पूरे विधि विधान से कुशलता पूर्वक नंदिनी का विवाह संपन्न हो गया था और विवाह संपन्न होते होते भोर हो गई थी ।भोर में कलेवा होने लगा ।सूर्य प्रताप भानु ने हवेली के बाहर बने बरामदे में कलेवा में ही नंदिनी के वर नवीश के पिता के हाथ में विवाह में कुल इक्यावन हजार रुपए थमाए जिसको देखकर नवीश के पिता का मुँह बन गया ,जो कि स्वाभाविक ही था ।हजारों एकड़ भूमि के मालिक सूर्य देव !! एकलौती पुत्री के विवाह में कुल इक्यावन हजार रुपए दें ,,, ये तो हैरान करने वाली बात ही थी पर नवीश ने अपने पिता के घुटनों पर हाथ रखकर कहा -"पिताजी , ये तो काका बाबू के द्वारा सस्नेह शगुन है इसे हर्ष पूर्वक रखें बाकी इन्होने तो अपने जिगर का टुकडा़ हमें दे दिया इससे ज्यादा और क्या चाहिए !!"
सूर्य प्रताप भानु नवीश की बात सुनकर मुस्कुरा दिए ,, अब नवीश क्या जानता था कि उसकी नववधू अपने पिता के लिए क्या है !!
कलेवा विधिवत संपन्न हुआ तो विदाई की तैयारी होने लगी ।नंदिनी भीतर से माँ दिव्या ,सुरतिया काकी से गले लगती रोती हुई बाहर बरामदे में पहुँची जहाँ सूर्य प्रताप भानु और नवीश के पिता खडे़ थे, और उसके पीछे मनिका एक हाथ में अपनी पेटी और दूसरे हाथ में नंदिनी की संदूक लेकर आई और संदूक बरामदे में रखकर अपने पिता श्रीधन के गले लगकर रोने लगी ।
शिव प्रताप भानु बरामदे में एक कोना पकड़ कर आँसू बहा रहा था ।इसी अवसर की प्रतीक्षा दिव्य प्रताप भानु कर रहा था ,वो अपने पिता सूर्य प्रताप भानु के पास जाकर बोला -"पिताजी ,जरा दो मिनट इधर आइए ।"
सूर्य प्रताप भानु नवीश के पिता से जरा हटकर दिव्य से बोले -"क्या बात है !!"
"पिताजी , माँ की अलमारी से ,उनकी अनुपस्थिति में लाल रंग के जेवरों के डिब्बों में से चार डिब्बे निकाल कर शिव दादा ने नंदिनी की संदूक में रख दिए हैं और आपकी अनुमति भी न ली ,,जरा दृष्टता तो देखिए शिव दादा की !! "
सूर्य प्रताप के कानों में जैसे किसी ने गर्म लावा पिघलाकर डाल दिए हो ,,उनको मुख से ऐसे जोर से निकला -"क्याआआ!"
सब सूर्य प्रताप भानु की तरफ देखने लगे ।
"श्श्श्श्श् , धीमे बोलिए पिताजी ।" दिव्य प्रताप भानु फुसफुसाते हुए बोला ।
" पर तुम इतना यकीन से कैसे कह सकते हो !!तुमने अपनी आँखों से देखा क्या ??" सूर्य प्रताप भानु ने पूछा ।
"हाँ पिताजी , तभी तो आपको तुरंत सूचित किया है ,मैं झूठ बोल रहा हूँ तो आप जो सजा दें मुझे स्वीकार होगी।" दिव्य प्रताप ने कहा ।
गोपी सूर्य प्रताप भानु का चेहरा देख मन ही मन प्रसन्न हो रहा था कि अब शिव दादा की खैर नहीं ।
सूर्य प्रताप भानु ने आव न देखा ताव और मनिका से कहा -"मनिका ,नंदिनी का संदूक लेकर इधर आओ ,तुम्हारी मालकिन को देखना है कि इसमें कुछ रखने से छूट तो न गया ।"
दिव्या कुछ समझ न पाने के कारण सूर्य प्रताप भानु का मुँह देखने लगी ।
सूर्य प्रताप ने क्रोध भरी आँखों से दिव्या को जो संकेत दिया तो दिव्या समझ गई कि कुछ तो गड़बड़ हुई है ।
मनिका ने नंदिनी का संदूक लेकर सूर्य प्रताप के समक्ष रखा और सूर्य प्रताप सभी की उपस्थिति को ध्यान में रखकर बनावटी मुस्कान ओढ़ते हुए दिव्या से बोले -" ले तू कह रही थी न कि शायद संदूक में कुछ रखना छूट गया तो भीतर जाकर देख कर रख दे ।"
दिव्या ने संदूक उठाई और बरामदे से होते हवेली के बरामदे से भीतर बने प्रथम कक्ष में गई ,उसे समझ न आ रहा था कि ये क्या और क्यों कह रहे हैं !! शिव प्रताप भानु भी अचरज में था कि ये पिताजी क्या कह रहे हैं !!
