कनक बिना कुछ कहे ही चली गई, बडे़ और उदार ह्रदय वाली मानसी ने भी घर में शांति बनी रहे इस हेतु आगे कुछ न कहा और सारे कार्य स्वयं ही करती रही ।
मानसी की चुप्पी से कनक और ज्यादा मनमानी करने लगी और मानसी पर रौब भी झाड़ने लगी थी जो शिव प्रताप भानु से भी अनदेखा न रहा था मगर वो ये सोचकर मानसी से कुछ न कह रहा था कि जब तक चल पाए तब तक चलता रहे ।
उपाध्याय जी को अपना घर बेचने की शीघ्रता थी अत: वे आनन -फानन में सब कागजात तैयार करवा कर अपना घर शिव प्रताप भानु को बेचकर चले गए थे और उस घर में जो कि छोटा ही था ,श्रीधन का परिवार रहने तो लगा था मगर खाएं क्या ये प्रश्न मुंह फैलाए उनके समक्ष खड़ा था ।
शिव प्रताप भानु को भी इस संबंध में चिंता कम न थी ,, उसने श्रीधन को अपने हिस्से की जमीन में से एक छोटा टुकड़ा दे दिया और कह दिया -"काका , आप मेरे खेतों में कार्य करें और आपको जो जमीन दी है उस पर अपने लिए अन्न उगाकर उससे अपने परिवार की जीविका चलाएं ।"
"शिव बाबू मालिक को पता चला तो वो मेरे एक कर्म बाकी न रखेंगे !"श्रीधन ने शिव प्रताप भानु ने कहा मगर शिव प्रताप भानु ने कहा -"काका वो सब आप मुझपर छोड़ो , निश्चित रहो ।"
अब श्रीधन शिव प्रताप भानु के खेतों में भी कार्य करता और जो जमीन का टुकड़ा शिव प्रताप भानु ने उसे दिया था ,उस पर भी खेती करता था , सुरतिया भी श्रीधन के साथ बराबर लगी रहती थी। शिव प्रताप भानु श्रीधन को हवेली के भीतर बाहर का सब समाचार देता रहता था ।
समय गुजर रहा था और मानसी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया था और उसके दो महीने बाद ही कनक के भी बेटा हुआ था ।
मानसी के आपरेशन से पुत्र हुआ था जबकि कनक के सामान्य तरीके से अतः कनक आराम में थी मगर मानसी अभी हवेली के गृहकार्य करने में असमर्थ थी ।
मानसी के हवेली के गृहकार्य कर न पाती और कनक किसी कार्य में हाथ ही न लगाती थी फलस्वरुप सारा कार्य करने का जिम्मा दिव्या पर आ गया था ।
सूर्य प्रताप भानु को जब पता चला था कि श्रीधन के परिवार को उपाध्याय जी का घर शिव प्रताप भानु ने खरीद कर दिया है और अपने हिस्से की जमीन का एक टुकड़ा भी दे दिया तब से वो शिव प्रताप भानु से और ज्यादा चिढ़ गए थे ।
वो दिव्य व कनक के पुत्र दिव्यांश प्रताप भानु को तो हवेली के बाहर वाले बरामदे में बैठे दिन भर गोद में खिलाया करते मगर शिव प्रताप भानु व मानसी के पुत्र राज प्रताप भानु को बस दूर से ही पुचकार लेते थे जो शिव प्रताप भानु को भी समझ आ रहा था।
मानसी जैसे ही पूर्ण स्वस्थ हुई वैसे ही दिव्या ने मुस्कुराकर कहा -"मानसी अब दिव्यांश प्रताप भानु और राज प्रताप भानु को मैं संभाल लूंगी तुम तो अपने कार्य संभालो , उमर हो रही है तो ये कार्य मुझसे न हो पाते हैं ।"
