घड़ी का एलॉर्म बजते ही अंकुर ने दो बार बंद किया और फिर सो गया, उधर सुनीता ने अपनी यथावत दिनचर्या के अनुसार घर का झाडू पोछा, और नाश्ता की तैयारी कर ली है । लॉकडाउन ने सुनीता को ज्यादा व्यस्त कर दिया है, टंकी से आटा निकालकर उसें गूंदते हुए सोच रही है कि यदि लॉकडाउन ऐसे ही रहता है तो घर गृहस्थी कैसे चलेगी। बेटा इंजनीयरिंग की तैयारी कर रहा है और बेटी का इस साल 10 वीं है। बेटी की ऑन लाईन क्लास उधर बेटे का कैरियर।
वर्तमान हालात को देखते हुए उसे अंकुर की नौकरी जाने का डर सताने लगा है, क्योंकि अमेरिका की मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करता है। उस कम्पनी में परफॉरमेंस के आधार पर ही प्रमोशन होता है, लेकिन इधर कोरोना की महामारी ने उसकी कम्पनी के काम को प्रभावित कर दिया है। अंकुर कल अपने एक दोस्त से छत पर यही बात कर रहा था कि अब तो कंपनी का काम मंदा हो गया है। इधर पूरा विश्व आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है, क्या पता नौकरी का क्या होता है, यह बात सुनीता ने छत मेंं कपड़े सुखाने के लिए आत वक्त सुन ली थी, आटा गूंदते गूंदते उसके माथे पर शिकन और पसीना एक साथ चमक रहा था।
इधर फिर अलार्म बजा और अंकुर बुझे मन से उठ गया, उसने मोबाईल उठाया तो देखा सुबह के नौ बज गये हैं,सुनीता पूजा कर रही है, वह सीधे बाथरूम गया। ईधर सुनीता ने अंकुर के लिए चाय बना दी है, बेटा और बेटी अभी सोये हुए हैं, बेटा देर रात तक पढता है, क्योंकि दिन में सभी घर में रहते हैं तो पढाई पर ध्यान नहीं लगता है। देर रात जब सब सो जाते हैं त बवह बाहर बरामदे में बैठकर अपनी पढाई करता है, उसे भी चिंता है कि इस बार लॉकडाउन के चलते इंजीनियरिरंग के एक्जाम हो पायेगें या नहीं, वह भी घर में बैठकर बोर हो गया है, पहले तीन टाईम ट्यूशन से टाईम नहीं मिलता था, और आज घर में टाईम ही टाईम है।
अंकुर चाय पीकर नहाने चला जाता है, सुनीता अन्य काम में बिजी है, उसके लिए आजकल खाने की फरमाईशें भी ज्यादा आ रही हैं, लेकिन वह खुश है, क्योंकि उसके बच्चे अब बाहर के जंक फूड की आदत उनकी छूट गयी है इधर अंकुर नहाकर आया और नाश्ता किया, टीवी ऑन किया तो मीडिया में वहीं जहर घोलने वाले प्रवक्ताओं की बक बक। लैपटॉप ऑन किया उसमें सोशल मीडिया खोला तो उसमें कोरोना वायरस और सोशल मीडिया विश्वविद्यालय के प्रवक्ताओं के अनर्गल व्याख्यान। अंकुर दिन भर बस यही सोचता कि क्या करूं कि जिससे टाईम पास हो जाय, बस इसी उहाफोह में उसके लिए वक्त निकालना मुश्किल हो रहा है।
अंकुर पहले जब जॉब पर जाता था तो उसे मैट्रो सिटी की जिंदगी ऐसी लगती कि जो कभी ना रूकने वाली थी। हप्ते में वीकेंड का इंतजार बेसब्री से रहता कि कब वह घर पर रहे। सुबह 08 बजे घर से निकल जाना और देर रात घर लौटना, जब सब सो गये होते। आज स्थिति ऐसी है कि घर पर बैठे बैठे समय काटना भारी पड़ रहा है, कभी बालकनी में आकर बाहर झाकंता है और देखता है कि जाम से सर्प की तरह रेगने वाले वाहनों से लदी सड़कें किसी बेवा की तरह वीरान नजर आ रही हैं। जिन गलियों में दिन रात हमेशा चहल पहल रहती थी वह आजकल बिल्कुल खाली पड़ी हैं, बस दो चार कुत्ते इधर उधर टहलते नजर आ रहे हैं। गलियों की ऐसी हालात देखकर ऑखों को यकीन नहीं हो रहा है कि यह दिल्ली का पांडव नगर है।
