माँ जीवन की पहली गुरु होती है
शायद पहली गणितज्ञ भी होती है
सिखाती है बच्चों को जीवन का एक दो तीन
और ज्यामिति विधा की वो मर्मज्ञ होती है।
माँ को वृत्तीय आकृतियों से विशेष लगाव होता है
तभी तो वो लगाती है माथे पर गोल बिंदियाँ
पहनती है हाथों में रंगीन गोल चूड़ियाँ
और बनाती है गरमा-गरम गोल रोटियाँ।
माँ को गोलाकार आकृतियाँ बहुत भाती हैं
तभी तो उसके स्वादिष्ट लड्डू गोल
चटपटी पानीपुरी और कचौड़ी गोल
गुलाब जामुन और जलेबी होती हैं गोल।
माँ को अनुपात का ज्ञान बहुत होता है
उसकी भाषा में वो अंदाजा कहलाता है
तभी तो सब्जी में न मिर्च-मसाला कम
और न नमक बहुत ज्यादा होता है।
माँ एक ऐसी गणितज्ञ होती है
जो सिखाती है रिश्तों को जोड़ना
तनाव को घटाना,प्रेम को बढ़ाना
चिंताओं को भगाना फिर मुस्कराना
तथा द्विगुणित करके ख़ुशियाँ लौटाना।
माँ डॉक्टर इंजीनियर और फिलॉस्फर भी होती है
वह सिखाती है हमें जीवन जीने की तरकीब
बनाती है अच्छा इंसान,सिखाती है तहज़ीब
और सदा रखती है बच्चों को दिल के करीब।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर(म.प्र.)