🌹फूल की पत्ती से काट सकती हूँ
मैं हीरे का जिगर।पहाड़ की चोटी से
निकल सकती हूँ मैं बनके नहर।
इतनी कमज़ोर नहीं के अबला कहलाऊँ,
घुट-घुट के जियूँ,या जीते जी मर जाऊँ।
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मैंने तोड़े है बहुत ऋषि मुनियों के ग़रूर,
इतिहास में मिल जाएँगे तुझे सारे सबूत।
मैं चाहूँ तो उलझ जाऊँ,भगीरथ की जटा में,
मैं चाहूँ तो शिव को भी तांडव करादूँ।
मैं चाहूँ तो राम को करादूँ वनवास,
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मैं चाहूँ तो छुड़ा लूँ ,यमराज से भी तुझको।
मैं चाहूँ तो आसमान को सर पे उठालूँ
मैं चाहूँ तो हथेली पे सरसों भी उगालूँ।
मेरी ताकत का नहीं है,तुझको गुमाँन
ले-ले के इम्तेहान , बस होता है पशेमान
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तुझे अपनी चाहत पे अगर है ग़रूर,
तो हुस्न ने किया है मुझे भी मग़रूर।
मेरी गोदी में पलें हैं पीरो - मुग़ाँ,
तुझसे ऊँचा है कहीं, मेरा मुकाम ।
स्वरचित रचना सय्यदा----✒️
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गुमान*- अंदाजा
पशेमान* लज्जित, शर्मिन्दा
ग़रूर * घमंड
मग़रूर* घमंडी
पीरो-मुगाँ * बड़े-बड़े ज्ञानी
मुकाम * स्थान