नंदिनी के विवाह के दो दिन रह गए थे और दिव्या मन ही मन ये सोचकर कुढ़ रही थी कि इनको लोकलाज की भी परवाह नहीं है ,, ये नहीं सोचते कि सामने भले कोई न बोले मगर पीठ पीछे तो लोग हँसकर कहेंगे ही कि देखो हजारों एकड़ भूमि के मालिक सूर्य प्रताप भानु ने अपनी एकलौती बेटी के विवाह पर उसे बस दो जोड़ कपडो़ं में विदा किया !!
मनिका अपने कपडे़ पेटी में रखती हुई फूली न समा रही थी कि उसे अब नंदिनी से बिछड़ना न पडे़गा ,, उसके बाबू ने मालिक काका से बात कर ली और मालिक काका ने नंदिनी के साथ उसे भी जाने की अनुमति जो दे दी,,,
दिव्य प्रताप भानु पूरी हवेली में मँड़राते हुए सबके कक्ष के भीतर की बातें पता कर लेता था ,ऐसा करके उसे बहुत आनंद मिलता था ।कोई हो न हो पर दिव्य, पिता के निर्णय से बहुत प्रसन्न था ।
सूर्य प्रताप भानु ने जाने क्या सोचकर नंदिनी के विवाह के एक दिन पहले श्रीधन को भेजकर नंदिनी को देने के लिए एक पलंग , एक अलमारी और एक संदूक मँगवा ली थी और श्रीधन के द्वारा सुरतिया से दिव्या को कहलवा भेजा था कि इस संदूक में गिनती की चार साडियाँ मँगाकर रख दे बस और कुछ नहीं रखने की आवश्यकता है ।
सूर्य प्रताप भानु की हवेली के भीतर किसी पराए आदमी का प्रवेश वर्जित था अतः सूर्य प्रताप भानु को भीतर कुछ कहलवाना होता तो वो श्रीधन से हवेली के बाहर से सुरतिया को आवाज लगवा देता था या फिर दिव्य भीतर जाकर सुरतिया को बुला देता था ।
शिव प्रताप भानु ने उसी संध्या श्रीधन को पिता सूर्य प्रताप भानु से अलग शिव मंदिर मिलने बुलाया । दिव प्रताप भानु की नज़र से भला कैसे कुछ छूट सकता था ! वो भी निगाह लगाए रहा कि जब श्रीधन काका जाएं तो मैं भी पीछे ही पीछे जाकर पता करूँ कि शिव दादा ने श्रीधन काका को क्यों बुलाया है !!
गोपी भी श्रीधन के पास होने के कारण समझ गया था तो उसने दिव्य प्रताप भानु से कहा -"दिव्य दादा ,मैं जाकर पता करूँ !!" पर दिव्य बोला -"नहीं मैं स्वयं जाऊँगा ।"
श्रीधन मालिक के पास से 'आवश्यक कार्य है 'कहकर अलग हटकर शिव प्रताप के पास शिव मंदिर गया और बोला -"बताएं शिव बाबू !!"
