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वास्तविक शक्ति उपासना

26 सितम्बर 2022

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माँ जगदम्बा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। जिनकी उपासना हिन्दू समाज में प्राचीन काल से ही की जाती रही है। जीवन में शक्ति का होना जितना आवश्यक है उसके साथ-साथ उस शक्ति पर नियंत्रण रखने का गुण भी नितान्त आवश्यक है। शक्ति का असंतुलन किसी ज्वालामुखी की अग्नि की भांति यूं ही व्यर्थ चला जाता है। जिस शक्ति का प्रयोग निर्माण में होना चाहिए था, वह विध्वंस का कारण बन जाती है। वर्तमान परिदृश्य में भी मानव जाति का उत्थान मात्र शक्ति की उपासना से नहीं होगा अपितु उस शक्ति का किस प्रकार प्रयोग किया जाये, यह समझना अति आवष्यक होगा। शक्ति स्वरूपा माँ जगदम्बा के कुछ अन्य पहलू ऐसे भी हैं जिनसे मनुष्य बहुत कुछ सीख सकता है। तो आज हम माता के नौ रूपों के बारे में चर्चा करेंगेः- 

शैलपुत्री 

नवरात्रि उत्सव के दौरान माँ दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों का सम्मान एवं पूजा की जाती है। जिसे नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। माँ दुर्गा का पहला ईश्वरीय स्वरुप शैलपुत्री हैद्य शैल का अर्थ है शिखरद्य शास्त्रों में शैलपुत्री को पर्वत (शिखर) की बेटी के नाम से जाना जाता है।आमतौर पर यह समझा जाता है कि देवी शैलपुत्री कैलाश पर्वत की पुत्री है। लेकिन यह बहुत ही निम्न स्तर की सोच है। किन्तु सका योग के मार्ग पर वास्तविक अर्थ है -चेतना का सर्वाेच्चतम स्थान। यह बहुत दिलचस्प है कि जब ऊर्जा अपने चरम स्तर पर है तभी आप इसका अनुभव कर सकते हैंद्य इससे पहले कि यह अपने चरम स्तर पर न पहुँच जाए तब तक आप इसे समझ नहीं सकते। क्योंकि चेतना की अवस्था का यह सर्वाेत्तम स्थान है जो ऊर्जा के शिखर से उत्पन्न हुआ है। यहाँ पर शिखर का मतलब है,हमारे गहरे अनुभव या गहन भावनाओं का सर्वाेच्चतम स्थान। जब आप 100ः गुस्से में होते हैं तो आप महसूस करेंगे कि गुस्सा आपके शरीर को कमजोर कर देता है। दरअसल हम अपने गुस्से को पूरी तरह से व्यक्त नहीं करते, जब आप 100: क्रोध में होते हैं,यदि पूरी तरह से क्रोध को आप व्यक्त करें तो आप इस स्थिति से जल्द ही बाहर निकल सकते हैं। जब आप 100 प्रतिशत किसी भी चीज में होते हैं, तभी उसका उपभोग कर सकते हैं ,ठीक इसी तरह जब क्रोध को आप पूरी तरह से व्यक्त करेंगे तब ऊर्जा की उछाल का अनुभव करेंगे और साथ ही तुरंत क्रोध से बाहर निकल जाएंगे। क्या आपने देखा है कि बच्चे कैसे व्यवहार करते हैं? जो भी वे करते हैं, वे 100ः करते हैं।अगर वे गुस्से में हैं, तो वे उस पल में 100ः गुस्से में हैं, और फिर तुरंत कुछ ही मिनटों के बाद वे उस क्रोध को भी छोड़ देते हैं।अगर वे नाराज हो जाते हैं, तो भी वे थक नहीं जाते हैं। लेकिन अगर आप गुस्सा हो जाते हैं तो आपका गुस्सा आपको थका देता है। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि आप अपना क्रोध 100ः व्यक्त नहीं करते हैं। अब इसका मतलब यह नहीं है कि आप हर समय नाराज हो जाएँ। तब आपको उस परेशानी का भी सामना करना पड़ेगा जिसकी वजह से क्रोध आता है। जब आप किसी भी अनुभव या भावनाओँ के शिखर तक पहुंचते हैं तो आप दिव्य चेतना के उद्भव का अनुभव करते हैं,क्योंकि यह चेतना का सर्वाेत्तम शिखर है। 

ब्रह्मचारिणी 

नव दुर्गा के दूसरे रूप का नाम है माँ ब्रह्मचारिणी। 

प्रश्न . ब्रह्म का क्या अर्थ है? 

उत्तर. वह जिसका कोई आदि या अंत न हो, वह जो सर्वव्याप्त, सर्वश्रेष्ठ है और जिसके पार कुछ भी नहीं। जब आप आँखे बंद करके ध्यानमग्न होते हैं तब आप अनुभव करते हैं कि ऊर्जा अपनी चरम सीमा या शिखर पर पहुँच जाती है वह देवी माँ के साथ एक हो गयी है और उसी में ही लिप्त हो गयी है। दिव्यता, ईश्वर आपके भीतर ही है, कहीं बाहर नहीं। 

आप यह नहीं कह सकते कि ‘मैं इसे जानता हूँ’, क्योंकि यह असीम है; जिस क्षण ‘आप जान जाते हैं’, यह सीमित बन जाता है और अब आप यह नहीं कह सकते कि “मैं इसे नहीं जानता”, क्योंकि यह वहाँ है दृ तो आप कैसे नहीं जानते? क्या आप कह सकते हैं कि “मैं अपने हाथ को नहीं जानता।” आपका हाथ तो वहाँ है, है न? इसलिये, आप इसे जानते हैं। और साथ ही में यह अनंत है अतः आप इसे नहीं जानतेद्य यह दोनों अभिव्यक्ति एक साथ चलती है। क्या आप एकदम हैरान, चकित या द्वन्द में फँस गए! 

