हल लगाते हुए भगतू के बैल ओढ को पार करते हुए दूसरे भाई जगतू के खेत में घुस गये, इतने में जगतू की पत्नी विमला ने यह सब देख लिया, और उसने बिना जाने ही गाली देनी शुरू कर दी। हल्ला और गाली सुनकर जगतू बाहर आ गया और उधर भगतू की ब्वारी सीता भी बाहर आ जाती है।
जगतू : अरे ये हल्ला क्यो कर रही हो, गाली किसे दे रही हो।
विमलाः तुम्हारी ऑखे फूट रखी हैं, देख नहीं रहे हो हल लगाते हुए बैल हमारे खेत में आ गये है, कल ही तो बीज बोये थे, सब बरबाद कर दिये।
सीताः अरे हल लगाते हुए बैल मुड नहीं पाये और आपके हिस्से में आ गये जितना नुकसान हुआ होगा हम वहॉ पर बीज बो देंगे।
विमलाः हर बार तुम्हारे बैल हमारे खेते में ओढ़ को पार कर आ जाते हैं। हल लगाने वाले को दिखता नही, ऑखे खराब हो गयी हैं अभी से।
सीताः अपने पति भगतू के बारे में यह सुनकर बौखला गयी और वह भी पुरानी बातों को लेकर मुद्दा बना दिया।
विमलाः ज्यादा मत बोल हाय लगेगी हमारी तुमको, ना खाना तुम अगली फसल।
विमला की गाली सुनकर भगतू को गुस्सा आ गया और वह जगतू को बोला भाई अपनी घरवाली को समझा दो, गाली ना दे, अच्छा नहीं होगा।
जगतू तो पिछले साल से किसी पुरानी बात को ऑठ बॉधकर बैठा हुआ था, बस यह सुनते ही वह भी ताव मे आ गया और बोला कि एक तो हमारे खेत में नुकसान कर दिया और फिर मुझे ही कह रहे हो कि अपनी घरवाली को समझा दो। दिख नहीं रहा तुमको खेत में कुछ बोया है, हमेशा तुम नुकसान कर देते हो।
ईधर सीता और विमला में मुॅह जवानी युद्ध चल रहा है, और उधर जगतू ने छज्जे के नीचे से गंज्याली उठायी और भगतू को मारने दौड़ा, उधर भगतू ने भी बॉस का डंडा उठा लिया, इतने में गॉव के बुर्जुग जो रिश्ते मेंं चाचा लगते थे वह आ रहे थे, दोनों को थामा।
खेत की ओढ के लिए कभी पेड़ काटने के लिए गॉव में हर रोज झगड़ा होता रहता, कभी गाय बैलों के उजाड़ खाने पर एक दूसरे की मवासी उकटाने की गाली दी जाती रहती । खेत के ओढ़ के कारण और पेड़ांं के घास काटना ही परिवारों में वैमन्स्यता बनी रहती।
भगतू और जगतू दोनों सगे भाई थे, दोनों का जब बॅटवारा हुआ तो एक बड़े खेत में उनके पिताजी ने दो हिस्से कर बीच में ओढ़ रख दिये वह ओढ दोनों परिवार के लिए दीवार बन गयी। दोनों के बच्चों की शादी हुई, दोनों एक दूसरे की शादी में शामिल हुए पूरा कारज निभाया, किंतु ओढ दोनों के लिए प्रतिष्ठा बनी हुई थी। कभी कोई ओढ़ को रात में एक इंच ईधर खिसका देता कभी उधर खिसका देता। भगतू और जगतू की लड़ाई हमेशा ओढ के लिए रही। अब दोनों बूढे हो गये थे और बुढापें दोंनों के बेटे बहु सब शहरों में रह रहे थे।
गॉव में गिनकर वृद्ध लोग ही थे, जिनमें भगतू और सीता, जगतू और विमला भी थी। अब उनके खेत सब बंजर पड़े हुए है, दोनों के खेत मे घास उगी हुई हैं। गॉव में शादी है उसके लिए भगतू का बेटा दिनेश का परिवार और जगतू का बेटा नवीन का परिवार गॉव आया हुआ था, दोनों गॉव में और खेत में घूमने गया तो गॉव लगभग सब विरान थे, जिस खेत में ओढ के लिए उनके पिताजी और चाचा की लड़ाई होती थी, वह खेत बंजर पड़ हुआ है, और जहॉ पर ओढ रखा था वहॉ पर एक अमरूद का पेड़ उगा हुआ था, अमरूद पके हुए थे तो जगतू और नवीन के बच्चे पेड़ में चढकर अमरूद तोड़ने लगे, नवीन और दिनेश ने एक दूसरे की ओर