श्रीधन सूर्य प्रताप भानु के समीप खडे़ होकर बोला -"मालिक अपनी हवेली के दक्षिण तरफ जो मुख्य मार्ग गया है उस पर जाकर आगे चलकर जो थोडा़ वन क्षेत्र पड़ता है ,उसके आगे ही एक नदी पड़ती है ,,वो नदी पार करने के बाद दो गाँव छोड़कर तीसरे गाँव में प्रधान जी का घर है ।उस गाँव में प्रधान जी का ही घर है जो पक्का बना है , रहन-सहन भी सही है उनके एक पुत्र व एक पुत्री हैं ।पुत्री बडी़ थी तो उसका विवाह कर दिया है और पुत्र अदना सा व्यापारी है मगर सुनने को मिला है कि व्यवहार में बहुत अच्छा है ।सुंदर ,सुशील लड़का है ,अपनी नंदिनी के लिए योग्य वर साबित होगा ,आप कहो तो बात आगे बढा़ई जाए !! "
"अरे नेकी और पूछ पूछ श्रीधन !! तुम कल ही उस गाँव ....क्या नाम है गाँव का ,वो तो बताया ही नहीं तुमने ??" सूर्य प्रताप भानु श्रीधन से कहते कहते पूछने लगे ।
"मालिक सूरतपुर ।"श्रीधन ने उत्तर दिया ।
"हाँ तो तुम कल ही सूरतपुर जाओ और विवाह की पूरी पक्की बात करके आओ , और उनसे कहना कि हमारे मालिक विवाह शीघ्रतिशीघ्र संपन्न करना चाहते हैं ।"सूर्य प्रताप भानु उतावले होकर बोले ।
"जी मालिक "श्रीधन ने कहा ।
शिव प्रताप भानु जो अपने पिता के समीप ही बैठा था और ये वार्तालाप सुन रहा था उससे रहा न गया और वो कह बैठा -"पिताजी ,नंदिनी का विवाह इतनी दूर नदी पार ,और वो भी गाँव में आप तय करने को कह रहे हो ?"
सूर्य प्रताप कुछ कहते उससे पहले ही दिव्य प्रताप भानु ने अपनी मीठी जुबान से पिता के ह्रदय को प्रभावित करने के लिए शिव प्रताप भानु से कहा -" दादा ,अब आप पिताजी के निर्णय पर प्रश्नचिन्ह उठाएंगे !! पिताजी ने जो निर्णय लिया वो सर्वथा उचित होगा ,,, "
" तुमसे समझदार तो दिव्य है और गाँव व शहर क्या होता है !उसमें रहने वाले लोग सही होने चाहिए और श्रीधन कह रहा है न कि लड़का बहुत सुशील है तो और क्या चाहिए !!" सूर्य प्रताप कहते हुए अपने खेतों के निरीक्षण के लिए श्रीधन व गोपी को लेकर चले गए और दिव्य प्रताप भानु एक कुटिल मुस्कान अपने दादा शिव प्रताप पर डालता हुआ हवेली में गया नंदिनी को ये सूचना देने ।
नंदिनी पाकशाला में आटा गूँथ रही थी ।दिव्य पाकशाला में गया और नंदिनी के बालों के जूडे़ में लगी क्लिप खोलकर बोला -" नंदिनी अच्छा है तू सारे कार्य सीख रही है ,गाँव में रहेगी तो हर कार्य आना ही चाहिए !!"
जूडे़ की क्लिप खुल जाने से नंदिनी के बाल बिखर कर चेहरे पर आ जाने से उसे झुंझलाहट हो रही थी और गाँव का सुनकर तो उसके चेहरे का रंग ही उड़ गया और वो बोली -"ये क्या कर दिया दिव्य दादा ,देख रहे हो मेरे हाथ आटे में सने हैं और बाल चेहरे पर फैल गए ,, कैसे इन्हें हटाऊँ और गाँव !! समझी नहीं !!"
