राजन और श्रीजन दोनों दोस्त हैं, राजन जहॉ एक ओर नास्तिक वहीं श्रीजन पक्का धार्मिक विचारधारा वाला था, राजन ने शायद ही कभी माथे पर तिलक लगाया हो, और मंदिर के प्रांगण में भी गया हो। दोनो में अक्सर इस बात पर तर्क वितर्क होता रहता था। वहीं श्रीजन अंध विश्वासी नहीं था लेकिन तर्कयुक्त चीजों का अनुसरण करता था। एक दिन दोनों में कर्म और संस्कारों को लेकर चर्चा और बहस शुरू हो गयी लेकिन अंततः परिणाम कुछ नहीं निकला, अक्सर कई बार ऐसा हो जाता था।
राजन के बेटे का पहला जन्म दिन था, उसने पार्टी का पूरा इंतजाम किया हुआ था। बड़ी मुश्किल से तीन बेटियों के बाद उसका बेटा हुआ था। पहले जन्म दिन रिश्तेदार, दोस्त, पडौसी सबको न्यौता दिया हुआ था। श्रीजन को भी इसके लिए न्यौता दिया गया। अगले दिन श्रीजन को राजन के कहा यार बेटे का पहला जन्म दिन है, और बजट दो लाख से ज्यादा का जा रहा है, पूरा होटल ही अकेला एक लाख में बुक हो रहा है, थोड़ा सा कुछ मदद कर सकता है।
श्रीजन ने कहा कि मदद तो मैं कर दूॅगा लेकिन यह बता कि इतना सब कुछ करने की क्या आवश्यकता है।
राजनः यार देख तीन बेटियों के बाद एक पुत्र हुआ है, अब सारे परिवार, रिश्तेदार सब कह रहे हैं, कि पहला जन्म दिन धूमधाम से होना चाहिए, ऐसा मैं भी मानता हूॅ।
श्रीजनः देख राजन तुम कह तो सही रहे हो, लेकिन यह बता कि जिस बेटे के जन्म दिन पर तुम इतना खर्च कर रहे हो, उसको अहसास है कि उसके जन्म दिन पर इतना खर्च हो रहा है, उसको तो तुमने एक कटोरी खीर खिलाकर उसकी पार्टी कर देनी है, यदि उस बच्चे को अहसास होता कि मेरे माता पिताजी इतना खर्च कर रहे हैं, तब तो उसे खुशी होती है।
राजनः श्रीजन बात तो तुम प्रेक्टिकली सही कह रहे हो लेकिन घरवाले नहीं मानेगें।
श्रीजनः राजन अगर मैं सलाह दूं तो मानेगा।
राजनः श्रीजन देख यार अपनी धार्मिक और संस्कार वाली बात तो करना मत, लेकिन खर्च कम हो सकता है, वह सलाह जरूर दे दे।
श्रीजनः देख राजन मैं तुझे कोई धार्मिक सलाह नहीं दे रहा हॅॅू लेकिन मेरी बात मान और बेटे को लेकर किसी असहाय या जरूरत मंदों को खाना खिला दे, उन्हें भी अच्छा लगेगा, और बाकि रूपये इसके पढाने लिखाने के लिए बचा दे।
राजनः देख श्रीजन रूपये बचत करने की बात से सहमत हॅू लेकिन तुम यह दान पुण्य की बात मेरे सामने न करे तो अच्छा रहेगा।
श्रीजनः चल ठीक है। नहीं मानता तेरी मर्जी, मैं तुझे 40 हजार का चैक दे रहा हॅू।
राजन : थैंक्स दोस्त, आखिरी मुसीबत में तुम ही काम आते हो।
अगले हप्ते राजन के बेटे का जन्म दिन आ गया, घर में रौनक थी सारे रिश्तेदार से लेकर दोस्त और पडौसी सब राजन की तारीफ कर रहे थे, करते भी क्यों नहीं इतनी बड़ी पार्टी का आयोजन शहर के नामी होटल में जो कर रखा था। बधाई का दौर और गिफ्ट ही गिफ्ट नजर आ रहे थे। श्रीजन भी बर्थडे पार्टी मेंं आया हुआ था, जो लोग राजन के मुॅह पर तारीफ कर रहे थे उनमें से कुछ रिश्तेदार उसे पीठ पीछे बेवकूफ बता रहे थे, कुछ फिजुलखर्ची तो कुछ दिखावा कह रहे थे, बाकि कुछ न्यूटल थे।