"मां कनक से भी तो मेरा हाथ बंटाने को कहिए , मैं भी सारा कार्य अकेले करते थक जाती हूं और अब तो गोद में राज प्रताप भानु भी आ गया है ।"मानसी ने दिव्या के आगे एक बार अपनी बात रखी मगर दिव्या ने मुस्कुराकर मानसी के सिर पर हाथ फेरा और बोली -" उसके पति दिव्य तो नौकरी करते हैं, कब तक यहां रहें ये कहा न जा सकता है ,अगर वो अपना परिवार लेकर चले गए तो पीछे तो तुम्हें ही सब संभालना होगा तो अभी ही संभालती रहो ।"
मानसी दिव्या का मन पढ़ने लगी थी मगर उसने फिर यही सोचा कि जैसे कर पाऊंगी करूंगी, परिवार में शांति तो बनी रहेगी मगर एक दिवस पाकशाला में जब मानसी भोजन बना रही थी तो कनक ने आकर कहा -"दीदी आज मीठे में मेरा मू़ंग दाल का हलवा खाने का बड़ा मन हो रहा है तो बना दीजिए और हां मेवे थोडे़ बड़े टुकडों में काटकर डालिएगा ,और ......" कनक मैं मीठे में खीर बना चुकी हूं तो आज तो उसी से काम चलाना पड़ेगा तुम्हें ;" मानसी ने सलाद काटते हुए कहा।
"नहीं दीदी ,मेरा तो मूंग दाल का हलवा खाने का मन है और मैं तो वही खाऊंगी , आप मेरे लिए बना दीजिए तब तक मैं जरा दिव्यांश प्रताप भानु को देख लूं।"
अब मानसी के भी सहन शक्ति का बांध टूट चुका था ,उसे लगने लगा था कि मैं चुप हूॅं तो कनक उसका पता नहीं क्या अर्थ लगा रही है अत: उसने कह ही दिया -"ऐसा है कनक मैं भी इस हवेली की बहू हूं ,और तुम्हारी जेठानी हूं,कोई नौकरानी नहीं जिसपर तुम पर हुकुम चलाती रहती हो , मुझे जो बनाना था मैंने बना दिया ,अब तुम्हें जो खाने की इच्छा हो तुम बना सकती हो , राज प्रताप भानु भूखा है मुझे उसे देखना है ।"
और मानसी अपने कक्ष में आकर राज प्रताप भानु को संभालने लगी । शिव प्रताप भानु भी अपने कक्ष में था ।
" मानसी, कनक का मूंग दाल का हलवा खाने का मन था तो बना देतीं , बेचारी का मन खराब गया तुमने बनाने से मना कर दिया !" दिव्या ने आकर मानसी से कहा ।
मानसी जान गई कि मां के पास शिकायत पहुंचाई गई है तभी मां उलाहना लेकर आई हैं ,उसने कहा -"मां आप चलिए मै बना दूंगी।"
आज मानसी का मुरझाया चेहरा शिव प्रताप भानु को बहुत कष्ट दे रहा था ,उसने मानसी से पूछा -"ये हलवे का क्या चक्कर है मानसी ?"
मानसी ने शिव प्रताप भानु को बताते हुए रोआसी होकर पूछा -"एक बात बताइए ना ये कनक को किस बात का इतना अभिमान है जो वो मुझपर रौब झाड़ती रहती है और मां भी उसी का पक्ष लेती हैं!"
शिव प्रताप भानु ने सारी बात जानकर मानसी से कहा -"कोई जरूरत नहीं है तुम्हें अब हलवा बनाने की ,उसे खाना है तो स्वयं बना ले , मैं भी ये सब बहुत समय से देखता आ रहा हूं ,बस अब बहुत हो गया अब और नहीं ,, गरीब घर से आई कनक यहां अपार धन-संपत्ति देखकर बौरा गई है और बौराए भी क्यों नहीं पिताजी ने हजारों एकड़ भूमि में से मुझे महज़ ढा़ई सौ एकड़ देकर बाकी सारी भूमि उसके पति दिव्य प्रताप भानु को जो दे दी है और मां का तो दिव्य प्रारंभ से लाड़ला है तो वो उसी की पत्नी का ही पक्ष लेंगी !!"........शेष अगले भाग में।