हिंदी विषय पढाने के लिए जैसे ही गुरूजी कक्षा में गये, पीछे की सीट में कुछ बच्चे सिर नीचे करके तम्बाकू मसल रहे थे, गुरूजी पीछे आये और बिना कुछ कहे ही पीठ पर चारों के एक एक घूंसा जमा दिया, और कक्षा से बाहर निकलने को कह दिया। चारों बाहर आकर बहुत खुश हुए, और कहने लगे चलों आज की बोरियत भरी क्लास से तो छुट्टी मिली। नीरज, देवेन्द्र, अरविंद और कमल चारों पक्के यार थे, इनका पूरे स्कूल में शैतानी करने के लिए जाना जाता था।
उधर इन चारों की ज्यादा दोस्त इनकी लड़कियां थीं, यह चारों उनसे घीरे रहते थे, जिस कारण इनके दोस्त इन्हें मजनू कहकर बुलाते थे। क्लास में चारो दोस्तों का उधम मचाया रहता था, शायद ही उन्होंने पूरा वादन पढा हो, तीन में से कोई एक ऐसी शैतानी कर देता कि चारों को ही कक्षा से बाहर निकालना पड़ता।
वही स्कूल के खेलों में और अन्य गतिविधियों में चारों की भागीदारी बढ चढकर होती, बाकि हर खेल और गतिविधियों में हरफनमौला होने के कारण ये चारों सबके चेहते थे। इन चारों दोस्तों में सबसे ज्यादा उदण्ड नीरज था, जिसकी शिकायत हर दिन उसके मॉ बाप के पास पहॅुचती। वैसे नीरज कभी गुरूजनों का निरादर भी नहीं करता था, उनको सम्मान भी पूरा देता था, गुरूजी उसकी उम्र और आदत जानते थे इसलिए उसे केवल मुर्गा या कुछ और दण्उ देते थे।
पूरी स्कूल में सबसे सुंदर और अकड़ू मिजाज की रश्मि भी नीरज पर फिदा थी, बाकि से तो वह सीधे मुॅह बात नहीं करती थी लेकिन नीरज के प्रति उसका आकर्षण बढता ही जा रहा था, जबकि नीरज यह बात नहीं जानता था। लेकिन सारे क्लास के डॉन को वह अपना हीरो कैसे बना सकती है, बाकि क्या सोचेंगे इस सबके चक्कर में वह नीरज से कभी मन की बात नहीं कर पाती थी।
ईधर चारों दोस्तों ने 11वीं की परीक्षा दी और अच्छे नम्बरों से पास कर लिया, सब लोग आश्चर्य चकित थे, वहीं क्लास में रश्मि पहले नम्बर पर थी और दूसरे नम्बर पर नीरज था, आज रश्मि का नीरज के प्रति और लगाव बढ गया, उसने सोचा हर घंटी में यह क्लास से बाहर रहता है, पूरे दिन मस्ती करता है, लेकिन इतने अच्छे नम्बर लाया तो कैसे।
आखिर रश्मि से रहा नहीं गया उसने नीरज को कहा कि नीरज मुझे तुमसे कुछ बात करनी है, शाम को छुट्टी के वक्त रेस्टोरेंट में मिल सकते हो, नीरज ने कहा बताओ क्या काम है, कोई तुमको परेशान कर रहा है क्या, यदि कर रहा है तो उसका नाम बताओ अभी बताता हॅू उसको। रश्मि ने कहा अरे नीरज ऐसा कुछ नहीं है, मैं कुछ पर्सनल बात करना चाहती हॅू, नीरज ने मजाक में कहा कि कहीं तुमको हमसे इश्क तो नहीं हो गया है। रश्मि यह सुनते ही शरमा गयी और बोली पागल हो गया है क्या, अरे मुझे कुछ वैसे ही बात करनी है,यह बताओं कि तुम मिलोगी या नहीं।
