अरे वो राजू देख पत्थर के नीचे अधजली बीड़ी का टुकड़ा और माचिस होगी, एक दो तीलिया कागज पर लपेट कर रखी हैं, जरा इधर तो पकड़ा, यह कहकर उसके दोस्त प्रदीप ने स्कूल का बस्ता एक किनारे रखा, और एक बड़े पत्थर के ऊपर बैठ गया। यह दोनों 11वी कक्षा में सहपाठी थे। माचिस का मसाला बारिश के कारण गीला हो गया था, दो तीलिया खराब हो गयी, अब केवल दो तीलिया ही बची थी। दो दिन पहले ही प्रदीप ने अपने पिताजी के बीड़ी के बंडल से चुपके से यह बीड़ी निकाली थी, और स्कूल के रास्ते पर आधी पीकर पत्थर के नीचे रख दी थी। अब जब दो तीलिया खराब हो गयी तो उसकी तलब और बढ़ गयी। राजू की तरफ देखकर बोला कि यार राजू अब क्या होगा, यहां तो दो ही तीली बची है। राजू ने कहा कि दो तो है, ना फिर चिंता किस बात की। उसने एक छोटा सा पत्थर उठाया और उस पर तीली रगड़ कर जला दी, जब तक राजू बीड़ी सुलगाता तब तक हवा का झौक़ा आया औऱ तीली बुझ गयी, अब क्या होगा दोनों की समझ मे कुछ नही आ रहा था, राजू ने कहा यार तुमने जल्दी से बीड़ी नही सुलगाई, जरा सा कस मार लेते तो बीड़ी जल जाती।
प्रदीप को लगा कि आज तो दिन ही बेकार गया, चलों क्या करें अपना अपना नसीब। ये तलब भी बड़ी अजीब होती है, लेकिन तभी राजू ने दो पत्थरों को रगड़ा और उसकी चिन्गारी से कागज जला दिया, यह देखकर प्रदीप की खुशी का ठिकाना नहीँ रहा। इस तरह से दोनों को बीड़ी पीने की लत पड़ गयी, इधर कुछ दिन बाद गाँव मे एक शादी हुई तो वँहा उन्होंने मदिरा का स्वाद भी चख लिया था, रात भर ढोल दमो और डीजे पर जो झूमे वह सभी बड़ो को यह बता रहा था कि लड़के अब बालकपन में नही लड़कपन में आ गए है। गाँव मे या शहर में युवा वर्ग में दारू फैशन बन गया था, बनता क्यो नही, आजकल गाने में, टीवी शिरीयलो में पैग जब छलक रहे हो तो राजू और प्रदीप जैसे मॉडर्न युवा भले कैसे पीछे रहते।
समय बीतता गया दोनों का 12वी का रिजल्ट आ गया, दोनों पास हो गए, बीड़ी और कभी कभी शादी जैसे अवसरों पर वह भी दो तीन पैग लगा देते। राजू और प्रदीप दोनों लंगोटी यार थे, उनके साथ वाले उनको जय बीरू कहकर बुलाते थे।
इधर प्रदीप फौज में भर्ती हो गया, राजू को इस बात की ज्यादा खुशी नही थी कि उसका दोस्त फौज में भर्ती हुआ बल्कि इसलिये खुश हुआ कि अब फौजी दारू पीने को मिलेगी, प्रदीप पहले ही कहता था कि यार अगर मैं फौज में भर्ती हो गया तो नए नए ब्रांड पीने को मिलेंगे, राजू तू तो मेरा यार है, तेरे को तो मैं नहला दूँगा।
इधर राजू को देहरादून के एक प्राइवेट कॉलेज में मैनजेमेंट में बीटेक में एडमिशन मिल गया और उसे रहने के लिए हॉस्टल भी दो लड़कों के साथ रहने को मिल गया।
राजू अपने नए दोस्तो के साथ देहरादून वाला बन गया, वह यँहा आकर अब बीड़ी नही सिगरेट का धुंआ खुले आम पान के खोखे के पास खड़ा होकर उड़ाता रहता है। साथियों के साथ वह अब चरस गाँजा ना जाने कौन कौन से नशा उसने करना शुरू कर दिए, पढायी तो बहाना भर था, बस अय्याशी उसका शौक बन गया।
उधर राजू की माँ बड़े गर्व से कहती कि उसका बेटा देहरादून में इंजीनियरिंग कर रहा है, पिताजी अपने दोस्तों से कहते कि बस बेटा जरा बीटेक कर दे तो फिर उसको आगे एमबीए करवा दूंगा, माँ बाप सपने पाले हुए थे, इकलौता चिराग जो था। राजू के पिताजी गाँव के स्कूल में अध्यापक थे।