अगर कोई आपसे पूछे कि “क्या आप देवी माँ को जानते हैं?” तब आपको चुप रहना होगा क्योंकि अगर आपका उत्तर है कि “मैं नहीं जानता” तब यह असत्य होगा और अगर आपका उत्तर है कि “हाँ मैं जानता हूँ” तो तब आप अपनी सीमित बुद्धि से, ज्ञान से उस जानने को सीमा में बाँध रहे हैं। यह ( देवी माँ ) असीमित, अनन्त हैं जिसे न तो समझा जा सकता है न ही किसी सीमा में बाँध कर रखा जा सकता है।“जानने” का अर्थ है कि आप उसको सीमा में बाँध रहे हैं। क्या आप अनन्त को किसी सीमा में बांध कर रख सकते हैं? अगर आप ऐसा सकते हैं तो फिर वह अनन्त नहीं। 

ब्रह्मचारिणी का अर्थ है वह जो असीम, अनन्त में विद्यमान, गतिमान है। एक ऊर्जा जो न तो जड़ न ही निष्क्रिय है, किन्तु वह जो अनन्त में विचरण करती है। यह बात समझना अति महत्वपूर्ण है दृ एक गतिमान होना, दूसरा विद्यमान होना। यही ब्रह्मचर्य का अर्थ है। इसका अर्थ यह भी है कि तुच्छता, निम्नता में न रहना अपितु पूर्णता से रहना। कौमार्यावस्था ब्रह्मचर्य का पर्यायवाची है क्योंकि उसमें आप एक सम्पूर्णता के समक्ष हैं न कि कुछ सीमित के समक्ष। वासना हमेशा सीमित बँटी हुई होती है, चेतना का मात्र सीमित क्षेत्र में संचार। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी सर्व-व्यापक चेतना है। 

चन्द्रघंटा 

देवी माँ के तृतीय ईश्वरीय स्वरुप का नाम माँ चन्द्रघण्टा है। 

प्रश्न . चन्द्रघण्टा शब्द का क्या अर्थ है? 

उत्तर .चन्द्रमा हमारे मन का प्रतीक है। मन का अपना ही उतार चढ़ाव लगा रहता है। प्रायरू हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं दृ सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं, ईर्ष्या आती है, घृणा आती है और आप उनसे छुटकारा पाने के लिये और अपने मन को साफ़ करने के लिये संघर्ष करते हैं। मैं कहता हूँ कि ऐसा नहीं होने वाला। आप अपने मन से छुटकारा नहीं पा सकते। आप कहीं भी भाग जायें, चाहे हिमालय पर ही क्यों न भाग जायें, आपका मन आपके साथ ही भागेगा। यह आपकी छाया के समान है। 

जैसे ही हमारे मन में नकरात्मक भाव, विचार आते हैं तो हम निरुत्साहित, अशांत महसूस करते हैं। हम विभिन्न तरीकों से इनसे पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हैं पर यह मात्र कुछ समय के लिए ही काम करता है। कुछ समय पश्चात वही विचार फिर हमें घेर लेते हैं और वापस वहीं पहुँच जाते हैं जहाँ से हमने शुरुआत की थी। अतः इन विचारों से पीछा छुड़ाने के संघर्ष में न फँसे। ‘चंद्र’ हमारी बदलती हुई भावनाओं, विचारों का प्रतीक है (ठीक वैसे ही जैसे चन्द्रमा घटता व बढ़ता रहता है)। ‘घंटा’ का अर्थ है जैसे मंदिर के घण्टे-घड़ियाल (इमसस)। आप मंदिर के घण्टे-घड़ियाल को किसी भी प्रकार बजाएँ, हमेशा उसमे से एक ही ध्वनि आती है। इसी प्रकार एक अस्त-व्यस्त मन जो विभिन्न विचारों, भावों में उलझा रहता है, जब एकाग्र होकर ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाता है, तब ऊपर उठती हुई दैवीय शक्ति का उदय होता है - और यही चन्द्रघण्टा/चन्द्रघंटा का अर्थ है। 

एक ऐसी स्थिति जिसमे हमारा अस्त-व्यस्त मन एकाग्रचित्त हो जाता है। अपने मन से भागे नहीं - क्योंकि यह मन एक प्रकार से दैवीय रूप का प्रतीक, अभिव्यक्ति है। यही दैवीय रूप दुःख, विपत्ति, भूख और यहाँ तक कि शान्ति में भी मौजूद है। सार यह कि सबको एक साथ लेकर चलें - चाहे ख़ुशी हो या गम - सब विचारों, भावनाओं को एकत्रित करते हुए एक विशाल घण्टे -घड़ियाल के नाद की तरह। देवी के इस नाम ‘चन्द्रघण्टा/चन्द्रघंटा’ का यही अर्थ है और तृतीय नवरात्रि के उपलक्ष्य में इसे मनाया जाता है। 

कूष्माण्डा 

देवी माँ के चतुर्थ रूप का नाम है, देवी कूष्माण्डा। 

कूष्माण्डा का संस्कृत में अर्थ होता है लौकी,कद्दू। अब अगर आप किसी को मज़ाक में लौकी, कद्दू पुकारेंगे तो वह बुरा मान जाएंगे और आपके प्रति क्रोधित होंगे। 

प्रश्न . कूष्माण्डा का अर्थ क्या है? 

