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पैंछु ( उधार)  ( आँचलिक कहानी )

7 अप्रैल 2023

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हे जी ( उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में बहु द्वारा ससुराल में अपने से बड़ो को बोले जाने वाला सम्मानित  सम्बोधन) द्वी माण ( एक किलो)  गहथ उधार दे दो।  हमने बीज के लिए सुरक्षित सूखा के रखे हुए थे, लेक़िन कुछ पर कीड़े लग गए, कुछ हमने दाल और फाणु (  पहाड़ी भोजन )  बनाकर खा लिया. बाकी जो कंडी ( टोकरी) पर रखे थे वो बो दिए हैं, बस बड़ा वाला खेत रह गया  हैं, उसमें बीज बो दूँगी। लंगूर बंदर से बच गई फसल तो पैंछु ( उधार)  वापस कर दूँगी।
 
  कके सासु (  चाची सास)   ने बोला की बहू हमारे यँहा भी थोड़े ही बचे है, जितने होंगे उतना ले जाओ। अंदर जाकर  माणू ( ग्राम में मापने का यंत्र) लेकर आई और द्वी माणू गहथ ( एक किलो) दर्शनी बहु को दे दिया।

    दर्शनी के दो बेटियां और दो बेटे हैं, उसका पति तेजू एक साल पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह चुका था। दर्शनी कम उम्र में ही बेवा ( विधवा) हो गयी, अब उसका सहारा केवल गाय और खेती ही थी, उसके सामने अब पहाड़ जैसी शोकाकुल जिंदगी थी, शोक संतप्त महिला के लिए गाँव मे जीवन जीना जैसे दांतो के अन्दर जीभ का रहना। खाना पीना और जीना तो मरने का छूटता है, बाकी जो धरती पर जीवित है, उन पर तो पेट है, उसको भरने के लिए तो कर्म करना ही पड़ता है।, बेवा बिचारी शोक में रहकर भी कब तक जीती। गोपी चंद का गीत याद आता है कि, 
"माता रोये जनम जनम को, 
बहिन रोये छः मासा
चिड़िया रोये डेढ़ घड़ी को
फिर करे सब अपना घर बासा"।

   तेजू के आसामयिक जाने के बाद शुरू के छह माह तो अपने पराये गाँव वालों ने जितनी मदद करनी थी उतनी की, फिर उसके बाद सब अपने अपने काम धंधा में लग गए।

   अब पूरे परिवार की जिम्मेदारी दर्शनी के कंधों पर आ गई, इस उम्र में चार बच्चों को लेकर जाती भी तो कँहा। मायके से माँ बाप जो भी राशन और खेती होती वह घोड़े खच्चर से भेज देते थे जिससे घर का चूल्हा और बच्चों के पेट भरने के लिए भोजन हो जाता था।  जब तक घाव हरे रहते है, तब तक अपने पराये आते जाते रहते हैं, जैसे ही दिन व्यतीत होते हैं, सब अपने अपने कामो में व्यस्त हो गए। बेवा दर्शनी के सामने सबसे बड़ी समस्या खेत मे हल लगाने की थी, बेचारी हल लगाने के लिए कभी किसी के आगे हाथ जोड़े, कभी किसी की खुशामद करें, कभी किसी की बातें और धितकर सुने, कोई अन्य महिला जिसका पति  मदद के लिए हल लगाता उसको उसकी पत्नी शक भरी निगाहों से देखती और उसके साथ अभद्र व्यवहार करती या पीठ पीछे अनाप शनाप आरोप लगाने से नहीं चूकती।  अन्य लोग बेवा की बातें बनाने और आँचल पर दाग लगाने के लिए निर्रथक प्रयासों में लगे रहते, दर्शनी तो गरीब तो थी ही भाग्य ने कठोर परीक्षा ली औऱ उसका सुहाग तक उससे छीन लिया।  दर्शनी के संस्कारों और उसकी दृढ़ संकल्प इच्छा शक्ति और अबला किन्तु स्वयं वह  चरित्र पर कोई उंगली उठा ले उसे बर्दाश्त नहीं था क्योंकि उसका मानना था कि यदि चरित्र बल गिर गया तो गाँव में किसी के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं रख पाएगी।

