*छांव*
वर्क फ्रॉम होम होने के कारण अंकुर अपना व्यस्त शेडयूल में से कुछ समय परिवार के लिए निकाल लेता है। अंकुर ने सोचा कि चलो इस बार गॉव से माताजी और बाबू जी को साथ ले आता हॅू, कुछ दिन उनके छॉव में रहने का मौका मिलेगा, आज की भाग दौड़ जिंदगी और एंकाकी परिवारों के चलते नई पौध को पुराने पेड़ों की छॉव नहीं मिल पाती है, जिस वजह से नये पौधे स्वछन्दता से आगे तो बढ जाते हैं, किंतु उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान देने वाला कोई नहीं मिल पाता है, अंकुर दार्शनिक प्रवृत्ति के साथ व्यवहारिक सोच का मिला जुला मिश्रित व्यक्त्वि है।
वहीं अंकुर की पत्नी रश्मि इकलौती बेटी होने के कारण परिवार में स्वछन्द प्रवृत्ति होने के कारण उसे ज्यादा दबाव पंसद नहीं है। बचपन से ही अपनी मनमानी करने वाली अल्हड़ युवती को किसी की बात या आदेश सुनना उसके जैसे लिए कोई गुलामी हो। एंकाकी परिवारों में बच्चों की स्चछन्दता ने सहनीशलता को बौना कर दिया है, जिस वजह से उसे किसी के साथ रहना अखरता है।
समय तो मुट्ठी में रेत की तरह होता है, कब मुट्ठी से फिसल रहा है, इसका अनुमान मुठ्ठी खोलने के बाद ही पता चलता है। ऐसे ही नई नई शादी की उमंग यौवन और उत्साह में एक साल कब निकल गया अंकुर और रश्मि को पता नहीं चला। रश्मि चाहती है की दो तीन साल तो बिना बच्चो के ही यूंही मौज मस्ती में कट जाये, फिर उसके बाद ही सोचेंगे आगे के बारे मे. वंही अंकुर का सोचना था की समय पर सब कुछ अपने अनुकूल हो जाये तो अच्छा है, भविष्य कौन देख आया है, वैसे भी घर गाँव के बुजुर्गो का कहना है की वक़्त की औलाद और बाजुओं की फौलाद हमेशा साथ देती है।
एक दिन अंकुर के माता और पिताजी का फोन आता है कि वह कुछ दिन के लिए उनके साथ आना चाहते हैं, अंकुर की माता का स्वास्थ्य सही नही था, वह डॉक्टर को दिखाने के लिए आना चाहते हैं, अंकुर कहता है कि आपको पूछ्ने की आवश्यकता नहीं है, आप कल ही आ जाओ।
अंकुर की माँ ने कहा की बेटा एक बार रश्मि को पूछ लो, कहीं उसे यह नहीं लगे कि हम लोग तुम लोगो की निजी जिंदगी में दखल नहीं डाल रहे हैं।
अंकुर ने कहा माँ आप ऐसा क्यों सोच रहे हो, हम यदि आप जैसे बट वृक्ष के नीचे रहकर प्रेम की छाँव में रह सके यह हमारा सौभाग्य होगा, पेड़ से नीचे गिरने वाले पत्ते भी खाद बनाते है, आपकी डांट भी हमारे लिए खाद का काम करेगी।
माँ अपने बेटे के जबाब सुनकर बहुत खुश होती है, और अपने पति को ताना मारती है, देख लिए मेरे संस्कार, आज भी हमारा बेटा हमारे महत्व को समझता है, यह सुनकर पति कहता है कि संस्कार अच्छे दिए हैं, इसके लिए आपका आभार, क्योकि वह उस वक्त बहस को आगे नहीं बढ़ाना चाहता है.।
इधर अंकुर अपने माँ पिताजी के आने की बात अपनी पत्नी रश्मि के साथ साझा करता है, रश्मि सोचती है की दो चार दिन के लिए ही आ रहे होंगे, फिर चले जायेंगे, इसलिए हँसते हुए कहा कि अच्छी बात है।
अगले दिन अंकुर के पिताजी और माता जी दोनों आ गए, अंकुर उनको लेने बस अड्डा जाता है, औऱ दोनों को लेकर घर आ जाता है, सासु बहु का मिलन और स्नेह ससुर जी का आशीर्वाद लेकर, रश्मि पानी लेकर आती है, और पूछती है कि उनको रास्ते पर कोई समस्या तो नही हुई। दिन का भोजन शाम की चाय, के साथ गाँव की ख़बरसार के साथ व्यतीत हुआ।