उत्तर. लौकी, कद्दू गोलाकार है। अतः यहाँ इसका अर्थ प्राणशक्ति से है - वह प्राणशक्ति जो पूर्ण, एक गोलाकार, वृत्त की भांति। 

भारतीय परंपरा के अनुसार लौकी, कद्दू का सेवन मात्र ब्राह्मण, महा ज्ञानी ही करते थे। अन्य कोई भी वर्ग इसका सेवन नहीं करता था। लौकी, कद्दू आपकी प्राणशक्ति, बुद्धिमत्ता और शक्ति को बढ़ाते है। लौकी, कद्दू के गुण के बारे में ऐसा कहा गया है, कि यह प्राणों को अपने अंदर सोखती है, और साथ ही प्राणों का प्रसार भी करती है। यह इस धरती पर सबसे अधिक प्राणवान और ऊर्जा प्रदान करने वाली शाक, सब्ज़ी है। जिस प्रकार अश्वथ का वृक्ष 24 घंटे ऑक्सीजन देता है उसी प्रकार लौकी, कद्दू ऊर्जा को ग्रहण या अवशोषित कर उसका प्रसार करते है। 

सम्पूर्ण सृष्टि - प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष , अभिव्यक्त व अनभिव्यक्तर - एक बड़ी गेंद , गोलाकार कद्दू के समान है। इसमें हर प्रकार की विविधता पाई जाता है - छोटे से बड़े तक। 

‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘ष् ’ का अर्थ है ऊर्जा और ‘अंडा’ का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला दृ सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का संचार छोटे से बड़े में होता है। यह बड़े से छोटा होता है और छोटे से बड़ा; यह बीज से बढ़ कर फल बनता है और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है। इसी प्रकार, ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने की और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है,जिसकी व्याख्या कूष्मांडा करती हैं,देवी माँ को कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ यह भी है, कि देवी माँ हमारे अंदर प्राणशक्ति के रूप में प्रकट रहती हैं। 

कुछ क्षणों के लिए बैठकर अपने आप को एक कद्दू के समान अनुभव करें। इसका यहाँ पर यह तात्पर्य है कि अपने आप को उन्नत करें और अपनी प्रज्ञा, बुद्धि को सर्वाेच्च बुद्धिमत्ता जो देवी माँ का रूप है, उसमें समा जाएँ। एक कद्दू के समान आप भी अपने जीवन में प्रचुरता बहुतायत और पूर्णता अनुभव करें। साथ ही सम्पूर्ण जगत के हर कण में ऊर्जा और प्राणशक्ति का अनुभव करें। इस सर्वव्यापी, जागृत, प्रत्यक्ष बुद्धिमत्ता का सृष्टि में अनुभव करना ही कूष्माण्डा है। 

स्कंदमाता 

बुद्धिमता, ज्ञान की देवी रू माँ स्कंदमाता 

देवी माँ का पाँचवाँ रूप स्कंदमाता के नाम से प्रचलित है। भगवान् कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है जो ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति के एक साथ सूचक हैं। स्कन्द इन्हीं दोनों के मिश्रण का परिणाम है। स्कन्दमाता वो दैवीय शक्ति हैं , जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती हैं दृ वो जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं। 

शिव तत्व आनंदमय, सदैव शांत और किसी भी प्रकार के कर्म से परे का सूचक है। देवी तत्व आदिशक्ति सब प्रकार के कर्म के लिए उत्तरदायी है। ऐसी मान्यता है कि देवी इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। जब शिव तत्व का मिलन इन त्रिशक्ति के साथ होता है तो स्कन्द का जन्म होता है। स्कंदमाता ज्ञान और क्रिया के स्रोत, आरम्भ का प्रतीक है.इसे हम क्रियात्मक ज्ञान अथवा सही ज्ञान से प्रेरित क्रिया, कर्म भी कह सकते हैं। 

प्रायः ऐसा देखा गया की है कि ज्ञान तो है, किंतु उसका कुछ प्रयोजन या क्रियात्मक प्रयोग नहीं होता। किन्तु ज्ञान ऐसा भी है, जिसका ठोस प्रोयोजन, लाभ है, जिसे क्रिया द्वारा अर्जित किया जाता है। आप स्कूल, कॉलेज में भौतिकी, रसायन शास्त्र पड़ते हैं जिसका प्रायः आप दैनिक जीवन में कुछ अधिक प्रयोग करते। और दूसरी ओर चिकित्सा पद्धति, औषधि शास्त्र का ज्ञान दिन प्रतिदिन में अधिक उपयोग में आता है। जब आप टेलीविज़न ठीक करना सीख जाते हैं तो अगर कभी वो खराब हो जाए तो आप उस ज्ञान का प्रयोग कर टेलीविज़न ठीक कर सकते हैं। इसी तरह जब कोई मोटर खराब हो जाती है तो आप उसे यदि ठीक करना जानते हैं तो उस ज्ञान का उपयोग कर उसे ठीक कर सकते हैं। इस प्रकार का ज्ञान अधिक व्यवहारिक ज्ञान है। अतः स्कन्द सही व्यवहारिक ज्ञान और क्रिया के एक साथ होने का प्रतीक है। स्कन्द तत्व मात्र देवी का एक और रूप है। 

हम अक्सर कहते हैं, कि ब्रह्म सर्वत्र, सर्वव्यापी है, किंतु जब आपके सामने अगर कोई चुनौती या मुश्किल स्थिति आती है, तब आप क्या करते हैं? तब आप किस प्रकार कौनसा ज्ञान लागू करेंगे या प्रयोग में लाएँगे? समस्या या मुश्किल स्थिति में आपको क्रियात्मक होना पड़ेगा। अतः जब आपका कर्म सही व्यवहारिक ज्ञान से लिप्त होता है तब स्कन्द तत्व का उदय होता है। और देवी दुर्गा स्कन्द तत्व की माता हैं। 

