सुरतिया श्रीधन को लेकर अस्पताल के बाहर पड़े परिसर के एक वृक्ष के नीचे बैठ गई और रोते हुए बोली - "ये आपने क्या कर दिया ! अब हम कहां रहेंगे ,क्या खाएंगे ! "
" मैं भी जा रहा हूं दिव्य दादा , यहां कब तक बैठा रहूंगा, यहां भी बैठे मालिक काका ने देख लिया तो मुझे भी मार -मारकर अधमरा कर देंगे ,, वाह रे मेरे बाप , जिस डाल पर बैठे उसी को काट दिया !!" कहते हुए गोपी वहां से उठकर चला गया और दिव्य देखता रहा ।
शिव प्रताप भानु अस्पताल से निकल कर हवेली पहुंचा फिर वहां से सूरतपुर के लिए निकल गया ।
रात्रि हो गई थी, नंदिनी अपने घर का कार्य समेट रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई और उसने सोचते हुए दरवाजा खोला कि इस समय कौन आया होगा!!
नंदिनी ने दरवाजा खोला तो सामने शिव प्रताप भानु को खडे़ पाया।
"शिव दादा आप !!" नंदिनी खुशी के आंसू भरकर शिव प्रताप के सीने से लग गई और रोते हुए पूछा - "दादा मां कैसी है ,और ...." अंदर आने देगी या सब दरवाजे पर ही पूछ लेगी !" शिव प्रताप ने कहा ।
"बैठो दादा , मैं इन्हें बुलाती हूॅं।" नंदिनी , शिव प्रताप भानु को भीतर बैठाकर जाने को मुड़ी ही थी कि शिव प्रताप भानु ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए अश्रु पूरित नयनों से कहा -" नंदिनी मैं जल्दी में हूं , ये कुछ रुपए लाया हूॅं, इन्हें रख लो।"
"भैया आपको कैसे पता चला कि मैं मुसीबत में हूं ,और मैं ये रुपए न ले सकती भैया ।" नंदिनी ने रुपए वापस शिव प्रताप भानु के हाथ में पकड़ाते हुए सिर झुका लिया तब तक नवीश भी वहां आ गया ।
" नंदिनी मैं समझ गया तुम ये रुपए क्यों न लेना चाहती हो ! तुमने तो अपनी विदाई के बाद हवेली में कदम भी न रखा , मेरे और दिव्य के विवाह में भी न आईं !! मैं भी क्या मुंह लेकर तुम्हारे पास आता ,, ये रुपए तुम रख लो नंदिनी,ये तुम्हारी भाभी ने अपने पास से तुम्हारे लिए भिजवाते समय मुझसे कहा था कि ननद जी से कहिएगा कि ये रुपए रख लें अन्यथा मुझे बहुत दुख होगा , मेरा बड़ा मन था कि मैं भी आपके साथ ननद जी से मिलने चलती मगर पिताजी इसकी अनुमति न देंगे ,ननद जी से कहिएगा कि वो बुआ बनने वाली हैं, अपने भतीजे,या भतीजी जो भी हो उससे मिलने तो उन्हें आना ही होगा ।"
"दादा , हमारे ऊपर जो विपत्ति पड़ी उसके बारे में आपको कहां से पता चला ?? अवश्य मनिका ने श्रीधन काका को पत्र द्वारा सूचित किया होगा , मेरी दोनों भाभियों को कहिएगा कि उनकी ये ननद उनसे मिलने आएगी जब ईश्वर चाहेगा ।" नंदिनी ने कहा।
"अच्छा नंदिनी अब विदा दो मुझको , मुझे बहुत आवश्यक कार्य से शीघ्र हवेली पहुंचना है ।"
कहकर शिव प्रताप भानु वो रुपए नंदिनी को देकर वापस हो लिया।
रास्ते भर शिव प्रताप भानु के मन में चलता रहा कि श्रीधन काका और उनके परिवार के रहने का प्रबंध कैसे, कहां से करूंगा ,,
