दिव्या और सूर्य प्रताप भानु घर के मुख्य दरवाजे से पहले बने बरामदे के ऊपर बने कमरे में ले गए , और दिव्य प्रताप भानु और कनक , दिनकर प्रताप भानु और उसकी पत्नी सहित चले गए ।
दिव्य प्रताप भानु ने चतुराई के साथ तिजोरी के सारे जेवर पहले ही अपने नाम लाॅकर खुलवाकर उसमें पहुंचा दिए थे , अब पूरे घर में ताला भी डाल दिया और बहाने से दिनकर प्रताप व उसकी पत्नी को भी अपने साथ लिए गए ।
दिवाकर प्रताप भानु तो सपत्नीक पहले से ही वहीं था ।
दिव्यांश प्रताप भानु अपने हिस्से की जमीन ,जेवर सब छोड़कर किराए के मकान में पत्नी सहित रहने लगा था ।
शिव प्रताप भानु के सब कर्म होने के पश्चात घर की शुद्धि हो चुकी थी और मानसी ने फिर एक दिवस राज प्रताप भानु को बुलाकर कहा -" तुम्हारे पिता मुझे आदेश दे गए थे कि घर के मध्य से दीवार उठवा देना तो तुम किसी कारीगर को बुलवाकर दीवार उठवा दो ।"
राज प्रताप भानु ने कहा -" मां उसकी आवश्यकता नहीं है , मैं पिता के सामने अपने हिस्से की सौ एकड़ भूमि भी राग प्रताप को देने का कह ही चुका था अब ये घर भी छोड़ रहा हूं , पिताजी के बिना इस घर में एक क्षण भी न रहा जा रहा है , मैं रुचिरा को लेकर किसी दूसरे शहर में बस जाऊंगा ।"
राज प्रताप अपने कहे अनुसार घर छोड़कर दूसरे शहर में बसने चला गया और उसके साथ ही मानसी भी चली गई।
सूर्य प्रताप भानु और दिव्या एक कक्ष में सिमट कर रह गए थे जहां उनका हाल तक पूछने वाला कोई न था !!
अब दिव्या को अपने किए का पछतावा हो रहा था ,अब उसकी आंखों से पुत्र मोह की पट्टी हटी थी , जिस बेटे पर जान न्यौछावर करती आई थी उसने उसे व उसके पति को एक कक्ष में समेट कर बाकी घर में ताला जड़कर जाते समय उसकी तरफ मुड़कर एक बार देखा तक न था ।
सूर्य प्रताप भानु और दिव्या के पास अब अगर कुछ रह गया था तो वो थीं - कचोटती तन्हाइयां।
"उफ ! ये इंसान और इनकी फितरत !! अच्छा हुआ ईश्वर ने हमें इंसान नहीं बनाया ।" मादा गौरैया ने नर गौरैया से कहा ।
" सही कह रही हो तुम , ये इंसान होते ही ऐसे हैं !!" नर गौरैया ने कहा ।
" अच्छा आपने मुझे अभी तक न बताया कि आपको ये कथा किसने सुनाई !!" मादा गौरैया ने पूछा ।
" बताऊंगा ,पहले तुम्हें अपनी कचोटती तनहाइयों से नित्यप्रति जूझते सूर्य प्रताप भानु और दिव्या को तो दिखा दूं ,देखोगी उन्हें !!" नर गौरैया ने पूछा ।
"हां अवश्य !" मादा गौरैया बोली और नर गौरैया मादा गौरैया को लेकर उडा़न भरने लगा ।
कुछ देर बाद नर गौरैया एक घर के झरोखे पर जाकर बैठा और मादा गौरैया भी उसके पास बैठ गई।
" वो उधर सामने के घर ,जो कभी हवेली हुआ करती थी ,उसके ऊपर कक्ष की खिड़की से बाहर देखते बुजुर्ग दंपति को देखो ,वही सूर्य प्रताप भानु और दिव्या प्रताप भानु हैं ।"नर गौरैया ने संकेत कर बताया ।
मादा गौरैया ने देखा - कक्ष में खिड़की के समीप एक तरफ बुजुर्ग दिव्या प्रताप भानु अथाह उदासी के साथ अपने एक हाथ को अपने गाल पर रखे खिड़की से बाहर सड़क पर आते-जाते लोगों को बहुत मायूसी के साथ देख रही थी और उसके सामने सूर्य प्रताप भानु सिर झुकाए बैठे हुए थे।
दोनों से बात करने वाला , कोई नहीं था, दोनों के पास अपने अपने हिस्से की कचोटती तन्हाइयां ही थीं जिनसे जूझते हुए अपने दिन काट रहे थे।
"अब तो बता दीजिए कि इनकी कथा आपने किससे सुनी !!" मादा गौरैया अधीर होकर बोली।
"हां पहले इधर आकर इसे तो देख लो ।" नर गौरैया ने उड़कर एक दूसरे घर के आंगन में उतर कर कहा ।
मादा गौरैया भी उस आंगन में उतरी और उसने देखा - एक बुड्डा खांसते हुए आंखों से आंसू बहाते हुए स्वयं से कह रहा था - हे ईश्वर, अब तो मुझे भी पूछ ! मुझे पूछने वाले ,मेरा हाल- चाल लेने वाले शिव बाबू को तूने पूछ लिया , मेरा पुत्र सत्य शरण उर्फ गोपी और उसकी पत्नी सुगना तो मेरे पास फटकते तक नहीं हैं !!
मेरे पास अगर कोई हर क्षण रहता है तो वो हैं कचोटती तन्हाइयां !!
इन कचोटती तनहाइयों से मुक्ति दे ईश्वर , मुक्ति दे !!
" कहीं ये..........." तुमने सही समझा ,,, ये श्रीधन है जिसका अपना पुत्र भी इससे मुंह फेरे हुए है और इसके पास भी इसकी कचोटती तन्हाइयां ही हैं " मादा गौरैया की बात पूरी होने से पहले ही उसकी बात समझ कर नर गौरैया ने कहा।
" अच्छा अब तो बताइए कि आपको ये कथा किसने सुनाई !!" मादा गौरैया नर गौरैया के साथ उडा़न भरकर एक वृक्ष पर बैठती हुई पुन: पूछने लगी ।
" एक दिवस मैं उड़ता हुआ श्रीधन के आंगन में उतरा था ,इसने मुझे देखकर अपने बिस्तर के नीचे रखे अपने भोजन थाल से भात के कुछ दाने लेटे लेटे ही मेरे आगे छिटकाकर कहा -" हे विहग , लो भोजन कर लो , मेरे साथ बात करने वाला कोई नहीं है ,मेरा हाल पूछने वाला कोई नहीं है , मेरे पास बिखरी हुई कचोटती तन्हाइयां क्यों हैं ! ये मैं तुम्हें सुनाऊं तुम सुन लो इसी बहाने कुछ देर ही सही मुझे लगेगा कि मैं किसी का सानिध्य पा गया हूं !!"
मैं अपने स्वर में चहचहाया और इसने मुझे प्रारंभ से अंत तक सारा वृत्तांत सुनाया । नर गौरैया ने मादा गौरैया से कहा और दोनों फिर उडा़न भरने को आकाश में उड़ चले ।
समाप्त ।