"क्या ! पिताजी ने हमारे साथ इतना पक्षपात किया और मां ने कुछ न कहा क्या !आप भी तो उनके बेटे हो और बडे बेटे हो कोई आपको कहीं से उठा कर तो न लाया गया !!"मानसी ने राज प्रताप भानु को सुलाते हुए कहा ।
" एक तो पिता जी के आगे मां की एक न चलती और दूसरी बात मां को अपने लाड़ले दिव्य के आगे कुछ दिखता ही नहीं है ,मैं चाहे सिर पटक डालूं मगर मां के ह्रदय में दिव्य के आगे मैं कहां आ पाऊंगा ,जब भी कुछ कहो तो मां का एक ही उत्तर होता है -तुम्हारा छोटा भाई है वो ।"
शिव प्रताप भानु ने बेटे राज के सिर पर हाथ फेरते हुए मानसी से कहा ।
ये सब बातें जानकर मानसी का भी मन दिव्या से खट्टा हो चला था ।
अब वो भी उतना ही कार्य करती जितना उसको करना होता फिर अपने कक्ष में चली जाती और निकलती ही नहीं ।
आधा-अधूरा कार्य देखकर जब दिव्या उलाहना लेकर मानसी के कक्ष में जाती तो मानसी कह देती -"मां मुझसे जितना हो पाता है मैं उतना कर देती हूं बाकी मैं न जानती हूं।"
जब मानसी अपने कक्ष से निकलती तो कनक कहने लग जाती -"दीदी शाम का भोजन न बनाया , सफाई भी न की ,सबके सूखे कपड़े तो आप लाती ही न हो ,पूरी दोपहर कपड़े छत पर पडे़ रहते हैं तो उनका रंग खराब जाता है ,,कनक कहती रह जाती और मानसी राज प्रताप भानु को गोद में लेकर अपने कक्ष में चली जाती थी ।
दिव्या मानसी के बदले व्यवहार से परेशान हो रही थी और कनक मानसी को अप्रत्यक्ष खरी खोटी सुनाती -" सारा कार्य पडा़ ही रहता है और लोग अपने कक्ष में ही घुसे रहते हैं,दोपहर को भोजन मिल जाता है पर उसके बाद चूल्हा तरस जाता है जलने को ,, पिताजी रात को भोजन करने आते हैं तो भोजन बना न होने के कारण चीखते हैं,बेचारी मां को सुनना पड़ता है ......मानसी कोई उत्तर न देती ,शिव प्रताप भानु से सब बताती तो वो कहता कि बकने दो , जब तुमसे प्रत्यक्ष कहे तब तुम उसको सुनाने में पीछे न रहना ।
गोपी ने अपने लिए लड़की देखकर विवाह कर लिया था ।सुरतिया को खेतों में कार्य करने का अभ्यास न था तो वो अस्वस्थ रहने लगी थी , श्रीधन उससे बहुत कहता कि मैं अकेले कर लूंगा मगर वो ये कहकर मना कर देती कि काम न करूंगी तो पूरा दिन घर पर पड़े हुए क्या करूंगी !!
इधर धीरे धीरे कर कनक और मानसी के मध्य तनातनी बढ़ती जा रही थी , हद तो तब हो गई जब कनक ने क्रोध मे मानसी के घरवालों के लिए उल्टा-सीधा कह दिया -" दीदी आपकी गलती नहीं है ,आपके घर वालों ने ही आपको सिखाकर भेजा होगा कि जब देवरानी आए तब उतना ही कार्य करना जितना जरूरी हो बाकी देवरानी के लिए छोड़ देना ,छोटी मानसिकता के लोग यही सीख दे सकते हैं ना !!
उस दिन रविवार था और दिव्य भी हवेली में था और शिव प्रताप भानु भी अपने कक्ष से कनक की ये बातें सुन रहा था ।
मानसी के लिए अब पानी सिर से ऊपर जा चुका था , वो क्रोध में भरकर बोली ,--"क्या !क्या कहा तुमने ! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर वालों के बारे में कुछ कहने की !तुम होती कौन हो मेरे घर वालों के बारे में कुछ भी कहने वाली !!"
