रीता ने अमन के सिर से रजाई उठाते हुए कहा कि अजी सुनते हो 07 बज गये हैं, फिर मत कहना कि जल्दी जल्दी नाश्ता तैयार करो, मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है। यह कहते हुए रीता बाथरूम में जाकर ं कपड़े धोने के लिए वाशिंग मशीन चालू करने चली गयी। अमन करवट बदलता रहा। ईधर आजकल बच्चो के ऑनलाईन परीक्षा चल रही हैं, 09 बजे बड़े बेटे का और 10 बजे छोटी बेटी का पेपर है।
अमन की मॉ और पिताजी गॉव से आये हुए हैं, घर की आदत है सुबह जल्दी उठ जाना, गॉव में तो उठकर पहले तो झाड़ू करने और चूल्हे पर लकड़ी जलाने मेंं ही वक्त लग जाता है, लेकिन यहॉ कोई काम है नहीं है तो दोनों वृ़द्ध दम्पत्ति अपनी पुराने दिनों को याद करते हुंए बातचीत शुरू कर देते हैं। अमन भी उठ जाता है और सीधे मुॅह धोकर अपने मॉ पिताजी के कक्ष में जाकर उनके साथ बातचीत करने लग जाता है, इतने में रीता चाय लेकर आ जाती है। रीता तीनों को चाय देते हुए अमन को कहती है कि वह जल्दी फ्रेश होकर नहा ले और आफिस जाने के लिए तैयारी करे। दोनो बच्चों के लिए परांठे और अमन के लिए टीफिन के लिए दाल और रोटी नाश्ते के लिए अलग सब्जी बनानी होती है। रीता का एक पॉव किचन में तो एक पैर कमरें में बच्चों की किताब, अमन के कपड़े और झाड़ू पोछा करना अलग। ईधर ससुर जी नहाने गये हैं उनके लिए नहाने के बाद चाय बनानी है। इतने में दोनो बच्चे भी उठकर मम्मी मम्मी का राग अलापने लगते हैं।
बहु को काम करते हुए सास जी मन ही मन सोचती है कि बहु तो हमसे भी ज्यादा व्यस्त है, हम तो सुबह जल्दी उठकर गाय का गोबर निकालकर, उसके बाद गाय को दूहकर, रात की बासी सब्जी और रोटी खाकर जंगल निकल जाते थे, हमारे मर्द भी खेतों में काम करने या ध्याडी करने चले जाते थे उनके लिए टिफिन और अलग अलग नाश्ता बनाने की कोई समस्या नहीं थी। बच्चे भी चाय में रोटी खाकर स्कूल चले जाते थे, पढाई क्या चीज होती है, हमने कभी जाना ही नहीं। हमारे चार बच्चे रहे, उन्होने क्या पढा लिखा वही जाने और उनके मास्टर। हम तो बस इतना जानते थे कि बच्चे पास हो गये । साल भर में उनके लिए किताब और कॉपी के साथ दो जोडी कपड़े बना दिये। बच्चे भी खाने पीने में जो मिल गया नखरा नहीं करते थे, लेकिन हमारे नाती नतनियों के लिए अलग अलग खाना चाहिए। रीता की सास इन्ही बातो को सोच रही थी तब तक रीता नाश्ता लेकर आय गयी। मॉजी यह लो आलू गोभी की सब्जी और रोटी। आपके लिए और ससुर जी के लिए नाश्ता यहॉ रखा है।
मॉ की ममता कभी बूढी नहीं होती है, सास ने कहा बेटा हम बाद में खा लेगें पहले अमन को दे दो और बच्चों को खिला दो, हम बाद में भी खा लेगें। हमने खाना ही तो खाना है, बाकि काम ही क्या है।
सास जी आप चिंता मत करो, इनके लिए भी नाश्ता तैयार है आप तब तक नाश्ता करना शुरू कर दो। बहु ने सबको नाश्ता कराने के बाद और अमन के आफिस जाने के बाद झाड़ू पोछा किया फिर दोनो बच्चों को ऑन लाईन परीक्षा दिलवाने के लिए उनके सामने बैठ गयी। दोनो की परीक्षा करवायी ऑन लाईन ही कॉपी जमा करवायी फिर दिन के लंच की तैयारी में लग गयी। इसी तरह पूरे दिन वह व्यस्त रही।
