जब तक व्यक्ति के अंदर कुछ नया करने का जज्बा नहीं उठता, उसकी बाहरी और आंतरिक उन्नति संभव नहीं है। कुछ नया करना अर्थात् वह कार्य करना जो आपका मन कहता है, उसके बारे में लोग क्या कहते हैं, उससे उसे कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि जैसे कि किसी महान व्यक्ति ने कहा है, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना, छोड़ो बेकार की बातों को, कहीं बीत न जाये रैना।
वह रैना एक रात भी हो सकती है और किसी की पूरी जिन्दगी भी इसलिए किसी को कुछ भी कहने दो, अपने अंदर कुछ ऐसा करने का जज्बा बनाये रखो जो आपको भीतर से उत्साहित करता है। जैसे एक घोड़े के पांव बचपन से ही बांध कर रखे जायें लेकिन घोड़ा मन ही मन दौड़ने के लिए मचलता रहता है, एक पक्षी जो पिंजरे के अंदर बंद बैठा, ऊंचे आसमान की ओर नजर गढ़ाये हुए बस यही सोचता है कि मात्र एक बार मौका मिल जाये पिंजरे से बाहर निकलने का, उसके बाद वह एक लंबी उड़ान भरेगा। उसमें बेषक ही बहुत खतरे होंगे, उसे षिकार बना लेने वाले बड़े-बड़े बाज सरीखे षिकारी होंगे लेकिन फिर भी पिंजरे के पंछी के पंख हवा में उड़ने के लिए उतावले रहते हैं।
जो व्यक्ति जिस कार्य के लिए बना है, उसे वह अवष्य ही करना चाहिए और वह किस कार्य के लिए बना है, यह उससे बेहतर कोई अन्य नहीं जान सकता। जैसे एक गायक को सर्वप्रथम स्वयं ही ज्ञान होता है कि वह अच्छा गा सकता है। एक धावक अपने दौड़ने की षक्ति का ज्ञान रखता है लेकिन उसमें पूर्णतः वह तभी सफल हो पाता है जब वह उस पर अपनी पूर्ण ऊर्जा लगाकर उस घोड़े के समान अपनी पुरानी बेड़ियों को तोड़ते हुए हवा से बातें करता है। षुरूआत में भले ही वह उतनी तेज नहीं दौड़ पाता और उसके प्रतिद्वंदी उसकी हंसी उड़ाते हैं लेकिन वह इन सभी बातों से दुखी न होकर उसे एक चुनौती की भांति लेता है, और फिर और अधिक ऊर्जा के साथ दौड़ता ही जाता है, जब तक वह फ्लाइंग सिख नहीं बन जाता या फिर उससे भी कहीं अधिक.....