नीरज अपने दोस्तों के साथ मस्ती में था, उसने बस चलते चलते हॉ बोल दिया, शाम को देवेन्द्र ने कहा यार आज चलो शाम को बॉलीबाल खेलते हैं, नीरज बॉलीबॉल का अच्छा खिलाड़ी था, वह जितना अच्छा सेण्टर खेलता था उतना ही अच्छा वह शॉट भी मार लेता था। युवाओं में खेल और इश्क का इतना जूनून होता है कि उसके लिए वह सब कुछ भूल जाते हैं, नीरज के साथ भी यही हुआ, वह खेलने में मस्त हो गया और भूल गया कि उसने रश्मि से मिलने का वादा किया है।
ईधर रश्मि अपनी सहेली दीया के साथ नीरज का इंतजार करती रही, दो बार तो समोसे ही खा लिये, लेकिन आधा घंटा हो गया नीरज नहीं आया तो दीया ने कहा कि चल यार रश्मि अब नहीं आने वाला, वह चारों ना जाने कहॉ क्या कर रहे होगें तुम नीरज के लिए इतना सीरीयस मत हो, अपनी पढाई पर ध्यान दो।
रश्मि ने कहा मैं उसके प्रति सीरीयस नहीं हॅू बस मैं यह जानना चाहती हॅू कि वह दिन भर मस्ती करता है, क्लास में हमेशा टीचर उसे बाहर कर देते हैं, उसके बाद भी उसका दूसरा नम्बर क्लास मेंं कैसे आ गया। मैं चाहती हॅू कि उससे इस बारे में बात करूं।
दीया ने कहा कि यार यह तो तुम बहाना मार रही हो सच तो यही है कि तुम उसे चाहने लगी हो, क्योंकि तुम्हारी हरकते मैं भी नोटिस करती रहती हूॅ। यह सुनते ही रश्मि का चेहरा शरम से गुलाबी हो गया। फिर दोनों सहेली घर चली गयी। ईधर स्कूल में जब बॉलीबॉल खत्म हो गया तो नीरज ने टाईम देखा तो पॉच बज चुके थे। इतने में देवेन्द्र ने कहा अरे यार रश्मि ने तुझे मिलने को कहा था लेकिन हमने जान बूझकर तुझे खेल में उलझा दिया, कमीने तुम यदि इश्क में डूब गये तो हम जैसे को भूल जायेगा और हम नहीं चाहते कि हमारी दोस्ती टूट जाय, चारों हॅसने लगे, नीरज ने कहा अरे यार तुम ऐसा क्यों सोचते हो ऐसा कुछ नहीं होने वाला, फिर चारों के चारों शाम को अपने घर पहॅुच जाते हैं।
अगले दिन स्कूल में सब आते हैं तो रश्मि नीरज की तरफ देखती तक नहीं है, यह बात अरविंद नोटिस कर रहा था, उसने नीरज को कहा कि यार देख तेरे को रश्मि आज इग्नोर कर रही है, नीरज ने कहा अरे यार छोड़ ना कहॉ इन बातों पर ध्यान दे रहा है। कुछ दिन तक रश्मि ने नीरज से बात नहीं की। ईधर अब ना जाने नीरज को भी रश्मि के प्रति आकर्षण होने लगा था। किशोरावस्था तुफान की अवस्था होती है, इसमें कब क्या परिवर्तन आ जाय कुछ कह नहीं सकते।
समय बीतता गया और 12वीं के बोर्ड एक्जाम की डेट आ गयी, क्लास के सारे बच्चे सीरीयस हो गये लेकिन नीरज और उसके दोस्त वैसे ही थे उनके लिए यह गृह परीक्षा ही थी, बाकि सबके चेहरे पर तनाव था लेकिन यह चारों अपने खेलने कूदने और मस्ती करने में तल्लीन। रश्मि ने कहा कि अब तो नीरज को समझाना पडेंगा कि उस अब मस्ती करना छोड़ पढना चाहिए यदि वह घ्यान से पढ लेगा तो 12वीं में अच्छे मार्क्स लेकर आयेगा तो कहीं अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल जायेगा।
