आदमी और गधे में मात्र एक ही अंतर होता है और वो यह कि आदमी तो गधा हो सकता है लेकिन गधा कभी आदमी नहीं हो सकता। मगर इस बात का ज्ञान भी मात्र इंसान को ही है, गधे को नहीं। इसलिए तो वो गधा का गधा ही रह गया। बेचारा, सीधा-साधा, ईमानदार, मेहनती और कर्मठ। यही गुण गधे को गधा बनाती हैं। फिर भले ही वो जानवरों वाला गधा हो या फिर इंसानों वाला। उसमें मात्र यही चार गुण होने पर्याप्त हैं।
मनोहर बचपन से ही एकदम शांत, सरल और शर्मिले स्वभाव का था। जिसे जैसा किसी ने कह दिया, उसने बिना कोई सवाल किये कर दिया। समझदार इतना कि कभी उसने किसी बात की जिद न की। भले ही अपने मन के विपरित होकर उसे अन्य संबंधियों के लिए कुछ करना पड़ा हो, उसने प्रसन्नतापूर्वक उसे स्वीकार कर लिया। उसके इस स्वभाव के कारण उसकी लोकप्रियता सभी जगह फैलने लगी और अन्य सगे-संबंधी अपने बच्चों के सामने मनोहर का उदाहरण प्रस्तुत करने लगे कि देखो, एक वो भी बच्चा है, कितना नेक और आज्ञाकारी और तुम...... ऐसी बातें सुन सुनकर अन्य बच्चे जलभुन उठते। अनेकों बार मनोहर ने भी अपने बारे में ऐसी बातें सुनी तो वो फूला न समाया और मन ही मन अपने इस सद्गुण से प्रसन्न होने लगा और इस गुण को दिनों दिन बढ़ाता ही चला गया।
मनोहर पढ़ाई में औसत दर्जे का ही छात्र था। शायद वह उन बच्चों की तरह नहीं था जो परीक्षा में अव्वल आया करते थे और अक्सर विद्यालय में होने वाले टेस्ट में 10 से 10 या 9 नंबर लाते थे। मनोहर को 50 प्रतिशत भी मिल जाते तो वो खुश हो लेता और कभी कभार 0 पाकर दुख मना लेता। अगर गलती से 7 या 8 अंक आ जाते तब मनोहर की चाल ही बदल जाती। अपने स्वभाव के कारण मनोहर कभी भी न तो अव्वल आने वालों से दोस्ती कर पाया और न ही एकदम नालायक बच्चों से कर सका क्योंकि एक ओर अधिक बुद्धि की आवश्यकता थी और दूसरी ओर लड़ाई झगड़ा करने के लिए अधिक शारीरिक क्षमता की। जिनमें से दोनों ही गुण पूरी तरह से मनोहर में न थे। कक्षा में होते हुए भी वह किसी के लिए न के ही समान था। जिसका न कोई मित्र और न ही कोई शत्रु।
जीवन में अनेकों पड़ावों को पार करते हुए मनोहर युवा हुआ तब उसे कुछ-कुछ समझ आने लगा कि वास्तव में जिसे वह बचपन से गुण समझता आ रहा था, वह व्यवहारिक रूप में अवगुण थे। अन्य लोग उससे मीठी-मीठी बातें कर उससे मात्र अपना उल्लू ही सीधा करते और पीठ पीछे खिसियाती हुई हंसी बिखेरते। जिसे वह बचपन से देखता आ रहा था लेकिन उसे यह बात समझ जरा देर से आई। एक दिन एक सहकर्मी ने अपनी गलती मनोहर के सिर मंढ दी जिसके कारण नाराज मालिक सबके सामने मनोहर से बोला।
मालिक - तुझमें अकल नाम की चीज है कि नहीं। इतना सा काम सही से नहीं कर सकते। तुम गधे हो गधे। समझे क्या! गधे हो तुम।
बस यही शब्द मनोहर के दिल को चीरते हुए निकल गया। उसकी इतने सालों की ईमानदारी, मेहनत और कर्तव्यपरायणता सब धरी की धरी रह गयी। उस समय मनोहर की आंखों के आगे मानों अंधेरा सा छा गया। उसका मन हो रहा था कि वह तेजी से चिल्लाये, जोर से सभी को गंदी से गंदी गालियां निकाले। लड़े और भिड़े लेकिन यह सब मात्र उसके लिए सपने थे।
मालिक के जाने के बाद सहकर्मियों की खिसियाई हुई हंसी देखकर मनोहर के दिल पर मानों चाबूक चल रहे थे। वो कुछ सोच रहा था कि वो गधा नहीं, वो गधा नहीं। यह सब झूठ है। लेकिन इन शब्दों की सच्चाई को तो मनोहर का दिल भी जानता था कि किन कारणों से वो इंसान न बन पाया और गधे का गधा ही रह गया। बस उसी दिन से शुरू हुआ एक गधे का इंसान बनने का सफर.....
जिसके बाद मनोहर के जीवन में अनेकों बदलाव आये। जिसमें कई बार इंसान ने जीत हासिल की और कई बार गधे ने....
इंसान और गधे की लड़ाई आज भी बदस्तूर जारी है, जिनके बीच में लटक रहा है मनोहर.......!