ईधर अमन शाम को घर आया और यह कहते हुए बिस्तर पर लेट गया कि आज तो बहुत काम था थकान लगी है, जल्दी खाना लगा दो मुझे सोना है। रीता ने कहा कि थकान तो हमको नहीं लगती जो दिन भर काम पर लगी रहती हैं, आपके काम की तो फरफोरमेंस देखी जाती है, लेकिन हम गृहणीयों की तो कोई फरफोरमेंस नहीं होती है, ना कोई अवकाश और ना वेतन, फिर भी दिन भर कोल्हू के बैल की तरह जुटी रहती है। अमन ने इस बात को नजर अंदाज किया और बिना कुछ कहे ही वह डिनर करने के बाद समाचार देखने लगा।
कुछ देर बाद अमन ने अपना फोन खोला तो देखा कि उसके सोशल मीडिया में उसकी सहपाठी और उसकी महिला मित्र की एक फोटो जिसमें वह अन्तर्राष्ट्रीय दिवस के कार्यक्रम में वह मुख्य अतिथि के रूप में निमनि्ंत्रत की गयी थी।
डिनर करने के बाद सारा परिवार एक साथ बैठा हुआ था तो अमन ने वह फोटो सबको दिखाते हुए अपनी महिला मित्र की तारीफों के पुल बॉधने शुरू कर दिये और रीता को उलाहना देते हुए कहा कि देखो इसको कहते हैं तरक्की। रिया ने देखो पढ लिखकर और सामाजिक क्षेत्र में अपने आपकी एक नयी पहचान बना ली है, एक तुम हो कुएं के मेढक जो कभी बाहर ही नहीं निकल पाती।
अमन की इस बात का बुरा रीता को तो नहीं लगा किंतु उसकी मॉ को अवश्य लगा। अमन की मॉ ने कहा कि बेटा दूर के ढोल सुहाने होते हैं और दूसरे के पैर में पहनी हुई सैंडिल सबको अच्छी लगती हैं, लेकिन चुभ कहॉ रही हैं, यह पहनने के बाद ही पता चलता है। रिया और रीता में तुलना करना अच्छी बात नहीं है।
मुझे यहॉ चार दिन हो गये, अभी तक मुझे बहु के साथ एक घंटा भी बात करने का मौका नही मिला, दिन भर काम में व्यस्त रहती है,बेटा तुम कमा कर लाते हो, लेकिन घर को घर तो बहु ही बनाती है। यदि वह भी बाहर की दुनिया या सामाजिक कार्यों में आने जाने लगे तो तुम जो सुबह 8 बजे नाश्ता की मॉग कुर्सी पर करते हों ना वह तुम्हे खुद ही बनाना पडेगा और रात को जो तुम आते ही खाना ढूंढते हो ना वह आकर बनाना पड़ेगा।
बेटा तुम और तुम्हारे बच्चों की नाज नखरे जितना बहु उठाती है, उतना उठाना कम नहीं है। आज की बहु शिक्षित और समझदार है, उन्हें आज के समाज के साथ रहना भी आता है और घर चलाना भी आता है। बाहर मंचों में हम कितना भी भाषण दें दे और कितना भी चिल्ला ले लेकिन महिलाओं की असली आजादी और उनकी क्रद हमें घर से ही करनी होगी। सबसे पहले एक महिला को दूसरे महिला का सम्मान करना सीखना होगा।
अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरूवात घर से करनी होगी, वरना साल भर में पटाखे सिर्फ दीवाली के दिन फोड़ने से राम राज नही आ जाता, बल्कि रामचन्द्र जी की तरह हर रोज मर्यादा का पालन करना पड़ता है, तब जाकर राम राज आता है। घर की महिलाओं का आदर करने से ही संस्कार परिष्कृत और परिणीत होते हैं। घर में देवता निवास करे या ना करे लेकिन परिवार में संस्कारों का निवास महिलाओं के आदर और सम्मान करने से होता है।
लेकिन इतना उन महिलाओं को भी कहना चाहती हॅू कि वह भी नदी बनकर परिवार को अपने संस्कारों से सिंचित करे, अपनी आजादी को उस स्तर तक ही उपयोग करें जिस स्तर तक वह उसके लिए हथियार है, लेकिन आजादी का इतना दुरूपयोग ना करे कि वह परमाणु बम ना बन जाय।
यह सुनते ही रीता की ऑखों में ऑसू आ गये और वह पल्लू से ऑसू पोछते हुए किचन में सबके लिए दूध गर्म करने चली गयी।
हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।