।
अगली सुबह अजय औऱ मानसी स्कूल के लिए निकल गए, अजय इंतजार नही कर पा रहा था। मानसी बस अजय को देखना चाहती थी, दोनो प्रार्थना सभा मे पहुँच गए पहले एक दूसरे की निगाहें मिली, मानसी की पलके शर्म से झुक गई, बस दिल को अपनत्व का आभास हुआ। अजय उंसकी नजरो को पहचानने की कोशिश कर रहा था , लेकिन कच्ची उम्र का कम अनुभव वह मानसी के नैनो की गहराई को नहीँ पढ़ पाया। लंच ब्रेक में दोनों का आमना सामना भी हुआ किन्तु अजय कुछ बोल नही पाया। मानसी ने चलते चलते हैप्पी न्यू ईयर कहा, लेकिन अजय सेम टू यू भी नहीँ कह पाया।
वक्त को कौन कब रोक पाया है, 12 के बोर्ड परीक्षा की तिथि आ गई अब 12 के सभी छात्र पढ़ाई पर ध्यान देने लगे, इधर अजय और मानसी दोनो किताब खोलते तो बस दोनो को एक दूसरे का ख्याल आता, लेकिन बोर्ड परीक्षा सिर्फ पास ही नहीँ करनी थी बल्कि अच्छे मार्क्स भी लाने थे इसका दबाव अलग था। अब एक दो दिन छोड़कर स्कूल जाना होने लगा।। इधर 12 कि फरवरी महीने में परीक्षा की तैयारी करने की अवकाश की घोषणा हो गई साथ ही उन्हें फेयरवेल देने के लिये कक्षा 11 को बोल दिया गया।
बोर्ड परीक्षा से पहले 12 के सभी विद्यार्थियों के लिए फेयरवेल का आखिरी दिन था,अजय को उम्मीद थी कि मानसी अपने दिल की बात या ग्रीटिंग की बात बता ही देगी, वह आज अपने मन के भावों को खुली किताब की तरह मानसी के सामने रख देगा। इधर मानसी भी सो सोच रही थी कि अजय को अपनी अनकही मोहब्बत का इजहार कर दूंगी।
फेयरवेल का दिन भी आ गया। सब बैठे हुए थे अजय मानसी एक दूसरे को चुपके चुपके निहार रहे थे, बहुत कुछ कहना चाहते थे लेकिन डर और झिझक के चलते लफ्जो को शब्दों में तब्दील नही कर पा रहे थे। वाकई में उन्हें लग रहा था कि इश्क का इजहार करना इतना आसान नही होता जितना इश्क करना होता है। बस आंखों ही आंखों में एक दूसरे का दीदार कर खुद को लैला मजनू समझ रहे थे। अब इधर स्कूल के प्राचार्य ने अपना भाषण और शुभकामनाएं दी, 11 वी वालो ने जलेबी समोसे खिलाये और 12 के विद्यार्थियों का फेयरवेल हो गया। मानसी जाते हुए पीछे मुड़कर अजय को देख रही थी और अजय चु
पचाप हाथ हिलाकर भारी मन से विदाई दे रहा था।
मानसी को अजय का भेजा ग्रीटिंग कार्ड मिल पायेगा भाग 3 में पढिये।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।