अमेरिका ने गुरुवार देर रात अब तक का सबसे बड़ा नॉन-न्यूक्लियर बम अफगानिस्तान में गिरा दिया. MOAB नाम के इस बम को ‘मदर ऑफ ऑल बॉम्ब्स’ कहा जाता है. ये बम ISIS के आतंकियों पर गिराने का दावा किया है, लेकिन अभी यह साफ नहीं हो सका है कि इससे आतंकियों को कितना नुकसान हुआ है. शुरुआती जानकारी के मुताबिक, इस हमले में केरल से गए 22 ISIS लड़ाके संभवत: मार दिए गए हैं. इस बम को पहली बार फील्ड पर इस्तेमाल किया गया है और डॉनल्ड ट्रंप इसे आतंक से निपटने की नई विदेश नीति बता रहे हैं.
MOAB और कल हुए हमले के बारे में मोटा-माटी जानकारी ये रहीः
1. कहां इस्तेमाल हुआ ?
ये बम अफगानिस्तान में नंगरहर प्रांत के अछिन में एक टनल कॉम्प्लेक्स पर गिराया गया. टनल कॉम्प्लेक्स का मतलब उन गुफाओं से है जिनमें अफगान आतंकी अमेरिकी एयर फोर्स से बचने के लिए छुपते हैं. फिलहाल ये नहीं मालूम नहीं चला है कि हमले में कितने आतंकी मारे गए हैं. लेकिन बेकसूरों पर होने वाले संभावित असर को देखते हुए दुनिया में कई तरफ से इसकी आलोचना हो रही है.
2. ये बम था कौन सा?
बम का पूरा नाम ‘GBU43/B Massive Ordnance Air Blast (MOAB)’ है. जब ये बनाया गया था तब MOAB से कुछ लोगों ने ‘मदर ऑफ ऑल बॉम्ब्स’ गढ़ लिया और फिर यही इसका ‘निक नेम’ पड़ गया. ये दुनिया का सबसे बड़ा कनवेंशनल बम है. कनवेंशनल माने जिसमें न्यूक्लियर एक्सप्लोज़िव इस्तेमाल न किया गया हो. इस बम में 8 टन से ज़्यादा मिलिट्री ग्रेड बारूद होता है.
3. दूसरों से कैसे अलग है?
इस बम की सबसे नायाब चीज़ इसका आकार ही है. वजन होता है करीब 10 टन. बम गिराने के लिए उसे एक कार्गो प्लेन में ले जाते हैं. जिस इलाके पर बम गिराना होता है, वहां जाकर प्लेन के कार्गो होल्ड का दरवाज़ा खोल दिया जाता है और फिर ये बम फिसल कर नीचे गिर जाता है. ये बम ज़मीन से कुछ ऊपर हवा में फटता है. इससे हवा में एक शॉक वेव बनती है जो काफी दूर तक जाकर नुकसान पहुंचा सकती है. कम से कम डेढ़ किलोमीटर के रेडियस में इसका जबरदस्त असर रहता है.
4. बुश ने बनाया, ट्रंप ने चलाया
MOAB जॉर्ज बुश के समय में शुरू हुआ था. इस प्रोग्राम की कीमत 2100 करोड़ से ज़्यादा थी. एक MOAB बम की लागत 110 करोड़ पड़ती है. 2003 में इसका पहला टेस्ट फ्लोरिडा में हुआ था. डिस्कवरी और नेश्नल ज्यॉग्रफी जैसे चैनलों ने MOAB प्रोग्राम भी बनाए हैं. फिलहाल ये साफ नहीं है कि ट्रंप ने इसके इसके इस्तेमाल की इजाजत दी कि नहीं. ट्रंप ने बस इतना कहा कि मैंने अपनी फौज को अथॉरिटी दी है. ट्रंप ने MOAB के इस्तेमाल को एक ‘कामयाब मिशन’ बताया.
5. इस्तेमाल की ज़रूरत क्यों पड़ी ?
अफगानिस्तान का पूरा इलाका वहां की सरकार के काबू में नहीं है. इसके लिए आतंकी गुटों से लगातार लड़ाई चल रही है. नंगरहर में भी लड़ाई चल रही है. अफगान फौज को अछिन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था क्योंकि यहां ISIS के आतंकी गुफांओं की आड़ लेकर हमला कर रहे थे. इसलिए अफगान फौज पीछे हटी और अमेरिका से हवाई हमला करने को कहा गया. अफगानिस्तान की अपनी मुकम्मल एयरफोर्स नहीं है. इसलिए हवाई हमले के लिए वो अमेरिकी मदद पर आश्रित रहते हैं.
MOAB के पहले टेस्ट की फुटेज यहां देखेंः
लोग नाखुश भी हैं
अमेरिकी सेना और अफगान सरकार दोनों का कहना है कि हमला अफगान सेना के कहने पर हुआ और अफगान सरकार को भरोसे में लेकर हुआ. लेकिन अफगानिस्तान में कई लोग इस बात से नाखुश हैं. उनका कहना है कि अमेरिका अफगानिस्तान को अपने हथियारों के लिए ट्रायल ग्राउंड की तरह इस्तेमाल कर रहा है. सबसे आगे रहे अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई.
I vehemently and in strongest words condemn the dropping of the latest weapon, the largest non-nuclear #bomb, on Afghanistan by US...1/2
Follow@KarzaiH2/2 military. This is not the war on terror but the inhuman and most brutal misuse of our country as testing ground for new and dangerous...
Follow@KarzaiH2/3 weapons. It is upon us,Afghans, to stop the #USA.
अमेरिका के पास हथियारों की कभी कोई कमी नहीं रही. नए हथियार बनाने में भी वो सबसे आगे रहा है. लेकिन उसका इस्तेमाल उसने हमेशा ऐसे दुश्मनों के खिलाफ किया है जो कहीं उसकी टक्कर के नहीं थे. पहला एटम बम जापान पर तब गिराया गया जब वो लड़ाई लगभग हार गया था. अब दुनिया का सबसे बड़ा बम अफगानिस्तान में गुफा में छिपकर बैठे आतंकियों पर गिराया गया है. अमेरिका के लिहाज़ से ये एक कामयाब कदम है. उसने बिना परमाणु बम इस्तेमाल किए एक बहुत बड़े इलाके में नुकसान पहुंचाने का तरीका खोज लिया है. लेकिन बमबारी से खोखले हो चुके एक देश में एक नए और बड़े बम का इस्तेमाल विवादित ही रहेगा.
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