मंगलू रोज की तरह जल्दी उठकर 15 लीटर के प्लास्टिक का डिब्बा उठाकर घर के पास वाले नल पर लग गया, नल खोला तो पानी नहीँ आ रहा था, समझ गया कि पाईप लाइन कही फिर टूट गयी है, क्योंकि यह किस्सा महीने में एक दो बार हो जाता है, फिर वह डेढ़ किलोमीटर अपने पुराने पानी के स्त्रोत में गया। पानी के स्त्रोत में जाने का रास्ता टूट चुका है, चारो ओर झाड़ी ही झाड़ी है। पहले गाँव के लोग मिलकर झाड़ी साफ कर लेते थे, रास्ता बना लेते थे, अब सब मनरेगा और प्रधान के भरोसे बैठे रहते हैं, गाँव के लोग ही मनरेगा में जब रास्ता साफ करते हैं तो उसे भी ढंग से साफ नहीं करते हैं, बस ध्याड़ी गिनवानी तक सीमित है, ऐसा मंगलू पानी भरते वक्त खुद से ही बात कर रहा है, पानी भरने के बाद वह पानी लेकर घर आ गया,मंगतू की पत्नी ने चाय बनाकर रखी थी चाय पीते हुये मंगतू ने घरवाली से कहा देहरादून काम से जा रहा हूँ, जरा सड़क के लिये विधायक जी को मिलना है, फोन पर बात हुई थी वहीं बुलाया है।
मंगलू की पत्नी दर्शनी ने बड़बड़ाते हुये कहा कि जैसे बस तुम्हारे लिये ही इस सड़क की जरूरत है, अगर जाना है तो मंडुवा काटने के बाद चले जाना।मंडुवा खेत मे लगभग पकने को तैयार हो रखा है, रात खेत मे पूरी रात जागकर जंगली जानवरों से कैसे करके तो उसको जुगाल रही हूँ, अब तो बस जरा एक दो दिन तेज धूप हो जाय तो मंडुवे के डूंडो ( बाल) पर लालिमा आ जाय, फिर जल्दी काट लू।
मंगलू ने कहा कि अरे फोन करके बड़ी मुश्किल से बात करने बुलाया है, नही गए तो फिर हमे ही कहेंगे कि बुलाया तो आये नहीँ, जरूरत हमको है सड़क की।
दर्शनी देवी ने कहा कि बस तुमको ही जरूरत है, बाकी जैसे दो किलोमीटर पैदल जा रहे हैं, ऐसे ही हम भी चले जायेंगे। तुम ही को ज्यादा चिंता पड़ी है।
मंगलू पार्टी का कट्टर कार्यकर्ता है, हर चुनाव में उसकी क्षेत्र में अहम भूमिका रहीं है, इसलिये सड़क बनाने के लिये गाँव का हर व्यक्ति उसे ही कहता, पार्टी का कार्यकर्ता होने के नाते संगठन उसकी सुन भी लेता, वैसे उसने दो बार ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा लेकिन आपसी मतभेद के चलते वह कार्यकर्ता बनकर ही रह गया। पति पत्नी में आपसी तर्क वितर्क चल रहे थे कि
इतने में गाँव के वृद्ध व्यक्ति रमेश दादा आ गए। अरे मंगलू तुम देहरादून जा रहे हो जरा मेरे नाती पोतों के लिये ककड़ी और जरा सा चचेण्डा है वह ले जा लेना, रिस्पना पुल पर नाती आ जायेगा लेने।
मंगलू ने जरूरी कागज बैग में रखे और रमेश दादा जी को कह दिया कि तूम थैले में सब्जी लेकर आ जाओ। मंगलू तैयार हो गया, इधर रमेश दादा भी अपने बेटे बहु के लिये सब्जी और ककड़ी लेकर आ गया।
सुबह के आठ बज चुके है, 9 बजे आखिरी गाड़ी ऋषिकेश के लिये निकलती है, फटाफट तेज कदमो से मंगलू सड़क की ओर चल पड़ा। मैक्स गाड़ी आई और वह बैठकर ऋषिकेश आ गया। उसके बाद बस अड्डा पहुँचकर वह देहरादून जाने वाली गाड़ी देखने लग गया, लेकिन अभी कोई गाड़ी नही लगी थी, वंही बैठकर इंतजार करने लग गया।
क्या मंगलू की मुलाकात विधायक से हो पाएगी, क्या मंगलू के गाँव मे सड़क जा पायेगी, जानने के लिये कहानी का शेष भाग अगले अंक में।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।