ऊपर वाला सब देख रहा था शायद इसीलिए शिव प्रताप भानु को याद आया कि हवेली के सामने की बगल वाले घर के व्यक्ति उपाध्याय जी बहुत समय से अपना घर बेचना चाहते हैं ।शिव प्रताप भानु ने हवेली पहुंचकर उपाध्याय जी से बात की -" उपाध्याय जी मैं आपका घर खरीदना चाहता हूं , जब तक सब लिखा पढ़ी न हो जाती है तब तक आप श्रीधन काका व उनके परिवार को अपने घर रहने दें ,आपकी बहुत मेहरबानी होगी ।"
" शिव बेटा , मुझे कोई आपत्ति नहीं है , श्रीधन का परिवार जब चाहे यहां रहने आ जाए ।" उपाध्याय जी ने कहा और शिव प्रताप भानु अस्पताल जाकर श्रीधन व उसके परिवार को उपाध्याय जी के घर छोड़कर हवेली अपने कक्ष में पहुंचा ।
"आपसे एक बात पूछूं!!" मानसी ने शिव प्रताप भानु के आकर बैठते ही उसके कहा।
"जानता हूं मानसी तुम्हारे मन में बहुत से प्रश्न उमड़ रहे होंगे ,पूछो जो भी पूछना चाहती हो ।" शिव प्रताप भानु ने कहा
मानसी ने भोर में जो हुआ और उसको देखकर उसके मन में जो भी प्रश्न उठा था वो उसने पूछा और शिव प्रताप भानु ने बता दिया पर उसने मानसी से पिता सूर्य प्रताप भानु के द्वारा जमीन के बंटवारे की कोई बात न की ,ये सोचकर कि समय आने पर वो भी बता दूंगा।
समय गुजर रहा था और मानसी अकेले ही पाकशाला संभाल रही थी , कनक एक चम्मच भी उठाकर इधर से उधर न रखती थी और निर्देश देती सो अलग --दीदी मेरी दाल में घी थोडा़ ज्यादा डाला करिए, दीदी ,मेरी सब्जी में हींग का छौंक न लगाया करिए,मुझे हींग का स्वाद न पसंद है ,दीदी ये,दीदी वो .... हारकर मानसी ने दिव्या से कहा -"मां अब तो बहुत समय हो गया है ,कनक का चूल्हा पूजन करवा देना चाहिए मगर दिव्या ने मुस्कुराकर कहा -"तुम्हारी छोटी बहन है कनक , तुम बड़ी हो, कर तो रही हो ना , जरूरी है कि सब पाकशाला में ही घुसें !"
दिव्या की इस बात से मानसी को बहुत अजीब लगा और उसने स्वयं ही कनक से कहा -"कनक, चलो तुम्हारा चूल्हा पूजन करवा दूं ताकि तुम भी मेरी मदद कर सको पाकशाला में ।"
कनक को दिव्य प्रताप भानु ने मनाली में ही सारी बात बता दी थी।
निम्न आर्थिक स्थिति वाले परिवार से आई कनक ने हवेली आकर इतनी धन -दौलत देखी थी और अपने पति द्वारा उसे हजारों एकड़ जमीन के बंटवारे में उसके पति के नाम आई जमीन के बारे मे भी पता चला था और इसके अतिरिक्त उसके पति दिव्य भानु का सरकारी नौकरी में होना ,इस सब वजहों से उसके दिमाग वैसे भी सातवें आसमान पर थे ; उसने मानसी से बहुत ही रूखे स्वर में बहुत अदा के साथ कहा-" दीदी मुझे पाकशाला में पसीना बहाने का अभ्यास न है ,आप करती तो हो !"
" पाकशाला में पसीना बहाने का अभ्यास तो मुझे भी न था कनक , पर फिर भी मैंने किया ना !!सुरतिया काकी के जाने के बाद से हवेली का सारा कार्य मुझे अकेले करना पड़ता है , तुम भी इस हवेली की बहू हो तो तुम्हारा भी कार्य में हाथ बंटाना बनता है ना !"मानसी ने कनक से मुस्कुराकर कहा .........शेष अगले भाग में।