गर्दभ पशु समाज की नई दिल्ली में बैठक का आयोजन किया गया जिसमें सभी राज्यों गर्दभ समाज के सभी पदाधिकारियांं ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। कच्छ से आये राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री वैशाखनदंन का सभी ने हार्दिक स्वागत किया। राष्ट्रीय महामंत्री शंखकर्ण ने राष्ट्रीय अध्यक्ष को हरी घास का गुच्छा पकड़ाते हुए उनका स्वागत किया। संगठन के प्रखर प्रवक्ता ने मंच संचालन करते हुए कहा कि आज हमारे गदर्भ समाज के सुर ताल और लय का माखौल उड़ाया जा रहा है, ईश्वर ने हमें जो भी स्वर दिये हैं, और हम जिस भी सुर में हम गीत या गान करते हैं, उसका राजनीतिकरण किया जा रहा है, इसकी हम घोर निंदा करते हैं। आज इसलिए हम सभी ने दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री वैशाखनदंन जी की अध्यक्षता मेंं इस पर फैसला लेगें। मैं मंच पर इस समिति के संरक्षक और जिन्होनें इसका गठन किया है, माननीय गदर्भ जी को मंच पर आमत्रित कर कार्यक्रम आगे बढाने की इजाजत चाहता हॅूॅ। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने गर्दन हिलाकर इसकी अनुमति प्रदान करते हुए कहा कि आप कार्यक्रम को जारी रखें।
दीप प्रज्वलन के बाद उत्तराखण्ड से आये हुए उत्तराखण्ड के प्रदेश अध्यक्ष राशभ कुमार को मंच पर अपनी पीड़ा रखने का अवसर सबसे पहले प्राप्त हुआ क्योंकि उनके कहने पर ही यह आपातकालीन बैठक आहुत की गयी। मंच पर आते ही राशभ कुमार ने कार्यकर्ताओं पर जोश भरते हुए तीन बार ढैंचू ढैंचू किया तो उधर से श्रोताओं ने भी जोर जोर से ढैंचू ढैंचू किया। अपने संबोंधन में सभी का नाम लेने के पश्चात उत्तराखण्ड के प्रदेश अध्यक्ष राशभ कुमार ने कहा कि साथियों आपको बताना चाहता हूॅ कि हमारी बिरादरी को लेकर जिस तरह से उत्तराखण्ड में माहौल बनाया जा रहा है, हम चौपायों का दुपायों के समाज से कोई लेना देना नहीं हैं, वह हमसे बोझ लदवाते हैं हम खुशी खुशी लादकर आज तक लाये हैं, लेकिन अब समय आ गया है अपनी दुलत्ती का प्रयोग करने का। दुलत्ती हमारा हथियार है, इसका हमें अब प्रयोग करना होगा। साथियों हमने हरी घास से ज्यादा आज तक चाहा ही क्या है, उसके बाद जब हमारा पेट भर जाता है तो हम खुशी में अपना राग अलाप देते हैं तो इसमें अन्य को हमारे सुर लय ताल से क्या आपत्ति है। मैं आपको बताना चाहता हॅू मित्रों की यह हमारे साथ एक साझिश है। अरे घोटाला चाहे बीज का हुआ चारा का हुआ, कोयला का हुआ, टूजी स्प्रीकटम का हुआ, बैंकों में हुआ इन सबमें हमारे समाज की छवि को क्यों धूमिल किया जाता है, जब कोई मूर्खता का काम करता है तो हमारा नाम उन्हें क्यों दिया जाता है, हम भी तो इसी समाज के अंग हैं, क्या हमें अपने मूल अधिकारों के प्रति सजग नहीं होना चाहिए ।
मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष जी और महामंत्री से अनुरोध करता हॅू कि वह इसका पुरजोर विरोध दर्ज करें, नही तो हमारा समाज अपनी पीठ पर कोई भी बोझ नहीं ले जाने को तैयार होगा। मैं उत्तराखण्ड में चल रहे हमारे प्रकरण को लेकर कहना चाहता हॅूं कि 2022 के टिकट और चुनाव हमारी बिरादरी को बीच में लाकर ना लड़ा जाय, हमारी बिरादरी को इस तरह से अपमानित ना किया जाय। अपने भाषण को यहीं पर समाप्त करते हुए मंच संचालक ने सीधे राष्ट्रीय मंत्री श्री शंखकर्ण को मंच पर आमंत्रित किया।
