यह एक मशहूर कहावत है कि औरत क्या चाहती है, ये तो उसको बनाने वाला ब्रह्मा भी नहीं जान पाये यदि देखा जाये तो यह मात्र स्त्री की निंदा करने वालों की अतिष्योक्ति भर है। कुछ अंधविश्वासों व आडम्बरों को हटा दिया जाये तो भारत में अनेकों ऐसे पर्व हैं जो वर्तमान समय के लिए भी अत्यन्त प्रेरणादायक हैं। यह आवष्यक नहीं है कि आज का व्यक्ति भी उन पुरानी मान्यताओं को मानते हुए ही उन पर्वों को मनाये और उनकी निंदा करते हुए उनका खण्डन कर दे। यह दोनों ही स्थितियां खराब हैं। यदि इन पर्वों को हम आधुनिक नजरिये से देख और समझकर भी मनाते हैं तो इनका एक नया ही आयाम सामने आता है।
करवाचौथ के पर्व को लेते हैं कि यह पर्व क्यों और कैसे मनाया जाता है, इस बात का ज्ञान तो सभी को है कि इस दिन स्त्रियां व्रत रखती हैं और ईश्वर से अपने पति की लम्बी आयु की कामना करती हैं। जिसमें प्राचीन समय की सावित्री की कहानी अत्यन्त प्रसिद्ध है कि वह किस प्रकार अपने पति की मृत्यु हो जाने के उपरान्त यमराज से अपनी पति को पुर्नजीवित करने को विवष कर देती है। जिसमें सावित्री का सतीत्व अत्यन्त ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सतीत्व से अभिप्राय किसी स्त्री का अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरूश को काम भावना की दृश्टि से न देखना और न ही मन में कभी किसी पर-पुरूश का इस दृश्टि से ख्याल भी करना। यह सतीत्व की बात मात्र स्त्रियों पर ही लागू नहीं होती अपितु यह बात पुरूशों पर लागू होती हैं, एक पत्नी की धारणा का एकमात्र यही सार है कि व्यक्ति कामग्रस्त होकर अन्य स्त्रियों की आकृर्शित न हो। इसका सर्वश्रेश्ठ उदाहरण हिन्दू धर्म के अवतार श्री राम को कह सकते हैं, यदि लक्ष्मण की बात करें तो वह भी उन्हीं पुरूशों में आते हैं जिनमें जबरदस्त सतीत्व अर्थात एक पत्नीव्रत की भावना विद्यमान थी। जो किसी शक्ति से कम नहीं।
इन बातों को यदि हम आज की नजर से देखें तो कई लोग इन बातों को मजाक उड़ाते हुए कहते हैं कि यह सब कहानियां झूठ और मनगढंत हैं। आखिर किस प्रकार कोई स्त्री मात्र भूखे रहकर अपने पति की आयु लम्बी कर सकती है या फिर मृत व्यक्ति को यमराज से वापिस ला सकती है, इत्यादि। लेकिन यदि हम इन बातों के बारे में सोचें तो पत्नी ईष्वर से अपने पति की लम्बी आयु की कामना करती है, इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक पति की वास्तव में आयु लम्बी ही हो जाती है। हम ईष्वर से अनेकों प्रकार की कामनाएं करते हैं जो हमारे जीवन को सकारात्मकता से भर देता है। इस प्रकार के त्यौहार भी पति पत्नी के वैवाहिक जीवन को प्रेम और सकारात्मकता से भर देते हैं।
इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि कोई स्त्री सारा दिन कुछ नहीं खाती और अपने पति की आयु की लम्बी कामना करती है। यहां देखने वाली बात यह है कि स्त्री के अपने पति के प्रति कितना प्रेम और स्नेह है, जो उसे यह करने के लिए प्रेरित करता है। हिन्दू धर्म के अलावा अन्य किसी धर्म में करवाचौथ नहीं मनाया जाता। तो इसका अर्थ यह नहीं कि उक्त स्त्रियां अपने पति से प्रेम नहीं करती। लेकिन वह सब स्त्रियां भी इस त्यौहार को देखकर इसमें छिपे रहस्य को समझ जाती हैं कि वास्तव में यह ईष्वर से अपने पति की लम्बी आयु की कामना करना कहीं भी गलत नहीं। आखिर वह कौन स्त्री या पुरूश होगा जो अपने वैवाहिक जीवन को सुखी और खुषहाल न देखना चाहेगा?
इन सब बातों के अलावा इस दिन स्त्रियों को अपना मनपसंद कार्य भी करने को मिल जाता है और वह है, संजना, संवरना, मेहंदी लगाना, नये-नये कपड़े पहनकर फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाटसएप्प पर अपनी सहेलियों और रिष्तेदारों को फोटो षेयर करना। इसका भी अपना ही मजा है। इस पर कुछ पंक्तियां कहना चाहूंगा -
आज की आधुनिक नारी को न समझो बेचारी,
वो तो है हमेषा से ही है अपने पतियों पर भारी।
थोड़ी सी संस्कारी, थोड़ी अत्याचारी,
टेढ़े पतियों की कर देती है ये सुधारी।
न समझो इनको अबला नारी,
वे तो हैं सौ-सौ पर भारी।