कात्यायनी 

हमारे सामने जो कुछ भी घटित होता है, जिसे हम प्रपंच का नाम देते हैं, ज़रूरी नहीं कि वह सब हमें दिखाई दे। वह जो अदृश्य है, जिसे हमारी इन्द्रियां अनुभव नहीं कर सकती वह हमारी कल्पना से बहुत परे और विशाल है। 

सूक्ष्म जगत जो अदृश्य, अव्यक्त है, उसकी सत्ता माँ कात्यायनी चलाती हैं। वह अपने इस रूप में उन सब की सूचक हैं, जो अदृश्य या समझ के परे है। माँ कात्यायनी दिव्यता के अति गुप्त रहस्यों की प्रतीक हैं। 

क्रोध किस प्रकार से सकारात्मक बल का प्रतीक है और कब यह नकारात्मक आसुरी शक्ति का प्रतीक बन जाता है ? इन दोनों में तो बहुत गहरा भेद है। आप सिर्फ़ ऐसा मत सोचिये कि क्रोध मात्र एक नकारात्मक गुण या शक्ति है। क्रोध का अपना महत्व, एक अपना स्थान है। सकारात्मकता के साथ किया हुआ क्रोध बुद्धिमत्ता से जुड़ा होता है,और वहीं नकारात्मकता से लिप्त क्रोध भावनाओं और स्वार्थ से भरा होता है। सकारात्मक क्रोध एक प्रौढ़ बुद्धि से उत्पन्न होता है। क्रोध अगर अज्ञान, अन्याय के प्रति है तो वह उचित है। अधिकतर जो कोई भी क्रोधित होता है वह सोचता है कि उसका क्रोध किसी अन्याय के प्रति है अतः वह उचित है! किंतु अगर आप गहराई में, सूक्ष्मता से देखेंगे तो अनुभव करेंगे कि ऐसा वास्तव में नहीं है। इन स्थितियों में क्रोध एक बंधन बन जाता है। अतः सकारात्मक क्रोध जो अज्ञान, अन्याय के प्रति है, वह माँ कात्यायनी का प्रतीक है। 

आपने बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सुना होगा। कुछ लोग इसे प्रकृति का प्रकोप भी कहते हैं। उदाहरणतः बहुत से स्थानों पर बड़े - बड़े भूकम्प आ जाते हैं या तीव्र बाढ़ का सामना करना पड़ता है। यह सब घटनाएँ देवी कात्यायनी से सम्बन्धित हैं। सभी प्राकृतिक विपदाओं का सम्बन्ध माँ के दिव्य कात्यायनी रूप से है। वह क्रोध के उस रूप का प्रतीक हैं जो सृष्टि में सृजनता, सत्य और धर्म की स्थापना करती हैं। माँ का दिव्य कात्यायनी रूप अव्यक्त के सूक्ष्म जगत में नकारात्मकता का विनाश कर धर्म की स्थापना करता है। ऐसा कहा जाता है कि ज्ञानी का क्रोध भी हितकर और उपयोगी होता है,जबकि अज्ञानी का प्रेम भी हानिप्रद हो सकता है। इस प्रकार माँ कात्यायनी क्रोध का वो रूप है, जो सब प्रकार की नकारात्मकता को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। 

कालरात्रि 

माँ के सप्तम रूप का नाम है माँ कालरात्रि। 

यह माँ का अति भयावह व उग्र रूप है। सम्पूर्ण सृष्टि में इस रूप से अधिक भयावह और कोई दूसरा नहीं। किन्तु तब भी यह रूप मातृत्व को समर्पित है। देवी माँ का यह रूप ज्ञान और वैराग्य प्रदान करता है। 

महागौरी 

8 सौन्दर्य का प्रतीक रू माँ महागौरी 

देवी माँ का आठवाँ स्वरुप है,महागौरी। 

महागौरी का अर्थ है - वह रूप जो कि सौन्दर्य से भरपूर है, प्रकाशमान है - पूर्ण रूप से सौंदर्य में डूबा हुआ है। प्रकृति के दो छोर या किनारे हैं - एक माँ कालरात्रि जो अति भयावह, प्रलय के समान है, और दूसरा माँ महागौरी जो अति सौन्दर्यवान, देदीप्यमान,शांत है - पूर्णतरू करुणामयी, सबको आशीर्वाद देती हुईं। यह वो रूप है, जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है।क्यों है,देवियों के नौ रूप? 

यह भौतिक नहीं, बल्कि लोक से परे आलौकिक रूप है, सूक्ष्म तरह से, सूक्ष्म रूप। इसकी अनुभूति के लिये पहला कदम ध्यान में बैठना है। ध्यान में आप ब्रह्मांड को अनुभव करते हैं। इसीलिये बुद्ध ने कहा है, आप बस देवियों के विषय में बात ही करते हैं, जरा बैठिये और ध्यान करिये। ईश्वर के विषय में न सोचिये। शून्यता में जाईये, अपने भीतर। एक बार आप वहां पहुँच गये, तो अगला कदम वो है, जहां आपको सभी विभिन्न मन्त्र, विभिन्न शक्तियाँ दिखाई देंगी, वो सभी जागृत होंगी। 

बौद्ध मत में भी, वे इन सभी देवियों का पूजन करते हैं। इसलिये, यदि आप ध्यान कर रहे हैं, तो सभी यज्ञ, सभी पूजन अधिक प्रभावी हो जायेंगे। नहीं तो उनका इतना प्रभाव नहीं होगा। यह ऐसे ही है, जैसे कि आप नल तो खोलते हैं, परन्तु गिलास कहीं और रखते हैं, नल के नीचे नहीं। पानी तो आता है, पर आपका गिलास खाली ही रह जाता है। या फिर आप अपने गिलास को उलटा पकड़े रहते हैं। 10 मिनट के बाद भी आप इसे हटायेंगे, तो इसमें पानी नहीं होगा। क्योंकि आपने इसे ठीक प्रकार से नहीं पकड़ा है। 

