सुरतिया पाकशाला का कार्य समेट रही थी और समेटते समेटते ही उसने मनिका व नंदिनी की बात सुनी थी तो उसका मन भी खिन्न हो गया था ,होता भी क्यों नहीं !! माना हवेली के भीतरी कार्यों में लगे रहने की वजह से उसे नंदिनी के पास बैठकर वार्तालाप का समय न मिलता था मगर उसने बचपन से नंदिनी को गोद में खिलाया था ,तब जब उसके मनिका न हुई थी तो नंदिनी से विशेष ममता स्वाभाविक ही थी ।
उसने बुझे मन से पाकशाला का कार्य समेटा और हवेली के पीछे बने अपने घर की तरफ जाने के लिए हवेली के चौढे़ गलियारे से होते हुए गुजरी जिधर सूर्य प्रताप भानु और दिव्या का कमरा पड़ता था तो उसे सूर्य प्रताप भानु व दिव्या का वार्तालाप सुनाई पडा़ --" ये आप सही न कर रहे हैं !! एक तो इतनी शीघ्रता कि नंदिनी सोलहवीं में चल रही है और उसका विवाह तय कर दिया और वो भी इतनी दूर गाँव में !!वहाँ कैसे रह पाएगी मेरी बच्ची !!"
"गाँव में जो रहते हैं वो इंसान ही होते हैं कोई जानवर नहीं ,,और जब वो लोग रह लेते हैं तो नंदिनी क्यों न रह पाएगी !! मैं सब तय कर चुका हूँ ,अब रात बहुत हो गई है सो जाओ ।"
सुरतिया भारी मन लेकर अपने घर पहुँची ।श्रीधन जैसे ही मालिक सूर्य प्रताप भानु की सेवा से रात दस बजे निवृत्त होता था वो अपने घर अपनी बेटी मनिका को आवाज देते हुए ही पहुँचता था --"मनिका,,, कहाँ है मेरी लाड़ली !!" जबकि वो अच्छी तरह जानता था कि उसे मनिका घर में ही मिलेगी इसके अतिरिक्त वो कहाँ जाएगी !!ये तो एक पिता का लाड़ था ,,,
पिता के ऐसे ही लाड़ से बेचारी नंदिनी वंचित थी ।
सुरतिया घर पहुँची तो देखा कि श्रीधन आ चुका था ।
"आप आ गए !!कितनी देर हुई आपको आए ??" सुरतिया ने श्रीधन व मनिका के समक्ष बैठकर साँस लेते हुए पूछा ।
"रात को आठ बजे आ गया था ,मालिक ने सूरतपुर गाँव जाकर सब तय करने को कहा था तो वही करके फिर मालिक को सब सूचित करके सीधा यहीं आ रहा हूँ ।"
" हाँ ,आज मालिक को रात्रि का भोजन मनिका ने परोसा तब आप वहाँ न थे , मनिका बता रही थी ,,, वैसे तो आप मालिक के समीप ही भूमि पर बैठकर उनके भोजन करने के पश्चात भोजन करते थे ,अर्थात आपने भोजन भी न किया ,सीधे यहाँ आ गए!!
"सुरतिया ने श्रीधन से कहते हुए मनिका से पूछा -"मनिका तूने मुझे बताया नहीं कि बाबू ने भोजन न किया है !!मैं तो ये समझ रही थी कि तूने बाबू के आने के पश्चात भोजन करा दिया होगा ,, मुझे पता होता तो मैं पाकशाला से भोजन ले आती!!"