दिव्य प्रताप भानु एक कोने की ओट में कान लगाकर सब सुनने लगा --
" श्रीधन काका ,आप पिताजी से किसी तरह मुझे कुछ रुपए दिलवा सकते हैं ,, ताकि मैं नंदिनी के विवाह पर खर्च कर सकूँ ,उसको विवाह पर उपहार दे सकूँ !!" शिव प्रताप भानु ने कहा ।
"शिव बाबू आप तो अच्छी तरह मालिक को जानते हैं , वो किसी की न सुनते हैं ,, सिवाय अपने मन की !! वो जो मुझे आदेश देते हैं मैं उतना ही कर पाता हूँ बाकी उनसे कुछ भी कहने की मेरी हिम्मत न होती है ,, "श्रीधन ने असमर्थता जताई ।
"कोई बात नहीं काका ,आप जाएं ।"शिव प्रताप ने कहा ।
श्रीधन चला गया और शिव प्रताप भानु हवेली में जाकर अपनी माँ दिव्या के कक्ष में पहुँचा ।दिव्य अपने दादा शिव प्रताप का अनुगमन करते हुए माँ के कक्ष के पास जाकर पर्दे की ओट से भीतर देखने लगा ।
दिव्या अपने कक्ष में न थी ।शिव प्रताप ने माँ की अलमारी खोलकर उसमें से लाल रंग के जेवरों के डिब्बे निकाले और सभी खोलकर देखकर उनमें से चार डिब्बे अलग कर बाकी डिब्बे वापस अलमारी में रखकर वो चार डिब्बे लेकर माँ के कक्ष से निकल कर नंदिनी के कक्ष की तरफ गया ।
दिव्य भी दादा शिव प्रताप की नजरें बचाकर उसके पीछे ही पीछे नंदिनी के कक्ष के पास गया और अपनी आदतानुसार भीतर झांककर देखने लगा --
शिव प्रताप भानु ने नंदिनी के कक्ष में जाकर देखा तो नंदिनी अपने कक्ष में अपने बिस्तर पर बैठी अश्रु बहा रही थी और मनिका उसे समझा रही थी --"नंदिनी ,जो हो रहा है उसे रोकना सँभव नहीं है तो तू रो रोकर अपनी दशा न बिगाड़ और देख मैं तेरे साथ ही चल रही हूँ तो तुझे वहाँ अकेलापन न लगेगा ।"
मनका की नज़र कक्ष के भीतर आए शिव प्रताप भानु पर पडी़ तो वो कक्ष से बाहर चली गई ।नंदिनी ने पलट कर देखा कि शिव प्रताप भानु खडा़ था ।नंदिनी उठकर शिव प्रताप के सीने से लगकर रोते हुए बोली -"दादा अब तो आपसे दूर जाना पडे़गा !!आपके बिना कैसे जी लगेगा !!"
"नंदिनी ,इधर आओ ,बैठो ,पहले तुम बैठो ।"शिव प्रताप भानु ने नंदिनी को बिस्तर पर बैठने के लिए कहा और नंदिनी बिस्तर पर बैठ गई ।शिव प्रताप भानु उसके हाथों में साथ लाए चारों जेवरों के डिब्बे रखता हुआ बोला -"तुम्हें और कुछ उपहार में तो न दे सकता हूँ ,इसे मेरा आशीष समझ कर स्वीकार कर लो ।"
"ये क्या है दादा !! नहीं ये मैं न ले सकती हूँ ,पिताजी को पता चला तो वो आप पर गुस्सा करेंगे और मेरे तो प्राण ही ले लेंगे !! ये आप जहाँ से लाए हैं वहीं रख आएं उसी में सबकी भलाई है दादा ।"नंदिनी ने हाथ से डिब्बे बिस्तर पर रखते हुए कहा ।
नंदिनी समझ गई थी कि शिव दादा को इतने गहने खरीदने के दाम पिताजी तो कदापि न देंगे ,,,अवश्य ही शिव दादा ये गहनें माँ के कक्ष से लाए होंगे ।
शिव प्रताप ने नंदिनी के शीश पर हाथ फेरकर कहा -" नंदिनी, भाई के अशीश स्वरूप दी भेंट को न नहीं करते और तू चिंता मत कर ,,, ये गहनें उन गहनों में से हैं जो माँ और पिताजी ने तेरी भावी भाभी के लिए बनवाए थे ,, तो उस वजह से ये मेरे हैं और मैं अपना सामान किसे दूँ ये निर्णय तो मैं लूँगा ना !!
तुम इन्हें न लोगी तो मैं तुम्हें अपनी शपथ दे दूँगा ।" और शिव प्रताप ने उठकर स्वयं ही वो गहनों के डिब्बे नंदिनी की ससुराल जाने के लिए तैयार संदूक में रख दिए और उसके कक्ष से निकलकर हवेली के बाहर चला गया ।
नंदिनी दुविधा में पड़ गई कि जेवरों के डिब्बे रख लिए तो पिताजी के संज्ञान में आते ही प्रलय आ जाएगी न रखे तो भाई की शपथ का मान टूटता है .......शेष अगले भाग में।