अब ऐसा समय आ गया है जहां देखो हर व्यक्ति किसी न किसी बीमारी से पीड़ित है। जिसमें हदयरोग, मधुमेह, ब्लडप्रेषर, आंख, नाक, कान, गले व फेफड़े संबंधी रोग, किडनी संबंधी, त्वचा संबंधी और ऐसी न जाने कितनी ऐसी बीमारियां हैं जिनका पता व्यक्ति को तब ही चलता है जब करने को कुछ षेश नहीं रह जाता। आजकल तो प्रायः यह भी देखने को मिल रहा है कि कोई ऊपर से बिल्कुल स्वस्थ और बलिश्ठ दिखने वाला व्यक्ति जो योग और व्यायाम भी करता है, अचानक ही किसी दिन दिल का दौरा पड़ने के कारण मृत्यु को प्राप्त होता है और अक्सर अनेकों ऐसे लोग जिन्होंने अपने जीवन में कभी बीड़ी-सिगरेट, तम्बाकू और षराब को हाथ तक नहीं लगाया उनकी गुर्दे, फेफड़े और किडनी फेल हो जाने के लिए वह काल के ग्रास बन जाते हैं। वास्तव में इन सबके पीछे प्रदूशित होते पर्यावरण के साथ-साथ हमारा खान-पान भी है।
हम जिन वस्तुओं को स्वास्थ्य के लिए लाभकारी जानकर प्रयोग करते हैं, वही हमारे लिए धीमे जहर का काम करती हैं, जिसके कारण हमारे आंतरिक अंग धीरे-धीरे उस जहर के कारण किसी दिन अचानक अपनी कार्यक्षमता खो देते हैं। उदाहरण के लिए जैसे हम जो अनाज, दालें, सब्जी, फल इत्यादि प्रयोग में ला रहे हैं उनके उत्पादन को बढ़ाने के लिए जिन कैमिकल्स का प्रयोग किया जा रहा है, वह वास्तव में इतनी जहरीली है जिसके कारण हम कई प्रकार की बीमारियों के षिकार हो रहे हैं। आपको जानकर यह आष्चर्य होगा कि जो कैमिकल खेतों में कीड़े मारने के लिए प्रयोग किया जाता है यदि व्यक्ति उसके सीधे सम्पर्क में आ जाये तो उसकी त्वचा झुलस सकती हैं, आंखों पर पड़ जाने पर व्यक्ति अंधा हो सकता है और षरीर के अंदर जाने पर व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है। साधारणतः खेती में खाद में यूरिया का प्रयोग किया जाता है। जिससे आज समय में जो बच्चे न होने की समस्या है, यह यूरिया उसका बहुत बड़ा कारण है।
इसी प्रकार डेयरी प्रोडक्ट जिसमें दूध, दही, क्रीम, घी, मक्खन, पनीर आदि को बनाने में भी व्यापारी कैमिकल्स का उपयोग करने लगे हैं जिसके कारण अनेकों प्रकार की समस्यायें देखने को मिल रही हैं। गाय, भैंस के दूध को बढ़ाने के लिए दूध व्यापार उन्हें ऑक्सीटोसिन के इंजेक्षन दिये जाते हैं जिसके कारण हार्मोन की क्रिया के कारण मवेषियों का गर्भाषय सिकुड़ जाता है, जिससे पषु को अत्यधिक दर्द होता है। इस प्रकार से दूध निकालने से बछड़ों को पोशण से भी वंचित कर दिया जाता है। दूध में मौजूद एंटीबॉडी बछड़ों को कई बीमारियों से प्रतिरक्षित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। दूध से वंचित होने से वह पषुओं की अगली सम्पूर्ण नस्ल पर बीमारियां और अल्प आयु में मृत्यु का संकट छा जाता है। ऑक्सीटोसिन दवा गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी के समय दी जाती है। जिससे बच्चा होने में आसानी हो सके लेकिन व्यावसायिक लाभ के लिए इस इंजेक्षन को प्रयोग दिन में दो से तीन बार जानवरों पर दूध के लिए किया जाता है। जिससे हार्मोन के असंतुलन के कारण पुरूशों में नपुंसकता बड़ती है और स्त्रियों का कम आयु में ही यौवन के लक्षण दिखने लगे हैं।
इस समस्या का मात्र एक ही हल है कि हमें जल्दी ही कीटनाषकों और अप्राकृतिक दवाओं को छोड़कर जैविक रूप से बनी खाद का खेती में प्रयोग करना चाहिए। जिसमें नीम के पत्तों से बनी खाद जो कई किसान आज भी प्रयोग करते हैं जैविक खाद का उत्कृश्ट उदाहरण है। इस प्रकार की खेती से जहरीले कैमिकल के दुश्प्रभावों से बचा जा सकता है और आने वाली पीड़ियों को आनुवांषिक रोगों से बचाया जा सकता है। इसी प्रकार डेयरी प्रोडक्ट्स के लिए भी प्राकृतिक तरीके से दूध का उत्पादन करना चाहिए। भले ही इसमें उत्पादन की मात्रा कम होगी किन्तु उससे होने वाले दुश्प्रभावों से बचकर जो लाभ होगा, वह इस कमी के सामने कुछ नहीं है।