   उसका मानना था कि  बच्चों के पीछे आस में यह जिंदगी कट हो जाएगी, इन बच्चों को तो खिलाना ही है, इनका क्या दोष, इनकी किस्मत को अभी क्यों  और क्या दोष दू। उसके आँगन में बैलो की जोड़ी बंधी हुई है, गाँव के लोग हल लगाने के लिए बैलों की जोड़ी को लेकर जाते और अपने खेत मे हल लगा देते औऱ दर्शनी के खेत मे डोरे ( जगह छोड़ देना)  डाल देते। अपना हल का काम  निकल जाता और उसको कल परसो का भरोसा देकर टालने की सोच रखते, जिस वजह से उसकी फसल पछेती हो जाती।

    अब दर्शनी ने सोचा कि कब तक किसी के आगे हाथ जोड़ूँ , खुशामद कब तक करु , बैल अपने, हल अपना, खेत अपना, लोग क्या कहेंगे की बेवा हल लगा रही है, इस डर से मैंने जीना और बच्चों को पालना छोड़ देना है। शाम को  ही उधार लिए गहथ को बोने के लिए हल को खेत के मेंड़ के रख आयी, और सुबह के लिए रात को ही गहथ के बीज कंडी पर रख बोने के लिये रख दिये। सुबह उठकर बैलो को भूसा खिलाया औऱ पानी पिलाया, नाडू (  हल को जुए से फ़साने वाली रस्सी)  को कंधे में लटकाया, और सुबह के हल्के अंधेरे में ही बैल लेकर हल लगाने चली जाती है। बैल भी अपनी मालकिन के कहे अनुसार सीधे खेत मे जाकर अपने अपने पाले खड़े हो गए। दर्शनी ने बैलो के कंधे पर जुआ रखा फिर हल की फाल देखी उस पर बंसलू ( एक लोहे का हथियार) से उगड़ू ( पच्चर)   को ठोका और उसके बाद हल जोत दिया।

   जब तक तेजू जीवित था तब तक दर्शनी नें हल की तरफ देखा तक नहीं, तेजू जब सारा हल लगा देता था तब दर्शनी आती थी, और घास पात बीनती और कुदाल से डले तोड़ देती और कभी कभी खेत के कोने जंहा हल लगाने से रह जाता वँहा कुदाल से खोद देती, इतने में ही कमर दर्द की शिकायत भी कभी कभी कर लेती।  आज वक्त के हालात और किस्मत की मार देखो पूरा खेत  पर जिद में बिना रुके ही हल लगा दिया। अभी धूप पहाड़ो से छनकर पूरी तरह निकली भी नहीं थी, और बैल खोल दिये, कही  कहीं पर डामर ( जगह छूटना)  पड़ चुके थे, किन्तु मन में संतुष्टि के भाव थे कि उधार लाये गहथ बो दिये। बैलों को चुगने छोड़ दिये, और हल को पेड़ की शाखा पर सुरक्षित रखकर घर चली गई, क्योंकि उस समय उत्तराखंड के पहाड़ों के संस्कार के अनुसार बहु ससुर जेठ से छौ (  पर्दा )  करती थी, साथ ही लोक लाज के डर से सुबह ही हल लगा देती थी, ताकि कोई देख ना लेना।

