हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं, भारत गांवों का देश है. प्रेमचंद के गांव, हिंदी सिनेमा के गांव और आज की राजनीति के गांव. इन सब का ज़िक्र आते ही सबके दिमाग में तकरीबन एक सी इमेज ही बनती है. मगर हिंदुस्तान में कुछ गांव ऐसे भी हैं जो अलग-अलग वजहों से हिंदुस्तान ही नहीं दुनिया भर में अनोखे हैं.
जहां नाम की जगह सीटी बजाई जाती है
मेघालय का एक खासी गांव है कॉन्गथॉन्ग. हिंदुस्तान का ये गांव अपने एक खास रिवाज के कारण दुनिया भर में जाना जाता है. बाकी दुनिया से थोड़ा सा कटे हुए इस गांव में लोग एक दूसरे को नाम लेकर नहीं बुलाते हैं. यहां किसी को बुलाने के लिए सीटी बजाकर बुलाया जाता है. लोकल लोग इसे सुर कहते हैं.
इस गांव में जब कोई बच्चा पैदा होता है तो उसके नाम की जगह उसके लिए सीटी की एक नई धुन बनाई जाती है. बच्चे को किस सीटी से बुलाया जाएगा ये मां फाइनल करती है. हर सीटी एक मिनट से कुछ कम समय की होती है. और पंछियों की आवाज़ों से मिलती जुलती होती हैं. और तो और किसी के मरने के बाद उसकी वाली सीटी का इस्तेमाल बंद हो जाता है.
हमें लगता है कि नाम की जगह सीटी बजाना एक कठिन तरीका है पर ये गांव जिस जगह पर है वहां की पहाड़ियों में आदमी की आवाज़ दूर तक सुनाई नहीं देती जबकि चिड़ियों का चहचहाना अपनी हाई पिच के कारण दूर तक सुनाई देता है. इस वजह से पुराने समय में लोगों ने एक-दूसरे को पुकारने की जगह सीटी बजाना शुरू किया होगा. आज ये लोग इस चीज़ के इतने आदी हो चुके हैं कि इन्हें यही आसान लगता है. मगर इस बात का जवाब शायद किसी के पास नहीं है कि ये सब लोग इतनी धुने बनाते कैसे हैं और याद कैसे रखते हैं.
संस्कृत भाषी गांव
कर्नाटक का मट्टूर गांव संस्कृत बोलने वाला गांव है. कर्नाटक में तुंग नदी के किनारे बसे इस गांव में लोगों ने सोचा, चलो कुछ अलग करते हैं. तो 1981 में सबने तय कर लिया कि आज से सब संस्कृत में वार्तालाप करेंगे. और ऐसा होने लगा. वैसे इस गांव को दुर्लभ आर्ट फॉर्म गमक के लिए भी जाना जाता है.
एशिया का सबसे साफ सुथरा गांव
भाई, साफ-सुथरे गांव के नाम पर चाहे जो इमेज बना लो ये गांव उससे ज़्यादा साफ है. मतलब बहुतै साफ. मेघालय की खासी पहाड़ी पर ही बसा मावलैन्यॉन्ग गांव इतना साफ है कि सड़कों पर सूखे पत्ते तक नहीं दिखते. 2003 में इस गांव को डिस्कवर मैग्ज़ीन ने एशिया के सबसे साफ गांव का खिताब दिया और उसके बाद से यहां के लोग और जोर शोर से इस खिताब को बचाए रखने में लग गए.
यहां चिड़िया खुदकुशी करने आती हैं
असोम का जतिंगा गांव कई सालों से एक अजीब घटना के कारण चर्चा में रहता है. सितंबर से नवंबर के बीच में यहां दूर से पंछी आते हैं और गांव की दीवारोंं, गाड़ियों से टकराकर खुदकुशी कर लेते हैं. जो बच जाते हैं वो गांव वालों का खाना बन जाते हैं. गांव वाले इसको किसी चुड़ैल का साया मानते थे, मगर इस घटना ने दुनिया भर के वै ज्ञान िकों के साथ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञान ी सालिम अली को भी परेशान कर दिया. लंबे समय तक जांच करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि ये गांव पक्षियों के माइग्रेशन के रास्ते में पड़ता है और करीब 200 मीटर चौड़ा है. कोहरे और कुछ दूसरी वजहों से पक्षी कन्फ्यूज़ हो जाते है और हादसे का शिकार हो जाते हैं.
सबसे खाली गांव
इस गांव का यूनीक होना दुखद है. उत्तराखंड के पौड़ी जिले के इस गांव के जवान लोग नौकरी, रोजगार के लिए दूर चले गए और देखते ही देखते यहां सिर्फ बुज़ुर्ग ही रह गए. आज बांदुल गांव में 62 साल की विमला देवी को छोड़कर और कोई नहीं रहता. इस गांव में आजकल जंगली जानवर आते रहते हैं. तेंदुओं के डर से विमला देवी घर से कम ही निकलती हैं और कहने की ज़रूरत नहीं कि सारे काम खुद ही करती हैं.