उम्मीद
नरेश और महेश बृजेश तीनो परम् मित्र थे, 12वी के बाद तीनो अलग अलग शहरों में पढ़ने के लिये निकल गए। महेश और बृजेश की सरकारी नौकरी लग गयी , जबकि नरेश ने अपना काम शुरू कर दिया।
तीनो शादी के बाद अपनी अपनी दुनिया मे व्यस्त हो गए, अब पहले जैसी कोई बात नही रही। लेकिन साल में तीनों एक दो बार मिल ही लेते थे। वैसे फोन पर आपस मे बातचीत होती रहती थी।
नरेश का काम सब ठीक चल रहा था, महेश और बृजेश की अपेक्षा वह अधिक धनार्जन कर रहा था। कोविड कि वजह से नरेश का धंधा चौपट हो गया, नरेश अर्श से फर्श पर आ गया।
अब नरेश ने अपने मित्रों पर पूरा भरोसा और उम्मीद थी। उसने दोनों को फोन लगाया और अपनी माली हालत की जानकारी देकर मदद की अपेक्षा की। बृजेश और महेश ने दोनों ने मना तो नही किया लेकिन बहाना बना दिया। नरेश को दोनों से यह उम्मीद नहीं थी, वह उन्हें अपनी मुसीबत में जमा पूंजी समझता था, जब उनकी तरफ से कोई मदद नही मिली तो वह बहुत दुःखी ही नही बल्कि निराश हो गया, वंही एक दिन उसने अपने तीसरे मित्र रवि को फोन किया जिसकी कैमिस्ट की दुकान थी, लेकिन उससे उसे मदद की कोई उम्मीद नहीं थी।
बातो ही बातों में रवि ने अंदाजा लगा दिया कि नरेश की इस समय आर्थिक हालात सही नही चल रहे हैं, उसने बिना कहे ही उसकी मदद करने की सोची। वह अगले दिन अपनी चैक बुक लेकर नरेश के घर गया, और उससे कहा कि भाई मैं आपका मित्र हूँ, एक मित्र ही दूसरे मित्र का मुसीबत में काम आता है, अभी तुम्हे जरूरत है, धन वही काम का होता है जो वक्त पर किसी की मुसीबत में काम आए, आज तुम्हे मेरी जरूरत है कल मुझे आपकी जरूरत हो सकती है।
यह सुनकर नरेश की आंखों में खुशी के आँसू थे, उसने अपनी मन की सारी बात बता दी, और यह भी कहा कि जिन मित्रों से मुझे उम्मीद थीं उन्होंने बहाना बना दिया, तुमसे मुझे कभी कोई उम्मीद नही थी लेकिन तुमने मेरी ही मदद की। इस पर रवि ने कहा कि आशा और उम्मीद दुख का कारण होता है, और किसी से उम्मीद ना रखना सबसे बड़ा सुख का कारण होता है।
माँ बाप को बच्चो से उम्मीद नही रखनी चाहिए, मित्र को मित्र से कोई बड़ी आशा नही रखनी चाहिए, ऐसे ही पति पत्नी को एक दूसरे से बड़ी उम्मीद नहीं रखनी चाहिये, हो सकता है जब आप उम्मीद रख रहे हो और वह किसी विषम परिस्थिति में हो आपकी चाहकर भी मदद नही कर सकते हो, या उनके पास धन वैभव उपलब्ध भी हो वह नही देना चाहते हो, क्योकि उस पर उनका निजी अधिकार है, हमारी उनसे अपेक्षा रखना अपने मनोभावों को दुःखी करने के लिए पहला कारण है।
नरेश की समझ मे रवि की बात आ गईं और वह खुश होकर बोला कि आशा या उम्मीद दुःख एक प्रमुख कारण है। अतः आज के बाद कभी किसी से कोई उम्मीद नहीं रखूंगा। रवि ने नरेश को चैक पकड़ाते हुए कहा कि यह आपकी ना उम्मीद की तरफ से छोटी सी मदद है, स्वीकार कीजिये,दोनों हसंते हुए चाय की चुस्कियां लेने लगे।
©®@ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।