दो क्षण पश्चात सूर्य प्रताप हवेली के बरामदे से लगे उस कक्ष में भीतर प्रविष्ट हुए और दिव्या से बोले -"संदूक खोलो ।"
दिव्या ने संदूक सूर्य प्रताप भानु के सामने खोली तो वो देख कर हैरान रह गई - चार जोडी़ साडियों के साथ ही लाल रंग के चार जेवरों के डिब्बे भी रखे थे !
सूर्य प्रताप भानु ने चारों डिब्बे उठाकर खोल कर देखे और क्रोध में तेज स्वर में शिव प्रताप भानु को आवाज लगाई -"शिइइइआव !"
शिव प्रताप भानु भीतर आया और पिता का वो स्वर सुनकर रोती हुई नंदिनी भी बरामदे से हवेली के भीतर उस कक्ष के पास आई तो देखा कि कक्ष का द्वार भीतर से बंद कर लिया गया था ,वो वहीं खडी़ रोती रही ,उसे समझ आ गया था कि पिताजी ने संदूक भीतर क्यों मँगवाई है ।
सूर्य प्रताप ने संदूक में रखे उन चारों जेवरों के डिब्बों की तरफ संकेत कर शिव प्रताप से अत्यंत क्रोध में भरकर कहा -" ये जो किया है ना बर्रखुरदार !! तुमसे तो मैं बाद में निपटूँगा ,, नंदिनी को विदा हो जाने दो " क्रोध में शिव प्रताप भानु से कहते हुए सूर्य प्रताप ने कक्ष का द्वार खोला तो सामने नंदिनी रोती हुई दिखी ,, सूर्य प्रताप भानु तैश में कक्ष से निकलकर बरामदे में जा खडे़ हुए ।
दिव्या कक्ष से बाहर निकली तो नंदिनी से रोते हुए बोली -"चलो नंदिनी ,विदाई का समय हो गया मेरी बच्ची ।"
"माँ आप चलो मैं आती हूँ ।"नंदिनी ने दादा शिव प्रताप भानु की तरफ देखकर कहा जो कक्ष के दरवाजे पर खडा़ था ।
दिव्या बरामदे से बाहर निकल कर खडी़ हो गई और नंदिनी ने शिव प्रताप के पास जाकर रोते हुए कहा -"शिव दादा ,मैंने आपकी शपथ का मान रखने के लिए ये जेवरों के डिब्बे संदूक में रख लेने दिए थे पर अब आप अपनी शपथ वापस ले लें और इन डिब्बों को वहीं पहुँचा दें जहाँ से लाए थे ,मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ ।"
"नहीं नंदिनी ये जेवर तुम्हारे हैं और तुम्हारे पास ही रहेंगे , तुम बिलकुल चिंता न करो ,पिताजी से मैं बात कर लूँगा तुम अपने नए जाकर अपने नव जीवन का प्रारंभ करो ।" शिव प्रताप भानु ने नंदिनी के सिर पर हाथ फेरकर कहा ।नंदिनी ने शपथ वापस लेकर जेवर ले लेने को बहुत कहा मगर शिव प्रताप भानु ने उसकी एक न सुनी ।नंदिनी विवश होकर दादा शिव प्रताप के साथ बाहर आ गई और उसकी विदाई कर दी गई ........शेष अगले भाग में।