रोशन अपने ऑफिस में लैपटॉप पर कम्पनी को मेल कर रहा था तब तक मोबाईल पर रिंग टोन बजी उसने स्पीकर खोला तो सामने गाँव के चाचा जी का फोन था। चाचाजी ने बताया कि उसके पिताजी का स्वास्थ्य ज्यादा खराब है, अतः जल्दी आकर उन्हें अपने साथ ले जाये तो कुछ बात बन सकती है। रोशन ने यह सुनते ही घर जाने का फैसला कर लिया। कंपनी में अपने बॉस से जल्दी जाने की अनुमति ली और घर में अपनी पत्नी शालू को फोन किया कि वह जल्दी घर आ रहा है, क्योंकि उसको गाँव पिताजी को लेने जाना है, उनकी तबीयत ज्यादा खराब है। तुम बैग तैयार रखना। शालू ने फटाफट एक जोड़ी कपड़े और ब्रश आदि सामान रखकर बैग तैयार कर लिया। रोशन घर आया और गाड़ी लेकर गाँव की ओर निकल पड़ा। रोशन का गाँव सड़क से लगभग एक किलोमीटर दूर था, उसने सोचा कि यदि रात हो भी जायेगी तो वह पहुँच ही जायेगा, क्योंकि जन्मभूमि का रास्ता है आड़े तिरछा ही सही लेकिन उसके लिए तो वह पगडंडी हमेंशा सड़क की तरह हैं। यह सोचते सोचते वह कार ड्राईव करता हुआ चलता जा रहा था।
कोटद्वार से आगे दुगड्डा पहुँचते ही उसको झुरमुट अंधेरा होने लगा, कार की लाईट खोल दी, मन में कुछ बेचैनी सी हो रही थी, जैसे जैसे रात बढ़ती गयी बेचैनी भी बढ़ती चली गयी। जब तक नेशनल हाईवे पर था तब तक तो गाड़ी आती जाती रही, लेकिन जैसे ही गाँव की कच्ची सड़क पर आया और आगे बढ़ने लगा, कच्ची सड़क पर गाड़ी की स्पीड भी तेज नहीं कर सकता था। रास्ते पर जाते ही नदी आ गयी, वह नदी उनके पैतृक घाट थी, बचपन में यहाँ बहुत सारे भूतों के किस्से सुने थे, एक-एक करके किस्से याद आने लगे, अब रोशन का गला भी सूखने लगा, कार में रखी पानी की बोतल भी खत्म हो चुकी थी, नदी में साफ पानी बह रहा था लेकिन डर के मारे नीचे उतरने की हिम्मत नहीं हो रही थी। जैसे तैसे करके दो किलोमीटर का रास्ता काटना था। कुछ देर आगे गाड़ी बढ़ी लेकिन अचानक ही गाड़ी बंद हो गयी, रोशन ने गाड़ी को स्टार्ट करने की कोशिश की लेकिन गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई, अब बीच जंगल में नदी के किनारे जहां सिर्फ घुप्प अंधेरा, जंगली जानवरों का डर अलग, और बहते हुए पानी की कल कल की धुन तो चमकती जुगनू की रोशनी कभी सहारा देती तो कभी डरा देती। गाड़ी में बैठे बैठे रोशन का हलक सूखने लगा।
रोशन ने अंदर ही हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ा और हिम्मत करके आगे गाड़ी खोली तो देखा कि बैटरी कि चिमटी निकली हुई थी, मोबाइल की रोशनी से उसे लगाया और फिर गाड़ी स्टार्ट की। गाड़ी स्टार्ट होते ही मानो उसके प्राण वापस लौट आये हों। गाड़ी चलाते चलाते वह कभी पीछे देखता तो कभी दायेंं बायें, लेकिन सिर्फ हवा में लहराती शाखायें दिख रही थी। आगे लाईट देखी तो सामने किसी जानवर की आँखें चमक गयी, कुछ देर गाड़ी करके उसने लाईट जानवर की आँख पर मारी और हार्न दिया तो वह जानवर सड़क पार करके निकल गया।
रोशन अपने गाँव के नजदीक आ गया। गाड़ी खड़ी की और बैग निकालकर आगे बढ़ने लगा, जैसे ही आगे बढ़ा झाड़ी में कुछ आवाज हुई उसने सोचा जंगली जानवर होगे, वह रास्ते की ओर चलने लगा तब तक पीछे ऐसे लगा मानो किसी ने पत्थर फेंका हो आवाज आयी धपाक, रोशन ने लाईट मारी तो कुछ नजर नहीं आया, अब मन में डर के भयावह भाव आने लगे, अब तो छोटी सी झाड़ी या पेड़ भी भयावह शक्ल का आकार लेने लगा, रोशन को अब लगने लगा कि जरूर कोई भूत है, अब डरता है तो आगे कैसे बढ़े यहीं रूकता है तो फिर तो जान जोखिम में है।
रोशन ने आगे कदम रखने शुरू किया तब सांय सांय की आवाज और किसी के रोने की आवाज सुनायी दी, अब तो रोशन की हिम्मत जवाब देने लगी, मोबाइल की रोशनी चमकायी तो कुछ गीदड़ सामने से निकले, और तब पता चला कि यह रोने की आवाज इनकी ही थी। हिम्मत बढ़ी आगे आम का पेड़ था, उसके नीचे से गुजर रहा था तो ऐसे लगा कि जैसे कोई बीमारी में आवाज निकालता है जिसे कणाना कहते है, ऐसी आवाज आने लगी, अब आम के पेड़ के नीचे और डर लगने लगी, लेकिन रोशन ने हिम्मत की और आगे बढ़ गया। इधर कुछ दूर जाने पर गाँव के खेत लग गये, दूर खेत में कहीं हल्की सी आग जल रही थी, उसने सोचा कि कोई खेत में रखवाली करने आया होगा उसने आग जलाई होगी, वह आगे बढ़ता गया।
