यूं तो वरदान की परिभाषा सबके लिए अलग-अलग है। जिसकी जैसी चाहत, उसको वैसी राहत। आज हम कुछ ऐसे वरदानों की बात करेंगे जो अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन अगर यदि वो उनको मिल जाये, तो उनके लिए मानों दुनियां ही जन्नत समझो। जहां बैठे-बैठे उनकी मन मांगी मुराद पूरी हो गई। अब अपने बड़े मियां को ही ले लो, उनके हिसाब से औरत इस जहान में सबसे बड़ा वरदान है। उनकी तारीफ करते हुए तो हमारे बड़े मियां की जुबान नहीं थकती। वाकई उनकी बात भी सही है। यदि स्त्री न हो तो दुनियां कितनी बदरंग हो जाये। रोजाना एक तरह के ब्लैक एण्ड व्हाईट दिखते पुरूषों में वह बात कहां जो रंग-बिरंगे, तरह-तरह के रंगों से सजी महिलाओं में दिखती है। वो कोई ऐसा दिन नहीं जब हमारे बड़े मियां सुबह की सैर के साथ एक-दो दर्जन के सौन्दर्यदर्शन न कर लें। एक वो भी समय आया था जब भगवान ने दुनियां में एक ऐसी बीमारी को फैला दिया जिसके खौफ से सभी को सभी काम धाम छोड़कर अपने-अपने घरों में दुबकना पड़ा। बीमारी का खौफ इतना था कि बड़े-बड़े तुर्रमखानों की भी बोलती बंद थी। दिन रात हाथों को सैनिटाईज करना, मुंह ढांपकर रखना, किसी से मिलना जुलना तो दूर, यहां तो लोग कोरोना हो चुके प्राणी से इतना खौफजदा हो चुके थे कि उनके मोबाईल में बात करते हुए भी डरने लगे कि कहीं यह वायरस मोबाईल के रस्ते ही न लग जाये लेकिन इसके उलट हमारे बड़े मियां की परेशानी का आलम ही कुछ और था। आखिर उनका सुबह का घूमना जो बंद हो गया था जिससे हमारे भाई साहब का बेचैन होना तो लाजमी बनता है। घर वालों ने समझाया कि घर की छत में ही टहल लिया करें। सबको मालूम है कि आप अपनी सेहत को लेकर बहुत संजीदा हैं। लेकिन घर वालों को अपने मन की बात आखिर कौन कह सकता है और वो भी खासकर अपनी बेगम से? कि उनकी परेशानी छत में घूमने से दूर नहीं होने वाली, वह तो कुछ और ही है। वो कहते हैं न जहां चाह है, वहीं राह है। अपने बड़े मियां ने इसका भी एक सस्ता जुगाड़ लगा लिया। घर बैठे बच्चों से मोबाईल चलाना ही सीख लिया, उसके बाद से बड़े मियां फेसबुक, इंस्टाग्राम और टिकटॉक में टॉम क्रूज़ की फोटो लगाकर अपनी प्रोफाईल बनाकर बड़े मजे से नयनसुख प्राप्त कर रहे हैं। चलो, कोई बात नहीं, कम से कम इस नामुराद टैक्नोलॉजी ने अपने बड़े मियां की परेशानी का इलाज तो कर ही दिया।
वहीं दूसरी ओर छोटे मियां की परेशानी कुछ अलग ही किस्म की है। बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभान अल्लाह। इस कमबख्त कोरोना ने मध्यम वर्गीय लोगों की तो जैसे जान ही निकाल दी। एक तरफ तो नौकरी और कारोबार छिन गया। ऊपर से बाहर निकलना बंद और घर में बीवी बच्चों की रोज की किचकिच झेलना कोई कम बात है? बाकी बची रही-सही कसर इस शराब और कबाब के शौक ने पूरी कर दी। रोज शाम को जाम छलकाने वाले प्राणियों से पूछो, कोरोना का दर्द। असल में हम शराबियों को असली खतरों को खिलाड़ी कह सकते हैं। जो न तो इस चाईनिस वायरस से डरे और न ही पुलिस के डण्डों से, ये भाई साहब तो मौका मिलते ही ठेकों में लम्बी लाईनों में चिपककर शराब खरीदने से भी न चूके। कहीं नही मिली तो भाई साहब ने अपनी जमा पूंजी ब्लैक में शराब खरीद कर ही खर्च कर दी। इनका कहना था कि भाई मरना तो एक दिन है ही, कम से कम खा-पीकर मरो।
गरीब मजदूरों और अति के गरीब लोगों का तो हल ही क्या कहें। बेचारों को मीलों का सफर भरी धूप में पैदल करना पड़ा। बीमारी की चपेट में आने वालों का हाल तो सबको पता ही है लेकिन उनके घर, परिवार और पड़ोस के लोगों का भयभीत होना भी लाजमी है।
इस कोरोना ने अगर किसी को खुश किया तो वो बस बच्चे ही थे। इसके बाद तो बच्चे चाईना के फैन हो गये जिसने इतने महीनों की एक साथ छुट्टी दिलवा दिया। जमकर धमाल मचाया इन्होंने। खूब मजे उड़ाये और परेशान किया, घर वालों को भी और टीचर्स को भी। आनलाईन क्लासेज में कई भौकाल बच्चे जमकर वायरल हुए। जिन्हें देखकर तो यही लगा, कभी-कभी कोई बड़ा श्राप किसी के लिए वरदान भी हो सकता है।
इन सबके बाद शुकर है, इस बीमारी के समय ने हम सबका पीछा छोड़ा, जो किसी वरदान से कम नहीं। ऐसे त्रासदीपूर्ण समय को जिसने भी देखा, समझा और महसूस किया, वह अवश्य ही आज के समय को देखकर, अपने आपको देखकर, अपने परिवार को देखकर बस यही कहेगा, वाकई हमारे लिए यही सबसे बड़ा वरदान है। आपको क्या लगता है, आपके लिए क्या है वरदान......!