यह सब देखकर श्रीजन बहुत आहत हुआ, उसने राजन को संस्कार और अनावश्यक खर्च की अहमियत को सही साबित करना था। उसके दो बेटे और छोटी बेटी थी, दोनों बेटे स्कूल जाते थे, जबकि बेटी को इस साल स्कूल पहली बार जाना था। श्रीजन ने दोनों बेटों के जन्म दिन से ज्यादा बेटे के विद्यारंभ संस्कार पर अधिक महत्व दिया, क्योंकि विद्यारंभ संस्कार जीवन में एक बार होना है, जबकि जन्म दिन हर साल मनाया जाना है।
श्रीजन की बेटी श्रेया तीन साल की हो गयी थी, उसे प्ले ग्रुप स्कूल मेंं दाखिला दिलाना था, श्रीजन ने पंडित जी से बेटी के विद्यारंभ संस्कार का दिन निकलवाया तो, पंडित जी ने मार्च में दिन तय कर लिया। श्रीजन बेटी के विद्यारंभ संस्कार की तैयारी करने लग गया। श्रीजन ने राजन को भी न्यौता दिया कि वह अपने परिवार के साथ श्रेया के विद्यारंभ संस्कार में जरूर आना। श्रीजन ने भी अपने सभी दोस्त, रिश्तेदार, और पास पड़ौस सबको बुलाया, जिस स्कूल में एडमिशन करवाना था वहॉ के प्राचार्य और स्टाफ को भी न्यौता दिया था।
तय दिन के अनुसार श्रेया का विद्यारंभ संस्कार शुरू हो गया, राजन भी आ गया, वह सब देख रहा था, ईधर श्रीजन ने पण्डित जी से कहा कि पूजन पूरे विधि विधान से होना चाहिए, पण्डित जी ने पूजा विधि विधान से किया और पूजा पाठ समाप्त होने के बाद श्रीजन ने माईक पकड़ा।
श्रीजन ने सबको संबोधित करते हुए सबका अभिवादन करते हुए कहा कि आपको लग रहा होगा कि आज के समय में यह सब बेकार की चीजें हैं, लेकिन यदि देखा जाय तो जन्मदिन तो हर साल आता है, और मनाया जाता है, लेकिन विद्यारंभ संस्कार जीवन में एक बार ही होता है, हमारे सनातन धर्म के अनुसार 16 संस्कार है, इनमें से एक प्रमुख संस्कार विद्यारंभ संस्कार यानी विद्यालय में प्रवेश लेने का संस्कार। पहले जन्म दिन में बच्चे को कुछ भी पता नहीं चलता है कि उसका जन्म दिन है, जबकि पहले विद्यारंभ संस्कार में उसको अहसास हो जाता है कि उसके लिए पूजा हो रही है।
विद्यारंभ संस्कार को आप आस्तिक और नास्तिक से मत जोड़िये इसे धर्म के चश्मे से मत देखो, बल्कि इसको व्यवहारिक दृष्टि से देखोंगे तो इसका महत्व पता चल जायेगा। श्रीजन ने कहा कि स्कूल में जाकर बच्चा सब कुछ नया सीखता है, वहॉ पर उसको मिलने वाला हर एक माहौल नया मिलता है, ऐसे में बच्चे के विद्यारंभ संस्कार करके उसके लिए यह अनुष्ठान काफी महत्वूपर्ण हो जाता है, क्योंकि बच्चे का एक नया जीवन का अध्याय यहीं से शुरू हो जाता है, यदि बच्चे को उचित शिक्षा दीक्षा अच्छे माहौल में मिल जाय तो उसका जीवन खुद ही संवर जायेगा, क्योंकि विद्यार्जन के बाद ही बच्चे का कैरियर निर्माण होता है।
अक्सर लोग पूजा पाठ को दतियानूसी बताते हैं, या कहते हैं कि मंत्रों में ऐसी क्या ताकत होती है, तो मैं बता दूं कि जिस तरह हमें भोजन से उर्जा मिलती है, उसी तरह से मंत्र और पूजा पाठ करने के बाद घर में एक सकारात्मक उर्जा मिलती है, ऐसे ही सकारात्मक उर्जा विद्यारंभ संस्कार करने से बच्चें के मनोभावों में आती है, बुद्धि और विवके को भी सकारात्मक उर्जा मिलती है। ईधर श्रेया भी अपने विद्यारंभ संस्कार से बहुत खुश थी और सबको चहक चहक बता रही थी। उधर राजन श्रीजन की एक एक बात को गंभीरता के साथ सुन रहा था, श्रीजन के मुहॅ से निकलने वाले मुखारबिंदु उसको पहली बार कड़वे की जगह मीठे लग रहे थे। कार्यक्रम का इतिश्री होने के बाद राजन ने कहा श्रीजन वास्तव में तुमने सही कहा कि विद्यारंभ से ही पूरा जीवन का नक्शा तैयार होता है, अपने बेटे का मैं भी विद्यारंभ संस्कार करवाउंगा, यह सुनकर श्रीजन ने राजन को गले लगाते हुए कहा कि आज मेरी बेटी के साथ साथ तुम्हारा भी स्कूल का पहला दिन है।
हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।
श्रीजन ने कहा कि मदद तो मैं कर दूॅगा लेकिन यह बता कि इतना सब कुछ करने की क्या आवश्यकता है।
राजनः यार देख तीन बेटियों के बाद एक पुत्र हुआ है, अब सारे परिवार, रिश्तेदार सब कह रहे हैं, कि पहला जन्म दिन धूमधाम से होना चाहिए, ऐसा मैं भी मानता हूॅ।
श्रीजनः देख राजन तुम कह तो सही रहे हो, लेकिन यह बता कि जिस बेटे के जन्म दिन पर तुम इतना खर्च कर रहे हो, उसको अहसास है कि उसके जन्म दिन पर इतना खर्च हो रहा है, उसको तो तुमने एक कटोरी खीर खिलाकर उसकी पार्टी कर देनी है, यदि उस बच्चे को अहसास होता कि मेरे माता पिताजी इतना खर्च कर रहे हैं, तब तो उसे खुशी होती है।
राजनः श्रीजन बात तो तुम प्रेक्टिकली सही कह रहे हो लेकिन घरवाले नहीं मानेगें।
श्रीजनः राजन अगर मैं सलाह दूं तो मानेगा।
राजनः श्रीजन देख यार अपनी धार्मिक और संस्कार वाली बात तो करना मत, लेकिन खर्च कम हो सकता है, वह सलाह जरूर दे दे।
श्रीजनः देख राजन मैं तुझे कोई धार्मिक सलाह नहीं दे रहा हॅॅू लेकिन मेरी बात मान और बेटे को लेकर किसी असहाय या जरूरत मंदों को खाना खिला दे, उन्हें भी अच्छा लगेगा, और बाकि रूपये इसके पढाने लिखाने के लिए बचा दे।
राजनः देख श्रीजन रूपये बचत करने की बात से सहमत हॅू लेकिन तुम यह दान पुण्य की बात मेरे सामने न करे तो अच्छा रहेगा।
श्रीजनः चल ठीक है। नहीं मानता तेरी मर्जी, मैं तुझे 40 हजार का चैक दे रहा हॅू।
राजन : थैंक्स दोस्त, आखिरी मुसीबत में तुम ही काम आते हो।
अगले हप्ते राजन के बेटे का जन्म दिन आ गया, घर में रौनक थी सारे रिश्तेदार से लेकर दोस्त और पडौसी सब राजन की तारीफ कर रहे थे, करते भी क्यों नहीं इतनी बड़ी पार्टी का आयोजन शहर के नामी होटल में जो कर रखा था। बधाई का दौर और गिफ्ट ही गिफ्ट नजर आ रहे थे। श्रीजन भी बर्थडे पार्टी मेंं आया हुआ था, जो लोग राजन के मुॅह पर तारीफ कर रहे थे उनमें से कुछ रिश्तेदार उसे पीठ पीछे बेवकूफ बता रहे थे, कुछ फिजुलखर्ची तो कुछ दिखावा कह रहे थे, बाकि कुछ न्यूटल थे।
यह सब देखकर श्रीजन बहुत आहत हुआ, उसने राजन को संस्कार और अनावश्यक खर्च की अहमियत को सही साबित करना था। उसके दो बेटे और छोटी बेटी थी, दोनों बेटे स्कूल जाते थे, जबकि बेटी को इस साल स्कूल पहली बार जाना था। श्रीजन ने दोनों बेटों के जन्म दिन से ज्यादा बेटे के विद्यारंभ संस्कार पर अधिक महत्व दिया, क्योंकि विद्यारंभ संस्कार जीवन में एक बार होना है, जबकि जन्म दिन हर साल मनाया जाना है।
