भास्कर और शीला दोनों छोटे बेटे मयूर के साथ रहते थे, भास्कर अपने पोते को लेकर स्कूल लेकर आना जाना, उसके साथ पार्क में घूमना, कभी उसके डिमांड पर खाने की चीज उपलब्ध करा देता था। कहते है कि दादा दादी को अपने बेटे से ज्यादा नाती पोतों से ज्यादा प्रेम होता है।
मयूर की पत्नी घर के साथ ब्यूटी पार्लर भी संभालती थी, लेकिन ज़्यादा समय ब्यूटी पार्लर में ही बीतता, मयूर का तो काम ही बिजनेस का था तो उसको घर के कामो से कँहा फुर्सत मिलने वाली थी। भागमभाग की जिंदगी में दो पल का चैन नही था। गाड़ी, मकान, कपड़े अब आवश्यकता नही स्टेटस सिंबल बन गये थे, अब लोग जरूरत के लिये कम औऱ स्टेटस सिम्बल को मेंटेन रखने के लिये अपने को खफा देते हैं।
अक्सर मयूर का बड़ा भाई रंजन जो सॉफ्टवेयर है, उसने अभी कुछ दिन पहले नए मॉडल की गाड़ी ली है, जिसकी चर्चा घर में अक्सर हो रही थी, मयूर की पत्नी बार बार मयूर को उलाहना देती की यह आई 10 पुरानी हो गयी है, हम भी दीवाली तक कोई नई गाड़ी ले लेते है,मैंने ऑन लाईन सभी गाड़ियों के मॉडल देख लिये है।
मयूर ने कहा यार लेने के लिये तो ले लेते लेकिन अभी सितम्बर तक रिटर्न भरना है, फिर दिवाली आ रही है, नया सामान भी भरना है, इतनी जमा पूंजी नही है, की हम 15 लाख की गाडी ले सके। यदि लोन भी लेते है तो लोन की इंसोलमेंट के लिये 8 लाख और बाकी किश्त भी देखनी होगी, तुम जानती हो की कोरोना के दो साल से बिजनेस तो नुकसान का ही रहा है, कल ही एकाउंटेंट बता रहा था कि इस बार मुनाफा 10 प्रतिशत भी नही हुआ, उल्टा खर्च बढ़ गया है।
मयूर की बात को काटते हुये उसकी पत्नी ने कहा कि थोड़ी मदद तो पापा भी कर लेंगे, उन्होंने कौन सा साथ लेकर जाना है, यदि थोड़ा मदद कर भी देगे तो क्या फर्क पड़ता है।
मयूर ने कहा कि यार पापा मदद तो कर देंगे लेकिन उनके लिये तो दोनों बेटे बराबरी के हिस्से रखते हैं, बेकार में घर में तनाव का माहौल बन जायेगा, इस तरह दोनों में चर्चा होती रही।
अगले दिन सुबह मयूर तो अपने काम पर निकल गया, उसकी पत्नी नीलू ने स्कूटी निकाली गाड़ी देखने चली गयी, शाम को आकर अपने सास ससुर जी को गाड़ी लेनें का विचार बताया और मदद करने की अपेक्षा रखी। ससुर जी ने कहा कि शाम को मयूर आ जायेगा फिर इस पर बात करेंगे।
शीला जानती थी कि अपनी मुट्ठी में कुछ धन रहेगा तो वही बुढापे का सहारा होगा। आजकल हर रोज अखबारों मे किस्से पढ़ने को मिलते हैं, वृद्ध आश्रमों में वृद्ध व्यक्तियों की करुण दशा देखने और सुनने को मिलती है। इसलिये शीला चाहती थी कि मदद भी हो जाय और ज्यादा लुट जाय। शीला ने भास्कर को कहा कि तुम अभी बच्चों को कुछ भी मत देना, हालांकि है सब उनके लिये ही हम तो अब पतझड़ वाले पेड़ हो गए हैं, दिन प्रतिदिन हम रुग्ण होते जाएंगे, लेकिन यह धन रूपी कोपल हमेशा यह दर्शायेगी की अभी हमारे नीचे छाँव मिल सकती है, यही जमा पूंजी इस बुढापे का हथियार है, हम खाली हो गए और कल के दिन बेटे बहु बदल गए तो हम कँहा जायेगे।
शीला ने कहा कि कल रविवार है, हम कल गाड़ी देखने के बहाने चलेंगे, लेकिन मैं बहु और बेटे दोनों को कुछ अहसास कराना चाहती हूँ, ताकि यह फिजूलखर्ची ना करे और हमारा भी ख्याल रखे, साथ मे थोड़ी मदद भी हो जाय।
शाम को सब जब खाना खा रहे थे तो शीला ने बहु को कहा कि कल हमे एक बार गाड़ी दिखा दो, और जाते हुए जरा डाट काली मंदिर भी माता के दर्शन हो जाय।
