राज प्रताप की बात सुनकर शिव प्रताप भानु समझ गया कि इसने मेरी और मानसी की विगत रात्रि की बात सुन ली है तभी इसने अपनी दादी के समक्ष प्रश्न उठाया है वहीं राज प्रताप भानु के मुंह से 'बाबा की तो पूरी तिजोरी जेवरों से भरी पड़ी है' राग प्रताप भानु और उनकी पत्नी दामिनी का मुंह खुला और आंखें फैल गईं ।
दिव्या ने राज प्रताप भानु की बात सुनकर मुंह उठाकर कहा -
" तो ??"
" तो क्या दादी ....... हाय बाबा की पूरी की पूरी तिजोरी जेवरों से भरी पड़ी है , और मेरी मुंह दिखाई में तो जेवरों के नाम पर मुझे कान के बुंदे तक न मिले !! जो विवाह में चढा़व में आया था ,वो तो 'इन्होने' बताया था कि पिताजी ने खरीद कर दिया है .... राज प्रताप ने अपनी बात कहनी प्रारंभ ही की थी कि दामिनी ने अपना रोना प्रारंभ कर दिया और उसे फटकारते हुए मानसी ने उसे मध्य में ही रोककर कहा -" तुम चुप रहो दामिनी बहू ,,, तुम्हें इतना भी न पता कि जब दो लोग बात कर रहे हों तो मध्य में न बोलते हैं और यहां तो तुम्हारे जेठ और दादी सास बात कर रहे हैं ,कुछ तो लिहाज करो !!"
" तुम मध्य में मत बोलो दामिनी मगर मैं तो बोल सकता हूं ना , दादी, बाबा की पूरी की पूरी तिजोरी जेवरों से भरी पड़ी है ये आज मुझे ज्ञात हुआ ,, अभी तक मैं सदा सोचता था कि हमारे बाबा की हजारों एकड़ की जमीन है तो धन के साथ साथ जेवर भी अथाह होंगे ,,, हम मूरख प्राणियों ने हवेली में बंटवारा करा लिया मगर वो जेवरों से भरी तिजोरी का अभी तक बंटवारा न किया बाबा ने !! ऐसे तो पूरी तिजोरी दिव्य चाचा और उनके सपूत दाब लेंगे !!" राग प्रताप भानु ने तैश में भरकर कहा ।
" थोड़ी देर तुम लोग चुप न रह सकते हो !! देख रहे हो कि राज प्रताप भानु कुछ कहना चाह रहा है मां से !!हद है " शिव प्रताप भानु झल्लाकर बोले ।
" हां तो क्या कहना चाहते हो राज प्रताप ??" दिव्या ने पूछा ।
"कहना क्या है दादी ,सीधी सी बात है कि आप बाबा से कहकर उन तिजोरी भर जेवरों का भी बंटवारा करा दें ताकि उन्हीं जेवरों में से शिवन्या के विवाह पर उसे जेवर दिए जा सकें, आगे शिवल्या का भी विवाह होना है तो उसके लिए भी जेवर चाहिए ही होंगे !!"राज प्रताप भानु ने कहा ।
" मैं तुम्हारे बाबा से इस संबंध में कोई बात न करने वाली हूं ये सीधे से व अच्छी भांति समझ लो ,जो दौड़ता है वो मुझे 'इनसे' बात करने के लिए कह देता है !! 'इन्होनें' मेरी आज तक सुनी है या आज ही सुनेंगे !!' ये' करेंगे वही जो 'इनका' मन करेगा तो मैं अपनी जुबान क्यों पटकूं !! जिसे 'इनसे' जो बात करनी है वो स्वयं करे जाकर ।"दिव्या ने दो टूक उत्तर दे दिया और उठकर अपने कक्ष में चली गई।
" कोई बात नहीं ,मैं और राज दादा बाबा से बात करने जाएंगे इस संबंध में ,, क्यों दादा !!" राग प्रताप भानु ने पिता शिव प्रताप भानु से कहते हुए राज प्रताप भानु से कहा ।
" हां क्यों नहीं जाएंगे !! हम कोई बाबा से खैरात थोडे़ ही मांगने जाएंगे, हमारा भी अधिकार है उन जेवरों पर तो पूरे अधिकार से मांगने जाएंगे ।" राज प्रताप भानु ने कहा ।
शिव प्रताप भानु भली भांति जानता था कि पिताजी उन जेवरों का बंटवारा न करेंगे पर उसने सोचा कि बच्चे एक प्रयास कर लें तो क्या हर्ज है ।
रात भर राग प्रताप भानु और दामिनी को स्वप्न में जेवर ही दिखाई दिए , भोर होते ही दामिनी ने राग प्रताप भानु को ठेलना प्रारंभ कर दिया -" जाइए जेठ जी के साथ बाबा से जेवरों के संबंध में बात करने !!"