राजू नशे का आदि हो चुका था, वह घर भी बहुत कम आता था, पिताजी से कभी फीस के नाम से कभी स्कूल में प्रोग्राम के नाम से, कभी कुछ बहाने कभी किताब तो कभी कपड़ो के बहाने हर दो तीन हप्तों में पिताजी से डिमांड कर देता। माँ की जिद पर उसके पिताजी उसको खर्चा दे देते, लेकिन उन्होंने यह जानने की कोशिश कभी नही कि राजू इतने रुपयों का कर क्या रहा है, प्यार मोह माया ठीक है, लेकिन अंधी मोह माया लाड़ प्यार हमेशा खतरा वाला होता है। इकलौता पुत्र मोह ही उनको बेटे से दूर कर रहा था।
इधर प्रदीप की 9 महीने का रंगरूट की ट्रेनिग पूरी कर वह घर आया हुआ था, उस समय उसे लगा कि राजू भी घर आया होगा, दोनों फिर खूब धमाल करेगे, लेकिन घर आया तो पता चला कि राजू घर नही आया है, उसने अपने घर म3 झूठ बोला कि उसके प्रेक्टिकल चल रहे हैं।
इधर प्रदीप को शंका हुई तो वह अपने अजीज मित्र को मिलने देहरादून उसके कॉलेज में मिलने आया। जब वह कॉलेज गया तो पता चला कि बीटेक वालो की छुट्टियां पड़ी है, यह सुकनर वह हतप्रद रह गया। उसने गार्ड से राजू के बारे मे पूछा तो उसने कहा कि राजू तो अब नशे का आदि हो गया है, होगा कंही किसी जगह नशा करके बैठा हुआ। यह सुनकर प्रदीप को बहुत दुख हुआ, उसका बचपन का दोस्त आज इस हालात में, उसके माता पिताजी ने क्या सपने बुने है बेटा सपनो को किस तरह से पूरा कर रहा है।
उसने गार्ड और कॉलेज से पूरा पता कर उसके सारे दोस्तो का पता लगाया, फ़ोन नम्बर पता कर सबको एक एक फ़ोन कर पता लगाया, तब बड़ी मुश्किल से राजू के बारे में पता चला।
राजू देहरादून में अपने एक दोस्त के रूम पर जा रखा था, वंही सारे दोस्त रोज रात को पिकनिक मनाते दिन भर अवरगिर्दी करते, या सिनेमा हॉल।में मजे लूटते लड़कियों पर फब्तियां कसते। प्रदीप ढूढंते ढूढंते राजू के दोस्त के कमरे पर चला गया, वँहा जाकर देखा तो राजू नशे में धुत उलटा जमीन पर पड़ा हुआ, बाकि दोस्त चिकन, मटन की पार्टी कर रहे थे। प्रदीप ने उस समय उनसे बहस नही की और वापस पुलिस थाने में आकर अपने साथ दो पुलिस कर्मियों को लेकर दोबारा राजू के दोस्त के कमरे पर गया। पुलिस की मदद से राजू को उसके हॉस्टल में लेकर आया, राजू नशे में इतना डूबा हुआ था कि प्रदीप को माँ बहिन की गाली से अपनी दोस्ती की वफ़ा को निभा रहा था, लेकिन प्रदीप ने उसकी मनोदशा को समझ लिया और नशे उतरने का इंतजार करने लगा।
अचानक राजू को रात में खून की उल्टियां होने लगी, प्रदीप ने ऑटो उठाकर इमरजेंसी में अस्पताल में भर्ती करवाया, डॉक्टरी जांच में पता चला कि राजू का लीवर खराब हो गया है, जान खतरे में है, लेकिन डॉक्टरों ने तुरंत इलाज करना शुरू किया तो उसके स्वास्थ्य में सुधार होने लगा, इधर राजू के माँ पिताजी अस्पताल में रो रोकर अपने को कोस रहे थे।।
अस्पताल से छूट्टी मिलने के बाद राजू को नशा मुक्ति केन्द्र में भर्ती कर दिया, एक महीना वंही इलाज चला, उसके बाद राजू के पितां उसे गाँव मे ले गए, उधर प्रदीप की रंग रुट की छुट्टी खत्म हो गयी थी नई पोस्टिंग उसको राजस्थान के बाड़मेर में मिली। इधर राजू के पिताजी ने उसके लिये एक दुकान गाँव के पास खोल दी, कुछ दिन बाद उसने अपने पास ही राशन डीलर की दुकान भी लेली।
उधर साल भर बाद प्रदीप फिर छूट्टी आया तो राजू को मिलने आया और कहा कि दोस्त कौन सा ब्रांड पीयेगा, राजू ने कान पर हाथ रखकर कहा बड़ी मुश्किल से तूने जिंदगी बचाई है, अब तुझसे दूर नही जा सकता दोस्त, लेकिन चल फिर एक टुकड़ी बीड़ी तो आज इस खुशी में जलाकर चुल्हे के अंदर डाल दे, फिर दोनों दोस्त कंधे में हाथ रखकर गाने लगे ये दोस्ती हम नही छोड़ेंगे, छोड़ेंगे दम मगर, तेरा साथ नही छोड़ेंगे।
©®@ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से। ✒📝✒✒।