अपने संबोधन से पूर्वं राष्ट्रीय मंत्री ने सबका अभिवादन करते हुए तीन बार ढैंचू ढैंचू ढैंचू कहा। सभी ने गर्दन ऊपर करते हुए और एक दूसरे को दुलत्ती मारते हुए एक दूसरे का अभिभावदन स्वीकार किया। राष्ट्रीय मंत्री शंखचरण ने कहा कि साथियों मैं आपको बताना चाहता हॅूं कि यह समस्या सिर्फ उत्तराखण्ड में नही बल्कि पूरे देश और दुनिया में हैं, लेकिन हमारे उत्तर भारत मेंं तो हमें हर जगह प्रताड़ित किया जाता है, किसी दोपाये ने काम गड़बड़ कर दिया तो उसे हमारी औलाद बता देते है, जबकि हमारा उसके औलाद होने में कोई भूमिका नही होती है, अपनी संतान तो हमसे संभलती नहीं और को भी हमारी औलाद बता देते हैं, खैर हमें इससे ज्यादा कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन जब कोई निरा मूर्ख होता है उसको भी हमारा नाम दे देते हैं, इसमें हमने उसको मूर्ख थोड़ी बनाया हैं। वैसे भी कोई बहादुरी का काम करता है तो उसको शेर कह देते हैं, अब बताओ इंसान होकर भी वह शेर कहलाने में खुश हो जाता है। खैर अब हम मुद्दे पर आते हैं, जैसे कि उत्तराखण्ड से आये बड़े भाई राशभ कुमार जी ने कहा कि ये दोपाये हमारे सुर लय ताल को भी बिगाडने का काम कर रहे हैं, हमारी मूल बोली में इन्होनें छेड़छाड़ कर दिया है, ढैंचू ढैंचू जो हमारा खानदानी आलाप है, उसको यह कैसे बदल सकते हैं, यह हमारी और हमारे पूर्वजों का घोर अपमान है, इसे माफ नहीं किया जा सकता है, चलों औलाद या अन्य उपाधि से हमारा सम्मान बढता था लेकिन हमारे सुरों की धुन में छेड़छाड बर्दाश्त नहीं की जायेगी, इसके लिए चाहे हमे सड़को पर उतरना पड़े या फिर अपना कच्छ में इसके लिए भव्य आयोजन कर इस पर अतिंम निर्णय लेना चाहिए।
इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष वैशाखनदंन ने अपने संबोधन को ढैंचू ढैंचू करके आरंभ करते हुए कहा कि साथियों सबसे पहले तो हमको अपना बोझ उठाने के लिए इंश्योंरेंस की मॉग उठानी होगी, साथ ही हमको अपने किसी को भी हमारे नाम की औलाद या उसके मूर्खता के लिए दीये जाने वाले विश्लेषण उपनाम पर आपत्ति दर्ज करनी होगी। जैसे के पूर्व के वक्ताओं ने कहा कि हमारे स्वर लय ताल में जो छेडछाड़ की जा रही है, हमारी मूल भावनाओं के साथ जो इस तरह का भद्दा मजाक चल रहा है यह हमारे गर्दभ समाज की तौहीन है, हमें अब एक जुट होकर अपने लिए आरक्षण के साथ दुलत्ती मारने का पूर्ण अधिकार एव हम किसी को भी दुलत्ती मार दे तो हमें किसी भी प्रकार की सजा का प्रावधान न हो इसके लिए एक राष्ट्रीय विचार मंच का गठन कच्छ के रण में करना होगा। साथ ही हमें अपनी मानहानी का दावा जंगल के शेर के पास जाना होगा, बाकि जगह तो हमें आश नहीं है कि हमें निर्णय मिले क्योंकि एक बार केस दर्ज भी हो गया तो वहॉ से सालों लग जायेगे फैसले आने पर तब तक हम लोग इस दुनिया में रहते भी हैं या नही। अतः हमें अपने कानूनी सलाहकार से राय मशौरा करके दोपायों द्वारा हमारे सुर लय ताल को बदलने की जो साजिश है, उसके लिए एकजुट होकर लडना होगा। आपकी एकता हमारी ताकत हैं। जोर से बोलो ढैंचू ढैचू ढैचूं।
सभा समाप्त होने के बाद सभी ने हरी घास का आंनद लिया और वहीं पर लोट पोट होकर आगे की रणनीति तैयार कर ली गयी कि जल्दी ही इस मसले पर जंगल के राजा शेर के पास जाया जाय और दोपायों को इसके लिए नोटिस जारी किया जाय।
नोटः यह मात्र व्यग्य है, इसको किसी भी व्यक्ति विशेष या राजनीति जोड़कर ना देखा जाय, यह गर्दभ समाज की चिंता है, उनके मूल अधिकारों की बात हैं।