  कुछ दिन तक तो किसी ने नहीं जाना कि दर्शनी  हल लगा रही है, लेकिन आखिर कब तक छुपकर हल लगा सकती थी, एक ना एक दिन तो पता चलना हीं है। एक दिन सुबह गाँव  के नाते के कके ससुर (  चाचा  ससुर ) उसी रास्ते से आ रहे थे, उनकी नजर तेजू के खेत पर हल लगा हुआ है, यह देखकर उन्होने मन हीं मन में सोचा कि आज भी इंसानियत जिन्दा है, यह सोचते हुए आगे गये तो दर्शनी  बहु हल लगा रही है, सर पर साफा  से पगड़ी बांधी  हुई थी, बैलों क़ो हाँक  रही थी, कके  ससुर ने देखकर कुछ नहीं बोला और सीधे  आगे नजर बचाकर निकल गये, इसी पल उनके सकारात्मक विचार  नकारात्मक भाव में बदल गये, बहु क़ो हल लगाते देख भारी  गुस्सा आ रहा था, गुस्सा बहु पर नहीं बल्कि गाँव  के पुरुष समाज और युवा आउट अधेड वर्ग पर आ रहा था, मन में खुद से सवाल कर रहा था कि क्या गाँव  में रहने वालो कि शर्म हया  नहीं बची  होंगी, जो एक विधवा  नारी से हल चलवा रहे हैँ। पहले  तो जिस तरफ अपने काम से जा रहे थे, उस रास्ते को छोड़कर गांव वाले रास्ते पर निकल पड़े, दर्शनी के परिवार के  बड़े ससुर (  ताऊजी ससुर ) के घर गये।

      वहां जाकर बोला कि चाय पानी बाद में पीएंगे, पहले यह बताओ कि  तेजू कि घरवाली ( पत्नी ) घर ही होगी। बड़े ससुर जी ने कहा बहु घर पर हीं होंगी बच्चों  के लिए कल्यो रोटी ( नाश्ता ) बना रही होंगी, सुबह सुबह कँहा  जायेगी। ऐसा सुनकर बीरु क़ो बहुत गुस्सा आया, लेकिन बड़ा भाई समझ कर चुप  हो गए।  उन्होने खुद क़ो नियंत्रित करते हुए कहा कि मैंने रास्ते पर आते हुए  देखा कि खिलंग (  खेत वाली जगह का नाम ) तोक पर तेजू कि घरवाली हल लगा रही हैँ। यह सुनते ही बड़े ससुर का मुँह अवाक् रह गया, और उनकी स्थिति  गरम दूध जैसी हों गई कि घुटता  हूँ हूँ तो दूध मुँह जलता हैँ, थूकता  हूँ तो दूध गिरता हैँ।

    बड़े ससुर  ने कहा  बहु भी समझ नहीं रही हैँ और मेरे बस में अब हल जोतना नहीं हैँ, बाकी कोई और समझता और सुनता नहीं हैँ।

     यह सुनते हीं बीरु ने कहा कि भाई साहब पहले जनन  (  महिला ) क़ो हल पर हाथ लगाना हीं घोर अपराध मानते हैँ, यँहा तो विधवा महिला हल लगा रही हैँ, कोई बाहर गाँव  का देखेगा तो हम सबकी नाक कट जाएगी, कुछ  तो करना पड़ेगा। यदि यँहा से कोई हल लगाने क़ो तैयार नहीं हैँ तो हम नीचे गाँव से दो तीन जोड़ी बैल लेकर आएंगे और बेचारी के खेत पर हल लगा देंगे।

  यह सुनकर बड़े ससुर ने कहा भाई  बीरु आपकी बात  सही हैँ, अगर सब मान जाये तो ठीक है, वैसे  तुम बहु से बात  करके देखना। बीरु ने कहा ठीक है भाई  जी जैसे  तुम बोलते हो अभी मैं दूसरे  गाँव  व्यापार  के काम से जा रहा हूँ, शाम क़ो लौटते हुए बात करके जाऊँगा।

  शाम क़ो व्यापार  के काम से लौटते  हुए बीरु  दर्शनी  के घर आता है और बाहर से हीं आवाज़ लगायी, कैसे  हो रे बच्चों, यह सुनते हीं दर्शनी  बाहर आयी, सेवा सौंली ( प्रणाम और आदर सत्कार करना ) की, उसके बाद राजी ख़ुशी  और रंत रैबार ( घर के बारे में जानकारी लेना देना ) जाना। उसके बाद बातों हीं बातों में बीरु ने कहा की खेत में हल  लगा दिया और दाल गहथ  की बुवाई  हो गई।

दर्शनी : जी बस कुछ बो दिए हैं, कुछ  बोना बाकि रह गये हैं, एक दो दिन में सब निपट जाएंगे।

