भारत की आजादी में महात्मा गांधी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। जिस प्रकार गांधी जी ने देष के एक बहुत बड़े वर्ग को एक सूत्र में पिरोये रखा और उनके समर्थन में भारत की आबादी की एक बहुत बड़ा हिस्सा उनके साथ था, यह कोई छोटी बात नहीं। यदि उस समय की कल्पना की जाये जब ब्रिटिष साम्राज्य विष्व में सबसे षक्तिषाली माना जाता था। अंग्रेजी हूकूमत ने प्रकार भारत के साथ-साथ सारी दुनियां में अपनी जड़ें फैलाई हुई थी और अपने तानाषाही रवैये के कारण भारतवासियों का तरह-तरह से षोशण कर रही थी और उन पर अत्याचार कर रही थी। भारत अनेकों वर्शों की गुलामी के कारण, अषिक्षा, भूख और गरीबी के कारण यहां के लोग चाहकर भी कुछ न कर पा रहे थे। 1857 की सषस्त्र क्रान्ति के नाकामयाब होने के बाद यह तो स्पश्ट ही था कि अंग्रेजों से सीधे लड़कर भारत को आजाद करा पाना अत्यन्त ही कठिन कार्य था, जिसके अनेकों कारण थे, जिसमें सबसे बड़ा कारण यहां के लोगों में एकता का न होना और अपने स्वार्थ को ऊपर रखकर अंग्रेजों का साथ देते हुए अपने ही लोगों को गुलाम बनाये रखने में सहायक होना। इसलिए भारत को अंग्रेजों से आजाद करना अत्यन्त ही कठिन था क्योंकि कहीं न कहीं स्वयं भारत का वह वर्ग जो समृद्वों में आता था, जिसमें राजा, जमीदार और ऊंचे पदों पर बैठे भारतीय अधिकारी ही भारत की आजादी का सबसे बड़ा रोड़ा थे।
भारत की आजादी में मुख्यतः दो विचारधाराओं की प्रमुखता थी एक तो सषस्त्र क्रान्ति के समर्थक थे जिन्हें गरम दल कहा जाता था जिसमें सुभाश चन्द्र बोस, चन्द्रषेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव और अनेकों क्रान्तिकारियों का नाम आता है वहीं दूसरी ओर गांधी जी का सत्य और अहिंसा का मार्ग जो नरम दल कहा जाता था।
गांधी जी का मार्ग लोगों को स्वयं को बदलने पर आधारित था। जिसमें हिंसा के लिए कोई स्थान न था। वास्तव में सत्य और अहिंसा का मार्ग जो गांधी जी ने दिखाया था, वह उनसे पहले से ही भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है परन्तु उसे वास्तविक धरातल पर लाने के लिए जो कार्य गांधी जी किये वह वाकई बहुत सरल न थे। एक ऐसे माहौल में सत्य, अहिंसा, षिक्षा, स्वच्छता और स्त्रियों की आजादी के विशय में बात करना, जब भारत का एक बहुत बड़ा वर्ग असन्तोश की आग में जल रहा हो, अंग्रेजों के अत्याचारों से तंग भारतीय, जल्दी से जल्दी उनसे मुक्त होकर आजादी पाना चाहते हों, ऐसे समय में अहिंसा और सदाचार की ताकत से अंग्रेजों का मन बदल देने की बात कुछ अजीब सी जान पड़ती है लेकिन यदि इस बात को गांधी जी के नजर से देखा जाये तो उन्हें महात्मा बनाती है, तो कुछ भी गलत न दिखेगा।
गांधी जी के व्यक्तित्व से हम आज बहुत कुछ सीख सकते हैं जैसे अपनी गलतियों को स्वीकार करना और उन्हें सुधारने के लिए सदैव प्रयत्नषील रहना। जो आपको सही लगता है उसे बिना डरे, डटे रहकर पूर्ण करना। निस्वार्थ भाव से निर्धन लोंगों की सेवा करना और सदाचार युक्त, हिंसा मुक्त जीवन जीना। गांधी जी का पूरा जीवन जीयो और जीने दो का संदेष देता है।
गांधी जी गौ सेवा पर पूरा ध्यान देते थे लेकिन उन्होंने कभी भी कहीं भी ऐसा न कहा कि गौरक्षा के लिए किसी इंसान के साथ हिंसा की जाये। आत्मनिर्भर भारत का संकल्प सर्वप्रथम गांधी जी ने ही उठाया और स्वदेषी अपनाओ का नारा देषवासियों को दिया।
गांधी जी की वह सभी बातें वर्तमान समय में भी पूरी दुनियां के लिए बहुमूल्य हैं, यदि सभी लोग उन बातों को सच्चे हदय से स्वीकार कर लें तो समाज में षांति और सद्भावना का आना सुनिष्चित है। लेकिन गांधी जी को न तो उस समय के लोग समझ पाये और न ही आज समझ सके हैं। इसलिए कुछ लोगों के लिए मात्र 2 अक्टूबर का दिन मात्र एक अवकाष दिवस है और उनके बारे में अच्छी-अच्छी बातें कर फेसबुक में पोस्ट करना और भाशणबाजी का सुख प्राप्त करना मात्र रह गया है लेकिन वास्तविक धरातल पर हर कोई आज गांधी जी के संदेषों को मुंह चिढ़ाता नजर आता है।
