सुनैना और सुयश की शादी को लगभग 6 साल हो गए, उनके दो बच्चे हैं। अब बच्चे बात करने के माध्यम बन गए है। बड़ी बेटी रूही जो लगभग 5 साल कि है, और छोटा बेटा लगभग 8 महीने का। घर मे जब से बच्चे हो गए, तब से दोनों अपनी निजी जिंदगी को बच्चों पर न्यौछावर कर रहे हैं। पति पत्नी में थोड़ा बहुत तू तू मैं मैं होता ही रहता है। इस बार दोनों की तू तू मैं मैं बंगाल चुनाव के बयानों की तरह हो गई। अब समझौते की गुंजाइश कम ही दिखाई दे रही थी, दोनों का का वाक युद्ध विराम मौन धारण पर जाकर रुका।
दो दिन तक घर मे शांति का वातावरण और मौन पसरा रहा, लेकिन बेटी की चुहल मुस्कराहट के लिये मौन को तोड़ देती। सुयश अपना ऑफिस चला जाता और सुनैना अपना घर का काम निपटा देती। तीसरे दिन से बेटी संदेश वाहक बन गयी। सुयश से जो सामान मंगवाना हो या सुनैना ने अपनी कोई बात कहनी हो तो रूही को सम्बोधित कर अपनी बात कह देते।
जैसे सुनैना को सुयश से दूध मंगवाना हो या सामान तो रूही को कहती कि रूही दूध खत्म हो गया है तुझे चाय पीनी हो तो दूध ले आओ। ऐसे ही सुयश को उसके कपड़े या कोई सामान नहीं मिलता तो वह रूही को कहता बेटा तुमने मेरी नीली शर्ट कँहा रखी है। बेचारी रूही दोनों के झगड़े के बीच त्रिशंकु बनी हुई थी। आधी बात तो उसकी समझ में ही नही आती थी। दो दिन तक बिटिया ने सन्देश वाहक की बड़ी भूमिका अदा की।
अचानक सुयश के पाचन शक्ति बिगड़ गई, बार बार टॉयलेट की यात्रा कर वह बेहाल हो चुका था। उसने रूही को बताया कि बेटा उसका पेट खराब है, उसके लिए वह खाना नही बनाये। इस बार सुनैना ममता बैनर्जी की भूमिका निभानी थी, सुयश के पेट खराब होना जैसे उसके लिये पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने के जैसे और किसान आंदोलन पर सत्ता पक्ष की टाँग खींचने जैसे थी। सुयश को भी मौका मिलता तो वह भी बंगाल की धरती पर अपनी वाकशैली से तीखे कटाक्ष करता।
इधर सुयश पेट की समस्या से ग्रसित होने से खाना नही खा रहा था, तो सुनैना रूही को माध्यम बनाकर चिढ़ाती की आज तो छोले भटूरे और समोसे खाते हैं। बाजार का खाना स्वादिष्ट होता है मेरा बनाया तो बेकार होता है बेटा। सुनैना इस बार चिढ़ाने का मौका नही छोंड़ना चाहती थी, सुयश बस मुस्कराकर रह जाता।।
रूही दोनों के बीच हैंडिल बनकर गृहस्थि की गाड़ी को खींच रही थी, लेकिन दोनों के बीच विदुर बनी हुई थी। सुयश की स्थिति पर जब नियंत्रण नही हुआ तो सुनैना ने अपने फर्स्ट एड बॉक्स से पुदिनहरा कि गोली निकालकर रूही को पकड़ाते हुए कहा कि मरीज को कहना कि वह घर के डॉक्टर को भी आजमा लिया करे, हमेशा बाहर का जोगी ही सिद्ध नही होता, कभी घर का जुगना भी महायोगी साबित होता है, यह कहकर दोनों ठहाके मारकर हँसने लगे और सुयश हँसते हँसते टॉयलेट कि ओर चल पड़ा।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।