इधर मयूर और उसकी पत्नी नीलू का खुशी का ठिकाना नही रहा, क्योकि उनको घर से मदद मिलने की पूरी उम्मीद जग चुकी है। पैतृक संपत्ति इसलिए तो जोड़ी जाती है कि आने वाली पीढ़ी उसको उपयोग कर सके, लेकिन नई पीढ़ी यह नही समझती की हम आगे वाली पीढ़ियों के लिये क्या कुछ करेगे, खैर दोनों ने सुबह नई गाड़ी देखने और खरीदने का मन बना लिया, जब तक दोनों सोए नहीं कल्पनाओ की उड़ान में अथाह आसमान में उड़ते रहे।
अगली सुबह सब तैयार होकर गाड़ी देखने निकल गए, शो रूम में पहुँचकर गाड़ी दिखाने वाले ने पूरी गाड़ी के फंक्शन समजाये और फिर उसके कई फायदे गिनाते हुए उसके एवरेज से लेकर सीट में आराम और भी बहुत कुछ। नीलू यह सब देखकर उत्साहित हुए जा रही थी, वंही शीला सोच रही थी कि एक हमारा जमाना था कि पाई पाई जोड़कर घर और अपने खर्चो में कटौती करके अपनी खुशियों को दाँव पर लगा देते थे।
गाड़ी दिखाने के बाद वह डाट काली मंदिर की ओर बढ़े, मंदिर में दर्शन करने के बाद वापिस आने लगे तो रास्ते मे एक बड़ा सा पेड़ था जिसकी कुछ शाखाओं ने झुकना शुरू कर दिया था कुछ टूट चुकी थी, एक दो शाखाओ पर पत्ते थे उन पर भी हल्का पीलापन था। उस पेड़ को देखकर शीला ने गाड़ी रुकवाई और कुछ देर वंही रुककर फल खाने के लिये आग्रह किया। शीला की बात सबने मान ली।
शीला ने नीलू को पूछा बेटा गाड़ी ले रहे हो इतनी चादर है आपके पास जो उस हिसाब से पैर फैला सको। बेटा आप लोग तरक्की करो, हमे भी खुशी है, लेकिन उस तरक्की से ऐसा ना हो कि घर के अन्य चीजों का बजट बिगड़ जाय, रही बात हमारी हम तो इस पेड़ की तरह हो गए हैं, देख रहे हो ना इसके हरे औऱ हल्के पीले पत्ते पतझड़ की ओर इशारे कर रहे हैं कि इनका गहरा हरा रंग और उस पर पीला पन पतझड़ आने की निशानी है। हम लोग भी इसी पेड़ की तरह है। हमने अपना बसंत जो यौवन में आया था वह इन बच्चों की परवरिश में लुटा दिया, फिर जब थोड़ा बड़े हुए तो हम इनकी शाखाओ की तरह परिपक्व होते गए, इस पेड़ की सारी जमा पूंजी इसकी शाखाएं थी जो अब इससे अलग होने लगी है, जैसे हमारी शाखाएं आप लोग हो, और बड़ा बेटा हमसे दूर है, तो एक शाखा हमारी हमसे दूर ही तो है, तुम एक तना की तरह हमारे साथ हो लेकिन कब तुम भी अलग हो जाओगे वक्त का कुछ पता नही, तुम हमसे फल खाओ लेकिन यह नहीं कि पूरा पेड़ ही तोड़ दो।
बेटा इस पेड़ की जड़े ही इसकी पूंजी है जो इनके सहारे खड़ा है ऐसे ही हमारी जड़े हमारी पूंजी है जो हमे पतझड़ में भी सहारा देगी, इसलिये हम आपकी उतनी ही मदद कर पायेंगे जितने हमसे हो सकेगा। हम पतझड़ वाले पेड़ो पर अब नए कोपल नही आ सकते इसलिये हमें अपनी जड़ों पर ही टिके रहना। इसलिए आप अपनी जड़ों को मजबूत करके अपनी शाखाओ को सामने वाले पेड़ की तरह मजूबत करके आगे बढ़ो। अभी तो आप लोग युवा हो कई और बसंत देखोगे लेकिन बाकी ऋतुओ को ध्यान में रखकर अपनी जड़ो को मजबूत बनाये रखना।
घर आकर भास्कर ने अपनी जमा पूंजी में से मदद नही बल्कि वापिस लौटाने को कहकर 2 लाख का चैक मयूर को पकड़ाते हुए कहा कि यह मुझे 6 महीने बाद वापिस करोगे इस शर्त पर दे रहा हूँ। मयूर समझ गया था की उसके पिताजी उसकी जड़ो को औऱ मजबूत करना चाहते है।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।