कथा सुनते मादा गौरैया सोने लगी थी और नर गौरैया भी ऊँघने लगा था ।
"ऊँहहूँ , बडी़ आफत है !दिनभर मजदूरी करके आओ,रात में सोने को मिलता है तो ये बुढ़ऊ भक्क भक्क लगाकर सारी नींद बिगाड़ देते हैं !!"
सत्य शरण ने अपनी पत्नी की तरफ करवट बदलकर उठकर बैठते हुए कहा ।
" अरे जाकर कहिए ना कि हमारी नींद न खराब करें " सत्य शरण की पत्नी ने नींद में भरे हुए कहा और सत्य शरण उठकर बाहर आँगन में आकर वृद्ध पिता से बोला -" आपको रात में ही खाँसना होता है क्या !! सारी नींद खराब कर देते हैं ,, मुझे और सुगना को तो सुबह फिर काम पर जाना होता है ,, !!"
वृद्ध पिता अपने बेटे की उलाहना सुनकर कुछ न बोला पर उसकी आँखों से आँसू ढु़लक पडे़ ।अब खाँसी पर भी किसी का वश चलता है क्या !! उमर हो चली है उसकी ,, जब तक उसने काम किया तब तक बेटे व बहू को काम न करने दिया ये कहकर कि मैं कर रहा हूँ तुम लोगों के तो अभी खेलने-खाने के दिन हैं ,,
पर जब काम छूट गया , उमर हो गई और उसके अशक्त हो जाने के कारण बेटे व बहू को मजदूरी करने जाना पडा़ तो ये नित्य की उलाहनाएं!!उपेक्षा , ये कचोटती तनहाइयां ,, उसे रह रह कर अपनी पत्नी की याद दिला रही थीं ।
बुड्डा मुँह में अपना अँगौछा ठूँस कर खाँसी दबाता रहा और सोचता रहा कि वाह रे बेटा ,,, बाप के खाँसी आ रही थी तो उसे पानी देने के स्थान पर उलाहना दे गया !!
"ये आज किस तरफ हम उडा़न भर रहे हैं ?? मैं इसतरफ तो कभी न आई ??" मादा गौरैया ने भोर में अपने नर गौरैया के साथ आकाश में उडा़न भरते हुए विस्मय से पूछा।
नर गौरैया ने मादा गौरैया की बात का उत्तर न देते हुए उससे कहा -" कल तुमको एक दंपत्ति की कथा सुना रहा था , पर तू सुनते हुए सो गई और मैं सुनाते हुए !!"
"हाँ , मुझे आगे जानने की बहुत उत्सुकता है ,,"मादा गौरैया बोली ।
"ये हवेली देख रही हो ,,,ये उन्हीं दंपत्ति की हवेली है जिनकी मैं तुमको कथा कल सुना रहा था ।"नर गौरैया ने आकाश से नीचे देखते हुए एक हवेली की तरफ इशारा करते हुए कहा ।
"अच्छा !!ये वही हवेली है !!" मादा गौरैया ने पूछा ।
"हाँ इसी हवेली में वो दंपत्ति उस ऊपरी माले के कमरे में रहते हैं ,, लौटते में उन्हें भी दिखाऊँगा " नर गौरैया बोला और दोनों एक घर की छत पर बैठकर विश्राम करने लगे।
" हाँ तो अब आगे बताइए ना क्या हुआ ??" मादा गौरैया ने उत्सुकता से पूछा ।
नर गौरैया आगे बताते हुए जैसे उन्हीं पलों में पहुँच गया --
"ऐसा न कहें मालिक , बेटी है तो क्या हुआ ? है तो आपकी संतान ही ना !!" सुरतिया अपनी साडी़ का पल्लू हाथ से पकड़ कर मुँह में दबाए ,निगाहें झुकाए हुए सूर्य प्रताप भानु से दबे स्वर में बोली ।
"अरे ओ गन्ने का चीभुर !!!"सूर्य प्रताप भानु क्रोध में चीखे कि शिव प्रताप भानु,व दिव्य प्रताप भानु ,दोनों बच्चे सहम कर माँ से सटकर खडे़ हो गए ।
" जी मालिक !!" श्रीधन ने दौड़कर आकर हवेली के प्रथम कक्ष जो कि हवेली में प्रवेश करने पर ही पड़ जाता था, के बाहर से ही कहा ।
ये कक्ष सूर्य प्रताप भानु ने पत्नी दिव्या को अस्थाई रूप से दिया था जब उसे बच्चा होने के दिन नज़दीक आ गया था।
" सुन ,अपनी घरवाली को इतनी भी तमीज न सिखाई तूने कि जब पति अपनी पत्नी से बात कर रहा हो तो नौकर लोग बीच में अपनी टाँग न अडा़ते हैं !!"
