बेटा बच्चों की गर्मियों की छुट्टियॉ हो जायेगी तो सब लोग आ जाना, यह सब बातें नंदिता अपने तीनों बेटियों और दोनों बेटों को कहती है। नंदिता और उनका पति देवेन्द्र अकेले घर में रहते हैं, उन्हें बेसब्री से इंतजार रहता कि उनके नाती पोते द्योते सब गर्मियों की छुट्टियों में यहॉ आये कुछ दिन घर में बच्चो का कौतुहल रहे, जिससे उनका मन कुछ दिन तक बहल सके। देवेन्द्र पोस्ट ऑफिस में क्लर्क थे, बस महीने में मिलने वाली तनख्वा जीवन निर्वाह का एक मात्र साधन था। नंदिता थोड़ी बहुत सिलाई बुनाई का काम जानती थी, घर के कार्यां से जब भी समय मिलता वह आस पडौस के लोगों की ड्रेस आदि सील लेती और सर्दियों में दो चार स्वेटर बुन लेती, जिससे घर की साग भाजी और दूध का खर्च निकल जाता। बच्चों को मिडिल क्लास स्कूलों में पढाकर उन्हें अपने पैरों में खड़ा कर दिया और बेटियों की शादी भी अपने हैसियत के अनुसार अच्छे घरों में कर दी।
देवेन्द्र के सेवानिवृत्ति के बाद नंदिता ने भी सिलाई बुनाई का काम छोड़ दिया, उम्र का पड़ाव ही ऐसा था कि अब मशीन की सुई में धागा डालने के लिए भी चश्मा साथ नहीं देता है, तब किसी पड़ौसी की सहायता के लिए बुलाओ, या किसी परिचित की खुशामद करो। पेंशन से दोनों का गुजारा हो रहा है, कभी बेटे बहु या बेटियां भी मॉ को जबरदस्ती कुछ रूपये पकड़ाकर चले जाते,जिससे उनकी छोटी मोटी आवश्यकतायें पूरी हो जाती। देवेन्द्र बाबू ठहरे परम संतोषी, नौकरी के दौरान उन्होंने कभी ऊपर की कमाई की नहीं सोची, बस ध्यान दिया तो इतना कि जिससे घर चल सके।
हर गर्मियों की छुट्टियों में नाती पोते आ जाते तो उनकी देखभाल और उनके साथ समय कब व्यतीत हो जाता पता ही नहीं चलता, नाती पोतों के से ज्यादा इंतजार देवेन्द्र और नंदनी को रहता, क्योंकि अब दोनों ही साथ रहते, देवेन्द्र टीवी में समाचार देखने में व्यस्त रहता तो भी नंदिता अपनी पंसद की सीरियल देख लेती लेकिन टीवी भी देखें तो कितना। अब पहले जैसा काम भी नहीं रह गया है, घर में काम करने के लिए मेड लगा रखी है घर का झाडू पोछा वह कर लेती बर्तन वह धो लेती, कपड़े मशीन में धुल जाते है, बस नंदनी का काम दोनें के लिए नाश्ता और दिन एवं रात का खाना बनाना । जवानी में तो काम से फुर्सत नहीं मिलती थी, अब दिन में सो जाय तो रात को नींद नहीं आती है, पहले दिन में तो सोने की कल्पना करने का तक वक्त नहीं मिलता था, उस समय रात को भी नींद पूरी हो जाये वही काफी होता था।
नंदिनी ने अपनी पति देवेन्द्र से कहा कि अब बच्चे आने वाले हैं, उनके लिए बाजार से सामान ले आओ, आज के बच्चे हरी सब्जी तोरी पंसद कम करते हैं, उनके लिए तो मैगी पाश्ता और नूडल्स चाहिए होते हैं, थोड़ा बिस्किट, और अन्य बैकरी का सामान भी नहीं है, वह भी ले आते हैं। देवेन्द्र ने सहमति जताते हुए कहा कि शाम को चलते हैं, सामने ही तो बिग बाजार खुला है, वहॉ से लेकर आ जायेगे, तब तक तुम सामान की सूची बनाकर रखो। नंदिनी