अब वो समय आ गया था जब शिव प्रताप भानु और दिव्य प्रताप भानु दोनों के विवाह के लिए रिश्ते आना प्रारंभ हो गए थे।सूर्य प्रताप लड़की वालों से वार्ता करते और उनके द्वारा लाई उनकी बेटी की फोटो हवेली के भीतर दिव्या के पास पहुँचा देते और दिव्या फोटो देखकर जैसा जो होता बता देती थी ।
रिश्ते तो ऊपर वाला तय करता है ,इंसान तो निमित्त मात्र होता है तो किसी में कुछ न मिलता तो किसी में कुछ कमी होती और बात चलती रहती थी ।एक दिवस शिव प्रताप भानु के लिए एक अच्छा रिश्ता आया , लड़की भी देखने में सही ही थी तो उसके साथ शिव प्रताप भानु का विवाह तय हो गया और फिर शिव प्रताप भानु उस कन्या मानसी के साथ विवाह के बंधन में बंध गए ।
मानसी अपने माँ और पिता की इकलौती बेटी थी , स्वस्थ काया की मानसी बहुत ही रईस स्वभाव की थी । जहाँ दिव्या अपनी बहू को पाकर फूली न समा रही थी वहीं मानसी अपने अधरों पर लगे मौन के ताले को खोलने से पहले हवेली के हर व्यक्ति के स्वभाव से पूर्ण परिचित हो जाना चाहती थी ।
सुरतिया के द्वारा मानसी का चूल्हा पूजन करा दिया गया था और सूर्य प्रताप ने दिव्या को स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि बहू के आने के बाद पाकशाला का उत्तरदायित्व बहू को दिया जाए ।
जब तक बहू न थी तब तक बात और थी ,अब बहू आ गई है तो पाकशाला में बहू ही सुशोभित हो वही अच्छा होता है ,सुरतिया से तरकारी धोने,काटने इत्यादि ऊपर के कार्य कराओ बाकी भोजन तो बहू के द्वारा ही दोनों समय बनेगा और मैं अब से दोनों समय का भोजन भीतर करूँगा ,परोसने का कार्य बहू ही करेगी ।
दिव्या ने जब इस बात से मानसी को अवगत कराया तो उसका मुँह ही बन गया मगर वो बोली कुछ नहीं ,उसने दिवस में भोजन भी न किया और अपने कमरे में गाल फुलाए बैठी रही ।
शिव प्रताप किसी कार्य से जब अपने कक्ष में आया तो उसने देखा कि मानसी के गाल फूले हैं ।
"क्या हुआ मानसी ?तुम्हारे गाल फूले क्यों हैं ? मुँह में कुछ दबाए हो क्या ?"
मानसी ने उठकर अपने पीछे छुपाए पीकदान को निकाल कर उसमें थूकते हुए ,मन की बात कहते हुए अपनी नाराजगी भी प्रकट कर दी --" देखिए पहली बात ,आप देख कर समझ ही गए होंगे फिर भी बता दूँ , मैं पान व पुडिया का शौक रखती हूँ और दूसरी बात , आपके पिता के द्वारा आदेश हुआ है कि बहू के आने के बाद पाकशाला बहू सँभालेगी जो मुझे बिलकुल भी नहीं पसंद है ,,, मेरे घर में भी चार चार नौकर झूलते थे और हम खाना बनाते नहीं बनवाते थे इसलिए यहाँ आकर मैं पाकशाला में पसीना बहाऊँ ये मुझसे कदापि न होगा ।"
शिव प्रताप भानु वैसे भी पिता के नाम से खार खाता था तो उसने मानसी की बात का समर्थन करते हुए कहा -" पिताजी को ऐसा निर्णय न लेना चाहिए !!अभी तक सुरतिया काकी पाकशाला सँभालते हुए आई हैं तो अब आगे भी सँभाल लेंगी तो कौन सा पहाड़ टूट पडे़गा !!