बीरु : बहु हल लगाने  के लिए हम दो जोड़ी बैल लेकर आ जाएंगे एक दिन में हीं सब दाल  गहथ  की बुवाई हो जायेगी।

दर्शनी :  जी अब आपसे क्या छुपाना, सच तो पता चल हीं जाता है, मेरे यँहा  तो बीज के लिए भी गहथ  नहीं थे  वह भी कके सासु  से पैछू (उधार ) ला रखे हैं, वह मैंने खुद ही बो दिए हैं, इस समय  सब अपने काम  धंधो  में लगे  हुए हैं, किस किस क़ो परेशान करू कब तक करुँगी, लोग और दुनिया जो भी कहे कहती रहे, मैं खुद  ही हल लगा रही हूँ, जब सब काम स्वयं ही करना हैं तो हल भी लगा दूँगा, दो चार  बार हीं छूँई (बातें  होंगी ) लगेगी फिर सब चुप हो जायेगी, बच्चे जब बड़े हो जाएंगे तो खुद हीं संभाल  देंगे, कब तक भाग्य और किस्मत पर रोते रहना।

बीरु :  बहु  आप बात तो सही कह रही  हो लेकिन हमारे समाज में जनन ( महिला ) का हल लगाना  शुभ नही माना  जाता हैं, आप तो समझदार हो यह सब जानती हो, दुनिया क्या बोलेगी की इनके गाँव  मर्द लोग नहीं होंगी, बहु  मान  जाओ हम एक एक दिन बारी  बारी करके  हल लगा देंगे, आपके  बड़े  ससुर  जी से बात हो गई  हैं।

दर्शनी : जी बोल तो आप सही रहे हो, शुभ अशुभ  तो जो होना था वह तो हो चुका हैं, लेकिन मैं भी ऐसे कब तक निभा  पाउंगी  और आप भी कब तक मदद कर पाओगे। आप लोंगो का आशीर्वाद मिलता रहे तो  यह दिन भी कट जाएंगे, रही बात दुनिया क्या बोलेगी, जी किसी का मुंह कब तक पकड़ना है, दुनिया तो जीने भी नहीं देती और मरने भी नहीं देती, हमारे सहारे तो आप सभी लोग हो। जहां तक हल लगाने की बात है, जितना हो सकेगा उतना लगा पाऊंगी, नहीं हो पाएगा तो आप बड़ो के पास ही आऊंगी, आप सभी  बड़े लोंगो के हीं  सहारे  और भरोसे  पर यँहा रुकने का निर्णय लिया हैं, डोली इस आँगन में उतरी हैं तो अर्थी भी अब इसी आँगन से उतरेगी।  अब पैछ    लाये  गहथ  तो बो लिए, यह तो सर में उधार  तो नहीं रखना हैं, यह तो. वापिस करने हीं हैं।

बीरु :  जुगराज  रहो  बहु आपकी हिम्मत देखकर क्या बोलू, आपकी सोच बढ़िया है, अब हमें बिश्वास हो गया  की बच्चे  भूखे  नहीं सोयेंगे, पल जाएंगे, आपके स्वाभिमान देखकर  दो बूँद  खून  मेरा भी बढ़  गया है, अब आपका पैछू (  उधार ) सर पर नहीं रहेगा, इस बार खूब फसल होंगी, मेहनत और धैर्य. फल जरूर मिलेगा।

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छाँव

21 दिसम्बर 2022
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*छांव* ​ वर्क फ्रॉम होम होने के कारण अंकुर अपना व्यस्त शेडयूल में से कुछ समय परिवार के लिए निकाल लेता है। अंकुर ने सोचा कि चलो इस बार गॉव से माताजी और बाबू जी को साथ ले आता हॅू, कुछ दिन उनके छॉव

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दिखावा

14 मार्च 2023
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मदनलाल : अजी सुनती हो तुमने मेहमानों की लिस्ट बना दी है, मेरे ही अकेले 1000 से अधिक क्लाइंट और परिचित वकील है। उसी हिसाब से हम वेडिंग पवाइंट बुक करेंगे और मेन्यु का हिसाब करेंगे। शहर में स