ने सामान लिखना शुरू किया तो लिखते लिखते दो पेज भर गये, अपना तो आधे पेज में काम चल जाता है, लेकिन नाती पोतों के लिए कोई कमी न हो यह देखते हुए कभी जो अजूल फजूल लगने वाले सामान भी आज उसे बच्चों की मोहब्बत के आगे सब जरूरी लगने लगे। दोनोशाम को बाजार जाकर सब सामान लिया और आज पहली बार देवेन्द्र ने नंदिता से कहा कि आज तक हम बच्चों के बारे में ही सोचते रहे, अपने लिए तो तुमने कभी सोचा ही नहीं, आज तुम भी अपनी पंसद का कुछ ले लो या फिर बाहर जाकर कुछ खा लो, ंनदिता ने उलाहना देते हुए कहा कि आज सूरज ने अपनी दिशा बदल दी है पूरब की जगह पश्चिम से उदय हो रहा है, आज तक तुमने कितनी बार बाहर जाने के लिए कहा, आज तब आये हो जब मैने बच्चों के लिए कुछ लेकर आने को कहा, तब आप आये, चलो खैर आज तुमने कहा तो सही, इसी बहाने बैठकर कुल्फी का आनंद ले लेते हैं। दोनों ने बरसों बाद इस तरह बाहर बाजार में एक साथ बैठकर कुल्फी खायी।
अगले दिन बेटा-बहु, बेटी-दामाद नाती-पोते के साथ आ गये, घर में खूब रौनक है, नंदिनी ने सबके लिए सबकी पंसद का नाश्ता बनाकर रखा हुआ था, देवेन्द्र नाती पोतों के साथ बैठकर उनसे बातें करने में व्यस्त हो गया। सभी बेटे दामाद, बेटी, बहु, आकर अपने-अपने फोन पर लग गये, नंदिनी ने कहा पहले सभी फ्रैश हो जाओ, फिर नाश्ता करो और तब देखते रहना फोन, सबने सिर हिलाया, और एक दूसरे को देखते हुए इशारा करने लगे कि पहले तुम नहा लो, यह देखकर नंदिनी को आश्चर्य हुआ, बचपन में यह बच्चे पहले मैं नहाउंगा के लिए लड़ते थे आज फोन ने इनको इतना वश में कर लिया है कि आज यह एक दूसरे की और इशारा कर रहे हैं कि पहले तुम नहा लो। नंदिनी ने सबसे पहले बच्चों को नहलाकर उन्हें नाश्ता करवाया। ईघर देवेन्द्र सोच रहा था कि बच्चों के साथ बैठकर ही नाश्ता करूंगा, लेकिन सभी रील्स देखने में व्यस्त थे। देवेन्द्र ने फिर एक बार कहा कि चलो नाश्ता कर लो, फिर देखता रहना फोन।
लगभग डेढ घंटे बाद सब फ्रेश होकर नाश्ता के लिए डाईनिंग टेबिल पर पहॅुचे, सबकी पंसद का खाना बना हुआ था, सब खुश थे, और आपस में कहने लगे कि मॉ को आज तक हमारी पंसद का खाना याद है, मॉ ने कहा बेटा हमारे लिए तुम आज भी बच्चे हो भले ही तुम्हारे बच्चे हो गये हों, लेकिन मॉ के लिए हमेशा वह बच्चे ही रहते हैं। इतने में नंदिता की पोती सुहानी ने कहा नानी आपको यह सब कैसे याद रहता है, जबकि हम तो कभी कभी आते हैं, फिर भी आपको याद है। नानी ने पोती के गाल सहलाते हुए कहा बेटा हम तुमको बहुत प्यार करते हैं तो आपकी हर पंसद और ना पंसद सब जानते हैं।
सुहानी नानी के साथ ज्यादा घुलने मिलने लगी। नानी ने कहा आप लोग आते हो तो हमें अच्छा लगता है, लेकिन अब पहले जैसे ननिहाल नहीं रहा, अब तो बस आने जाने का सिलसिला बना रहता है, ताकि दिखावे के लिए रिश्ते बचे रहें। यह सुनकर सुहानी ने कहा नानी आप ऐसा क्यों कह रहे हो, हम भी ते आप से बहुत प्यार करते हैं, इस पर नानी ने कहा बेटा तुम अभी छोटे हो, इसलिए तुम अभी हमें प्यार करते हो,जिस दिन तुम्हारे हाथ पर मोबाईल आ जायेगा उस दिन तुम भी सब रिश्तों को भूल जाओगे।