मैं माँ से बात करता हूँ और दूसरी बात तुम्हें पान व पुडिया का शौक है तो तुम यहाँ खा लिया करो सबके सामने मत खाना मुझे भी पान व पुडि़या भाता है पर मैं भी सबकी नजर बचाकर चुपके से खा लेता हूँ ।"
मानसी का मन प्रसन्न हो गया कि प्रिय उसके विचारों को समझ कर साथ देने वाले हैं ।
शिव प्रताप भानु दिव्या के पास गया जहाँ सुरतिया भी थी।
"माँ मुझे आपसे कुछ बात करनी है ?" शिव प्रताप ने कहा ।
"हाँ कहो शिव !क्या बात है ?बहुत उखडे़ हुए लग रहे हो !"दिव्या ने पूछा ।
"माँ मानसी पाकशाला में भोजन न बना पाएगी ,उसकी आदत नहीं है ।" शिव प्रताप भानु ने दो टूक जवाब दिया।
"देखो शिव तुम्हारे पिता का कहना है कि भोजन गृह की लक्ष्मी बनाए वो ही अच्छा होता है और लड़की को ससुराल आकर अपनी आदतें बदलनी पड़ती हैं ,ससुराल के हिसाब से अपने को ढा़लना पड़ता है ,,,।" दिव्या ने कहा।
" अच्छा !और अभी तक तो सुरतिया काकी पाकशाला सँभाले थीं तब तो कोई आपत्ति न थी !!बहू के घर में कदम पड़ते ही सारा ज्ञान बाहर आने लगा !!" शिव प्रताप ने चिढ़ कर कहा ।
" देखो शिव बहू के आते ही बहू के रंग में रंगना सही नहीं है ,, हम औरतें वही करती हैं जो पति का आदेश होता है और तुम्हारे पिता कुछ गलत भी तो न कह रहे हैं !!
बहू भोजन न बनाएगी तो क्या करेगी !! सुरतिया की भी उमर हो रही है ,,,उसे भी अब आराम मिलना चाहिए !! बहू को घर के नियमों के अनुसार चलना ही चाहिए ।" दिव्या ने स्पष्ट किया ।
" माँ वो मैं कुछ न जानता ,, बहू भी किसी की बेटी ही होती है तो वो जैसे अपने घर में रहती आई वैसे ही उसे ससुराल में भी रहने की आज्ञा मिलनी चाहिए ।"शिव प्रताप ने कहा ।
"शिव तुम व्यर्थ का विवाद कर घर में तनाव न उत्पन्न करो ,मुझसे कुछ छुपा नहीं है ,, वो कल की आई लड़की तुम्हें नचाने लगी !! वो जो मुँह में पान,पुडिया दबाए रहती है ,,वो क्या जानती है कि किसी को पता न चलेगा !! ये सब यहाँ न चलेगा ,,अभी तुम्हारे पिता जीवित हैं और वो जैसा कहेंगे वैसा ही होगा ,,,कुछ सीखो दिव्य प्रताप से ,, वो वही करता है जो मैं और उसके पिता चाहते हैं और तुम मनमानी करने लगे हो !!"
माँ के द्वारा दिव्य की बात उठाना शिव प्रताप को चुभ गया और वो दनदनाता हुआ दिव्या के कक्ष से निकल कर अपने कक्ष में आ गया ।
"क्या हुआ ? माँ ने क्या कहा ?"मानसी ने शिव प्रताप का उतरा मुँह देखकर पान चबाते हुए पूछा ।
" माँ ने साफ मना कर दिया ,, वो छोडो़ पाकशाला में तुम थोडे़ समय के लिए भोजन बना लो फिर आगे की आगे देखी जाएगी ।" शिव प्रताप ने मानसी को मनाते हुए कहा ,यद्यपि वो भी न चाहता था कि मानसी पाकशाला में पसीना बहाए ,, ..........शेष अगले भाग में।