मैं सड़क हूँ
सबकी तरक्की का रास्ता मैं बनाती हूँ
सबको मँजिल पर मैं पहुँचाती हूँ
लेकिन मैं वहीं पड़ी रह जाती हूँ
मैं सड़क हूँ...
दौड़े जाते हैं सब मेरे सीने पर
किसी को चिन्ता मेरी नहीं सताती है
सुरक्षित सफ़र हो सबका इसके लिए मैं जज़्बाती हूँ
मैं सड़क हूँ...
जर्जर हालात में भी सबका बोझ ढोती हूँ
कहीं तो मैं इतनी टूटी फूटी हूँ
कि अपने अस्तित्व पर ही रोती हूँ
मैं सड़क हूँ...
हो गए हैं तन में मेरे गड्ढे बड़े बड़े
कहीं उड़ती है धूल तो कहीं भरा है पानी
कोई नहीं करता है मेरी निगहबानी
मैं सड़क हूँ...
मैं बचपन में ऐसी नहीं थी
काली बलखाती मैं बहुत खूबसूरत दिखती थी
लोग भरते थे फर्राटा और मैं उन्हें
झट मँजिल पर पहुँचा देती थी
मैं सड़क हूँ...
मैं जोड़ती हूँ गाँवों को कस्बों से
कस्बों को बड़े शहरों से
मेरे माध्यम से होता बहुत व्यापार है
अच्छी सड़क किसी भी देश की प्रगति का आधार है
मैं सड़क हूँ...
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर