पिता ससुर सूर्य प्रताप भानु के इस निर्णय को सुनकर कनक का मुंह उतर गया और दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु के चेहरों पर भी बारह बज गए ।
सूर्य प्रताप भानु ने आगे राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु से कहा -" अब तुम दोनों अपने घर जाओ और रविवार की संध्या को आना तब बात होगी ।
दोनों हवेली से निकल कर अपने घर आए ।शिवप्रताप भानु ,मानसी,दिव्या , शिवन्या, शिवल्या सब पाकशाला के सामने आंगन में बैठे हुए थे ।
" आ गए तुम दोनों ; तुम दोनों के चेहरे पर खिली मुस्कुराहट बता रही है कि पिताजी ने कोई निर्णय ले लिया है , बताओ क्या हुआ !!" शिव प्रताप भानु ने राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु को देखकर कहा ।
" हां पिताजी ,बाबा ने इस रविवार हवेली के बंटवारे के लिए दिव्य चाचा को बुलवाया है ,उनके आने पर हवेली के बंटवारे की बात होगी और हां आपको भी उपस्थित रहना है ,आज बुधवार है ही तीन दिन बाद हवेली का बंटवारा हो जाएगा ।" राज प्रताप भानु ने पिता शिव प्रताप भानु के पास बैठते हुए कहा ।
राग प्रताप भानु दादी दिव्या की गोद में सिर रखकर लेटने चला कि इन दोनों की बात से मुंह बनाए दिव्या ने राग प्रताप भानु को झिटक कर कहा -"हटो भी राग !! इतने बडे हो गए हो मगर लड़कपन न गया !!"
शिव प्रताप भानु और मानसी दोनों दिव्या की इस प्रतिक्रिया को देखकर समझ गए कि दिव्य प्रताप और हवेली के बच्चों पर जान छिड़कने वाली मां को पिताजी का ये निर्णय रास न आया !! आए भी कैसे ,उनके लाड़ले दिव्य प्रताप का हवेली पर एकछत्र राज्य में बंटवारा जो होना था !!
पलक झपकते रविवार भी आ पहुंचा और दिव्य प्रताप भानु भी।
संध्या समय हवेली के बरामदे में सब उपस्थित हुए ।आज वर्षों बाद ये पहला अवसर था जब दिव्य प्रताप भानु और शिव प्रताप भानु दोनों एक साथ एक जगह आमने-सामने बैठे थे ।दिव्य प्रताप भानु ने तो उठकर भाई शिव प्रताप भानु के चरण-स्पर्श भी न किया था ।
एक तरफ कनक और उसके बेटे दिवाकर प्रताप भानु और दिनकर प्रताप भानु बैठे थे तो दूसरी तरफ शिव प्रताप भानु ,अपने बेटों राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु के साथ बैठे हुए थे ।
दोनों के मध्य में सूर्य प्रताप भानु विराजमान थे । दिव्यांश प्रताप भानु तो आया ही नहीं ,उसने कहला भेजा कि मैं इस सबमें क्या करूं , बाबा पिताजी और ताऊ जी के मध्य मेरा कौन काम !!
सबके कान सूर्य प्रताप भानु के कहे जाने वाले शब्दों की प्रतीक्षा में थे । सूर्य प्रताप भानु ने कहा -" देखो दिव्य प्रताप भानु और शिव प्रताप भानु , तुम दोनों के बच्चे बडे़ हो गए हैं और राज प्रताप भानु और राग प्रताप भानु एक बार पुन: बंटवारे के आकांक्षी हैं तो मैं भी इस संबंध में बहुत सोच-विचार करके इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि एक बार फिर से घर का बंटवारा हो जाए वही सही है ताकि मेरे ऊपर लांक्षन न लगे कि बाबा ने पक्षपात किया अपने पोतों के साथ और ये जो रोज की चिक-चिक झिकझिक है वो भी समाप्त हो ।
अब हवेली और जो हिस्सा शिव प्रताप के पास है उस सब का बंटवारा तो ऐसे हो सकता है कि हवेली के मध्य से बाहर बरामदे से लेकर परिसर तक एक दीवार उठा दी जाए , फिर पर्ची पड़ जाए ,जिसके हिस्से में जो आए वो उसे स्वीकार होगा , बोलो सही कह रहा हूं ना !! शिव प्रताप, दिव्य प्रताप!!"
" हां पिताजी सही तो है ।" शिव प्रताप भानु ने कहा ।
दिव्य प्रताप भानु ने मन मारकर कहा -"हां ठीक है ।"
सूर्य प्रताप भानु ने दो पर्चियां बनवाईं , एक पर हवेली का बांया भाग और एक तरफ हवेली का दायां भाग लिखकर पडो़स की एक बच्ची को बुलाकर उससे पर्ची उछालने को कहा ताकि निश्पक्ष बंटवारा हो ।
बच्ची ने पर्ची उछाल दीं और अपने घर चली गई।
" शिव प्रताप , दिव्य प्रताप दोनों लोग एक एक पर्ची उठा लो।" सूर्य प्रताप भानु ने कहा ।
दिव्य प्रताप भानु ने लपक कर एक पर्ची उठाई ,उसे आंखों से लगाकर कुछ बुदबुदाया फिर दूसरी पर्ची शिव प्रताप भानु ने उठाई ।
दोनों ने फिर एक साथ अपनी अपनी पर्ची खोलकर सबके सामने कर दी ताकि सब देख लें ।
हवेली के मंदिर की तरफ वाला भाग शिव प्रताप भानु के हिस्से आया और दूसरा भाग दिव्य प्रताप भानु के हिस्से पड़ा।
" अब शिव प्रताप तुम्हें व राज प्रताप,राग प्रताप भानु को इस निर्णय से कोई आपत्ति न होनी चाहिए , अब तो बराबर से बंटवारा हुआ है , अब हवेली के मध्य से एक दीवार उठाई जाएगी जिसके अनुसार मंदिर की तरफ वाला भाग जो तुम्हारे हिस्से में था वो तो तुम्हारे पास ही रहेगा मगर श्रीधन को जो घर दिया था वो दिव्य प्रताप भानु के हिस्से में चला जाएगा और हवेली के बाहर का परिसर जो अधिकांश तुम्हारे पास था वो बराबर से आधा आधा तुम दोनों के हिस्से में पडे़गा ।" सूर्य प्रताप भानु बोले ।
" हां बाबा , अब आपत्ति का कोई प्रश्न ही न उठता है !!" राग प्रताप भानु बोला ।
दिव्य प्रताप,कनक और उनके दो बेटों का मुंह देखने वाला था ,अभी तक पूरी हवेली जो उनकी थी ......।
अगले दिवस ही कारीगर बुलाकर हवेली के मध्य दीवार खडी होना प्रारंभ हो गई थी ।
मानों हवेली के ह्रदय के दो भाग होने के कारण उसकी सुंदरता ही खत्म हो रही थी ।
समय आगे बढ़ते बढ़ते हवेली के मध्य दीवार खड़ी हो गई थी ।अब हवेली के गलियारे में जो बाहर जाने का दरवाजा था वो शिव प्रताप के हिस्से में पड़ा होने के कारण उसके हवेली से निकास के दो द्वार हो गए थे ,एक हवेली के सामने और दूसरा मंदिर के बगल के सामने ।
दीवार उठने के कारण हवेली की रौनक तो खत्म हो गई थी मगर अब शिव प्रताप के पास रहने को भरपूर जगह हो गई थी मगर दिव्या का मन खराब हो गया था ,वो जब देखो तब भुनभुनाया करती - इतनी खूबसूरत हवेली की सुंदरता का सत्यानाश कर डाला !! हवेली मेरे दिव्य के पास थी तो उसे आसानी से कैसे हजम हो जाती !! ........शेष अगले भाग में।