दिव्यांश प्रताप भानु , शिवन्या के विवाह में सम्मिलित हुआ था , ये राज प्रताप भानु को तो न बुरा लगा क्योंकि वो सुलझे दिमाग का और सह्रदय था मगर राग प्रताप भानु का उसको देखकर मुंह बना ही रहा ।
अगले दिन जब शिवन्या की विदाई होने लगी तब दिव्यांश प्रताप भानु ने उसके हाथों में एक डिब्बा पकड़ाया।
" ये क्या है दिवी दादा ?" रोती हुई शिवन्या ने पूछा ।
" ये तेरे भाई की कमाई से लिया गया तेरे लिए एक छोटा सा उपहार है बहना , तुमको एक बात बताऊं , तुम्हारे लिए एक भाभी पसंद की है ,शीघ्र ही उसे तुम्हारी भाभी बनाने वाला हूं , उसे जब बताया कि मेरी बहन का विवाह है तो उसने ये मेरे साथ मिलकर खरीदा तो इसमें तुम्हारी होने वाली भाभी का भी स्नेह भरा आशीष सम्मिलित है ।" दिव्यांश प्रताप भानु ने शिवन्या के सिर पर हाथ फेरकर कहा ।
" आपका स्नेह पाकर अभिभूत हुई दिवी दादा मगर ये मत दीजिए , बाबा को पता चला तो वो जो मेरी होने वाली भाभी को जेवर देना चाहते होंगे वो भी न देंगे ।" शिवन्या ने मायूस होकर कहा ।
"पगली , ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है क्योंकि पहली बात तो ये मेरी कमाई का है जिसमें तेरी होने वाली भाभी के भी रुपए लगे हैं और दूसरी बात ये उसी के घर पर था ,आज उसके यहां से लेकर सीधा यहां आया हूं ।" दिव्यांश प्रताप भानु ने कहा।
शिवन्या ने उसे खुशी खुशी स्वीकार कर लिया और रोते हुए बोली -" मेरे पास अभी और आगे चलकर चाहे कितने भी जेवर हो जाएं मगर मेरे लिए सबसे अनमोल यही रहेगा क्योंकि इसमें मेरे भाई और भावी भाभी का स्नेहाशीष छुपा है ।"
शिवन्या की विदाई हो गई और शिव प्रताप भानु के आंगन में एक सूनापन हो गया जो घर की बेटी की विदाई के बाद हो ही जाता है ।
शिवन्या के ससुराल पक्ष के एक रिश्तेदार को शिवन्या के विवाह में अपने बेटे के लिए शिवल्या पसंद आ गई थी ।
जब शिवन्या की चौथी के लिए शिव प्रताप भानु,राज प्रताप भानु, राग प्रताप भानु और दिव्यांश प्रताप भानु गए तो वहां उन्होंने अपने बेटे के लिए शिवल्या का हाथ मांगा ।
शिव प्रताप भानु खुशी से फूले न समाये ,कि घर बैठे अच्छा रिश्ता मिल गया ।
लड़के के पिताजी एल.टी ग्रेट शिक्षक थे और उनका लड़का जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में मुख्य अधिकारी था ।
शिव प्रताप भानु ने उनसे कहा -" आप मेरी शिवल्या को तो शिवन्या के विवाह में देख ही चुके हैं , अब आपकी मांग क्या है वो भी बता दें ताकि मैं समझ सकूं कि मैं आपकी मांग पूरी करने की सामर्थ्य रखता हूं या नहीं !!"