"क्षमा कर दें सरकार !" सुरतिया मुँह में पल्लू खोंसे हुए सहम कर बोली ।
"सुरतिया,बाहर आ तनिक !!" श्रीधन क्रोध में बोला और सुरतिया कक्ष से बाहर निकल कर गई।
" तेरी अक्ल क्या घास चरने गई है !! खबरदार जो मालिक के सामने मुँह भी खोला !!" श्रीधन गुर्राया ।
और सुरतिया -"क्षमा कर दें आगे से ऐसा न होगा "कहकर वहाँ से चली गई।
श्रीधन भी हैरान था कि इतने वर्षों तक सुरतिया ने कभी भी मालिक के सामने या उनसे प्रत्यक्ष कुछ न कहा था ,,, आज सुरतिया इतना बोल गई !!
ये सँभव है सुरतिया के रूप में एक माँ की पीडा़ छलक आई थी ।
सुरतिया व श्रीधन के संतान के रूप में एक पुत्र था जिसका जन्म दो वर्ष पूर्व ही हुआ था
पर सुरतिया एक बेटी चाहती थी कि उसके एक बेटी भी हो क्योंकि उसका मानना था कि जब तक आँगन में बेटी न खेले तब तक घर का आँगन सूना ही रहता है ।उसको बेटी हुई थी पर जन्म लेते ही उसका निधन हो गया था ।
सूर्य प्रताप भानु ने क्रोध में भरकर अपने दोनों हाथ अपनी नवजात पुत्री की गर्दन की तरफ बढा़ए जिससे दिव्या काँप उठी पर अगले ही क्षण सूर्य प्रताप भानु क्रोध में भरे हुए कक्ष से बाहर निकल गए ।
दिव्या प्रताप भानु ने राहत की साँस ली पर शिव प्रताप भानु और दिव्य प्रताप भानु दोनों को पिता का ये व्यवहार समझ न आया और दिव्य प्रताप भानु ने मासूमियत से माँ से पूछा --"माँ ,पिताजी हमारी छोटी बहन को मारने जा रहे थे !!"
दिव्या की आँखों से अश्रु ढु़लक गए और उसने बच्चों को बहलाने के लिए कहा -"अब तुम दोनों की बहन आ गई है ना तो इसे अपने खिलौने देने पडे़ंगे !!"
"हाँ तो हमारी बहन है ,वो जो माँगेगी वो उसे दूँगा ,मेरे सारे खिलौने वो ले ले फिर भी कोई बात नहीं ।" शिव प्रताप भानु ने कहा पर छोटा दिव्य प्रताप भानु चुपके से माँ के कक्ष से खिसक लिया और अपने कक्ष में जाकर अपने सारे खिलौने सुरक्षित जगह छुपाने लगा ताकि जब बहन खिलौने माँगने वाली हो तो उससे कह सके कि मेरे तो सारे खिलौने टूट गए सो मैंने फेंक दिए ,दादा से ले लो ।
शिव प्रताप भानु ,दिव्य प्रताप भानु के पीछे ही पीछे आया था और उसे अपने खिलौने छुपाते देख मुस्कुराकर ,ये सोचकर चला गया कि मेरा छोटा भाई कृपण है ।
सुरतिया को तीन महीने का गर्भ था और वो ईश्वर से बेटी ही माँग रही थी ।दिव्या के बेटी होने से वो बहुत निहाल थी और बेटी को नहलाना,धुलाना,वस्त्र बदलना, सब सुरतिया ही करती थी ,दिव्या को कमजोरी आने की वजह से वो पूरी हवेली के औरतों वाले कार्य करने के साथ ही नवजात कन्या की भी पूरी देखभाल करने लगी थी जिससे दिव्या बहुत प्रसन्न थी ।
पर सूर्य प्रताप भानु ने दोबारा अपनी नवजात बेटी पर दृष्टि भी न डाली थी ............शेष अगले भाग में।