जब तक फूफा जी ससुराल के अकेले जवाई और जीजा जी थे तब तक तो उनकी खातिरदारी और रूठना चलता रहता था, उसके बाद जब वह उम्रदराज होते गए तो फूफा जी बन गए, अब वह ससुराल पक्ष में सबको अपनी धमक दिखाते रहते, कोई नही सुनता तो रूठ जाते और ससुराल छोड़कर जाने की धमकी ससुराल वालों को देते रहते। पहले वाले ससुराल से रूठकर नए ससुराल में आये तो ससुराल पक्ष ने उनके नाज नखरे सहे, क्योकि वरिष्ठ फूफा जी है। उनके साथ उनकी बिरादरी भी आई थी।।
ससुराल में आखिरी कार्यक्रम था साले साहेब बेटी की शादी, अब फूफा जी हर काम में अपनी बात सबसे ऊपर रखने की उनकी पुरानी आदत थी। सबसे पहले तो सगाई के दिन ही नाराज हो गए कि हमारी अब ससुराल में ख़ातिर दारी नही हो रही है, नहाने के लिये गर्म पानी नही किया, और चाय के साथ पार्लेजी बिस्कीट रख दिये जबकि वह बेकरी के बिस्किट खाते हैं, शाम को मटन नहीं बनाया पनीर में टाल दिया। शाम की चाय में मीठा डाल दिया, ऐसे ही कई छोटी छोटी बातों पर फूफा जी रूठते रहते, अब ससुराल के नई पीढ़ी के बच्चे उनके नाज नखरे सहने में नाक आँख सिकोड़ने लगते, फिर भी इज्जत दे देते। सगाई के दिन फूफा जी को फ़ोटो लेने के लिये सबसे पहले नही बुलाया तो बस उसी समय गुस्सा होकर बैठ गए और फिर खानां भी नही खाया, अब बड़े साले ने मान मनोब्बल किया तो जीजा के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई।
अब शादी की बात आई तो कार्ड छपाने से लेकर, बुकिंग तक करने में सब जगह जाते, कभी किसी को सुना देते, कभी पुराने जेठ की बुराई तो कभी बड़ा भाई कहकर उन्हें सम्मान भी दे देते, वही पुराने जेठू भी उनको घर वापिस आने के लिये मना तो नही करते पर नाज नखरे ना करे इस शर्त पर आने को कह देते।
खैर शादी का दिन भी गया मेहंदी से लेकर बान तक तो फूफा जी खुश चल रहे थे, शाम को एक बोतल साले से माँग ली अपने कुछ लोगो के लिये भी अलग कमरे की व्यवस्था करने को कह दिया लेकिन ससुराल पक्ष ने उनको थोड़ा हल्के में ले लिया बस फिर नाराज, कहा कि यदि बोतल नही दी तो वह अभी सबके सामने डाँटेगे और फिर हंगामा खड़ा कर देंगे। उन्हें मनाने के लिये एक खास व्यक्ति रखा गया जो उनके ही साथ आया था। रात को कुछ ज्यादा लगा दी, डीजे में जागर लग रहे थे तो फूफा जी पर देवता आ गया, द्यू धुपण देकर दंड ऱखकर फूफा जी को शांत किया। रात को फूफा जी के लिये अलग मेज पर भोजन लाया गया उसमें लेग पीस नही थे, फूफा जी फिर बिफर पड़े, दूसरे नम्बर के जेठू ने समझाया कि अब उम्र ज्यादा हो गयी है तबियत नासाज हो जाएगी बस तरी तरी पियो। फिर फूफा जी रोने लगे कि अब तो मेरी इज्जत ही नही रही इस घर मे कभी जब तक जीजा था तो टँगड़ी क्या बकरे की सिरी भी लेकर जाता था, आज सिर्फ तरी तरी, फूफा जी के अश्रु प्रवाह देकर एक लेग पीस डाल दिया। रात को सोने के लिए सिंगल कमरा दे दिया ताकि उनके खर्राटों से किसी को परेशानी ना हो।
सुबह जब बुवा ने यह सुना तो फूफा जी के लिये आँखे तरेरी और कहा कि अब आप जीजा जी नही फूफा जी बन गए हैं, जीजा जी अब नए लड़के बन गए है। अपनी उम्र का लिहाज करो, मैं कोई बखेड़ा नही चाहती चुपचाप बैठकर शादी का एन्जॉय करो। बुवा के हड़काने के बाद सब कुछ ठीक चल रहा था विदाई के वक्त उनको टीका नहीं लगा तो वह गुस्से में निकल गए और फोन भी बंद कर दिया, अब घराती और बराती में बात फैल गई कि फूफा जी नाराज हो गए, लेकिन ब्योलि के मामा ने अपनी तरफ से 500 का लिफाफा तो पकड़ा दिया है, अभी फूफा जी को मनाने के लिये सब लगे हुए है, दिल्ली बड़े ससुर जी तक बात पहुंच गई है। अब विदाई तक क्या कुछ होता है, अरसा कलेऊ बनता है या फिर बालू साई खाने फूफा जी कई और जाते है।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।