राग प्रताप भानु , राज प्रताप भानु के साथ सूर्य प्रताप भानु के घर पहुंचा ।
दरवाजा कनक ने खोला और बेमन से -" आओ" कहकर दरवाजे के सामने से हटी और राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु ने कनक के चरण स्पर्श कर घर के बरामदे में जाकर बाबा सूर्य प्रताप भानु के चरण-स्पर्श किए और उनके सामने पड़ी कुर्सियों पर आसीन हो गए।
" क्या बात है , तुम दोनों यहां !!" सूर्य प्रताप भानु ने दोनों को देखकर पूछा ।
" बाबा आप तो जानते ही हैं कि शिवन्या का विवाह तय हो गया है ..... "तो ??" सूर्य प्रताप भानु ने राज प्रताप भानु की बात को मध्य में ही काटकर प्रश्न दाग दिया ।
" बाबा शिवन्या को विवाह में देने के लिए जेवर चाहिए , और जब घर की पूरी तिजोरी जेवरों से भरी है तो ....." तो !! वो तिजोरी क्या लुटाने के लिए जेवरों से भरी है !!! कहना क्या चाहते हो राज प्रताप !! जो अरमान लेकर आए हो वो लिए वापस जाओ अपने घर !!" सूर्य प्रताप भानु फिर बात मध्य में काटकर इस बार गरज कर बोले ।
" बाबा आप ऐसे कैसे कह सकते हैं !! आपने अभी तक उन जेवरों का बंटवारा न किया है तो इसका अर्थ ये नहीं कि उन जेवरों में से आधे जेवरों पर हमारे पिता का अधिकार नहीं !!" राग प्रताप भानु ने अपना मुंह खोला ।
" और कभी उन जेवरों का बंटवारा करूंगा भी नहीं ,कान खोलकर सुन लो और तुम्हारे जिन पिता ने अपना दूत बनाकर तुम दोनों को भेजा है उनको बता दो जाकर कि सूर्य प्रताप भानु का दिमाग अभी सही है , वो पागल न हुए हैं जो जेवरों का बंटवारा कर दें और तुम्हारे पिता उन जेवरों को अपनी तीनों लौंडियों पर लुटा दें !! वो सारे जेवर हमारे बाप-दादाओं के हैं और वो लुटाने के लिए नहीं हैं ,, पहले ही चार डिब्बे नंदिनी को चढ़ा दिए गए वो भूला नहीं हूं मैं !!"सूर्य प्रताप भानु ने तैश में उठकर खड़े होते हुए तेज स्वर में कहा।
" बाबा , अपनी बेटी,बहन को कुछ जेवर उपहार में देना लुटाना तो न होता है !! और आपकी इस बात का क्या मतलब निकालें कि उन तिजोरी भर जेवरों में से हमें हमारा हिस्सा कभी मिलेगा ही नहीं!!"
" अभी अभी कहा तो ,पल्ले न पड़ा !!अब क्या स्टाम्प पेपर पर लिख कर दूं तब समझोगे !!" सूर्य प्रताप भानु ने तल्खी से कहा......... शेष अगले भाग में।