वर्तमान समय में जनसंख्या वृद्वि विष्व के लिए सबसे बड़ी समस्या है। यह समस्या तब और भी अधिक विकराल बन जाती है, जब किसी देष की अर्थव्यवस्था विकासषीलता की स्थिति में होती है। संसाधन कम एवं उपभोक्ता की अधिकता से महंगाई का बढ़ना जारी रहता है। जिसके कारण निचले वर्ग के लोगों को भूखमरी जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। आज भी भारत में लाखों परिवार ऐसे हैं जो सारा दिन मेहनत मष्क्कत करने के बावजूद भी दो समय का खाना ठीक प्रकार से नहीं खा पाते। गरीबी की स्थिति इतनी भयावह है। रोटी, कपड़ा, मकान, षिक्षा और स्वास्थ्य जैसी जरूरी चीजें इन लोगों की पहुंच से बाहर हैं। जिस कारण गरीब की स्थिति बद से बदतर ही होती जाती है। जिसका प्रमुख कारण है, षिक्षा व्यवस्था का सही न होना। आज भारत में ही निर्धन और मध्यम वर्ग के लोगों के बच्चों के षिक्षा का स्तर अत्यन्त ही निम्न है। वास्तव में षिक्षा का क्या उद्देष्य है? इस पर हमें ध्यान देने की आवष्यकता है। कुछ अपवादों केा छोड़कर एक षिक्षित व्यक्ति का आई०क्यू० (बौद्विक क्षमता) किसी कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ व्यक्ति से अधिक होता है। जिस कारण अधिक बौद्विक कार्यक्षमता वाले लोग निर्धन वर्ग के लोगों से अनेकों क्षेत्रों में बाजी मार ले जाते हैं। षिक्षा और अच्छी बौद्विक क्षमता व्यक्ति को इस योग्य बनाती है कि वह इस बात को भली प्रकार से समझ सकता है कि उसे किस प्रकार धन का उपार्जन करना है जिससे वह स्वयं के लिए और अपने परिवार के लिए वह सभी संसाधन जुटा सके जो उसके जीवन के लिए आवष्यक है।
आज के समय में आम लोगों में यह धारणा है कि किसी भी प्रकार कोई छोटी नौकरी करके जीवन यापन किया जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति ऑफिस में बैठकर आरामदायक स्थिति में कार्य करना चाहता है। चाहे बदले में वह अत्यन्त ही कम वेतन में कार्य करने को मजबूर हो जाता है और अनेकों बारी स्थिति इस प्रकार की आ जाती है, कि उक्त छोटे वेतन में उनका भरण पोशण होना कठिन हो जाता है। बढ़ती महंगाई के बोझ तले छोटी नौकरी करने वालों का वेतन उस गति से नहीं बढ़ता, जितना उन्हें बढ़ना चाहिए।
इस समस्या का एकमात्र उपाय है, स्वरोजगार। स्वयं का रोजगार चाहे जितना भी छोटा क्यों न हो। यदि व्यक्ति निम्न या मध्यम वर्ग का है और उसकी षिक्षा सामान्य है। तो उसे अवष्य ही स्वरोजगार की ओर बढ़ना चाहिए क्योंकि स्वरोजगार ही एक ऐसा मार्ग है जिसकी सहायता से व्यक्ति अपनी मेहनत के अनुसार धन अर्जित कर सकता है। बढ़ती जनसंख्या के कारण होने वाली सबसे बड़ी परेषानी खाद्य पदार्थों का बढ़ता हुआ मूल्य है। जिसका एकमात्र उपाय है कि देष में खेती के कार्य को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। सरकार की ओर से किसानों के हित में अभी बहुत से कार्य किये जाने षेश हैं, यदि देष की सरकार इस बात को ध्यान में रखे कि हमारे देष के लिए जितना उपयोगी उद्योगपति हैं, उससे कहीं अधिक हमारे अन्नदाता भी हैं क्योंकि अन्न के बिना जीवन का निर्वाह हो पाना असंभव है। यदि देखा जाये तो आज विष्व में खेती और किसानी से बड़ा उद्योग और कोई नहीं। आज भी विष्व में ऐसे अनेकों देष हैं जहां अन्न का एक दाना भी नहीं उगता। कहीं भीशण रेगिस्तान है तो कहीं बर्फ के पहाड़। भारतीय भूमि में यदि खेती को बढ़ावा दिया जाये तो अति जनसंख्या के होने वाले दुश्प्रभावों से बचा जा सकता है। यहां का किसान अपने देषवासियों को तो अन्न की आपूर्ति कर ही सकता है इसके साथ ही साथ विदेषों में भी अपने झंडे गाड़ सकता है और विदेषी मुद्रा प्राप्त कर सकता है।
सरकार को जनसंख्या को लेकर भी कड़े कानून बनाने होंगे और उसे सही प्रकार से लागू भी करने होगे। किसानों के हितों पर यदि सरकार ध्यान देती है तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारा देष फिर से सोने की चिड़िया बन जायेगा और वह सोना कुछ और नहीं, मात्र वही है जो किसान अपनी मेहनत के द्वारा खेतों में उगाता है, जिससे सभी को जीवन मिलता है। पषुपालन, मत्स्य पालन और इस प्रकार के अनेकों ऐसे और भी उद्योग हैं जो कृशि के क्षेत्र से ही जुड़े हुए हैं जिन पर बहुत सा कार्य किया जाना आवष्यक है और किसानों को इस उद्योगों की ओर जागरूक किया जाना आवष्यक है। तभी देष और देषवासियों का विकास संभव होगा।