इधर सुनीता जुगत में लगी है कि कैसे करके वह तीन दिन तक खाने पीने की चीजों को व्यवस्थित करे। सब्जी, फल सब ऐसे खरीदकर लाने या मॅगाने हैं कि आज लाया जाय और दो दिन बाद खाया जाय। सुबह मदर डेरी से दूध लेने जा रहे हैं तो मुॅह पर मास्क हाथ पर ग्लब्स। गली की एक दो जानने वाली महिलायें जिनके साथ दूध लेने जाती थी आजकल उनसे भी कोसों की दूरी बनायी है। आजकल बस दूर से ही बात हो रही है, डर लग रहा है कि कहीं यही तो नहीं होगा कोरोना पॉजीटिव, जान है तो जहान है। जो सब्जी वाले गली में घूमते थे बिना किसी जाति धर्म के आधार पर मन मुताबिक सब्जी खरीदते थे आजकल पहले उसे अच्छे से देखकर जरूरत की सब्जी खरीद रही है। घर आाकर पहले वह उन्हें पानी में रगड़ रगड़ कर धो रही है, फिर नमक हल्दी के पानी में धोकर धूप में रखकर सूखा रही है।
अंकुर इस कदर परेशान हो गया है कि वह बॉलकनी के बाहर अंदर चक्कर काट रहा है, कभी कभी दोस्तों के साथ पार्टी कर लेता था, आजकल बीयर और वाईन की शॉप बंद होने के कारण उसके सारे दोस्तों का मिलना भी ंबंद हो गया है। बस व्हाटस ग्रुप में पैग बनाकर एक दूसरे को भेजकर बेचैन मन को अपने आप समझाने का प्रयास कर रहा हैं। फोन भी उसके हाथ पर ज्यादा देर नहीं रहता क्योंकि बेटी के स्कूल से ऑन लाईन क्लास, फिर होमवर्क सब फोन पर आ रहा है, जिस फोन को वह बेटी को नहीं देता था कि अभी से बिगड़ जायेगी आजकल वह फोन बेटी के हाथ पर ही है। आवश्यकता और मजबूरी गधे को भी बाप बनवा देती है, यह कहावत सत्य प्रतीत हो रही है।
सुनीता अंकुर को छेड़ते हुए कहती है कि देखो उसका देवर जी ने आज देवरानी के साथ मिलकर समोसे बनाये हैं, तुमने तो आज तक अपने हाथ की बनायी खिचड़ी तक नहीं खिलायी, खैर अपनी अपनी किस्मत। अकुंर इस बात को हंसी में टाल देता है, इधर तब तक गॉव से अंकुर की मॉ का फोन आता है कि बेटा जरा अपना और बच्चों का ख्याल रखना, सब सावधानी से चलना। बेटा आपके पिताजी की दवाई भी खतम हो गयी हैं, बस जैसे तैसे लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार है। वैसे बेटा ये लॉक डाउन साल में 15- 20 दिनों में हो जाना चाहिए। पहाड़ के गॉव का लॉक डाउन तो अब खुला, सब लोग आ रखे हैं, गॉव मेंं थोड़ा रौनक हो रखी है, अगर तुम भी आ जाते तो हम लोग भी नाती नतनों के साथ रह लेते। बेटा बाकि तो सब ठीक है, बस गेहॅू की फसल जानवरों ने खा ली है, तुम्हारे पिताजी राजी खुशी रहें बस यही चितां है, खैर हमारी चिंता छोड़ो बेटा, अपना ख्याल रखना।
सुनीता ने अंकुर से कहा कि देखो अगले दशहरे में छोटी बहिन निकिता की शादी भी है, उसके लिए भी खरीद दारी करनी है, लेकिन अभी की हालात देखकर तो डर लग रहा है। खैर यह महामारी टल जाती तो जैसे तैसे दिन लौटकर आ जायेंगे। दिल्ली में जिस तरह के कोरोना पॉजीटिव के मामले सामने आ रहे हैं, उसे देखकर जान पर बन आयी है। आजकल सामने आने वाला व्यक्ति भी अविश्वसनीय लग रहा है, कहीं यह तो नहीं। बस कोई अगल बगल सामान्य खांस या छींक भी रहा है तो मानों प्राण निकलने वाले हों। एक तो मीडिया, में सोशल मीडिया में बस हर तरफ कोरोना हो गया है।
अकुंर तो बस समाचार में मोदी जी के मुॅह से यही सुनना चाहता है कि 4 मई से लॉक डाउन कुछ शर्तों के साथ खोल दे, वह कैसे भी करके या तो जॉब पर चला जाय या फिर बच्चों सहित अपने गॉव। बंद कमरे की घुटन का अहसास ने उसे तोड़ दिया है। वहीं सुनीता कह रही है कि हम तो पहले भी ऐसे ही रहते थे बस जरा शाम को सब्जी लेने जरूर निकल लेती थी, वरना हम गृहणियों को तो पहले भी फुर्सत नहीं थी और आज भी नहीं है। वैसे महीने का खर्च देखा जाय तो काफी कम हुआ है, बाहर का खाना बंद हो गया है, बच्चों का पेट भी ठीक है, और उनकी आदतें भी सुधर गयी हैं ।