"जब आप ऐसे व्यवहार करेंगी तो कोई भी कहेगा , शाम को आप भोजन न बनाती हैं,पिताजी आने वाले होते हैं, मां को पाकशाला में जाना पड़ता है और...." .....तो ! तुम्हारे हाथ टूटे हैं या उनमें जंग लगी है या तुम कहीं की मलिका विक्टोरिया हो जो तुम कार्य न कर सकती हो !सारा कार्य मैंने करने का ठेका ले रखा है क्या !!" कनक की बात पूरी होती उसके पहले ही मानसी ने अपनी भडा़स निकाल दी ।
" भाभी ये किस तरह बात कर रही हैं आप कनक से ! " दिव्य अपने कक्ष से उठकर आया और मानसी से बोला ही था कि शिव प्रताप भानु भी अपने कक्ष से उठकर आ गया और मानसी का हाथ पकड़ते हुए बोला -"बस बहुत हो चुका है ,अब और नहीं, जितना हम दबेंगे उतना हमें दबाया जाएगा ,आज तो निर्णय हो जाए ,, "
"ये क्या शोर मचा रखा है तुम लोगों ने !ये घर है या मछली मण्डी!" दिव्या अपने कक्ष से निकल कर बिफर पड़ी।"
शिव प्रताप भानु कुछ न कहकर सीधा हवेली के बाहर गया और सूर्य प्रताप भानु से जाकर बोला -" पिताजी अब मैं और मानसी दिव्य प्रताप भानु और कनक के साथ एक छत के नीचे न रह सकते हैं, आप बंटवारा कर दीजिए ,हमारे चूल्हे अलग हों ताकि हम सुकून के कौर तो तोड़ सकें ! आप भी बहुत समय से सब देख-सुन रहे हैं,कहें भले न ,, और अब मानसी कनक के द्वारा और जलालत न सह सकती है , कनक छोटी है मगर उसको अपनी हदें तक न पता हैं ।"
" मै भी ये सब देखसुन कर बहुत तंग आ गया हूॅं,अब बंटवारा कर दूं वही सही है , दिव्य प्रताप भानु को भी बाहर बुलाओ ,आज ये कार्य भी कर दूं।" सूर्य प्रताप भानु ने अपने दीवान से उठते हुए दिव्यांश प्रताप भानु को गोद में लेते हुए कहा।
तब तक दिव्य प्रताप भानु भी बाहर आ गया था और उसके पीछे ही पीछे कनक भी आकर हवेली के बरामदे के कोने में दुबक कर खड़ी हो गईं।
"दिव्य प्रताप भानु , तुम्हारे शिव दादा का कहना है कि अब वो तुम्हारे साथ एक छत के नीचे न रह सकते हैं तो बंटवारा हो जाए ,तुम क्या कहते हो !"
"हां सही है पिताजी,ये रोज रोज की चिक चिक-झिकझिक से फुर्सत मिले !"दिव्य प्रताप भानु ने कहा ।
"ठीक है "कहते हुए सूर्य प्रताप भानु ने दिव्यांश प्रताप भानु को अपनी गोद से उतार कर कनक की तरफ बढ़ाया और कनक ने उसे गोद में ले लिया ।
सूर्य प्रताप भानु बोले - तो सुनो शिव प्रताप भानु , हवेली का ये बरामदा,बरामदे के आगे ये जितना परिसर पडा़ है वो , मंदिर के पीछे ,आगे और बगल की सारी जमीन से होते हुए उस चोर श्रीधन के लिए जो घर बनवाया था वो तुम्हारे हिस्से में आता है , हवेली के बरामदे से ये जो एक तरफ अंदर ऊपर की ओर सीढियां चढ़कर इस बरामदे के ऊपर जो कक्ष बना है वो तुम्हारे हिस्से में आता है और बाकी जो बचा वो दिव्य प्रताप भानु के हिस्से में आता है।..........शेष अगले भाग में।