सभी पूजा, ध्यान के साथ शुरू होती हैं, और हजारों वर्षों से इसी परम्परा या प्रथा का अनुसरण किया जाता है।ऐसा,पवित्र-आत्मा के सभी विविध तत्वों को जागृत करने के लिये, उनका आह्वान करने के लिये किया जाता है। हमारे भीतर एक आत्मा है। उस आत्मा की कई विविधताएँ हैं, जिनके कई नाम, कई सूक्ष्म रूप हैं,और नवरात्रि इन्हीं सब से जुड़ी है। 

सिद्धिदात्री 

देवी के नवें रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है। 

देवी महागौरी आपको भौतिक जगत में प्रगति के लिए आशीर्वाद और मनोकामना पूर्ण करती हैं, ताकि आप संतुष्ट होकर अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ें। 

माँ सिद्धिदात्री आपको जीवन में अद्भुत सिद्धि, क्षमता प्रदान करती हैं ताकि आप सबकुछ पूर्णता के साथ कर सकें। सिद्धि का क्याअर्थ है? सिद्धि, सम्पूर्णता का अर्थ है दृ विचार आने से पूर्व ही काम का हो जाना। आपके विचारमात्र, से ही, बिना किसी कार्य किये आपकी इच्छा का पूर्ण हो जाना यही सिद्धि है। 

आपके वचन सत्य हो जाएँ और सबकी भलाई के लिए हों। आप किसी भी कार्य को करें वो सम्पूर्ण हो जाए - यही सिद्धि है। सिद्धि आपके जीवन के हर स्तर में सम्पूर्णता प्रदान करती है। यही देवी सिद्धिदात्री की महत्ता है। 

क्यों हैं माँ दुर्गा के नौ रूप 

यह भौतिक नहीं, बल्कि लोक से परे आलौकिक रूप है, सूक्ष्म तरह से, सूक्ष्म रूप। इसकी अनुभूति के लिये पहला कदम ध्यान में बैठना है। ध्यान में आप ब्रह्मांड को अनुभव करते हैं। इसीलिये बुद्ध ने कहा है, आप बस देवियों के विषय में बात ही करते हैं, जरा बैठिये और ध्यान करिये। ईश्वर के विषय में न सोचिये। शून्यता में जाईये, अपने भीतर। एक बार आप वहां पहुँच गये, तो अगला कदम वो है, जहां आपको विभिन्न मन्त्र, विभिन्न शक्तियाँ दिखाई देंगी, वो सभी जागृत होंगी। 

बौद्ध मत में भी, वे इन सभी देवियों का पूजन करते हैं। इसलिये, यदि आप ध्यान कर रहे हैं, तो सभी यज्ञ, सभी पूजन अधिक प्रभावी हो जायेंगे। नहीं तो उनका इतना प्रभाव नहीं होगा। यह ऐसे ही है, जैसे कि आप नल तो खोलते हैं, परन्तु गिलास कहीं और रखते हैं, नल के नीचे नहीं। पानी तो आता है, पर आपका गिलास खाली ही रह जाता है। या फिर आप अपने गिलास को उलटा पकड़े रहते हैं। 10 मिनट के बाद भी आप इसे हटायेंगे, तो इसमें पानी नहीं होगा। क्योंकि आपने इसे ठीक प्रकार से नहीं पकड़ा है। 

सभी पूजन ध्यान के साथ शुरू होते हैं और हजारों वर्षों से इसी विधि का प्रयोग किया जाता है। ऐसा पवित्र आत्मा के सभी विविध तत्वों को जागृत करने के लिये, उनका आह्वाहन करने के लिये किया जाता था। हमारे भीतर एक आत्मा है। उस आत्मा की कई विविधतायें हैं, जिनके कई नाम, कई सूक्ष्म रूप हैं और नवरात्रि इन्हीं सब से जुड़े हैं दृ इन सब तत्वों का इस धरती पर आवाहन, जागरण और पूजन करना। 



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वर्तमान समय में हम सभी तकनीकी के इतने आदी हो चुके हैं कि उसके बिना एक दिन की कल्पना करना भी किसी को बेचैन कर देने के लिए काफी है। आज की सदी में तकनीकी का पूर्णतः उपभोग कर पाने में इंटरनेट का योगदान सर

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मूर्ख का ज्ञान, करें नुकसान

27 सितम्बर 2022
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प्राचीन काल की बात है। भस्मासुर नामक एक आसुर जाति का एक व्यक्ति था। एक बार उसने सोचा कि उसे विष्व का सबसे षक्तिषाली व्यक्ति होना चाहिए लेकिन इस समस्या का समाधान उसके पास न था। वह वन-वन भटकने लगा की को

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प्राकृतिक आपदा

29 सितम्बर 2022
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प्रायः प्राकृतिक आपदाओं का सामना प्रत्येक देष को करना पड़ता है। जैसे विष्व में कई देष ऐसे हैं जो अत्यधिक ठंडे हैं जहां बारह महीने बर्फ की मोटी चादर के साथ-साथ वहां का तापमाप षून्य से बहुत नीचे तक रहता

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ऑनलाईन गेमिंग

30 सितम्बर 2022
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वैष्विक बाजार इंटरनेट के माध्यम से तेजी से प्रसार कर रहा है। धीरे-धीरे व्यापार के पुराने माध्यमों का स्थान नये माध्यम पकड़ रहे हैं जिसमें ऑनलाईन षॉपिंग, रिटेल मार्केट, फैषन, फिल्म-संगीत, एनिमेषन, स्वास

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गांधी जी और हम...!

