सुबह प्रार्थना सभा में होने के बाद हेड मास्टर साहब ने सबको अपनी अपनी कक्षाओं में चुप बैठने को कहा, उनके सहायक छुट्टी पर थे। गुरूजी ने अपना फोन निकाला, व्हाटस अप चैक किया। व्हाटस पर ही अब सारा चिठ्ठी पत्रीयों का आना जाना लगा रहता है। विभागीय ग्रुप अलग है, शिक्षक संघ का अलग, क्षेत्रीय स्तर का अलग और ब्लॉक स्तर का अलग। संकुल प्रभारी ने भी एक व्हाटस अप ग्रुप बनाया है, जिसमें संकुल स्तर के सारी जानकारी साझा की जाती हैं। हेड मास्टर साहब ने सबसे पहले इन्ही ग्रुपों को देखा कि कहीं कोई डाक तो नहीं आयी है, या कोई डाक तो नहीं भेजनी है। यह गुरूजी की दिनचर्या में शामिल है। जैसे ही व्हाटस पर विभागीय लेखा जोखा देख रहे थे तब तक भोजन माता आ गयी।
गुरूजी अरहर की दाल खत्म हो गयी है, और मसूर की दाल भी थोड़ा ही बची है, आज क्या बनाऊॅ। हेड मास्टर ने चश्मा नाक पर लाते हुए भोजन माता को देखा और कहा कि आलू का झोल और सोया बीन की बड़ी बना दो। कल ़़ऋषिकेश से डिमरी गुरूजी आयेगें तो उनको लाने के लिए बोल दूंगा। भोजन माता को देखकर याद आया कि अभी बैंक पास बुक की इण्ट्री भी करवानी है। ईघर मिड डे मील का रजिस्टर भी अपडेट करना है। गुरूजी ने सोचा चलो आज मैं बच्चों को थोड़ा पढा लेता हॅू, जैसे ही कक्षा में गये तब तक फोन की रिंगटोन बज गयी। गुरूजी ने फोन देखा तो संकुल प्रभारी जी का फोन था। समझ गये कि अब कोई नया काम आ गया है।
गुरूजी नमस्कार। सकुंल प्रभारी ने कहा, ईघर से हेडमास्टर जी ने भी अभिवादन स्वीकार करते हुए कहा कि महोदय आदेश दीजिए। संकुल प्रभारी ने कहा कि ब्लॉक से जो कमजोर बच्चों की सूचना मॉगी गयी थी उसको भेजो अभी, खण्ड शिक्षा अधिकारी का आदेश आया है। आपको व्हाटस अप किया है, मै बाकि अध्यापकों को भी सूचित करता हॅू। गुरूजी ने कक्षा में बच्चों को पढाना छोड़ पहले व्हाटस अप चैक किया, जो जानकारी मॉगी थी वह जुटायी उसके बाद कागज पर पेन से लिखने लगे। बडे ध्यान से बना रहे थे, ईधर बच्चे दूसरे कमरे मे ं शोर कर रहे थे, गुरूजी ने अंदर जाकर दो बार बच्चों को चुप कराया। बच्चे स्कूल में बिना गुरूजी के तो पशुओं की तरह बिना मालिक के अनियत्रिंत हो जाते हैं। उसके बाद गुरूजी ने पॉचवी के बच्चों को अलग अलग कक्षाओं को देखने के लिए कहा और मॉनीटर को जिम्मेदारी दे दी कि यदि क्लास में शोर शराबा हुआ तो पूरी कक्षा को दंड़ के रूप में तीन कवितायें सुनानी पड़ेगीं। गुरूजी करते भी तो क्या करते, ईधर डाक भेजनी भी जरूरी है। जैसे तैसे करके डाक बनायी और उसको संकुल प्रभारी को व्हाटस अप किया।
हेड मास्टर साहब ने हल्की सांस ली और फिर कक्षा की ओर बढ ही रहे थे कि तब तक अभिभावक आ गये। गुरूजी ने उनको बिठाया और आने का कारण पूछा। अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चों के के खाते में अभी तक ड्रेस के रूपये नहीं आये हैं, उनको पैसों की जरूरत है। ड्रैस तो यही चल जायेगी लेकिन उस पैसे से कुछ और तो लेकर आयेगे। गुरूजी मुस्कराये और फोन पर बैंलेस चैक किया तो वास्तव में अभी पैसे बच्चों के खाते में नहीं गये थे, जबकि चैक बहुत पहले ही जमा कर आये थे। बैंक मैनेजर को फोन किया, वहॉ से जबाब मिला कि आपके स्कूल का खाता फ्रीज कर दिया है, केवाईसी जमा करवाओ तब जाकर होगा। गुरूजी को एक और टेंशन। अभिभावक को उसकी भाषा में समझाया और दो चार दिन में पैसे आने की बात कहकर कुछ देर के लिए चिंता मुक्त हुए।