लड़के के पिता बोले -" मुझे पता है कि आपने अपनी शिवन्या बेटी के ससुर जी को क्या दिया है ,जितना उनको दिया है हमें भी उतना ही दे दें बस ।"
" जी मैं समझा नहीं !!" शिव प्रताप भानु ने कहा ।
" इसमें समझना क्या है शिव बाबू !! पच्चीस एकड़ जमीन आपने शिवन्या के ससुर जी को दी उतनी ही मुझे भी दे दें बाकी जो आप अपनी बेटी को देना चाहें ।" लड़के के पिता ने कहा और शिव प्रताप भानु ने रिश्ता स्वीकार कर विवाह के लिए तिथि विचरवा कर बताने के लिए कह दिया ।
दिव्यांश प्रताप भानु अपने विवाह की तिथियां बाबा सूर्य प्रताप भानु के द्वारा तय कराने का सोच रहा था मगर जब शिवल्या का विवाह तय हुआ तो उसने शिवल्या के विवाह के बाद अपने विवाह करने का मन बनाया ।
इस बार शिव प्रताप भानु ने न सूर्य प्रताप भानु को इस संबंध में कुछ बताया और ना ही उनसे कुछ कहा मगर राग प्रताप भानु और दामिनी को एक दिवस उसने कक्ष में बात करते हुए सुन लिया ,, दामिनी राग प्रताप भानु से कह रही थी -" देखिए जी , एक तो हजारों एकड़ जमीन में हमारे ससुर जी को महज ढाई सौ एकड़ जमीन मिली उसमें भी आप और आपके भाई दो हिस्सेदार और उसमें भी पच्चीस एकड़ शिवन्या ननद जी ले गईं , पच्चीस एकड़ शिवल्या ननद जी ले जा रही हैं ,हमारे हिस्से तो बस सौ एकड़ जमीन ही आएगी ,,, इससे तो अच्छा होता कि मेरा विवाह कुछ समय और न होता और जब होता तो दिवाकर प्रताप के साथ होता ,, "
अगले दिवस जब सब साथ में भोजन कर रहे थे तब राग प्रताप भानु ने पिता शिव प्रताप भानु से कहा -" पिताजी , जेवरों में बाबा ने कोई बंटवारा न किया मगर जमीन के बंटवारे के लिए बाबा को मजबूर करके रहूंगा ,वरना जितना हम दबेंगे उतना ही हमें दबाया जाएगा ।"
राज प्रताप भानु न जानता था कि ये राग किसी बात की वजह से कह रहा है मगर उसे राग प्रताप भानु की बात सही लगी और वो बोला -" पिताजी राग प्रताप भानु सही कह रहा है , जमीन पर तो बराबर का बंटवारा करवा कर ही मानेंगे ,बाबा से इस संबंध में बात करने हम दोनों जाएंगे।"
दिव्या,जो वहीं सबके साथ निवाला तोड़ रही थी उसने तैश में उठकर खडे़ होते हुए कहा -" एक काम करो तुम दोनों भाई ,अपने बाबा का गला दबाकर उनको मार डालो फिर सुख चैन की वंशी बजाओ ! बंटवारा बंटवारा बंटवारा!!
कभी हवेली का बंटवारा कभी जेवरों के लिए बंटवारा तो कभी जमीन के लिए बंटवारा !!
हद कर दी है !! संतुष्टि भाव जैसे लेशमात्र भी नहीं दोनों में !!" और वो भोजन करना छोड़कर अपने कक्ष में जाने लगी ।
"मां आप इतना क्यों बिगड़ रही हैं !! आखिर बच्चे कुछ गलत तो न कह रहे हैं !!" मानसी ने चिढ़ कर कहा ।
" हां हां क्यों नहीं !! तुम्हीं ने तो इनदोनों के दिमाग खराब किए हैं !!" कहती हुई दिव्या अपने कक्ष में चली गई।
" दादी को नाराज कर दिया !! तुम लोग बहुत पागल हो !!" शिवाली ने मुंह बनाते हुए कहा ।
" दादी जो कहती हैं कहती रहें हम तो बाबा से बात करके रहेंगे।" राग प्रताप भानु ने कहा और राज प्रताप भानु ने भी उसकी बात का समर्थन किया ।
रात्रि को दोनों सूर्य प्रताप भानु के घर पहुंचे.......शेष अगले भाग में।