ईधर हिंदी वाले गुरूजी का सेवनिवृत्ति होने के बाद स्कूल में विदाई समारोह था। रश्मि अपने हिंदी गुरूजी को अपना आदर्श मानती थी, उनके स्कूल से विदा होने का बड़ा दुख हो रहा था, वहीं हिंदी के गुरूजी भी रश्मि को अच्छा मानते थे, रश्मि चाहती थी कि आज गुरूजी नीरज को कुछ समझा दे तो शायद उसकी जिंदगी में कुछ परिवर्तन आ जाय।
चारों दोस्त कक्षा में एक बैंच पर बैठे गप्पे मार रहे थे, रश्मि कक्षा में आयी और नीरज का हाथ पकड़कर सीधे हिंदी वाले गुरूजी के कक्ष में ले गयी। नीरज अकस्मात यह सब देखकर चकित रह गया उसके समझ में कुछ नहीं आया कि आखिर रश्मि मेरा हाथ पकड़कर यहॉ क्यों लायी, वह बोलता रहा कि रश्मि मेरा हाथ छोड़ो कहॉ लेकर जा रही हो बताओ तो सही। रश्मि ने कहा नीरज बस तुम मेरे साथ चलो तुम्हारे सारे सवालों का जबाब वहीं मिल जायेगा।
नीरज का हाथ खींचकर ले जाते हुए सब देख रहे थे सब दंग थे कि यह हो क्या रहा है, ईधर हिंदी विषय के गुरूजी ने समझा कि आज नीरज ने जरूर रश्मि के साथ कुछ बदतमीजी की है तभी उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए ला रही है। गुरूजी के कक्ष में आते ही गुरूजी ने पहले नीरज को ही डॉटते हुए कहा कि आज तुमने कौन सी हदें पार कर दी है। नीरज और डर गया, उसने तो कुछ किया भी नहीं था, फिर यह सब क्या हो रहा है। वह चुपचाप खड़ा हो गया।
रश्मि ने कहा गुरूजी नीरज ने कुछ नहीं किया मैं ही इसे यहॉ आपके पास लाई हूॅ, आज आप स्कूल से चले जाओगे, मैं चाहती हॅू कि नीरज इस बार अच्छे नम्बरांं से पास हो, यह पढने में अच्छा है, लेकिन यह पढता नहीं है, इसे समझाओ कि यह कुछ अच्छा करें, मैं भी चाहती हॅू कि नीरज के साथ अच्छे नम्बर लाकर हम किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले और हम साथ साथ रहकर इस जहॉ को बदल सकें। मुझे पूरे स्कूल में नीरज के अंदर ही यह टैंलेंट दिखता है, मुझे नीरज जैसे दोस्त की जरूरत है जो कुछ अच्छा कर सके।
रश्मि के प्रवाह स्वरूप बोलते हुए देख रहा था और सोच रहा था कि यह मेरे बारे में कितना सोचती है, एक मैं हॅू जो ना तो कभी पढाई के प्रति सीरीयस हुआ और नही रश्मि के प्रति, दोस्तों के साथ मस्त रहा लेकिन रश्मि भी ठीक ही कह रही है, कि जहॉ को केवल युवा ही बदल सकते हैं, अब मुझे जहॉ को बदलने के लिए खुद को बदलना पडेगा। यह सोच ही रहा था कि गुरूजी ने कहा सुन लिया नीरज यह लड़की तुम्हारे बारे में कितना सोचती है, एक तुम हो कि सुधरने का नाम नही ले रहे हो, जितना ध्यान तुम उदण्डता पर लगाते हो उतना पढने पर लगाओगे तो जरूर इस जहॉ को बदल दोगे।
गुरूजी ने उसे प्यार से समझाया तो उसकी समझ में आ गया, उसके बाद नीरज सिर नीचे करके बाहर आ रहा था और रश्मि के चेहरे पर तेज साफ चमक रहा था लेकिन पूरी क्लास अभी तक यह जानने के लिए बेताब थी कि आज हुआ तो क्या हुआ।
शाम को रश्मि और नीरज ने गुरूजी को भावुक गले से विदाई दी और अपने गुरूजी से जहॉ को बदलने का वादा करते हुए गुरूजी को घर तक छोडने गया।
हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।