जिस प्रकार आज समाज का वैष्वीकरण हो रहा है और समाज में सूचनाओं का आदान-प्रदान अब पहले की भांति नहीं रह गया है, जहां खबरें मात्र समाचार पत्रों और टेलीविजन के माध्यम से प्रसारित हुआ करती थी। इंटरनेट के इस युग में अनेकों सोषल साईट्स के माध्यम से लाखों-करोड़ों लोग आपस में जुड़े हुए हैं। जो आपस में इस नवीनतम संचार के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। इन सोषल साईट्स को बनाने का मुख्यतः उद्देष्य तो यही था कि लोग जो एक समय में अत्यन्त दूरी में हैं, आपस में संवाद स्थापित कर सकें किन्तु समय के साथ इन साधनों का उपयोग मात्र संवाद स्थापित करना ही नहीं रह गया है अपितु इनके माध्यम से लोग समाज में हो रही घटनाओं और अन्य देष-विदेष में हो रही हलचलों पर अपनी राय व्यक्त करने लगे हैं। यहां तक तो सब ठीक था, लेकिन वास्तविक समस्या तब सामने आ गई, जब सोषल साईट्स को प्रयोग करने वाला प्रत्येक यूजर अपने आप को रिपोर्टर, हर विशयों में निपुण और स्वयं को जज ही समझने लगा और प्रत्येक छोटी-बड़ी बातों पर अपनी राय व्यक्त करने लगा, जिनके विशय में अधिकतर उन्हें कोई ज्ञान ही नहीं होता। यह बात इसे और अधिक खतरनाक बना देती है, जब इसे सुनने, समझने और इस पर पुनः अपनी राय देने वाले लोग भी इसी प्रकार के निकल आते हैं। ऐसी स्थिति समाज में भ्रामक खबरों को फैलने में सहायता करती है। जिससे कई बार अनेक वर्गों के बीच भ्रामक खबरों के कारण द्वन्द की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसके अनेकों उदाहरण हमारे सामने हैं, जो अनेकों बार हमारे सामने आये हैं।
भ्रामक खबरों को फैलाने का कार्य मुख्यतः दो प्रकार के लोग करते हैं-
पहले तो वह जो सोच-समझकर झूठी बातों को सोषल मीडिया में फैलाते हैं, जिनके कहीं न कहीं उनके स्वार्थ छिपे होते हैं, वह स्वार्थ राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक या व्यक्तिगत हो सकते हैं। ऐसे लोग समाज के लिए किसी जहरीले सर्प से कम नहीं हैं। जो बड़ी ही चालाकी से अपनी षिकार की कमजोरी को भांप कर धीरे-धीरे उसकी ओर आते हैं और अपने विशैले दंतों को गढ़ाकर अपने जहर के द्वारा उन्हें अपना ग्रास बना लेते हैं। ठीक उसी प्रकार इस कोटी के लोग अपनी विशैली भ्रामक बातों के द्वारा अन्य लोगों को आपस में लड़वाकर स्वयं उसका लाभ उठाते हैं, यहां यह आवष्यक नहीं कि वह लाभ उन्हें प्रत्यक्ष ही मिले, अनेकों बार कई लोग मात्र अपनी मानसिक संतुश्टि के लिए भी ऐसा कृत्य करने से नहीं चूकते। जो कार्य वह वास्तविक जीवन में नहीं कर पाते, वह अक्सर साईबर दुनियां में करते हैं, जहां उन्हें कोई देख नहीं पाता, किन्तु किसी न किसी की हानि तो होती ही है, विशैली भाशाओं द्वारा हिंसा तो होती ही है, जिसका स्वाद इस प्रकार के लोग जानबूझकर लेते हैं, जो किसी घातक मनोरोग के ही लक्षण हैं।
दूसरे वर्ग में वह लोग आते हैं, जो सोषल मीडिया में किसी समाचार को पढ़ते हैं या किसी वीडियो या चित्र के माध्यम से देखते हैं और उसे बिना किसी जांच पड़ताल के मात्र भावनाओं के आधार पर सत्य मान लेते हैं और बिना ज्ञान के मात्र भावुक होकर इस प्रकार की सूचनाओं को आगे प्रसारित करते जाते हैं, और अन्य लोगों से मौखिक वाद-विवाद करते रहते है, यह सूचना क्रमबद्ध इसी प्रकार आगे बढ़ती रहती है और अन्य लोग इसी प्रकार अंधविष्वास के आधार पर सूचनाओं को देखकर प्रतिक्रिया करते जाते हैं। जिन्हें इस बात का ज्ञान भी नहीं होता कि इन्हीं सबके इन वाद-विवादों को वह पहली श्रेणी वाला व्यक्ति बड़े आराम से देखकर उनकी मूर्खता पर हंस रहा होता है कि वह अपने उद्देष्य में सफल हुआ।
झूठ का मनोविज्ञान - जर्मनी के तानाषाह हिटलर को कौन नहीं जानता, वह एक ऐसा तानाषाह था जिसके कारण न जाने कितने लोग युद्ध की आग में जले, अनेकों पुरूश, स्त्रियों, बुजुर्ग और बच्चों को अत्यन्त ही यातनापूर्ण स्थिति से गुजरते हुए अपने प्राण गंवाने पड़े। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि एक आम से छोटे कद के आदमी ने यह सब कैसे कर दिया कि मात्र उसके कहने भर से लाखों लोग उसके अनुयायी बन गये और अनेकों बेगुनाह लोगों का खून बहाने को तैयार हो गये?
अपने एक वक्तव्य में हिटलर ने कहा था कि "यदि आप जोर से अनेकों बार एक झूठ को कहते हैं, तो एक समय ऐसा आता है, जब लोग उसे सच मानने लगते हैं।" वास्तव में यही झूठ का मनोविज्ञान है।
सोषल मीडिया में या इंटरनेट के माध्यम से, समाचार एजेंसियों द्वारा यदि कोई झूठ बार-बार किसी के सामने प्रसारित किया जाये तो लोगों को वह बात सच लगने लगती है। किसी समय समाचार पढ़ने वाले लोग बड़े आराम से बैठकर समाचार पढ़ा करते थे, लेकिन एक वह भी समय आया जब न्यूज एंकर जोर-जोर से चिल्ला-चिल्लाकर और बार-बार एक ही बात बड़े ही भड़काऊ अंदाज में टीवी न्यूज में देने लगे। उन्हें इस प्रकार न्यूज पढ़ने की क्या आवष्यकता आ गई? यह सोचने पर सदैव हिटलर की ही बात याद आती है, कि वह किस प्रकार लोगों के मस्तिश्क को नियंत्रण करता था। बार-बार बातों को दोहराकर, चिल्लाकर और लोगों की भावनाओं को भड़काकर।
यही तरीका आज भी कुछ कथित लोग समाज में चला रहे हैं, जिसके जाल में अनेकों पढ़े-लिखे और समझदार लोग भी फंस जाते हैं। जो कुछ और नहीं, बस आपके दिमाग के साथ खेलने वाले शातिर हिटलर ही हैं। जिसके इरादे अत्यन्त जहरीले और खतरनाक हैं। जो तब भी थे और अब भी हैं......