1 अक्टूबर 2022
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भारत की आजादी में महात्मा गांधी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। जिस प्रकार गांधी जी ने देष के एक बहुत बड़े वर्ग को एक सूत्र में पिरोये रखा और उनके समर्थन में भारत की आबादी की एक बहुत बड़ा हिस्सा उनके साथ था,

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कला चिकित्सा

3 अक्टूबर 2022
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कला चिकित्सा क्या है?  व्यक्तित्व के निर्माण और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करने में इस चिकित्सा की भूमिका के कारण, इसे अभिव्यंजक चिकित्सा भी कहा जाता है। इस थेरेपी में, मास्टर और प्रतिभागी, दोनों समा

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मैं ही हूं सबसे बुद्धिमान...!

4 अक्टूबर 2022
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व्यक्ति अपनी गलतियों से बहुत कुछ सीख सकता है और सबसे बुद्धिमान वह होता है जो दूसरों की गलतियों को देखकर उनसे भी सीख लेता है लेकिन वास्तविक जीवन में ऐसे बहुत ही कम लोग हैं जो दूसरों की गलतियों को देखकर

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बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व- दशहरा

5 अक्टूबर 2022
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दषहरा के पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। बुराई चाहे कितनी भी षक्तिषाली क्यो न हों और अच्छाई का साथ देने वाले लोग कितने ही दुर्बल स्थिति में क्यों न हो, धर्म और सच्चाई की षक्ति अंत मे बुराई

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कर्म और भाग्य - वैज्ञानिक दृष्टिकोण

6 अक्टूबर 2022
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प्रबलः कर्मसिद्धान्तः उक्ति जीवन में कर्म के सिद्धान्त को दर्षाती है कि जीव जगत में कर्म का सिद्धान्त अत्यन्त ही प्रबल है। आज हम इस सिद्धान्त को वास्तविक धरा से जुड़ी वैज्ञानिक दृश्टि से समझेंगे कि किस

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पछतावे के आंसू (लघु कथा)

7 अक्टूबर 2022
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प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसे क्षण अवष्य आते हैं जब उसे लगता कि उसे उस समय वह कार्य नहीं करना चाहिए था और व्यक्ति का मन एक दुःख और निराषा से भर उठता है। इसी प्रकार की एक घटना याद आती है जब एक व्यक्

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आखिर क्या है डिजिटिलाईजेशन?

8 अक्टूबर 2022
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बीसवीं सदी सूचना-संचार, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, चिकित्सा व अनेकों वैज्ञानिक क्षेत्रों का स्वर्णिम काल रहा है। इस समय अंतराल में हमने अनेकों ऐसी वस्तुएं प्राप्त की हैं जो किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। टैल

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नारी का सम्मान करो

10 अक्टूबर 2022
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नारी, यह कोई समान्य शब्द नहीं बल्कि एक ऐसा सम्मान हैं जिसे देवत्व प्राप्त हैं। नारियों का स्थान वैदिक काल से ही देव तुल्य हैं इसलिए नारियों की तुलना देवी देवताओं और भगवान से की जाती हैं। जब भी घर में

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क्या हम इंसान नहीं.....! (थर्ड जेंडर)

11 अक्टूबर 2022
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आज हम एक ऐसे विषय पर बात करेंगे जिस पर लोग बहुत कम बात करना उचित समझते हैं लेकिन फिर भी उनका हमारे समाज का एक हिस्सा होने के कारण उनके विषय पर ध्यान देना अति आवष्यक है। वह कोई और नहीं बल्कि थर्ड जेंडर

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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।

12 अक्टूबर 2022
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिसे जीवित रहने के लिए समाज की आवश्यकता पड़ती है। किसी भी व्यक्ति का परिवार इस सामाजिक व्यवस्था का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण और प्रारम्भिक चरण है। जिस घर में व्यक्ति जन्म लेता

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औरत क्या चाहती है? करवाचौथ स्पेशल

13 अक्टूबर 2022
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यह एक मशहूर कहावत है कि औरत क्या चाहती है, ये तो उसको बनाने वाला ब्रह्मा भी नहीं जान पाये यदि देखा जाये तो यह मात्र स्त्री की निंदा करने वालों की अतिष्योक्ति भर है। कुछ अंधविश्वासों व आडम्बरों को हटा

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डिजिटल ज्ञान की आवश्यकता

14 अक्टूबर 2022
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आज का दौर डिजिटल हो गया। अधिकतर कार्य कम्प्यूटरीकृत हो चुके हैं। जिसका ज्ञान होना आज के समय में अति आवष्यक है। एक छोटा सा स्मार्टफोन इतने बड़े-बड़े कार्य कर देता है जिसे देखकर आष्चर्य होता है। जिस कार्य

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कलाम को सलाम

15 अक्टूबर 2022
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मिसाईल मैन के नाम से प्रसिद्ध भारत के 11वें राष्ट्रपति ए०पी०जे० अब्दुल कलाम जिनका पूरा नाम अबुल पकिर जैनुलाबदीन कलाम था। इनका जन्म आज ही के दिन 15 अक्टूबर, 1931 को रामेष्वरम में हुआ था। अब्दुल कलाम का

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मेरा पहला कार्य दिवस - स्व: अनुभव

17 अक्टूबर 2022
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कार्य करते हुए इतने वर्ष व्यतीत हो गये कि अब तो ऐसा लगता है मानों हम इन सब चीजों के आदी हो गये हैं। किस कार्य को करने में कितना समय लगेगा, क्या समस्यायें आयेंगी, ऐसी अनेकों बातें जो अक्सर पूर्वनियोजित