नानी सुहानी को लेकर ड्राइंग रूम में लेकर गयी और वहॉ पर दृश्य को दिखाते हुए बोली कि देख रहे हो ये सब हमारे अपने बच्चे हैं, जब तक मोबाईल नही था तब तक यह सब आपस में बातें हॅसी मजाक, ठिठोली, करते हुए हॅसते और मुस्कराते रहते थे, हम भी अपनी पीड़ा और खुशी इनके साथ जाहिर कर लेते थे, आज कहने को तो सब एक साथ इकठ्ठे हुए हैं, कमरे में सबके शरीर तो मौजूद हैं, किंतु ध्यान और दिमाग तो सबका मोबाईल में वीडियो, या सोशल मीडिया मे लगा हुआ है।
बेटा आज मोबाईल ने दूर के रिश्तों को करीब तो ला दिया है, किंतु खून के रिश्तों को अपनों से बहुत दूर कर दिया है। आप देख लो आपके मामा मामी, मम्मी पापा, नाना, बड़े भाई बहिन सब जबसे आये हैं,तब से फोन पर लगे हैं, बाहर की दुनिया तो अब रही नहीं सब आभासी दुनिया में जी रहे हैं। हमारे समये में नानी का घर जाना किसी उत्सव से कम नहीं होता था। गाँव की कोई पगडण्डी ऐसी नहीं होती थी जिनमे बच्चे घूमने नहीं गये हो, पेड़ो पर झूला झूलना, कच्चे आम तोडना, दिन भर मस्ती करना, इन सबसे बच्चों को फुर्सत ही कँहा मिलती थी, उस समय की शिक्षा नैतिक शिक्षा दी जाती थी, आज की शिक्षा व्यवसायिक हो गई है, अब बच्चे कमाऊ पूत कैसे बने, यह आज के माताजी पिताजी का मुख्य धेय है, उस समय गरीब अमीर छोटे बड़े मझले सबके बच्चे एक साथ खेलते थे, गाँव में लगता था की गर्मियों की छुट्टिया हो गई है। आज के बच्चे घरों से बाहर ही नहीं निकलते, नानी एक स्वर में यह कहीं जा रही थी और सुहानी एक टक बिना सवाल किये सुने जा रही थी।
नानी ने कहा बेटा आज के रिश्तो को इस मोबाईल ने लीला लिया है, देख लो सब खूटे पर बंधे हुए है, तुम्हारे नाना जी और मैं सोच रहे थे की सब आ जाएंगे तो एक साथ मिलकर दुःख सुख बाटेंगे, अकेलापन दूर करेंगे सब रील बनाने देखने में मस्त है, आज की दुनिया में दिखावा की जो ये अंधाधुंध प्रतियोगिता चल रही है यह आने वाली पीढी को ना जाने कौन से गड्ढे में धकेल रही है।
नानी की बातों का असर सुहानी पर हुआ और वह अपनी माँ से कहती है, मम्मी कल घर चलते है, उसकी बात सुनकर माँ ने कहा बेटा हम तो कुछ दिन यँहा रहेंगे नाना नानी के पास। सुहानी ने कहा माँ क्या फायदा नाना नानी से तो इतनी बात आप वीडिओ कॉलिंग से भी कर सकते हो जितना अभी कर रहे हो, यँहा आकर भी सब मोबाइल में ही लगे है नाना नानी के पास कँहा है हम, हम तो रील्स और वीडिओ अनजान लोंगो से चैट कर गैरों से बात कर रहे है और नाना नानी हमारे होते हुए भी अकेले ही है। हम उनकी मन की जान ही नहीं पाए।
सुहानी की बातों को सुनकर कुछ पल के लिए पूरे कमरे में मानो सन्नाटा व्हा गया, और सबकी निगाहेँ झुकी हुई थी और आत्मा खुद को अपराध बोध समझ रही थी।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से.