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साझा घर

28 मार्च 2023
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विमल पूरे देश विदेश घूमने के बाद वह जब पहली बार अपने गाँव आया तो उसे लगा की उसने गाँव आने में देरी कर दी, उसका गांव अब सड़क से जुड़ चुका है, सभी सुविधाएं जो गाँव मे होंनी चाहिए वह है, दो दिन

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साझा घर

28 मार्च 2023
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विमल पूरे देश विदेश घूमने के बाद वह जब पहली बार अपने गाँव आया तो उसे लगा की उसने गाँव आने में देरी कर दी, उसका गांव अब सड़क से जुड़ चुका है, सभी सुविधाएं जो गाँव मे होंनी चाहिए वह है, दो दिन

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होली मिलन

1 अप्रैल 2023
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बबलू और सोनू पड़ोसी हैँ, घर की एक फ़ीट चारदीवारी क़ो लेकर हुए विवाद ने उनकी मित्रता क़ो कोर्ट में लाकर खड़ा कर दिया। समाज में कहावत हैँ की जमीन जेवर और सम्पत

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पैंछु ( उधार)  ( आँचलिक कहानी )

7 अप्रैल 2023
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हे जी ( उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में बहु द्वारा ससुराल में अपने से बड़ो को बोले जाने वाला सम्मानित सम्बोधन) द्वी माण ( एक किलो) गहथ उधार दे दो। हमने बीज के लिए सुरक्षित स

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अधजली. बीड़ी

9 अप्रैल 2023
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अरे वो राजू देख पत्थर के नीचे अधजली बीड़ी का टुकड़ा और माचिस होगी, एक दो तीलिया कागज पर लपेट कर रखी हैं, जरा इधर तो पकड़ा, यह कहकर उसके दोस्त प्रदीप ने स्कूल का बस्ता एक किनारे रखा, और एक बड़े पत्थर

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वक्त की लाठी

26 अप्रैल 2023
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कल शाम को देर से लौटा तो श्रीमती जी ने कहा कि आपको फोन किया था कि सुबह नाश्ते और ऑफिस के लिए सब्जी ले आना, लाये हो तो इधर धोने के लिए रख दो। हमने कहा कि आज हम दूसरे रास्ते से आये है, इसलिए सब्जी नही ल

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अब क्या करू।

26 अप्रैल 2023
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घड़ी का एलॉर्म बजते ही अंकुर ने दो बार बंद किया और फिर सो गया, उधर सुनीता ने अपनी यथावत दिनचर्या के अनुसार घर का झाडू पोछा, और नाश्ता की तैयारी कर ली है । लॉकडाउन ने सुनीता को ज्यादा व्यस्त कर दिया है,

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और दोनों हॅस दिये (लघु कहानी)

25 मई 2023
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रोहित अपनी भाभी के साथ उनकी किसी रिश्तेदारी में शादी में गया था। वहॉ उसकी मुलाकात उसकी भाभी ने अपनी मौसेरी बहिन मेघा से करवायी। मेघा और रोहित एक दूसरे से मिले ही नहीं बल्की रात का डिनर भी साथ ही किय

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और दोनों हॅस दिये (लघु कहानी)

26 मई 2023
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रोहित अपनी भाभी के साथ उनकी किसी रिश्तेदारी में शादी में गया था। वहॉ उसकी मुलाकात उसकी भाभी ने अपनी मौसेरी बहिन मेघा से करवायी। मेघा और रोहित एक दूसरे से मिले ही नहीं बल्की रात का डिनर भी साथ ही किया

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बातूनी बिल्ली

26 मई 2023
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नोट: यह लेखक की कल्पना मात्र है। अक्सर एक बिल्ली हमारे घर के आस पास घूमती रहती है, कभी वह खिड़की से दीवार को फांदती है, कभी बाउंड्री में बैठकर मूछे मटकाती नजर आती है, बस सुबह शाम म्या