अंकुर तो बस यही सोच रहा है कि दो दिन के लिए लॉक डाउन खुल जाय और वह गॉव की तरफ जाय। लेकिन तब तक बेटे का चेहरा और रात भर जगने को देखकर उसका मन सहम जाता है। हम तो जैसे तैसे दिन काट लेगें लेकिन बच्चों का क्या होगा, इन बच्चों के लिए तो यहॉ जिंदगी को दॉव पर लगाया है, इसके बाद इनका भविष्य क्या होगा यह देखकर उसके सामने अपना भविष्य अंधकार मय लग जाता है, बस इन्हीं ख्यालों मे इतना डूब जाता है कि उसकी ऑख कब लग गयी उसे पता नहीं, ईधर सुनीता इडली लेकर बिस्तर के सामने खडीं होकर कहती है कि उठ भी जाओ शाम के पॉच बज गये हैं, रात को फिर कहोगे की नींद नहीं आ रही है, और देर रात तक टीवी देखोगे। उधर रात को बेटे की पढायी में व्यवधान होगा। अंकुर अंगडाई लेते हुए उठता है, और कहता है कि एक कप चाय बना दो फिर इडली खाते हैं, तब तक बच्चों को खिला दो। उसके बाद सबने इडली खाकर बर्तन सिंक में डाल दिये हैं।
शाम के समय में फिर अंकुर बाहर बॉलकनी में आकर खड़ा हो गया है, सामने मेट्रो स्टेशन जहॉ पर बस सिर ही सिर नजर आते थे वहॉ मायूसी छायी है, उधर सामने पेड पर चिडिया के बच्चों को इठलाते देखकर उसे अपने गॉव की याद आ गयी। गॉव में एक बचपन के दोस्त को फोन लगाया, उससे थोड़ी देर बात की, तब तक हल्का अंधेरा हो गया, गली की लाईटें जल गयी हैं, अंदर कमरे में जाने का मन नहीं कर रहा है।
उसे अपने घर का अांगन याद आ रहा है, बचपन के दिन सब ऑखों के सामने आ रहे हैं,स्कूल की यादें बरबस चिढा रहीं हैं, आज राष्ट्रीय राजधानी की सुख सुविधायें सब गॉव की स्वछन्दता के सामने फीकी नजर आ रही हैं इन्हीं सब बातों को सोचते हुए आसमान की तरफ देखता है। आज 20 साल में उसे पहली बार आसमान पर सप्तऋषि तारे नजर आये। उसके दादा जी कहते थे कि गॉव में उनके जमाने की घड़ी यही सप्त़ऋषि ही होते थे, इन्हीं को देखकर रात के पहर का अंदाजा लगाये करते थे। दिल्ली का वातावरण बहुत साफ हो गया है, पहली बार दिल्ली में तारों को देखकर ऑखों को सूकून मिला वरना धूल भरा वातावरण के अलावा कभी कुछ देखने को नहीं मिला।
उधर सुनीता ने रात का डिनर भी बना दिया है, ओर वह बच्चों के साथ उत्तर रामायण देखते हुए बच्चों को रामायण की महत्ता समझा रही है। ईधर अंकुर ने फिर फोन उठाया और समय की घड़ी को आगे धकेलने रहा है। सबने डीनर कर लिया है, सुनीता दिन भर की थकी हुई रहती है, उसे नींद आ गयी है, बेटी भी सो गयी है, बेटा बाहर ड्रांइग रूम में पढ रहा है, अंकुर करवट बदल रहा है, लेकिन ऑखों में नींद नहीं है, करवट बदल रहा है, और सोच रहा है कि कल से दिन में नहीं सोना है, कल जल्दी उठकर योगा करूंगा, कभी वह अतीत में खो जाता है, तो कभी भविष्य विकराल बनकर उसकी चिंता की लकीरों को बढा रहीं हैं, बस इन्हीं अगणित विचारों में खोये अंकुर की ऑखे सुबह की चार बजे लग जाती हैं, और फिर सुबह वह उसी तरफ 09 बजे सोकर उठता है, लेकिन पहले दिन की सारी योजनायें धरी की धरी रह जाती हैं, बस अब तो लॉकडाउन खुले, और जल्दी पूरी दुनिया को इस महामारी से मुक्ति मिले यही भगवान से प्रार्थना करता है।
सुनीता के सामने हर रोज की तरह एक ही यक्ष प्रश्न खड़ा रहता है कि दिन में और शाम के खाने में क्या बनाऊं यह सोचकर टीवी खोलती है तो चैनलों में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या और संक्रमित होने की खबरों से उसका मन व्यथित हो जाता है। उसे अपनी नहीं बल्कि अपने परिवार की िंचंता सताने लगती है, तब उसे अपना गॉव याद आता है, और सोचती है कि नमक रोटी खा लेगें पर लॉक डाउन खुलने के बाद गॉव चले जायेगे, वहीं बच्चों की चेहरा देखते ही उनका भविष्य सवाल बनकर सामने खड़ा हो जाता है। उधर अंकुर कहता है कि चलों सुनीता आज किचन में तुम्हारी मदद करता हूूॅ, दोनो में मनोविनोद होता है, लॉकडाउन खुलने और कोरोना से कैसे मुक्ति हो सकती है दोनों के बीच वार्तालाप जारी रहता है।