अब क्लास में जाने की सोच ही रहे थे कि तब तब लंच टाईम हो गया, भोजन माता ने आलू और सोया बीन की बड़ी का साग और चावल बनाये थे, सब बच्चों को खाना खिलाया, बच्चे खेलने लगे। इतने में हेड मास्टर साहब को फिर साथी अध्यापक का फोन आया कि उनको व्हाटस ग्रुप में आदेश हुए हैं कि वह गॉव गॉव जाकर राशन कार्ड का सत्यापन कर रिपोर्ट 10 दिन के अंदर दें, उनकी ड्यूटी वहीं गॉव में लगी है जिस स्कूल में वह हैं। गुरूजी का नाम सूची में नहीं था लेकिन सहायक का नाम है। सहायक के नाम होने से गुरूजी को चिंता हो गयी कि अब बच्चों को पढायें या फिर बाबू बनकर चिठ्ठी पत्री का जबाब भेजते रहें।
लंच बाद मुश्किल से बच्चों को पढा ही रहे थे कि तब तक दो बच्चों में झगड़ा हो गया, एक बच्चे ने दूसरे बच्चे के सिर पर नुकीली चीज से मार दिया, थोड़ा खून भी बह गया। अब हेडमास्टर जी ने चौक लगा कर खून तो रोक दिया, बच्चे को मार भी नहीं सकते थे बेकार में कल अभीभावक आकर फिर कुछ नया बखेड़ा शुरू ना करदे। दोनों को डराया धमकाया और समझाया। लेकिन चिंता तो थी ही कि कहीं घर में ना कह दे।
स्कूल में टॉयलेट बन रहा है, दो दिन से मजदूर काम पर नहीं आये हैं, गुरूजी को रिपोर्ट भी सौपनी है। हेड मास्टर साहब अब ठेकेदार और मुंशी दोनों का काम भी देखना पड़ रहा है। हेड़ मास्टर साहब ने सोचा कि चलो बच्चो से पहाड़ा याद करवा देता हॅू, उन्हें पहाड़ा याद करने को दे दिया। फोन खोला तो देखा कि संकुल प्रभारी ने एक और जानकारी मॉगी है, और लिखा है कि आपने परसों भेजी थी वह गलती से डिलीट हो गयी। गुरूजी ने फोन खोला और वह जानकारी खोजनी चाही तो मिली नहीं। फोन की मेमोरी भी स्कूल का आफिस बन चुका था। उनकी सैल्फी कम और आफिसियल दस्तावेज ज्यादा थे, घर जाते हुए बच्चों को पकड़ाना भी डर लगता था कि कहीं बच्चों ने डिलीट कर दिये तो गये काम से। अब गुरूजी ने वह रिपोर्ट खोजकर आगे फॉरवर्ड कर दिया। ईधर छुट्टी का समय हो गया है, गुरूजी ने स्कूल बंद क
रवाकर घर के लिए निकल चुके हैं।
जैसे ही घर पहॅुचकर चाय पानी पीया फिर फोन खोला तो सहायक अध्यापक ने दो दिन की छुट्टी के लिए प्रार्थना पत्र भेजा है और एक मिस कॉल आयी है। हेड मास्टर जी परेशान, ईधर मिड डे मील के लिए दाल खतम हो रखी है, उधर बच्चों के पैसे खाते में नहीं गये हैं, और बैंक में भी केवाईसी देनी है, टॉयलेट का काम भी खत्म नहीं हुआ है। अगले हप्ते ट्रेनिंग पर भी जाना है। ईधर राशन कार्ड सत्यापन अलग करना है। क्या करूं करूं इन सब बातों की चिंता कर ही रहे थे कि तब तक सोशल मीडिया में गुरूजनों के संबंध में खबर छपी है कि इस बार भी ट्रांसफर नहीं होगे, गुरूजी कब से जुगाड लगा रहे थे कि वह घर के नजदीक अपने स्कूल में चले जायेगें लेकिन अब यह भी नहीं होने वाला।
गुरूजी ने फिर शाम को खाना खाया और उनके एक मित्र का फोन आ गया कि ऑडिट भी होने वाला है, सभी को मुख्यालय कागजात के साथ बुलाया है, गुरूजी का गुस्सा सांतवे आसमान पर था, गाली देते हुए कहने लगे कि हमे मास्टर बना रखा है या बाबू, या फिर मुंशी, बड़बडाते हुए फोन रख दिया।
हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।