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नानी का घर

19 जून 2023
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बेटा बच्चों की गर्मियों की छुट्टियॉ हो जायेगी तो सब लोग आ जाना, यह सब बातें नंदिता अपने तीनों बेटियों और दोनों बेटों को कहती है। नंदिता और उनका पति देवेन्द्र अकेले घर में रहते हैं, उन्हें

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पैत्रिक भूमि का सौदा 

22 जुलाई 2023
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रमन के पिताजी बचपन में ही अपने चाचा जी के साथ मुंबई आ गये थे, उसके बाद वह मुबई के होकर रह गये। रमन ने जब भी गॉव जाने की बात कही तो उसके पिताजी हमेशा यह कहकर टाल देते कि वहॉ तो

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कमबख्त कम्बल

11 अगस्त 2023
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कमबख्त कम्बल ने रात भर सोने नही दिया,मैंने पूछा कि भाई परेशान क्यो हो, मुझे भी सोने दो। कम्बल ने कहा कि बस गर्मी क्या आ गयी तुम मुझे भूल ही गए हो। मैंने कहा नही दोस्त तुमको कैसे भूल

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अनमोल तोहफा

18 अगस्त 2023
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अविनाश ने जैसे ही फेसबुक खोला तो उसको नमिता की फ्रेंड रिक्वेस्ट आयी हुई थी, पहले तो गौर नही किया, सरसरी निगाह से अपडेट देखी और बन्द करके अपने ऑफिस के काम मे व्यस्त हो गया। शाम को जैसे ही फुर्सत

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बेल /लता

20 अगस्त 2023
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मैं एक बेल हूँ जो अक्सर पेड़ो पर लहराती हूँमैने बेल से पूछा कि तुम्हे कौन लपेटता है तुम्हारे हाथ तो है नही।तुम्हे रास्ता कौन बताता है तुम्हारे आंख तो है ही नही । तुम्हे कैसे पता कि तुमने जिसका सह

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मूल निवास

23 अगस्त 2023
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गज्जू 12वीं पास करने के बाद पंजाब अपने मामा के साथ नौकरी की तलाश में चला गया था, कुछ दिन तक घर में ही रहा उसके बाद वहीं उसको एक ढाबे में नौकरी मिल गयी। शुरू में ढाबे

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ओढ़

28 अक्टूबर 2023
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हल लगाते हुए भगतू के बैल ओढ को पार करते हुए दूसरे भाई जगतू के खेत में घुस गये, इतने में जगतू की पत्नी विमला ने यह सब देख लिया, और उसने बिना जाने ही गाली देनी शुरू कर दी। हल्ला और गाली सुनकर जगतू

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हिट एंड रन क़ानून

3 जनवरी 2024
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हाल ही में लोकसभा में पारित भारतीय दण्ड सिंहंता का नाम बदलकर भारतीय न्याय संहिता रखा गया है, जिसमें कुछ कानूनों के प्रावधान बदले गये हैं, जिसमें से एक कानून हिट एण्ड रन है। भारतीय दंड सहिंता के सैक्शन

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अहमियत

9 जनवरी 2024
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दीया ने अजय को फ़ोन कर कहा कि शाम को आते हुये सब्जी लेते आना, सुबह के लिये नाश्ते के लिये कुछ नही है, अजय ने इस सबका उत्तर हम्म करके दिया और फ़ोन काट दिया। अजय की ऑफिस से छुट्टी के बाद घर आत

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मानसिक पलायन

17 फरवरी 2024
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मानसिक पलायन गरीबी और लाचारी ने तो परिवार को पहले से ही दबा रखा था ,इधर भाईयों और 02 बहिनों की पढायी के बोझ को देखते हुए नौकरी करने सतीष 12 वीं के बाद अपने मामा के साथ म

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भिटोली

28 मार्च 2024
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भिटोली रोहित दो दिन की छुट्टी ले लो, रेनू ने टिपिन पैक करते हुए कहा, रोहित यार अभी तो मार्च फाईनल चल रहा है, और फिर महीने की शुरूवात में बॉस नये टारगेट दे देते

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