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“सबका साथ, सबका विकास”

18 अक्टूबर 2022
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जहाँ  शॉपिंग ऑनलाईन की जाये या ऑफलाईन दोनों की अपने-अपने स्थान पर लाभ और हानियां हैं। आज के तकनीकी युग में हर एक व्यक्ति के पास स्मार्ट फोन, इंटरनेट, लैपटॉप और हाईस्पीड इंटरनेट की सुविधाएं उपलब्ध हैं।

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त्यौहारों का मजा

21 अक्टूबर 2022
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त्यौहार ही तो हैं जो बेरंग जिन्दगी को रंगों से सराबोर कर देते हैं। यन्त्रवत् कार्य करते-करते मनुश्य के मस्तिश्क को ताजगी और ऊर्जा भर देने के लिए त्यौहार ही हैं। फिर चाहे वो कोई भी त्यौहार हो, सबका उद्

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दूरस्थ शिक्षा का महत्व

22 अक्टूबर 2022
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जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए शिक्षा का अत्यन्त ही महत्व है। पुरातन काल से लेकर वर्तमान समय तक जो सफलताएं शिक्षित व्यक्ति ने प्राप्त की हैं उतनी शायद ही किसी अषिक्षित ने की हों और यही क्रम सदैव च

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कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना

28 अक्टूबर 2022
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जब तक व्यक्ति के अंदर कुछ नया करने का जज्बा नहीं उठता, उसकी बाहरी और आंतरिक उन्नति संभव नहीं है। कुछ नया करना अर्थात् वह कार्य करना जो आपका मन कहता है, उसके बारे में लोग क्या कहते हैं, उससे उसे कोई अं

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भ्रामक खबरें : झूठ का मनोविज्ञान

29 अक्टूबर 2022
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जिस प्रकार आज समाज का वैष्वीकरण हो रहा है और समाज में सूचनाओं का आदान-प्रदान अब पहले की भांति नहीं रह गया है, जहां खबरें मात्र समाचार पत्रों और टेलीविजन के माध्यम से प्रसारित हुआ करती थी। इंटरनेट के इ

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5जी तकनीक : लाभ और प्रभाव

3 नवम्बर 2022
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5 जी टैक्नॉलोजी आने वाले समय के लिए कम्प्यूटर जगत के लिए एक क्रान्ति होगी। जो सूचनाएं आकार में बड़ी होने कारण इंटरनेट की स्पीड कम होने के कारण सरलता से नहीं भेजी जा सकती। 5जी आने के बाद यह समस्या का नि

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देखन आयो जगत तमासा – गुरु नानक जयंती

7 नवम्बर 2022
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गुरू नानक साहिब के जीवन को आज हम दूसरी दृष्टि से देखेंगे, जिस पर अक्सर लोगों ने ध्यान नहीं दिया है। भारत में अनेकों महापुरूष हुए हैं जिन्होंने अलग-अलग समयकाल में उस समय की परिस्थितियों के अनुसार अनेको

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जातिवाद और धार्मिक भेदभाव - प्रार्दुभाव

10 नवम्बर 2022
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हमें अति प्राचीन पूर्वजों से बहुत कुछ सीखना होगा। एक समय ऐसा भी था जब मानव गुफाओं में बैठा पत्थरों से छोटे-मोटे औजारों का निर्माण करके ही खुष था। कोई अजनबी सा दिखने वाला चमकीला पत्थर भी उसे उत्साहित

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जनसंख्या वृद्वि - उपाय और समाधान

15 नवम्बर 2022
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वर्तमान समय में जनसंख्या वृद्वि विष्व के लिए सबसे बड़ी समस्या है। यह समस्या तब और भी अधिक विकराल बन जाती है, जब किसी देष की अर्थव्यवस्था विकासषीलता की स्थिति में होती है। संसाधन कम एवं उपभोक्ता की अधिक

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जादुई दुनिया

17 नवम्बर 2022
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बचपन में सभी ने अनेकों जादुई कहानियां पढ़ी होंगी लेकिन क्या वास्तविकता के धरातल पर ऐसी कोई जादुई दुनियां का अस्तित्व संभव है? अगर मैं कहूं कि यह संभव है, तो षायद आप मुझे पागल समझेंगे। भविश्य का विज्ञान

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किस्मत बदलती देखी मैं

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एक बार एक राजा के दरबार में एक खुबसूरत नाचने वाली नाच रही थी। जिसे अपनी खूबसूरती पर बहुत घमण्ड था वो बार-बार राजा की बदसूरती को देखकर मुस्कुराती है। राजा यह देखकर समझ जाता है कि वह क्यों मुस्कुराई। जि

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आखिरी इच्छा की सचाई

18 नवम्बर 2022
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मानव जीवन में इच्छाएं कभी न खत्म होने वाला एक सिलसिला है। जिसे व्यक्ति जितना चाहे खत्म करने की कोशिश कर ले, लेकिन इसे पूरी तरह से खत्म कर पाना लगभग नामुमकिन है। कभी न खत्म होने वाली इच्छाओं के कारण अक

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बड़े मियां तो बड़े मियां

19 नवम्बर 2022
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यूं तो वरदान की परिभाषा सबके लिए अलग-अलग है। जिसकी जैसी चाहत, उसको वैसी राहत। आज हम कुछ ऐसे वरदानों की बात करेंगे जो अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन अगर यदि वो उनको मिल जाये, तो उनके ल

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आखिरी मुलाकात

21 नवम्बर 2022
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इंसान के जीवन में कभी-कभी ऐसे पल आते हैं जब वह कुछ बातों को सोचने को मजबूर हो जाता है। ऐसा ही कुछ उस्मान के साथ हुआ जिसके बाद वह अपने अतीत के पन्नों को पलटकर पीछे देखने लगा कि मुस्लिम परिवार में जन्म