गाँव में पहुँचते ही जान में जान आयी, और वह अपने मकान की ओर बढ़ने लगा, अंदर एक लाईट जल रही थी, गाँव के सब लोग सो चुके थे। घर पहुँचकर उसने दरवाजा खोला और बैग कमरे में रखकर दूसरे कमरे में गया जहां उसके पिताजी सोते थे। उसने पिताजी को आवाज दी लेकिन कोई जवाब नहीं मिला अब उसे डर लग गया कि पिताजी आवाज क्यों नहीं दे रहे हैं, वह गया तो बिस्तर पर कोई नहीं था, वह अवाक रह गया। आखिर पिताजी गये तो कहाँ , गाँव में दो बुजुर्ग दम्पती और रहते हैं, तो वह उनके घर गया, उनका भी दरवाजा खटखटाया तो वहाँ भी कोई नहीं था, अब रोशन परेशान हो गया। वह वापिस आया और उसी कमरे में चला गया, हाथ मुंह धोने के लिए आगे बढ़ा तो रसोई पूरी खाली थी वहाँ कोई बर्तन तक नहीं था, रोशन को लगा कि यह हो क्या रहा है, दो चार लाईट और खोलने का प्रयास किया कि तब तक आँधी आयी और पूरी जगह की लाईट चली गयी, इधर मोबाइल भी बंद हो गया क्योंकि बैटरी खत्म हो चुकी थी।
अब रात के 11 बज चुके थे रोशन जाता भी तो कहाँ , वह उस कमरे में नीचे ही लेट गया। थकान के कारण नींद जल्दी आ गयी, लेकिन आधी रात को मकान की छत पर ऐसा लगा मानो कोई कूद रहा हो, कभी दरवाजे पर खट खट की आवाज तो कभी कमरों में किसी चीज की सरकने का अहसास। बाहर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी, बाहर भी किसी के चलने की आवाज पूरा डरावना माहौल, कभी लगता कि कोई बात कर रहा है तो कभी लगता कि कोई हँस रहा है, यह सब देखकर उसके पसीने पसीने हो गये। रात भर नींद कहाँ से आनी थी, जायें भी तो कहाँ अब कोई रास्ता भी नहीं सूझ रहा था। फोन भी बंद था किसी को फोन ही कर देता, आज कैसी मुसीबत में फंस गया हूँ जान आफत में आ गयी, पिताजी भी गये तो कहाँ जिन चाचा जी ने फोन किया था वह भी घर में नहीं है, आखिर यह सब क्या हो रहा है मेरे साथ। जैसे ही खुद को हिम्मत दिलाता तब तक बगल वाले घर के ऊपर किसी के कूदने की आवाज आ जाती, वह जोर जोर से हनुमान चालीसा पढ़ने लगता। गाँव के पटाल वाले मकान से जरा सा भी मिट्टी झड़ जाये तो आवाज आती है, ऐसे ही बगल में जोर से कुछ गिरा, अब लगा कि यह कोई साँप तो नहीं अब तो कल का दिन देखना भी नसीब नहीं होगा यह सोचने लगा।
उसके बाद उसके पास कोई एक साया आया और उसके सिर पर हाथ रखकर बोला कि बेटा तुम आ गये, वह उसकी मॉ थी बेटा हम कबसे तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, कबसे तुमने हमको पानी नहीं पिलाया, बस एक बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं, इतने में देखा कि उसके पिताजी लाठी लेकर खड़े हैं, और कह रहे हैं कि बेटा तुझे आखिर अपने घर की याद आ गयी, बरसों से हम इस घर में तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, हम भटक रहे हैं, हमारे चले जाने के बाद तुमने पलटकर भी नहीं देखा आज तुझे घर में देखकर हमें खुशी हो रही है, यह पूरा गाँव खाली हो चुका है, अब यहाँ हमारी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है, हम तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं बेटा, यह सुनते ही रोशन उनको जैसे ही प्रणाम करने के लिए आगे बढ़ता है तो वह दूर चले जाते हैं, वह आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है तब तक उसे कसी ने झकझोर दिया वह हड़बड़ाकर उठ गया, सामने उसकी पत्नी शालू खड़ी थी और कह रही थी कि तुमने आज ऑफिस नहीं जाना। वह अपने को सुरक्षित देखकर आश्चर्य चकित रह गया। जब उसे अहसास हुआ कि वह हकीकत नहीं बल्कि एक सपना था।
उसने अपना सारा सपना अपनी पत्नी को बताया तो उसने कहा कि वास्तव में हम बरसों से घर नहीं गये और न ही हमने घर जाकर अपने पित्रों का श्राद्ध दिया, शायद लगता है कि उनकी आत्मा अभी घर में ही भटक रही है, इस बार रोशन ने श्राद्धों में घर जाकर पित्र तर्पण करने का मन बना लिया।