श्रीजन की बेटी श्रेया तीन साल की हो गयी थी, उसे प्ले ग्रुप स्कूल मेंं दाखिला दिलाना था, श्रीजन ने पंडित जी से बेटी के विद्यारंभ संस्कार का दिन निकलवाया तो, पंडित जी ने मार्च में दिन तय कर लिया। श्रीजन बेटी के विद्यारंभ संस्कार की तैयारी करने लग गया। श्रीजन ने राजन को भी न्यौता दिया कि वह अपने परिवार के साथ श्रेया के विद्यारंभ संस्कार में जरूर आना। श्रीजन ने भी अपने सभी दोस्त, रिश्तेदार, और पास पड़ौस सबको बुलाया, जिस स्कूल में एडमिशन करवाना था वहॉ के प्राचार्य और स्टाफ को भी न्यौता दिया था।
तय दिन के अनुसार श्रेया का विद्यारंभ संस्कार शुरू हो गया, राजन भी आ गया, वह सब देख रहा था, ईधर श्रीजन ने पण्डित जी से कहा कि पूजन पूरे विधि विधान से होना चाहिए, पण्डित जी ने पूजा विधि विधान से किया और पूजा पाठ समाप्त होने के बाद श्रीजन ने माईक पकड़ा।
श्रीजन ने सबको संबोधित करते हुए सबका अभिवादन करते हुए कहा कि आपको लग रहा होगा कि आज के समय में यह सब बेकार की चीजें हैं, लेकिन यदि देखा जाय तो जन्मदिन तो हर साल आता है, और मनाया जाता है, लेकिन विद्यारंभ संस्कार जीवन में एक बार ही होता है, हमारे सनातन धर्म के अनुसार 16 संस्कार है, इनमें से एक प्रमुख संस्कार विद्यारंभ संस्कार यानी विद्यालय में प्रवेश लेने का संस्कार। पहले जन्म दिन में बच्चे को कुछ भी पता नहीं चलता है कि उसका जन्म दिन है, जबकि पहले विद्यारंभ संस्कार में उसको अहसास हो जाता है कि उसके लिए पूजा हो रही है।
विद्यारंभ संस्कार को आप आस्तिक और नास्तिक से मत जोड़िये इसे धर्म के चश्मे से मत देखो, बल्कि इसको व्यवहारिक दृष्टि से देखोंगे तो इसका महत्व पता चल जायेगा। श्रीजन ने कहा कि स्कूल में जाकर बच्चा सब कुछ नया सीखता है, वहॉ पर उसको मिलने वाला हर एक माहौल नया मिलता है, ऐसे में बच्चे के विद्यारंभ संस्कार करके उसके लिए यह अनुष्ठान काफी महत्वूपर्ण हो जाता है, क्योंकि बच्चे का एक नया जीवन का अध्याय यहीं से शुरू हो जाता है, यदि बच्चे को उचित शिक्षा दीक्षा अच्छे माहौल में मिल जाय तो उसका जीवन खुद ही संवर जायेगा, क्योंकि विद्यार्जन के बाद ही बच्चे का कैरियर निर्माण होता है।
अक्सर लोग पूजा पाठ को दतियानूसी बताते हैं, या कहते हैं कि मंत्रों में ऐसी क्या ताकत होती है, तो मैं बता दूं कि जिस तरह हमें भोजन से उर्जा मिलती है, उसी तरह से मंत्र और पूजा पाठ करने के बाद घर में एक सकारात्मक उर्जा मिलती है, ऐसे ही सकारात्मक उर्जा विद्यारंभ संस्कार करने से बच्चें के मनोभावों में आती है, बुद्धि और विवके को भी सकारात्मक उर्जा मिलती है। ईधर श्रेया भी अपने विद्यारंभ संस्कार से बहुत खुश थी और सबको चहक चहक बता रही थी। उधर राजन श्रीजन की एक एक बात को गंभीरता के साथ सुन रहा था, श्रीजन के मुहॅ से निकलने वाले मुखारबिंदु उसको पहली बार कड़वे की जगह मीठे लग रहे थे। कार्यक्रम का इतिश्री होने के बाद राजन ने कहा श्रीजन वास्तव में तुमने सही कहा कि विद्यारंभ से ही पूरा जीवन का नक्शा तैयार होता है, अपने बेटे का मैं भी विद्यारंभ संस्कार करवाउंगा, यह सुनकर श्रीजन ने राजन को गले लगाते हुए कहा कि आज मेरी बेटी के साथ साथ तुम्हारा भी स्कूल का पहला दिन है।
हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।