इंसान के जीवन में कभी-कभी ऐसे पल आते हैं जब वह कुछ बातों को सोचने को मजबूर हो जाता है। ऐसा ही कुछ उस्मान के साथ हुआ जिसके बाद वह अपने अतीत के पन्नों को पलटकर पीछे देखने लगा कि मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के बावजूद शुरू से ही मुझे मांस खाना कभी रास न आया। इसकी एक बहत बड़ी वजह थी। उस समय मैं करीब 5 साल का था। हमने अपने घर में एक कुत्ता पाला हुआ था जिसे मैने अपने होश संभालने के साथ ही उसका साथ पाया। बहुत ही प्यारा कुत्ता था, जिसका नाम टॉमी था। जिन लोगों ने कभी किसी जानवर को अपने घर में पाला हो तो उन्हें यह बात जरूर मालूम होगी कि समय बीतने के साथ व्यक्ति की उक्त जानवर के साथ लगाव हो जाता है। वह एक परिवार के सदस्य की भांति लगने लगता है। भले ही इंसान इस बात को दिल से माने या माने किन्तु पशु अक्सर अपने पालने वाले और उनसे स्नेह करने वालों को अपना ही परिवार मानते हैं। जब कभी मैं कुछ दिन के लिए घर से बाहर चला जाता तो टॉमी सुस्त रहने लगता था। खाना-पीना कम कर देता था। सामने आते ही दुम हिलाता उछलकूद करने लगता। ऐसे ही समय गुजरता गया। एक दिन पिताजी न जाने कहां से एक छोटा सा मेमना ले आये। जिसे देखकर मैं बहुत ही खुश हुआ। मेमने और टॉमी में भी अच्छी खासी दोस्ती हो चुकी थी। एक साल गुजर गये और जैसा तो आप जानते ही होंगे जानवर अक्सर थोड़े ही समय में काफी बड़े हो जाते हैं। अब तक हमारा मेमना भी बड़ा हो चुका था। त्यौहार का मौसम आया, ईद के त्यौहार का अपना ही मजा होता है। दोस्त, रिश्तेदारों का आना-जाना, बधाईयों का सिलसिला चलता रहा और ईद से एक दिन पहले मैं मेमने से मिला, हरी घास खिलाई, तो वो मुझे देखकर दांये बांये चलने लगा। ईद के दिन तो पता ही नहीं चला कि दिन कैसे बीत गया। रिश्तेदारी से कुछ मेहमान, कुछ दोस्त घर आये। टेबल पर खाना लगा और हम सबने घर में बना स्वादिष्ट खाना गया। जिसमें गोश्त की सभी ने तारीफ की। मुझे वह सब आम बात लगी। शाम होते ही मैं अपनी आदत के अनुसार मेमने वाले बाड़े में गया तो वहां से वो नदारत था। मैं बड़ी मासूमियत से उसे ढूंढने लगा। मेरे मामा के बेटा जो हमारे घर में आया हुआ था, कहने लगा क्या ढूंढ रहे हो। मैंने कहा वो हमारा बकरा कहां गया। यह सुनकर वो हंसते हुए कहने लगा अरे बुद्धु वो तो हम सबके पेट में जा चुका है। दिन में जो गोश्त तुम दिन को बड़े चाव से खा रहे थे। वो उसी बकरे का तो था। यह सुनकर मेरे होश उड़ गये। मुझे इस बात का अंदाजा तक न था कि यह उस मासूम से बकरे का मांस था जिसे हम लोगों ने बड़ी बेरहमी से मारकर खा लिया। मैं रोने लगा। सबने बहुत समझाने और चुप कराने की कोशिश की लेकिन वह बात मेरे अंतःकरण में छप सी गयी। बड़े होने पर कई लोगों ने समझाया लेकिन न जाने क्यों कभी गोश्त खाने का दिल ही न हुआ। आज भी जब उस बाड़े की ओर जाता हूं, तब मुझे उस शाम की आखिरी मुलाकात याद आती है, जब उसे मैंने हरी घास खिलाई थी और उसकी आंखों में मेरे प्रति जो विश्वास और प्रेम था, उसे मैंने अगले ही दिन तोड़ दिया। उस घटना के कुछ ही दिन बाद टॉमी भी चल बसा। यह बचपन के वो ऐसी यादगार मन में रह गयी। जो भुलाये नहीं भूलती।
यूं ही सोचते-सोचते अचानक मिट्ठू की आवाज आयी। उस्मान, उस्मान, मिट्ठू, मिट्ठू उस पर नजर पड़ते ही मेरे दिल में न जाने क्या आया। मैं मिट्ठू के पिंजरे की तरफ गया और उसे देखने लगा। ये वही तोता है, जिसे मैं कुछ महीनों पहले बाजार से खरीद कर लाया था। पशु-पक्षियों से प्रेम मुझे ऐसा करने को मजबूर कर देता है। मिट्ठू सीखे गये शब्दों को बड़ी सफाई से बोल रहा था और अपनी मुण्डी इधर-उधर घुमा रहा था जो देखने में बड़ा प्यारा और रोचक था। मैंने पिंजरे में बंद मिट्ठू को देखा और ठंडी आह भरते हुए उसे कहा - अलविदा मेरे दोस्त, आज हमारी आखिरी मुलाकात है, इसके बाद यह पूरा आकाश तुम्हारा है, फिर कभी पिंजरे की ओर मुड़कर भी न देखना, यह कहते हुए मैंने पिंजरे का दरवाजा खोल दिया। मिट्ठू सरपट उड़ गया। जिसे उड़ता हुआ मैं अपलक तब तक देखता रहा, जब तक वो मेरे आंखों से ओझल न हो गया।