मदनलाल : अजी सुनती हो तुमने मेहमानों की लिस्ट बना दी है, मेरे ही अकेले 1000 से अधिक क्लाइंट और परिचित वकील है। उसी हिसाब से हम वेडिंग पवाइंट बुक करेंगे और मेन्यु का हिसाब करेंगे। शहर में सभी बड़े नेता और सामाजिक जनमानस आएंगे।
गोमती : नाते रिश्तेदारों गाँव कालोनी सब मिलाकर 500 मेहमान हो जाएंगे, अब कीर्तन, मेहंदी बारात और रिस्पेशन में किस किस क़ो बुलाना हैं वह हिसाब लगाना रह गया हैं, बस एक दिन हम सब मिलकर इस पर बात कर लेते हैं।
मदनलाल : ठीक हैं, आज मैं पता करता हूँ की शहर का सबसे बड़ा और अच्छा फार्म हाउस कौन सा हैं। मदनलाल वरिष्ठ वकील के बेटे की शादी हैं यह पूरे शहर क़ो पता चलना चाहिए की यँहा कोई शादी भी हुई हैं।
इतनी देर में मदन लाल की माताजी जी आ जाती हैं, और कहती हैं की बेटा समाज क़ो दिखाने के लिए शादी मत करो, अगर आपको कुछ अच्छा करना ही हैं तो इतने धन से गरीब बेटियों का विवाह कर दो, जीवन भर दुवाये देगी, और उनमे से कोई मुसीबत में काम आ जायेगा, क्योंकि गरीब दरिद्र व्यक्ति कभी किसी का अहसान नहीं भूलता हैं। जिनक़ो आप बुलाओगे वह दो घंटे के लिए आएंगे और चले जाएंगे, उसमे भी कई नुश्क़ निकालेंगे, कितना भी भव्य और दिव्य कर लो समाज में कमी निकालने वाले की निगाहो से नहीं बच पाओगे, राम राज में मर्यादा पुरषोत्तम राम चंद्र जी क़ो तक आरोप लगाने से नहीं बक्शा, आप तो इस कलयुग के सामान्य मानव हो।
मदन लाल ने अपनी माँ की बात क़ो टालने के लिए कहा माताजी इतनी जगह न्योता दिया हैं, वह भी तो वापस लेना है अम्मा, बस हम दूसरों का ही खाता भरते रहें, जब वसूली का समय है तो क्यों न उसको वसूलने के लिए कुछ इंतजामात कर लिया जाय।
बूढी मॉ अपने बेटे की बात का जबाब देना उचित नहीं लगा और वहॉ से उठकर दूसरे कमरे में जाती हुई बोली की जैसी आपकी इच्छा बेटा, लेकिन मैने अपना जो तर्जुबा और अनुभव देखा है उसको देखकर बोला। वैसे तुम गरीब बच्चों की शादी करने का दिल नहीं रख सकते हो तो बेटा शादी पर होने वाला यह दिखावा और झूठी शान को दिखाने के लिए किया जाने वाला अनावश्यक खर्च तुम अपने बेटे बहु के नाम कर दो, जीवन भर सुखी रहेंगे। भले ही लोग तुम सेल्फिश कहेगें या कंजूस कहेगे लेकिन चार दिन बाद सब भूल चुके होगें, किंतु उपकार जिन पर करोगे वह जीवन भर याद रखेेंगे।
मदनलाल ने अपनी मॉ को कहा माता जी आप जानती हो ना कि मैं इस शहर का नामी वकील हॅू और आप कहॉ इन सब बातों में पड़ी हो, जाकर आराम और राम भजन करो।
बेटे की बात सुनकर बूढी अम्मा अपने कमरे में चली जाती है। ईधर मदनलाल भी अपने ऑफिस के लिए निकल जाता है।
मदन लाल ने शहर के सबसे बड़े फार्म हाउस को बुक करवा दिया, मेंहदी से लेकर कॉकटेल और रिसेप्शन तक के लिए पूरा फार्म ले लिया साथ में वेज से लेकर नॉन वेज की सारी वैरायटी बुक कर दी। कॉकटेल वालों के लिए तो सबसे ज्यादा चाक चौंबद व्यवस्था की गयी थी, शहर का कोई ठेका नहीं था जहॉ से वकील साहब ने टॉप लेवल की ब्रॉण्ड नहीं खरीदी हो। वकील साहब का मानना था कि पीने के बाद ही पार्टी की तारीफ होती है, और सबसे ज्यादा चर्चा होती है।