अंकुर पूरे गाँव के सभी बड़े और छोटे के बारे में जानकारी ले रहा था, बचपन की पगडंडी, से लेकर स्कूल के दिन के दोस्तो की यादे आज तरो ताजा हो गई।
अगले ही सुबह अंकुर अपनीं माँ को लेकर हॉस्पिटल ले जाने के लिए तैयार होने लगता है, रश्मि कहती है कि आप ऑफिस जाईये मैं साथ मै जाऊँगी, पापा घर पर ही रह लेंगे। अंकुर को रश्मि से यह उम्मीद नही थीं कि वह ऐसा करेगी, जबकि वह आज तक समाज में सास बहू के आपसी शीत युद्ध और रिश्ते को लेकर पूर्वाग्रह बनाकर बैठा था, लेकिन यँहा रश्मि के अल्हड़ व्यवहार के विपरीत माता पिता के प्रति अनुकूल व्यवहार को देखकर आश्चर्य चकित था किंतु कहा कुछ नहीं, और ऑफिस चला गया।
रश्मि अपनी ससुर सासू जी को लेकर शहर के जाने मानें हॉस्पिटल में लेकर गई वँहा डॉक्टर से चैकअप करवाकर दवाई लेकर सीधे पैसेफिक मॉल लेकर गई और वँहा ससुर सासू जी को मूवी दिखाई फिर वँहा से उनके लिए खरीददारी करवाई और बाजार से ही बढ़िया रेस्तरां में जाकर लंच करवाया फ़िर घर आ गए।
शाम को अंकुर आया तो घर मे खूब हँसी ठहाके लग रहे थे, आते ही रश्मि को पूछा कि डॉक्टर ने क्या कहा, रश्मि ने कहा कि पाँच दिन की दवाई दे रखी हैं, फिर दिखाने को कहा है, इतने में अंकुर की माँ ने कहा कि आज तो रश्मि बेटी ने हमको मॉल घुमाया हमारे लिए कपड़े और जरूरी सामान लिया, फिर रेस्तरां में डोसा खिलाया, बस एक घण्टे पहले ही चाय पी है।
अंकुर रश्मि के इस व्यवहार परिवर्तन से खुश कम औऱ अचंबित ज्यादा था, क्योंकि वह बिल्कुल विपरीत सोचता था, वह इसलिए सोचता था कि रश्मि जिस तरह से इकलौती बेटी और अल्हड़ युवती रही है, साथ मे अंकुर के साथ जिस तरह हाजिर जबाब देती है, अन्य को भी किसी तरह गलती होने पर चुप नहीं रहती है बल्कि उसी समय टोक या करेक्ट कर देती है, लेकिन यँहा माताजी और पिताजी के प्रति उतना ही सौम्य व्यवहार था।
अंकुर के माता पिताजी लगभग एक हप्ते तक साथ रहे रश्मि ने उनके साथ एक बेटी के जैसे बर्ताव किया यह सब अंकुर के लिये हतप्रभ करने वाला क्षण था, जब माता पिताजी वापिस गाँव चले गए तो अंकुर ने रश्मि को धन्यवाद किया, इस पर रश्मि ने आश्चर्यजनक रूप से अंकुर की ओर देखा और कहा कि महाशय धन्यवाद किस बात का।
अंकुर ने कहा कि जिस तरह आपका लालन पालन ,औऱ अब तक का व्यवहार देखा है, उससे मुझे लगता था कि आप मेरे माताजी पिताजी के साथ भी करोगी क्योंकि तुम किसी की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करती हो, किन्तु तुमने इसके विपरीत बहुत ही अच्छा व्यवहार किया जिसकी कभी मैने कल्पना नहीं की थी।
यह सुनते ही रश्मि ने तकिया फेककर मारा औऱ कहा कि अंकुर सिर्फ तुमको ही अधिकार नही है छाँव में रहने का, मुझे भी उतना ही अधिकार है, थोड़ा बहुत परेशानी होती है, सामजस्य बिठाने में, लेकिन अपने बड़ो की छांव में जो आंनद मिलता है वह हर किसी को नसीब नहीं होती है, आजाद भरी ज़िन्दगी में भी कुछ बंदिशे अगर अपनो की हो तो उस आजादी का महत्व समझ आता है, और सुनो माताजी कहक़र गई है कि अगली बार वह पोती या पोते को खिलाने यँहा आएगी, अब बाते मत बनाओ और माता जी की आज्ञा का पालन करो, फिर दोने हंसते हुए एक दूसरे की बाहों में खो जाते हैं।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।