और फिर वो श्रीधन से बोली -"रुकिए मैं फिर हवेली जाकर भोजन ले आऊँ "
"नहीं मुझे भूख नहीं है !"श्रीधन ने सुरतिया का हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहा ,फिर बोला -"मेरा बिछौना बिछा दे मैं आराम करना चाहता हूँ ।"
" ऐसे क्यों कह रहे हैं !! बात क्या है !! "सुरतिया कुछ कुछ समझ रही थी पर फिर भी उसने श्रीधन से पूछ लिया ताकि वो बताए तो उसका मन हल्का हो ।
श्रीधन दीवार से सिर टिकाकर बोला -"मालिक ये सही न कर रहे हैं ,, बाप का प्यार क्या होता है नंदिनी बिटिया ने कभी जाना ही नहीं ,, पर उसे ऐसी सजा वो भी इतनी कम उम्र में !!माना वो लोग बहुत सभ्य हैं ,भले हैं मगर इतनी दूर उसका विवाह करना और वो भी इतनी छोटी उमर में ये तो न सही है मगर हम कर भी कुछ न सकते हैं !! नौकर हैं ना !!"
मनिका जो इतनी देर से गुमसुम बैठी थी ,अपनी रुलाई को रोक न सकी और पिता श्रीधन के गोद में सिर रखकर फफक फफक कर रोने लगी ।
"क्या हुआ मेरी बच्ची !!" श्रीधन ने मनिका के सिर पर हाथ फेरते हुए उसे पुचकार कर कहा।
" बाबू नंदिनी चली जाएगी तो मैं उसके बिना कैसे रहूँगी ,, नंदिनी के बिना मुझे कुछ अच्छा न लगेगा ,,, बाबू मालिक काका नंदिनी से इतना क्यों चिढ़ते हैं कि वो नंदिनी को स्वयं से शीघ्रतिशीघ्र दूर करना चाहते हैं !!नंदिनी तो बहुत अच्छी है ना बाबू !!"
गोपी अपने में ही मगन अपने बिस्तर पर लेटे लेटे मुस्कुराता रहा ।
सुरतिया ने अपनी बेटी मनिका की तरफ आँखों में आँसू भरे हुए एक दृष्टि डाली फिर उठकर भारी मन से श्रीधन का बिस्तर बिछाने लगी ।श्रीधन ने उसे दुलारते हुए उसके बिस्तर पर लिटाया और फिर उसे अपनी बातों से बहलाते हुए उसके सिर पर तब तक हाथ फेरा जब तक वो सो न गई ।
श्रीधन अपने बिछौने पर वहीं लेट गया और सुरतिया उसके समीप बैठते हुए कुछ सोचने लगी ।
"क्या सोच रही है तू ? श्रीधन ने पूछा ।
" मैं कुछ सोच रही थी और फिर मैंने कुछ तय किया है ,आप बताएं उचित हो तो फिर मैं दिव्या मैडम से बात करूँ और वो मालिक से बात कर लें ।"सुरतिया ने कहते हुए जो सोचा था वो श्रीधन को बताया ।
श्रीधन को भी उसका विचार अच्छा लगा था ,और अगले दिन सुरतिया ने दिव्या के पास उसके कक्ष में गई थी ।दिव्या अपने कक्ष में खिड़की के पास खडे़ होकर किन्हीं विचारों में खोई हुई थी ,ऐसा लग रहा था कि वो कुछ सोचकर परेशान है ।
दिव्या ने उसके पीछे खडे़ होकर दो बार पुकारा था -"मैडम जी ! मैडम जी !" मगर दिव्या को जैसे सुनाई ही न दिया था तो तीसरी बार सुरतिया ने स्वर थोडा़ ऊँचा करके कहा था -"मैडम जी !!"
दिव्या की विचारों की तंत्रा टूटी और वो बोली थी -"अहां ,, सुरतिया ,, कुछ कहा तुमने !!"
"क्या बात है मैडम जी !आप कहाँ खोई हुई हैं !!"सुरतिया ने पूछा ।
" कहीं नहीं सुरतिया !"दिव्या ने निश्वास छोड़कर बिस्तर पर बैठते हुए कहा -" नंदिनी के विषय में सोचकर परेशान हूँ ,, मेरी बच्ची को अकारण ही दुख मिल रहा है !!
इतनी शीघ्र उसका विवाह करने पर तुले हैं तुम्हारे मालिक !!"...............शेष अगले भाग में।