शादी के लिए शहर के सभी नामी हस्तियों को न्यौता चला गया, सभी करीबी और दूर के मेहमान आदि के लिए न्यौता भेज दिया गया, जितनों के यहॉ स्वयं जा सकते थे गये, जिनके यहॉ नहीं जा पाये उनके यहॉ व्हाटसअप पर भेजकर कॉल करके निमन्त्रण दे दिया गया। शादी की तैयारी में कोई कमी ना रहे, और मेहमान कोई कमी ना निकाले जो करे बस सिर्फ तारीफ करे इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया। फार्म हाउस वाले को डेकोरेशन के साथ सभी व्यवस्थायें बेहतर करने के सख्त निर्देश दिये गये। वहीं खाने को अजीज और लजीज व्यजंनों को बनवाने के लिए शहर के सबसे बड़े शैफ को किराये पर बुला लिये गये।
वहीं दुल्ला दुल्हन का प्री वैडिंग शूट भी खूब धमाकेदार अंदाज में हुआ, हर कोई मदन लाल के खर्चे करने की कोई तारीफ कर रहा था तो कोई कह रहा था काली मोटी कमाई है, कहीं तो समानी है। जितने मुॅह उतनी बातें हो रही थी। समाज में हर वर्ग अपने अपने स्तर से सोचता है, और समाज मेंं जो हो रहा होता है, उसकी चर्चा होनी स्वाभाविक है, जितनी चर्चा होगी उतनी व्यक्ति की प्रसिद्धि में चार चॉद लगते हैं।
शादी का दिन आ गया बड़ी धूमधाम से शादी का कार्यक्रम शुरू हो गया, शहर के सभी नामी हस्तीयों की गाड़ी जैसे ही पार्क में लगती मदनलाल उतने ही वह फूले नहीं समाते, सबको खुशी खुशी गले मिल रहे थे, आवाभगत में कोई कमी ना हो इस बात का पूरा ध्यान रखा जा रहा था। कॉकटेल में पीने वालों का विशेष ख्याल रखा जा रहा था, च्वाईस के हिसाब से वाईन परोसी जा रही थी, बियर की केन तो जितनी मर्जी उतनी पकड़ाई जा रही थी, मदनलाल अपने एक क्लाइंट को कह रहे थे कि पता तो चलना चाहिए कि शादी क्या होती है, और पिलाना क्या होता है, और कितना पीना होता है, दो चार झगड़ेगें तब ही तो हमारी कमाई होगी, लड़ाई झगड़े वाद विवाद और फसाद ना हो तो हमारा ज्ञान तो किताबों तक सीमित रह जायेगा।
शादी धूमधाम से निपट गयी, बूढी मॉ भी शादी देख रही थी, जितना शान शौकत और शादी पर अनावश्यक रूपया बहाया गया था उसे देखकर लग गया था कि अब समय धन दौलत वालों की है, बाकि रस्म रिवाज और आवाभगत और आपसी भाई चारा और प्रेम तो सब की नीलामी हो गयी है।
समय गतिमान है, उसे तो बस आगे बढना है, मदनलाल अचानक नीचे गिरे और बेहोश हो गये, बेहोशी के हालात में घर के नौकर और पत्नी ने नजदीकी अस्पताल पहुॅचाया, सबको सूचना दी गयी शहर के दो चार सामाजिक लोग देखने आये बाकि ने फोन आदि करने अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली बाकि रिश्तेदारों ने टाईम नहीं होने का बहाना बना दिया, कुछ ने व्यस्तता बता दी, आज उनको जरूरत एक इंसानियत की थी वह नजर नहीं आ रही थी, चार दिन बाद अस्पताल से घर आये और सीधे मॉ के पैर छूते हुए बोला कि मॉ सही कह रही थी आप। मुकुल की शादी मे जो दिखावा और खर्चा जिन लोगों के लिए किया वह मुसीबत के समय नजर तक नहीं आये वाकई में मुझे अपनी झूठी शान का आईना ईश्वर ने दिखा दिया, आज यकीन हो गया कि यदि मैने अनावश्यक धन शादी में लोक दिखावे के लिए नहीं किया होता तो आज काम आता, खैर आज वक्त ने जो ठोकर मारकर अक्ल दी है, यह पूरे जीवन याद रहेगा।
मॉ ने मदनलाल के सिर पर हाथ फेरकर कहा बेटा तुम मेरे सामने हो यही सबसे बड़ा उपकार ईश्वर का है, लेकिन सच यही है, कि यदि आपके मुसीबत या दुख के समय आपके साथ लोग खड़े हैं तो आपने अपनी जीवन में अच्छी दौलत कमाई है, बाकि सब कुछ तो यहीं छूट जाता है।
हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।