सुरतिया की बेटी मनिका सब्जी काट रही थी ,उसने चाकू रखकर नंदिनी के बालों में क्लिप लगा दी और हाथ धुलकर फिर सब्जी काटने लगी ।
दिव्य ने टोकरी से सेब उठाया और खाते हुए बोला -"अरे इसमें समझना क्या है बुद्धू !!पिताजी तेरा विवाह गाँव में तय कर रहे हैं वो भी नदी पार और वो भी दो गाँव छोड़कर तीसरे गाँव में !!
जब तक यहाँ है तब तक और सुख उठा ले फिर तो उपले उठाने होंगे ,,हा हा हा ।" हँसते हुए दिव्य चला गया और नंदिनी की आँखों से अश्रुधार बह चली।
नंदिनी के सामने एक तरफ ऐसे पिता थे जिनसे उसे बस तिरस्कार ही मिलता आया था ,दूसरी तरफ अपनी माँ की बेबसी दिखाई देती थी ,जो पिता के निर्णय के आगे चूँ तक न करती थीं ,एक तरफ शिव दादा थे जो उसकी खुशी के लिए सब करने को तत्पर रहते थे मगर पिताजी के आगे उनकी एक न चलती थी और दूसरी तरफ कुटिल,रूखे ,स्वार्थी ,मौकापरस्त दिव्य दादा थे ,
ऐसे में वो अपने मन की बात अगर किसी से कहकर मन हल्का करती तो वो सुरतिया की बेटी मनिका ही थी ।नंदिनी ने अश्रु बहाते हुए मनिका से कहा -"मनिका मैं क्या करूँ !! कितनी अभागन हूँ मैं कि पिताजी मुझे अपने से दूर करने को इस छोटी उमर में ही मेरा विवाह इतनी दूर वनक्षेत्र के बाद नदी पार दो गाँव छोड़कर तीसरे गाँव में तय कर दिए हैं !!
मैं वहाँ कैसे रह पाऊँगी ,, ये भी कोई न सोच रहा है !!मेरी वो माँ भी नहीं जिसने मुझे जन्म दिया है ,, पिता के निर्णय के आगे सदा वो विवश रही हैं ,,, मनिका एक तू ही तो है जिससे अपना मन हल्का कर लेती थी ,,वहाँ तो तू भी न होगी !!"
सुरतिया की बेटी मनिका ,नंदिनी की भाँति छोटी ही उमर में परिपक्व सोच की न थी ,वो ये न सोच सकती थी कि कौन बात कब कहनी चाहिए और कौन कब नहीं !! उसने भी भरे कण्ठ से नंदिनी से कह ही दिया -" हाँ पर जब मुझे छूत की बीमारी हुई थी तब तो तूने भी मेरा साथ छोड़ दिया था !! मैं कितना रोती थी ,कोई मेरे पास न आता था ,, तूने भी उस समय मेरे पास आना उचित न समझा ,, मुझे मेरी माँ व बाबू से भी न मिलने दिया मालिक काका ने !!"
नंदिनी ये सुनकर रो पडी़ और बोली -" मनिका ऐसे मत बोल !! तू न जानती , माँ ने मुझे तेरे पास जाने से रोका था पर फिर भी मैं तेरे पास आ रही थी मगर शिव दादा ने जब मुझे तेरे पास आने से रोका तो उनकी बात न टाल पाई मैं ,इस पूरी हवेली में वो ही तो हैं जो मुझे समझते हैं तो उनकी आज्ञा का उल्लंघन कैसे करती भला !!"
दिव्या किसी कार्य से पाकशाला में आ रही थी तो उसने इन दोनों का वार्तालाप सुना तो वो हक्क से रह गई !! उसे तो इस संबंध में कुछ भी न पता था ।वो अपने कक्ष में चली गई और सूर्य प्रताप भानु के आने की प्रतीक्षा करने लगी ............शेष अगले भाग में ।