भारत की आजादी में महात्मा गांधी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। जिस प्रकार गांधी जी ने देष के एक बहुत बड़े वर्ग को एक सूत्र में पिरोये रखा और उनके समर्थन में भारत की आबादी की एक बहुत बड़ा हिस्सा उनके साथ था, यह कोई छोटी बात नहीं। यदि उस समय की कल्पना की जाये जब ब्रिटिष साम्राज्य विष्व में सबसे षक्तिषाली माना जाता था। अंग्रेजी हूकूमत ने प्रकार भारत के साथ-साथ सारी दुनियां में अपनी जड़ें फैलाई हुई थी और अपने तानाषाही रवैये के कारण भारतवासियों का तरह-तरह से षोशण कर रही थी और उन पर अत्याचार कर रही थी। भारत अनेकों वर्शों की गुलामी के कारण, अषिक्षा, भूख और गरीबी के कारण यहां के लोग चाहकर भी कुछ न कर पा रहे थे। 1857 की सषस्त्र क्रान्ति के नाकामयाब होने के बाद यह तो स्पश्ट ही था कि अंग्रेजों से सीधे लड़कर भारत को आजाद करा पाना अत्यन्त ही कठिन कार्य था, जिसके अनेकों कारण थे, जिसमें सबसे बड़ा कारण यहां के लोगों में एकता का न होना और अपने स्वार्थ को ऊपर रखकर अंग्रेजों का साथ देते हुए अपने ही लोगों को गुलाम बनाये रखने में सहायक होना। इसलिए भारत को अंग्रेजों से आजाद करना अत्यन्त ही कठिन था क्योंकि कहीं न कहीं स्वयं भारत का वह वर्ग जो समृद्वों में आता था, जिसमें राजा, जमीदार और ऊंचे पदों पर बैठे भारतीय अधिकारी ही भारत की आजादी का सबसे बड़ा रोड़ा थे।
भारत की आजादी में मुख्यतः दो विचारधाराओं की प्रमुखता थी एक तो सषस्त्र क्रान्ति के समर्थक थे जिन्हें गरम दल कहा जाता था जिसमें सुभाश चन्द्र बोस, चन्द्रषेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव और अनेकों क्रान्तिकारियों का नाम आता है वहीं दूसरी ओर गांधी जी का सत्य और अहिंसा का मार्ग जो नरम दल कहा जाता था।
गांधी जी का मार्ग लोगों को स्वयं को बदलने पर आधारित था। जिसमें हिंसा के लिए कोई स्थान न था। वास्तव में सत्य और अहिंसा का मार्ग जो गांधी जी ने दिखाया था, वह उनसे पहले से ही भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है परन्तु उसे वास्तविक धरातल पर लाने के लिए जो कार्य गांधी जी किये वह वाकई बहुत सरल न थे। एक ऐसे माहौल में सत्य, अहिंसा, षिक्षा, स्वच्छता और स्त्रियों की आजादी के विशय में बात करना, जब भारत का एक बहुत बड़ा वर्ग असन्तोश की आग में जल रहा हो, अंग्रेजों के अत्याचारों से तंग भारतीय, जल्दी से जल्दी उनसे मुक्त होकर आजादी पाना चाहते हों, ऐसे समय में अहिंसा और सदाचार की ताकत से अंग्रेजों का मन बदल देने की बात कुछ अजीब सी जान पड़ती है लेकिन यदि इस बात को गांधी जी के नजर से देखा जाये तो उन्हें महात्मा बनाती है, तो कुछ भी गलत न दिखेगा।
गांधी जी के व्यक्तित्व से हम आज बहुत कुछ सीख सकते हैं जैसे अपनी गलतियों को स्वीकार करना और उन्हें सुधारने के लिए सदैव प्रयत्नषील रहना। जो आपको सही लगता है उसे बिना डरे, डटे रहकर पूर्ण करना। निस्वार्थ भाव से निर्धन लोंगों की सेवा करना और सदाचार युक्त, हिंसा मुक्त जीवन जीना। गांधी जी का पूरा जीवन जीयो और जीने दो का संदेष देता है।
गांधी जी गौ सेवा पर पूरा ध्यान देते थे लेकिन उन्होंने कभी भी कहीं भी ऐसा न कहा कि गौरक्षा के लिए किसी इंसान के साथ हिंसा की जाये। आत्मनिर्भर भारत का संकल्प सर्वप्रथम गांधी जी ने ही उठाया और स्वदेषी अपनाओ का नारा देषवासियों को दिया।
गांधी जी की वह सभी बातें वर्तमान समय में भी पूरी दुनियां के लिए बहुमूल्य हैं, यदि सभी लोग उन बातों को सच्चे हदय से स्वीकार कर लें तो समाज में षांति और सद्भावना का आना सुनिष्चित है। लेकिन गांधी जी को न तो उस समय के लोग समझ पाये और न ही आज समझ सके हैं। इसलिए कुछ लोगों के लिए मात्र 2 अक्टूबर का दिन मात्र एक अवकाष दिवस है और उनके बारे में अच्छी-अच्छी बातें कर फेसबुक में पोस्ट करना और भाशणबाजी का सुख प्राप्त करना मात्र रह गया है लेकिन वास्तविक धरातल पर हर कोई आज गांधी जी के संदेषों को मुंह चिढ़ाता नजर आता है।