देखा, क्योंकि वही ओढ था जिसको दोनों भाईयों को उनके मॉ बाप को मिलने नही दिया। आज उनके बेटे बिना किसी परवाह के पेड़ पर चढकर आपस में एक दूसरे को अमरूद बॉट रहे थे। इस दृश्य को देखकर दोनों हतप्रद हो गये। लेकिन फिर भी दोनों में बात नही हुई किंतु दिनेश ने सोचा कि अब हम इस पारिवारिक क्लेश को आगे क्यों बढने दे, पहले ही आज के समय में हम एक दूसरे को जानते नहीं, आज हमारी भावी पीढी इसी ओढ के बगल में उगी अमरूद की डाली हमें मिला रही है तो इससे अच्छा क्या हो सकता है।
दिनेश आगे बढा और नवीन को गले लगाकर बोला भाई जो बीत गया उसको भूल जाओ जो गलती बुजुर्गो से हो गयी अब हम क्यों करें। दोनों ने बिना हिचक इस बात को स्वीकार कर लिया और नवीन ने दिनेश को शाम के समय घर पर सपरिवार आने का न्यौता दे दिया ।
शाम को दिनेश अपने चाचा जगतू के घर सपरिवार गया, सबको मिला और सबसे खूब बातें की। सब लोग खुश थे। रात को जब दिनेश अपने घर आया तो भगतू ने कहा कि तुम वहॉ क्यों गये थे तुम जानते हो ना कि हम लोगों की उनसे कोई बातचीत नहीं है। दिनेश ने उस समय कुछ नहीं बोला और कहा कि नवीन ने बुला दिया था तो चला गया। भगतू अभी भी नाराज था। उधर जगतू भी नाराज था कि दिनेश को घर पर क्यों बुलाया।
अगली सुबह दिनेश और नवीन फिर मिले, उन्होंने सोचा कि जाने से पहले दोनों भाईयों को मिला कर ही अब वापस जायेगे। क्येंकि बुढापे में एक दूसरे के सुख दुख में काम तो आयेगेंं। कम से कम बुढापा तो सही से कटे। उन्होनें शाम को अपने अपने परिवार और माता पिता को लेकर उसी खेत में जहॉ ओढ पर अमरूद का पेड़ था वहॉ पर लाने का वादा किया।
दिनेश और नवीन अपने अपने परिवार के साथ अपने माता पिता सहित वादे के मुताबिक ओढ के पास पहुॅच गये जो कि कई वर्षों से एक दूसरे का दुश्मन बना हुआ था। जैसे ही सब वहॉ गये तो देखा कि बच्चे उस अमरूद के पेड़ से फल तोड़कर आपस में मिल बॉटकर खा रहे हैं। यह देखकर भगतू और जगतू हैरान हो गये। लेकिन अहम की वजह से दोनों एक दूसरे को देख नही रहे थे। अहम और वहम अच्छे से अच्छे रिश्तों को खोखला कर देता है।
दिनेश ने कहा पिताजी और चाचा जी देख रहे हो ना आप जिस ओढ़ के लिए आप हमेशा एक दूसरे के खून के प्यासे बने रहे, हम भाई भाई भी कभी आपस में मिल नहीं पाये और आज हमारी यह नई पीढी उसी ओढ के आढ़ में उगी अमरूद के पेड़ के उगे फलों को कितने निश्छल भाव से खा रहे हैं, यह पेड़ दोनों खेतों में बराबर की छॉव दे रहा है, यह भी हमें मिलाना चाहता है। आज यह सब खेत बंझर पड़े हुए हैं जिनके लिए आप आपस में लड़ते रहे वह सब विरान हो गये। अब आप लोग बूढे हो गये हो आप इस ओढ को अलग अलग करने वाला मत समझों बल्कि आज इसको एक दूसरे को जोड़ने वाला समझो और अपना आगे का जो भविष्य है उसे हॅसी खुशी काटो।
नवीन ने भी सिर हिलाकर सहमति दी और अपने पिता जगतू को कहा कि अब तो ताउजी से आप ही माफी मॉग लो। बस इतना कहते ही दोनों भाई जिनके मन में ओढ ने दुश्मनी के बीज बो दिये थे आज उसी अमरूद के फलों ने उन बीजों में प्रेम के बीज डाल दिये थे। जगतू और भगतू ने बरसों बाद एक दूसरे से प्रेम भरी निगाह से देखा और हॅसते हुए बिना कुछ कहे अपने अपने परिवार के साथ घर आ गये ।
हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।