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पाश्चात्य संस्कृति अभिशाप या वरदान

5 दिसम्बर 2022
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मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य उन्नति के पथ पर अग्रसर होना है। जिस पर मानव सभ्यता अपने उद्भव के साथ ही चली आ रही है। भारत की संस्कृति अति प्राचीन होने के कारण अपने उच्च मूल्यों और उत्कृष्ट सामाजिक व्यवस

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लालच बुरी बला

12 जनवरी 2023
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लालच एक ऐसी मनोस्थिति है जिसमें व्यक्ति किसी प्रकार की धन-सम्पदा, पद-प्रतिश्ठा को अधिक से अधिक किसी भी प्रकार से प्राप्त करना चाहता है। उसके लिए वह अनेकों बार गलत रास्तों का चुनाव करता है। जो नैतिक और

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भारत में अंडरवॉटर रेल

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भारत में अंडरवॉटर रेल प्रोजेक्ट एक अत्यंत रोचक और उन्नत प्रोजेक्ट है। यह प्रोजेक्ट भारत की सबसे लंबी अंडरवॉटर रेल बनाने का लक्ष्य रखता है। यह रेल लाइन गुजरात के मुंबई और महाराष्ट्र के अहमदनगर के बीच ब

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गुप्त समाज

16 अप्रैल 2023
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एक रहस्यमय समाज था, जो लोगों के बीच अज्ञात रहता था। इस समाज में केवल चुनिंदा लोग ही शामिल हो सकते थे, जो अपनी बुद्धि और विवेक से ज्ञानी और विचारशील थे। ये लोग एक-दूसरे से मिलते थे और विभिन्न विषयों पर

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एक था ड्रैगन

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एक था ड्रैगन, बहुत बड़ा, बहुत ही ताकतवर। जमीन पर चलता था, हवा में उड़ता था, मुंह से आग उगलता था। ऐसा बताया था, एक बुजुर्ग ने। जिसकी हर बात थी, पत्थर की लकीर। पहले भी खोल चुका था, वो कई राज। आ

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विश्व नृत्य दिवस

1 मई 2023
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विश्व नृत्य दिवस वर्ष 1982 से हर साल 29 अप्रैल को मनाया जाता है। इस दिन के महत्व को समझते हुए विभिन्न संस्थानों और समूहों में नृत्य कला के माध्यम से इस दिन को ध्यान में रखा जाता है। यह दिन नृत्य कला क

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एक मजदूर की कहानी

1 मई 2023
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एक गरीब मजदूर था जो अपनी दिनचर्या के लिए रोज़ाना शहर के बाहर चला जाता था। उसे रोज़ कुछ न कुछ काम मिलता था जिससे उसका पेट भरता और घर के लिए कुछ पैसे भी बचते थे। वह अपने कठिन जीवन में भी सबसे खुश था। ए

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क्रूर अंग्रेजी शिक्षिका

25 मई 2023
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एक बार की बात है, एक बहुत ही क्रूर अंग्रेजी शिक्षिका थी जो कि हमारे कक्षा में पढ़ाती थी। वह हमेशा सख्त और अन्यायपूर्ण नियमों के साथ प्रतिष्ठित रहती थी। उसकी कक्षा में पढ़ने का तरीका अनोखा था। वह हमेश

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दो जंगली फूल

23 जून 2023
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एक बहुत ही घना जंगल था। जो हजारों मीलों तक फैला हुआ था। इस जंगल में अनेकों प्रकार के जंगली जानवर और जहरीले प्राणी थे। अत्यन्त ही भयानक परिस्थतियों के कारण उस जंगल में कोई भी मानव अंदर नहीं जाना चाहता

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कुछ ख्यालात

5 सितम्बर 2023
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कुछ ख्यालात ऐसे होते हैं जो जाने-अनजाने आते जाते रहते हैं। मानों किसी नदी के किसी बहाव की तरह धीमे-धीमे ठण्डी हवा के साथ कलरव करती हुई एक मीठी सी मुस्कान के साथ। तो कभी तेज तूफानी, रेगिस्तानी गर्म हवा

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हिंदी दिवस

13 सितम्बर 2023
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प्रस्तावना: हिंदी, भारत की आधिकारिक भाषा है, जिसका महत्व और मान्यता हमारे देश में अत्यधिक है। हिंदी दिवस का आयोजन 14 सितंबर को हर साल भारत में किया जाता है। यह दिन हिंदी भाषा के महत्व को याद करने और

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गांधीजी और हम

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भारत की आजादी में महात्मा गांधी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। जिस प्रकार गांधी जी ने देष के एक बहुत बड़े वर्ग को एक सूत्र में पिरोये रखा और उनके समर्थन में भारत की आबादी की एक बहुत बड़ा हिस्सा उनके साथ

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कश्मकश - गधा

30 अक्टूबर 2023
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आदमी और गधे में मात्र एक ही अंतर होता है और वो यह कि आदमी तो गधा हो सकता है लेकिन गधा कभी आदमी नहीं हो सकता। मगर इस बात का ज्ञान भी मात्र इंसान को ही है, गधे को नहीं। इसलिए तो वो गधा का गधा ही रह गया।

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प्यार के रंग हजार

19 अप्रैल 2024
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जी हां दोस्तो आज हम बात करने वाले है एक ऐसे अहसास की जिसे हम प्यार के नाम से जानते है। लेकिन इसको अनेकों रंग है जिन्हे हम अक्सर प्यार का नाम दे देते है। उन सब में भी प्यार की कुछ न कुछ मात्रा होती है

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